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BNMU। कोशी के लाल डॉ. परमेश्वर प्रसाद यादव को नमन/ डेविड यादव

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कोशी के लाल डॉ. परमेश्वर प्रसाद यादव को नमन/ डेविड यादव

कहा गया है कि जिसकी कीर्ति होती है, वह हमेशा जीवित रहता है। सचमुच इंसान इस धरती पर आते हैं और कुछ दिनों में चले जाते हैं। लेकिन उनके विचार एवं कार्य हमेशा हमारे बीच किसी न किसी रूप में मौजूद रहते हैं। कोशी के लाल डॉ. परमेश्वर प्रसाद यादव उर्फ अश्वनी बाबू ( 5 जनवरी, 1957-04 सितंबर, 2012) भी अपने विचारों एवं कार्यों के कारण हमारे बीच आज भी मौजूद हैं। आप अपने विचारों एवं कार्यों के लिए हमेशा याद किए जाएंगे। विशेष रूप से मधेपुरा एवं सुपौल जिले में शिक्षा के विकास में आपके द्वारा किए कार्य हमेशा अविस्मरणीय रहेंगे। आपने अपने जीवन काल में कई पदों को सुशोभित किया।

किसान और राजनीतिक पृष्ठभूमि वाले परिवार में आपका जन्म 5 एक 1957 को हुआ। माता का नाम श्रीमती सुशीला देवी और पिता का नाम श्री मिश्रीलाल यादव था। आप माता- पिता के जेष्ठ पुत्र थे और इस कारण आप हमेशा उनके दुलारे रहे। माता-पिता का आशीर्वाद और दुआएं हमेशा आपके साथ रहा। शायद इसी वजह से आप लगातार सफलता की सीढ़ियां चढ़ते रहे और अपने ज्ञान एवं कौशल का सदुपयोग समाज की उन्नति के लिए किया।

बहुमुखी प्रतिभा के धनी अश्वनी बाबू की प्रारंभिक शिक्षा अपने पैतृक गांव में हुई। पुनः मैट्रिक स्तर की शिक्षा टीपी कॉलेजिएट स्कूल, मधेपुरा से हुई। विज्ञान विषय में बचपन से आपकी गहरी अभिरुचि थी, जिसकी वजह से आपने विज्ञान संकाय में टीपी कॉलेज, मधेपुरा से इंटर किया‌ पुनः बीएससी जूलॉजी ऑनर्स की डिग्री प्राप्त की। आप अपने शिक्षण कार्यक्रम को जारी रखते हुए स्नातकोत्तर की पढ़ाई के लिए कानपुर चले गए जहां के डीएवी कॉलेज, कानपुर से आपने एमएससी जूलॉजी में प्रथम श्रेणी में स्नातकोत्तर की डिग्री हासिल की।

