Bihar अंगिका हमरो मातृभाषा, हमरो अभिमान छिकै

अंगिका हमरो मातृभाषा, हमरो अभिमान छिकै

प्रणय प्रियंवद

आय मातृभाषा दिवस छिकै। हमरो मातृभाषा अंगिका छिकै। घर में बाबू-माय-भाय सब से हम अंगिका में नय बोललियै लेकिन घर में बाबू जी के दादा और फूफा सब से अंगिका में बतियैते सुनलियै। सुनतै-सुनतै सीखी गेलियै। यही त मातृभाषा छिकै। भागलपुर जागरण में चार साल फीचर पेज निकालै के जिम्मेदारी हमरा पर रहै। ओकरा में डॉ. बहादुर मिश्रा के एगो कॉलम हर सप्ताह जाय रहै-‘ अपनो बोली अपनो देश’। लगभग तीन साल तक बहादुर बाबू हर सप्ताह कॉलम लिखलकै। ज्यादा बार यही होलै कि बहादुर बाबू अंगिका में मैटर टाइप होला पर ओकरा छपे के पहिने पढ़ लै रहै। इ मामले में बहादुर बाबू के प्रतिबद्धता गजब के दिखै रहै। ई हुनका हमरा प्रति स्नेह ही रहै। ओही घरिया भागलपर में डॉ अमरेन्द्र, डॉ. योगेन्द्र, शिवकुमार शिव, डॉ. अरविंद कुमार, रंजन, पारस कुंज, नागो दा, डॉ. लखन लाल आरोही आदि लेखक सब के निकट हम्मे अइलियै। पूरा अंग क्षेत्र के संस्कृति के सामने रखे खातिर अलग-अलग लेखक सब से हिंदी में सही लिखलियै। डॉ. अमरेन्द्र भी खूब लिखलकै। अमरेन्द्र जी ऐसे भी अंगिका साहित्य- संस्कृति के थाती छिकै। बहादुर बाबू के कहते-कहते थक गेलै छियै कि ऊ कॉलम के किताब बनाभो, लेकिन सर सुनभे नय करै छै। व्यस्तता भी छै यूनिवर्सिटी के उनका पास।

बाद में ‘सिद्ध साहित्य में पूर्वी भारत का धर्म एवं समाज’ विषय पर जब हम्मे शोध करैलियै तब सरहपा के पढ़लियै। सरहपा के हिंदी के आदिम कवि मानल जाय छै। विक्रमशिला विश्वविद्यालय के इतिहास बतावै छै कि अंग और अंगिका के इतिहास कितना पुराना और कितना समृद्ध छिकै। राहुल सांकृत्यायन के सिद्ध पर लेख ‘गंगा’ पत्रिका में छपलै रहै। ऊ पत्रिका के संपादक भी राहुले जी रहै, उ लेख भी शोध के दरम्यान हम्मे पढ़लियै। सुधांशु के लॉज में कय बार बैठ कर शोध के पन्ना लिखैलियै। सुधांशु जैइसन भाय भी मुश्किल छै आज के दौर में।

भागलपुर स्टेशन पर उतरला के साथ जैसे स्टेशन परिसर से बाहर निकलभो चूड़ा वाला नाश्ता के दुकान दिखै छै। हम भागलपुर जहिहै आरो इ नाश्ता नय कहियै होबै न पारै। भागलपुर से लेकर गोड्‌डा तक अंगिका के परचम छै। कुछ समय गोड्‌डा दैनिक जागरण में काम करलियै। वहां भी इन नाश्ता खूब मिलै रहै। इ नाश्ता पहिने हमरो शहर जमालपुरो में खूब मिलै छलै, लेकिन अब नय के बराबर दिखै छै। चूड़ा, मूढी, घूघनी, फूलल चना, फूलल मूंग, पापड़, पकौड़ी, अचार सब के कठौती में मिलाय देवल जाय छै आरो ऊपर से पियाजू, आलू चौप, बैगनी। मुरय के मौसम रहै ते मुरय के टुकड़ा ऊपर से। हमर घर से लेकर ससुराल पीरपैंती तक में सब जानै छै कि हमरा शाम में भुंजा या अइसनके नाश्ता पसंद छिकै। पीरपैंती में इ नाश्ता अभियो खूब मिलै छै।

दुर्गा प्रसाद मुकुर जमालपुर के कवि रहै। ऊ बराबर बाबू जी से मिलै ला आवै रहै। मुकुर जी अंगिका में खूब सुंदर कविता पढ़ै रहै- मोटकी बंगलैनिया के मार देल्हीं लात तोंय, हमरो सुनाय देल्हीं बात तोंय । मीना चाची शाही- ब्याह में आवै रहै त ढ़ोलक पर गावै रहै- हम ना जइबै परवल बेचै भागलपुर…। रामदेव भावुक, बगुला भगत, रामावतार राही इ सब अंगिका में कविता खूब गइलकै-पढ़लकै। बाबू जी बतावै छै कि यदुनंदन जी ट्रेन में अंगिका गीत गावे वाला कवि छेलै।

अंगिका अकादमी खातिर कय बेर दैनिक भास्कर में खबर लिखलियै। देखहो कि होबै छै !

पटना में छियै त विनोद अनुपम, शंभू पी सिंह, शशि सागर से जब तब अंगिका बोलै छियै। ढेर मन करै छै त अमरेन्द्र जी या राज्यर्द्धन भैया के फोन लगावै छियै।

जय अंगिका .

Pranay Priyambad 21 February, 2019

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