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BNMU कर्यशाला समापन पूर्व दो सत्रों का आयोजन।* *बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय एवम् अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के विशेषज्ञों ने प्रकट किए अपने विचार।

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*कर्यशाला समापन पूर्व दो सत्रों का आयोजन।*

*बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय एवम् अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के विशेषज्ञों ने प्रकट किए अपने विचार।*

*प्रो डॉ भारतेंदु कुमार सिंह एवम् डॉ नशीद इम्तेयाज ने शोधार्थियों को किया प्रशिस्क्षी।*

*कायशाला पूर्णतः रहा सफल: प्रो रहमान*

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स्नातकोत्तर मनोविज्ञान विभाग में चल रहे राष्ट्रीय कार्यशाला के अन्तिम दिन पहली पाली में दो अकादमी सत्र का आयोजन किया गया। पहले सत्र में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी के भौतिकी विज्ञान के जाने माने विश्व विख्यात प्रोफेसर डॉ भारतेंदु कुमार सिंह ने सक्सेस इन अकादमिया: ए गाइड टू युंग रिसर्चर पर शोध्चार्ती के बीच अपनी बात रखी। उन्होंने बताया कि एक अच्छा शोध पत्र लिखने में समय, विचार और प्रयास लगता है। यद्यपि यह कार्य चुनौतीपूर्ण है, फिर भी इसे प्रबंधित किया जा सकता है। एक समय में एक कदम पर ध्यान केंद्रित करने से आपको एक विचारशील, जानकारीपूर्ण, अच्छी तरह से समर्थित शोध पत्र विकसित करने में मदद मिलेगी।

आपका पहला कदम एक विषय चुनना है और फिर शोध प्रश्न, एक कामकाजी थीसिस और एक लिखित शोध प्रस्ताव विकसित करना है। प्रक्रिया के इस भाग के लिए पर्याप्त समय निर्धारित करें। विचारों की पूरी तरह से खोज करने से आपको अपने पेपर के लिए एक ठोस आधार बनाने में मदद मिलेगी।जब आप किसी शोध पत्र के लिए कोई विषय चुनते हैं, तो आप एक बड़ी प्रतिबद्धता बना रहे होते हैं। आपकी पसंद यह निर्धारित करने में मदद करेगी कि क्या आप शोध और लेखन की लंबी प्रक्रिया का आनंद लेते हैं – और क्या आपका अंतिम पेपर असाइनमेंट आवश्यकताओं को पूरा करता है। यदि आप जल्दबाजी में अपना विषय चुनते हैं, तो बाद में आपको अपने विषय पर काम करने में कठिनाई हो सकती है। अपना समय लेकर और सावधानी से चयन करके, आप यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि यह कार्य न केवल चुनौतीपूर्ण है बल्कि फायदेमंद भी है।

लेखक ऐसे विषय को चुनने के महत्व को समझते हैं जो असाइनमेंट की आवश्यकताओं को पूरा करता हो और असाइनमेंट के उद्देश्य और दर्शकों के अनुकूल हो। (उद्देश्य और दर्शकों के बारे में अधिक जानकारी के लिए, अध्याय 6 “पैराग्राफ लिखना: विचारों को अलग करना और सामग्री को आकार देना” देखें ।) ऐसा विषय चुनना भी महत्वपूर्ण है जिसमें आपकी रुचि हो। आपका प्रशिक्षक सुझाए गए विषयों की एक सूची प्रदान कर सकता है या आपसे स्वयं एक विषय विकसित करने के लिए कह सकता है। किसी भी स्थिति में, उन विषयों की पहचान करने का प्रयास करें जिनमें वास्तव में आपकी रुचि है।