आप बचपन से ही अपने बड़े पापा पूर्व सांसद, पूर्व कुलपति एवं पूर्व शिक्षा मंत्री डॉ. महावीर प्रसाद यादव के सानिध्य में रहे।आपके जीवन पर उनकी जीवनशैली का गहरी छाप रही। आपने अपने परिश्रम और संस्कार की बदौलत जो भी ज्ञान हासिल किया उसे आप जनों में बांटना चाहते थे‌। आप चाहते थे कि कोसी क्षेत्र के पिछड़े इलाके के छात्र-छात्राएं अपने आप को शिक्षित कर अपने जीवन स्तर को ऊंचा उठाएं। इसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए आपने अपना प्रयास जारी रखा और तत्कालीन त्रिवेणीगंज कॉलेज, त्रिवेणीगंज में जंतु विज्ञान विभाग के व्याख्याता एवं विभागाध्यक्ष नियुक्त किए गए‌। यहां के स्थानीय विधायकों और पूर्व मंत्री श्री अनूप लाल यादव का निरंतर आपको आशीर्वाद मिलता रहा‌‌। आपने हमेशा इस महाविद्यालय के ढांचागत व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन लाने का प्रयास किया। इसमें शत-प्रतिशत सफल भी रहे। आप हमेशा महाविद्यालय के तत्कालीन प्रखर वक्ता प्रोफेसर सोनेलाल कामत को अपने मित्रों और सहयोगियों के साथ इस पुनीत कार्य में सहयोग करते रहे। आपकी प्रबंधन क्षमता और कौशल की सराहना हमेशा संपूर्ण महाविद्यालय के कर्मचारियों अध्यापकों समाज के सभी वर्गों के बीच मुक्त कंठ से होती रही‌। आपके अद्भुत नेतृत्व कौशल, प्रबंधन क्षमता और शैक्षणिक उपलब्धियों को देखते हुए कॉलेज सर्विस कमिशन, पटना, बिहार द्वारा आपको इस महाविद्यालय का प्रचार्य नियुक्त किया गया। आपकी अद्भुत कार्य शैली ने इस महाविद्यालय को एक नए मुकाम पर लाकर खड़ा किया। एक नई पहचान दी। आप यहीं रुकने वाले नहीं थे आप हमेशा यूनिवर्सिटी ग्रांट कमिशन, नई दिल्ली के संपर्क में रहें। यहां से वित्तीय अनुदान प्राप्त कर आप इसे महाविद्यालय के चौमुखी विकास में लगे रहे। आपने इस महाविद्यालय को एक नए स्वरूप में लाकर खड़ा किया। शिक्षा के साथ-साथ खेलकूद एवं सांस्कृतिक गतीविधियों की उन्नति के लिए आप निरंतर प्रयासरत रहे। महाविद्यालय की ख्याति समस्त मिथिलांचल में फैल गई यहां के छात्र-छात्राएं अब डॉक्टर, इंजीनियर, पब्लिक सर्विस कमीशन में जाने लगे। महाविद्यालय की उपलब्धियां से प्रभावित होकर एक तरह से क्षेत्र का तमाम शिक्षाविद इससे जुड़े। यह महाविद्यालय शिक्षा का हब बन गया। आपने अपने प्रधानाचार्य काल में महाविद्यालय को यूजीसी से 2 एफ और 12 बी की मान्यता दिलाई।

आप यहीं नहीं रुके अपने ज्ञानार्जन और शोध के कार्य को आगे बढ़ाते हुए आपने बी. एन. मंडल यूनिवर्सिटी, मधेपुरा से पी-एच. डी. की उपाधि प्राप्त की। आप हमेशा क्षेत्र के गरीब छात्र-छात्राओं की चिंता करते रहे। उनके आर्थिक हालात को शिक्षा प्राप्त करने के मार्ग में कभी अवरोध बनने नहीं दिया। जहां तक संभव हो पाया, अपने सीमित संसाधनों में भी उन्हें सारी सुविधा मुहैया कराने की भरपूर कोशिश की‌। आप छात्र-छात्राओं के भविष्य के प्रति हमेशा चिंतित रहते थे। आपके मन में शिक्षक साथियों के लिए स्नेह और सम्मान का भाव रहता था। इसलिए आप अपने मित्रों के बीच काफी लोकप्रिय रहे। आप सामाजिक सोच के समग्र विकास के लिए समर्पित रहे। इसकी वजह यह भी कि आपने सिर्फ अपने कॉलेज, बल्कि क्षेत्र के तमाम महाविद्यालयों के विकास की चिंता करते थे और उसकी समस्यायों का समाधान ढूंढने का भी भरसक प्रयास करते थे। शायद यही वजह है कि आप को सर्वसम्मति से संबंद्ध डिग्री महाविद्यालय प्रधानाचार्य संघ का अध्यक्ष चुना गया। इस जिम्मेदारी का आपने बखूबी निर्वह्ण किया। आपके काम करने का दायरा काफी बढ़ गया। विश्वविद्यालय स्तर पर आपकी सलाह ली जाने लगी। आप सबके चहेते बन गए।शिक्षा खेल और सामाजिक कार्यों के क्षेत्र में इनके द्वारा स्थापित प्रतिमान हमें आज भी प्रेरित करते हैं।

आप छात्र-छात्राओं के भविष्य के प्रति हमेशा चिंतित रहते थे। आपके मन में शिक्षक साथियों के लिए स्नेह और सम्मान का भाव रहता था। आप सामाजिक सोच के समग्र विकास के लिए समर्पित रहे। 4 सितंबर, 2012 को आप महाविद्यालय के कार्य से पटना में थे और अचानक आप हमें छोड़ कर चले गए। लेकिन आपने कोसी क्षेत्र में शिक्षा के विकास के लिए जिस प्रकार काम किया वह हमेशा अविस्मरणीय रहेगा। बेशक आज आप सशरीर हमारे बीच मौजूद नहीं हैं, लेकिन आप सशरीर न हो कर भी विचारों के रूप में हमारे बीच मौजूद हैं। आपकी यश, कीर्ति एवं ख्याति हमेशा बनी रहेगी। आप हमेशा हमारी स्मृतियों में जीवित रहेंगे। आज की नवीं पुण्यतिथि पर आपको शत-शत नमन। आपके लिए पक्षियों में कुछ परिवर्तन करना करते हुए कहना चाहूंगा, ”बड़े गौर से सुन रहा था जमाना/ तुम्हीं चल दिए दास्तां कहते-कहते।”

