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Bihar निदेशक ने किया सिंहेश्वर मंदिर में पूजा-अर्चना

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निदेशक ने किया सिंहेश्वर मंदिर में पूजा-अर्चना
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उच्च शिक्षा निदेशक प्रोफेसर
डॉ. रेखा कुमारी ने शनिवार को सिंहेश्वरनाथ मंदिर में पूजा-अर्चना की और बिहार की शैक्षणिक उन्नति के लिए बाबा भोलेनाथ से आशीर्वाद
मांगा। मंदिर के पुजारी ने वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ विशेष पूजा संपन्न कराया। उन्होंने बताया कि सिंहेश्वर बाबा की महिमा अपरंपार है।

इनकी ख्याति देश-विदेश तक फैली हुई है। बाबा के
दरबार से कोई खाली हाथ नहीं लौटता है। बाबा
सबकी मुरादें पूरी करते हैं। बीएनएमयू के उपकुलसचिव (स्थापना) डॉ. सुधांशु शेखर ने बताया कि निदेशक की धर्म-कर्म में गहरी आस्था है। उन्होंने सिंहेश्वर मंदिर के संबंध में भी विस्तृत
जानकारी प्राप्त की।

इस अवसर पर कुलसचिव डॉ. मिहिर कुमार ठाकुर, बीएनमुस्टा के महासचिव डॉ. नरेश कुमार, जंतु विज्ञान विभागाध्यक्ष डॉ. अरुण कुमार आदि उपस्थित थे।

मालूम हो कि सिंहेश्वर मंदिर का पौराणिक महत्व है। यह बिहार का देवघर के नाम से सुप्रसिद्ध है। यहां देवाधिदेव महादेव की श्रृंगीश्वर के नाम से अराधना की जाती है।श्रृंगीश्वर महर्षि श्रृंगी के अराध्य थे। कालांतर में श्रृंगीश्वर सिंहेश्वर बन गया।

‘वाराह पुराण’ में चर्चा है कि महादेव एक बार हिरण का वेश धारण कर छिप गए। उनकी अनुपस्थिति में असुरों ने काफी उधम मचाया। त्रस्त ब्रह्मा, विष्णु तथा इन्द्र देव उन्हें खोजने निकले। उन लोगों ने महादेव को हीरो के छद्मवेष में पहचान लिया और उनसे वापस चलने की विनती की। लेकिन हिरण
रुपी छद्मवेशी महादेव ने देवताओं के साथ चलने में
अपनी असमर्थता जताई। फिर देवगण मिलकर हिरण
रुपी महादेव को जबरन अपने साथ ले जाने के लिए
उनके सिंग को पकड़कर खिंचने लगे। लिहाजा हिरण
के अंग तीन भागों में विभक्त हो गए। श्रृंग अर्थात सिंग
वाला भाग जिस स्थान पर रहा, वही श्रृंगेश्वर या
सिंहेश्वर कहलाया।

त्रेता में राजा दशरथ ने ॠष्य श्रृंग की प्रेरणा से यहाँ पुत्रेष्ठी यज्ञ किया था। तदुपरांत उन्हें
मर्यादा पुरुषोत्तम राम आदि पुत्रों की प्राप्ति हुई।
सिंहेश्वर स्थान का सतोखर ग्राम सप्त पुष्कर सात
पोखर यज्ञ का सप्त कुण्ड था।

शिव पुराण के रुद्र संहिता खण्ड में वर्णित महर्षि
दधिचि और राजा ध्रुत के बीच अंतिम संघर्ष यहीं हुआ
था। इसमें महर्षि दधिचि विजयी हुए थे। ऐसा भी कहा
जाता है कि पांडवों ने विराटनगर नेपाल के भीम बांध क्षेत्र में शरण लेने के पश्चात सिंहेश्वर में शिव की पूजा की थी।

मध्ययुग के महान विद्वान पण्डित मंडन मिश्र, जिनका शंकराचार्य से उनका शास्त्रार्थ हुआ था, सिंहेश्वर में ही रहते थे। यहाँ नवाब होशियार जंग बहादुर के अनुसार सिंहेश्वर नाथ महादेव की सेवा अर्चना हेतु महाराजाधिराज दरभंगा श्री माधो सिंह ने मौजा
गौरीपुर सहित 1100 एकड़ जमीन मंदिर को दान में
दिया था।