संभावित विषय विचारों की पहचान करने के बाद, आपको अपने विचारों का मूल्यांकन करना होगा और आगे बढ़ाने के लिए एक विषय चुनना होगा। क्या आप विषय के बारे में पर्याप्त जानकारी पा सकेंगे? क्या आप इस विषय पर एक पेपर विकसित कर सकते हैं जो आपके मूल विचारों को प्रस्तुत करता है और उनका समर्थन करता है? क्या असाइनमेंट के दायरे के लिए विषय बहुत व्यापक या बहुत संकीर्ण है? यदि हां, तो क्या आप इसे संशोधित कर सकते हैं ताकि यह अधिक प्रबंधनीय हो? अनुसंधान प्रक्रिया के इस प्रारंभिक चरण के दौरान आप ये प्रश्न पूछेंगे। उन्होंने शोधार्थियों को सुझाव देते हुए कहा किकभी-कभी, आपका प्रशिक्षक सुझाए गए विषयों की एक सूची प्रदान कर सकता है। यदि हां, तो एक विचार पर प्रतिबद्ध होने से पहले कई संभावनाओं की पहचान करने से आपको लाभ हो सकता है। यह जानना महत्वपूर्ण है कि अपने विचारों को संक्षिप्त, प्रबंधनीय थीसिस में कैसे सीमित किया जाए। आप अतिरिक्त, संबंधित विषयों की पहचान करने में मदद के लिए सूची को शुरुआती बिंदु के रूप में भी उपयोग कर सकते हैं। अपने प्रशिक्षक के साथ अपने विचारों पर चर्चा करने से यह सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी कि आप एक प्रबंधनीय विषय चुनें जो असाइनमेंट की आवश्यकताओं के अनुरूप हो।

दूसरे सत्र में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की ख्याति प्राप्त डॉ श्रीमती नशीद इम्तेयाज ने राष्ट्रीय शिक्षा योजना और शोध पर अपने विचार शोर्थियों के समक्ष रखा। उन्होंने चर्चा करते हुए विस्तारपूर्वक बताया किनीति में स्कूल से लेकर उच्च शिक्षा तक सभी स्तरों पर सुधार का प्रावधान है। एनईपी का उद्देश्य शिक्षक प्रशिक्षण को मजबूत करने, मौजूदा परीक्षा प्रणाली में सुधार, प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा के नियामक ढांचे के पुनर्गठन पर ध्यान केंद्रित करना है।कस्तूरीरंगन समिति द्वारा प्रस्तुत राष्ट्रीय शिक्षा नीति का उद्देश्य मौजूदा शिक्षा प्रणाली के समक्ष आने वाली निम्नलिखित चुनौतियों का समाधान करना है:गुणवत्ता, सामर्थ्य,हिस्सेदारी,पहुँच और जवाबदेही। उन्होंने बताया कि नई शिक्षा नीति देश के नव निर्माण में मील का पत्थर साबित होगी। इसे लागू करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जो दृढ़ इच्छाशक्ति दिखाई, वह प्रशंसनीय है। केंद्रीय शिक्षा मंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक ने इसे वृहद रूप देकर उसकी उपयोगिता को और अधिक सार्थक बनाया है। इसमें राष्ट्रीय शिक्षा नीति समिति के अध्यक्ष डॉ. कस्तूरीरंगन व उनकी टीम का अथक प्रयास भी समाहित है। देश में विश्वस्तरीय शिक्षा प्रदान करने के लिए कई स्तरों पर सुधार व परिवर्तन की आवश्यकता थी।

 

इसे ध्यान में रखते हुए ही नई शिक्षा नीति में प्राथमिक, माध्यमिक व उच्च शिक्षा में व्यापक परिवर्तन की योजना बनाई गई है। स्कूली शिक्षा में वर्ष 2030 तक शत प्रतिशत नामांकन का लक्ष्य रखा गया है। पांचवीं कक्षा तक की शिक्षा क्षेत्रीय या मातृ भाषा में प्रदान किए जाने का निर्णय भी सराहनीय है। क्षेत्रीय परिवेश में शिक्षा ग्रहण करना बच्चों के लिए सुलभ होता है। इससे वह स्कूल जाने के लिए उत्सुक रहेंगे और शिक्षा ग्रहण करना उन्हें बोझ नहीं लगेगा। क्षेत्रीय या मातृ भाषा में शिक्षा प्रदान करने में अध्यापकों को भी सहूलियत होगी।

सत्रों के अंत में कार्यशाला के निदेशक प्रो डॉ एम आई रहमान ने विषय विशेषज्ञों का आभार प्रकट किया। उन्होंने बताया कि आयोजित कार्यशाला का उद्देश्य शिक्षकों और शोधार्थियों में शोध कौशल का विकास करना था जिस दिशा में उन्हें सफलता मिली है। भूपेंद्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं के साथ ही साथ भारत के विभिन्न राज्यों उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, झारखंड, वेस्ट बंगाल, त्रिपुरा एवम् दिल्ली के विभिन्न विश्वविद्यालयों के शोधार्थी इस कार्यशाला से लाभान्वित हुए हैं।