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बिहार के लाल कमलेश कमल आईटीबीपी में पदोन्नत, हिंदी के क्षेत्र में भी राष्ट्रीय पहचान अर्धसैनिक बल भारत -तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) में कार्यरत बिहार के कमलेश कमल को सेकंड-इन-कमांड पद पर पदोन्नति मिली है। अभी वे आईटीबीपी के राष्ट्रीय जनसंपर्क अधिकारी हैं। साथ ही ITBP प्रकाशन विभाग की भी जिम्मेदारी है। पूर्णिया के सरसी गांव निवासी कमलेश कमल हिंदी भाषा-विज्ञान और व्याकरण के प्रतिष्ठित विद्वान हैं। उनके पिता श्री लंबोदर झा, राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित शिक्षक हैं और उनकी धर्मपत्नी दीप्ति झा केंद्रीय विद्यालय में हिंदी की शिक्षिका हैं। कमलेश कमल को मुख्यतः हिंदी भाषा -विज्ञान, व्याकरण और साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिए देश भर में जाना जाता है। वे भारतीय शिक्षा बोर्ड के भी भाषा सलाहकार हैं। हिंदी के विभिन्न शब्दकोशों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके हैं। उनकी पुस्तकों ‘भाषा संशय-शोधन’, ‘शब्द-संधान’ और ‘ऑपरेशन बस्तर: प्रेम और जंग’ ने राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति अर्जित की है। गृह मंत्रालय ने ‘भाषा संशय-शोधन’ को अपने अधीनस्थ कार्यालयों में उपयोग के लिए अनुशंसित किया है। उनकी अद्यतन कृति शब्द-संधान को भी देशभर के हिंदी प्रेमियों का भरपूर प्यार मिल रहा है। यूपीएससी 2007 बैच के अधिकारी कमलेश कमल की साहित्यिक एवं भाषाई विशेषज्ञता को देखते हुए टायकून इंटरनेशनल ने उन्हें देश के 25 चर्चित ब्यूरोक्रेट्स में शामिल किया था। वे दैनिक जागरण में ‘भाषा की पाठशाला’ लोकप्रिय स्तंभ लिखते हैं। बीते 15 वर्षों से शब्दों की व्युत्पत्ति एवं शुद्ध-प्रयोग पर शोधपूर्ण लेखन कर रहे हैं। सम्मान एवं योगदान : गोस्वामी तुलसीदास सम्मान (2023) विष्णु प्रभाकर राष्ट्रीय साहित्य सम्मान (2023) 2000 से अधिक आलेख, कविताएँ, कहानियाँ, संपादकीय, समीक्षाएँ प्रकाशित देशभर के विश्वविद्यालयों में ‘भाषा संवाद: कमलेश कमल के साथ’ कार्यक्रम का संचालन यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए हिंदी एवं निबंध की निःशुल्क कक्षाओं का संचालन उनका फेसबुक पेज ‘कमल की कलम’ हर महीने 6-7 लाख पाठकों द्वारा पढ़ा जाता है, जिससे वे भाषा और साहित्य के प्रति जागरूकता बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं। बिहार के लिए गर्व का विषय : आईटीबीपी में उनकी इस उपलब्धि और हिंदी के प्रति उनके योगदान पर पूर्णिया सहित बिहारवासियों में हर्ष का माहौल है। उनकी इस सफलता ने यह साबित कर दिया है कि बिहार की प्रतिभाएँ राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी छाप छोड़ रही हैं। वरिष्ठ पत्रकार स्वयं प्रकाश के फेसबुक वॉल से साभार।

भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली द्वारा प्रायोजित दिनाँक 2 से 12 फरवरी, 2025 तक भोगीलाल लहेरचंद इंस्टीट्यूट ऑफ इंडोलॉजी, दिल्ली में “जैन परम्परा में सर्वमान्य ग्रन्थ-तत्त्वार्थसूत्र” विषयक दस दिवसीय कार्यशाला का सुभारम्भ।

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