1937 में दिल्ली से आए मुख्य अभियंता दल ने इस मंदिर के चार सौ फीट नीचे पहाड़ पाया था। ऐसी मान्यता है कि भूमिगत पहाड़ का
ऊपरी भाग ही शिवलिंग है। वर्तमान शिवलिंग ऊपरी
सतह से लगभग चार फीट नीचे अवस्थित है।

यह मंदिर सौम्य प्रकृति के गोद में परवाने तथा बैवाह नदी के संगम पर अवस्थित है। कभी चंचला कोसी नदी के मंदिर के बगल से गुजरती थी। लेकिन कोसी की मुख्यधारा के करवट लेने से इसकी उफनती धारा मंदिर से दूर चली गयी। लेकिन
चंचला कोसी अपने नाम पर निकट में एक शाखा छोड़
गयी है, जो वर्तमान में मृतप्राय है। कोसी की भीषण
विभीषिका के चलते कभी यह मंदिर बालुका राशि में
विलीन थी, बाद में बालू की चमकीली रेतों की गिरफ्त
से मंदिर को पूर्णरुपेण मुक्त किया गया।

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बिहार के लाल कमलेश कमल आईटीबीपी में पदोन्नत, हिंदी के क्षेत्र में भी राष्ट्रीय पहचान अर्धसैनिक बल भारत -तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) में कार्यरत बिहार के कमलेश कमल को सेकंड-इन-कमांड पद पर पदोन्नति मिली है। अभी वे आईटीबीपी के राष्ट्रीय जनसंपर्क अधिकारी हैं। साथ ही ITBP प्रकाशन विभाग की भी जिम्मेदारी है। पूर्णिया के सरसी गांव निवासी कमलेश कमल हिंदी भाषा-विज्ञान और व्याकरण के प्रतिष्ठित विद्वान हैं। उनके पिता श्री लंबोदर झा, राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित शिक्षक हैं और उनकी धर्मपत्नी दीप्ति झा केंद्रीय विद्यालय में हिंदी की शिक्षिका हैं। कमलेश कमल को मुख्यतः हिंदी भाषा -विज्ञान, व्याकरण और साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिए देश भर में जाना जाता है। वे भारतीय शिक्षा बोर्ड के भी भाषा सलाहकार हैं। हिंदी के विभिन्न शब्दकोशों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके हैं। उनकी पुस्तकों ‘भाषा संशय-शोधन’, ‘शब्द-संधान’ और ‘ऑपरेशन बस्तर: प्रेम और जंग’ ने राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति अर्जित की है। गृह मंत्रालय ने ‘भाषा संशय-शोधन’ को अपने अधीनस्थ कार्यालयों में उपयोग के लिए अनुशंसित किया है। उनकी अद्यतन कृति शब्द-संधान को भी देशभर के हिंदी प्रेमियों का भरपूर प्यार मिल रहा है। यूपीएससी 2007 बैच के अधिकारी कमलेश कमल की साहित्यिक एवं भाषाई विशेषज्ञता को देखते हुए टायकून इंटरनेशनल ने उन्हें देश के 25 चर्चित ब्यूरोक्रेट्स में शामिल किया था। वे दैनिक जागरण में ‘भाषा की पाठशाला’ लोकप्रिय स्तंभ लिखते हैं। बीते 15 वर्षों से शब्दों की व्युत्पत्ति एवं शुद्ध-प्रयोग पर शोधपूर्ण लेखन कर रहे हैं। सम्मान एवं योगदान : गोस्वामी तुलसीदास सम्मान (2023) विष्णु प्रभाकर राष्ट्रीय साहित्य सम्मान (2023) 2000 से अधिक आलेख, कविताएँ, कहानियाँ, संपादकीय, समीक्षाएँ प्रकाशित देशभर के विश्वविद्यालयों में ‘भाषा संवाद: कमलेश कमल के साथ’ कार्यक्रम का संचालन यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए हिंदी एवं निबंध की निःशुल्क कक्षाओं का संचालन उनका फेसबुक पेज ‘कमल की कलम’ हर महीने 6-7 लाख पाठकों द्वारा पढ़ा जाता है, जिससे वे भाषा और साहित्य के प्रति जागरूकता बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं। बिहार के लिए गर्व का विषय : आईटीबीपी में उनकी इस उपलब्धि और हिंदी के प्रति उनके योगदान पर पूर्णिया सहित बिहारवासियों में हर्ष का माहौल है। उनकी इस सफलता ने यह साबित कर दिया है कि बिहार की प्रतिभाएँ राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी छाप छोड़ रही हैं। वरिष्ठ पत्रकार स्वयं प्रकाश के फेसबुक वॉल से साभार।

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