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बिहार के लाल कमलेश कमल आईटीबीपी में पदोन्नत, हिंदी के क्षेत्र में भी राष्ट्रीय पहचान अर्धसैनिक बल भारत -तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) में कार्यरत बिहार के कमलेश कमल को सेकंड-इन-कमांड पद पर पदोन्नति मिली है। अभी वे आईटीबीपी के राष्ट्रीय जनसंपर्क अधिकारी हैं। साथ ही ITBP प्रकाशन विभाग की भी जिम्मेदारी है। पूर्णिया के सरसी गांव निवासी कमलेश कमल हिंदी भाषा-विज्ञान और व्याकरण के प्रतिष्ठित विद्वान हैं। उनके पिता श्री लंबोदर झा, राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित शिक्षक हैं और उनकी धर्मपत्नी दीप्ति झा केंद्रीय विद्यालय में हिंदी की शिक्षिका हैं। कमलेश कमल को मुख्यतः हिंदी भाषा -विज्ञान, व्याकरण और साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिए देश भर में जाना जाता है। वे भारतीय शिक्षा बोर्ड के भी भाषा सलाहकार हैं। हिंदी के विभिन्न शब्दकोशों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके हैं। उनकी पुस्तकों ‘भाषा संशय-शोधन’, ‘शब्द-संधान’ और ‘ऑपरेशन बस्तर: प्रेम और जंग’ ने राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति अर्जित की है। गृह मंत्रालय ने ‘भाषा संशय-शोधन’ को अपने अधीनस्थ कार्यालयों में उपयोग के लिए अनुशंसित किया है। उनकी अद्यतन कृति शब्द-संधान को भी देशभर के हिंदी प्रेमियों का भरपूर प्यार मिल रहा है। यूपीएससी 2007 बैच के अधिकारी कमलेश कमल की साहित्यिक एवं भाषाई विशेषज्ञता को देखते हुए टायकून इंटरनेशनल ने उन्हें देश के 25 चर्चित ब्यूरोक्रेट्स में शामिल किया था। वे दैनिक जागरण में ‘भाषा की पाठशाला’ लोकप्रिय स्तंभ लिखते हैं। बीते 15 वर्षों से शब्दों की व्युत्पत्ति एवं शुद्ध-प्रयोग पर शोधपूर्ण लेखन कर रहे हैं। सम्मान एवं योगदान : गोस्वामी तुलसीदास सम्मान (2023) विष्णु प्रभाकर राष्ट्रीय साहित्य सम्मान (2023) 2000 से अधिक आलेख, कविताएँ, कहानियाँ, संपादकीय, समीक्षाएँ प्रकाशित देशभर के विश्वविद्यालयों में ‘भाषा संवाद: कमलेश कमल के साथ’ कार्यक्रम का संचालन यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए हिंदी एवं निबंध की निःशुल्क कक्षाओं का संचालन उनका फेसबुक पेज ‘कमल की कलम’ हर महीने 6-7 लाख पाठकों द्वारा पढ़ा जाता है, जिससे वे भाषा और साहित्य के प्रति जागरूकता बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं। बिहार के लिए गर्व का विषय : आईटीबीपी में उनकी इस उपलब्धि और हिंदी के प्रति उनके योगदान पर पूर्णिया सहित बिहारवासियों में हर्ष का माहौल है। उनकी इस सफलता ने यह साबित कर दिया है कि बिहार की प्रतिभाएँ राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी छाप छोड़ रही हैं। वरिष्ठ पत्रकार स्वयं प्रकाश के फेसबुक वॉल से साभार।

भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली द्वारा प्रायोजित दिनाँक 2 से 12 फरवरी, 2025 तक भोगीलाल लहेरचंद इंस्टीट्यूट ऑफ इंडोलॉजी, दिल्ली में “जैन परम्परा में सर्वमान्य ग्रन्थ-तत्त्वार्थसूत्र” विषयक दस दिवसीय कार्यशाला का सुभारम्भ।

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