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Ambedkar निदेशक को भेंट की गई पुस्तक

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निदेशक को भेंट की गई पुस्तक
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भारतरत्न डाॅ. भीमराव अंबेडकर एक अर्थशास्त्री, दर्शनशास्त्री, धर्मशास्त्री, समाजशास्त्री, शिक्षाशास्त्री, इतिहासकार, कानूनविद एवं संविधान विशेषज्ञ और कई अन्य विषयों के भी ज्ञाता थे। उनके जीवन-दर्शन का आयाम काफी व्यापक एवं विस्तृत है। उनके विभिन्न आयामों को केंद्र में रखकर पुस्तक का प्रकाशन एक सराहनीय कदम है। यह बात निदेशक, उच्च शिक्षा विभाग, बिहार सरकार प्रो. रेखा कुमारी ने कही।

वे ठाकुर प्रसाद महाविद्यालय, मधेपुरा में दर्शनशास्त्र विभागाध्यक्ष डाॅ. सुधांशु शेखर से उनकी पुस्तक सामाजिक न्याय : अंबेडकर-विचार और आधुनिक संदर्भ ग्रहण कर रही थीं। इस पुस्तक में डाॅ. अंबेडकर के विचारों को उनके मूल ग्रंथों के आधार पर प्रामाणिकता के साथ प्रस्तुत किया गया है और सामाजिक न्याय को अंबेडकर की दृष्टि से समझने की कोशिश की गई है।

निदेशक ने डाॅ. शेखर को इस पुस्तक के लिए बधाई एवं शुभकामनाएँ दीं और आगे भी रचनात्मक सक्रियता बनाए रखने का आशीर्वाद दिया। उन्होंने कहा कि यह पुस्तक न केवल अंबेडकर एवं समकालीन विमर्शों में रूचि रखने वाले शिक्षकों, शोधार्थियों एवं विद्यार्थियों, वरन् आम लोगों के लिए भी उपयोगी है।

डॉ. शेखर ने बताया कि उनकी पुस्तक में सात खंड हैं। इसमें सामाजिक न्याय के अर्थ एवं साधन और इसकी विशेषताओं पर प्रकाश डाला गया है। स्वतंत्रता, समानता, बंधुता, धम्म एवं शिक्षा और ब्राह्मणवाद, पूंजीवाद, सामाजिक जनतंत्र एवं राज्य समाजवाद पर विचार किया गया है। इसके अलावा दलित मुक्ति, स्त्री सशक्तिकरण एवं राष्ट्र प्रेम और गाँधीवाद, मार्क्सवाद एवं मानववाद आदि की अंबेडकर की दृष्टि में समीक्षा की गई है। ऑनर किलिंग, आरक्षण, जाति गणना, दलित साहित्य, दलित राजनीति, मानवाधिकार, भूमंडलीकरण एवं विश्व शांति पर संक्षिप्त टिप्पणी की गई है।

उन्होंने बताया कि पुस्तक में यह स्थापित किया गया है कि डाॅ. अंबेडकर केवल दलितों के नेता नहीं थे, बल्कि वे संपूर्ण मानवता के उन्नायक थे। आज हम सबों को मिलकर डाॅ. अंबेडकर के विचारों एवं कार्यों को आगे बढ़ाने और उनके सपनों को साकार करने की जरूरत है।

इस अवसर पर जंतु विज्ञान विभागाध्यक्ष डॉ. अरूण कुमार सहित अन्य उपस्थित थे।

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बिहार के लाल कमलेश कमल आईटीबीपी में पदोन्नत, हिंदी के क्षेत्र में भी राष्ट्रीय पहचान अर्धसैनिक बल भारत -तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) में कार्यरत बिहार के कमलेश कमल को सेकंड-इन-कमांड पद पर पदोन्नति मिली है। अभी वे आईटीबीपी के राष्ट्रीय जनसंपर्क अधिकारी हैं। साथ ही ITBP प्रकाशन विभाग की भी जिम्मेदारी है। पूर्णिया के सरसी गांव निवासी कमलेश कमल हिंदी भाषा-विज्ञान और व्याकरण के प्रतिष्ठित विद्वान हैं। उनके पिता श्री लंबोदर झा, राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित शिक्षक हैं और उनकी धर्मपत्नी दीप्ति झा केंद्रीय विद्यालय में हिंदी की शिक्षिका हैं। कमलेश कमल को मुख्यतः हिंदी भाषा -विज्ञान, व्याकरण और साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिए देश भर में जाना जाता है। वे भारतीय शिक्षा बोर्ड के भी भाषा सलाहकार हैं। हिंदी के विभिन्न शब्दकोशों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके हैं। उनकी पुस्तकों ‘भाषा संशय-शोधन’, ‘शब्द-संधान’ और ‘ऑपरेशन बस्तर: प्रेम और जंग’ ने राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति अर्जित की है। गृह मंत्रालय ने ‘भाषा संशय-शोधन’ को अपने अधीनस्थ कार्यालयों में उपयोग के लिए अनुशंसित किया है। उनकी अद्यतन कृति शब्द-संधान को भी देशभर के हिंदी प्रेमियों का भरपूर प्यार मिल रहा है। यूपीएससी 2007 बैच के अधिकारी कमलेश कमल की साहित्यिक एवं भाषाई विशेषज्ञता को देखते हुए टायकून इंटरनेशनल ने उन्हें देश के 25 चर्चित ब्यूरोक्रेट्स में शामिल किया था। वे दैनिक जागरण में ‘भाषा की पाठशाला’ लोकप्रिय स्तंभ लिखते हैं। बीते 15 वर्षों से शब्दों की व्युत्पत्ति एवं शुद्ध-प्रयोग पर शोधपूर्ण लेखन कर रहे हैं। सम्मान एवं योगदान : गोस्वामी तुलसीदास सम्मान (2023) विष्णु प्रभाकर राष्ट्रीय साहित्य सम्मान (2023) 2000 से अधिक आलेख, कविताएँ, कहानियाँ, संपादकीय, समीक्षाएँ प्रकाशित देशभर के विश्वविद्यालयों में ‘भाषा संवाद: कमलेश कमल के साथ’ कार्यक्रम का संचालन यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए हिंदी एवं निबंध की निःशुल्क कक्षाओं का संचालन उनका फेसबुक पेज ‘कमल की कलम’ हर महीने 6-7 लाख पाठकों द्वारा पढ़ा जाता है, जिससे वे भाषा और साहित्य के प्रति जागरूकता बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं। बिहार के लिए गर्व का विषय : आईटीबीपी में उनकी इस उपलब्धि और हिंदी के प्रति उनके योगदान पर पूर्णिया सहित बिहारवासियों में हर्ष का माहौल है। उनकी इस सफलता ने यह साबित कर दिया है कि बिहार की प्रतिभाएँ राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी छाप छोड़ रही हैं। वरिष्ठ पत्रकार स्वयं प्रकाश के फेसबुक वॉल से साभार।

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भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली द्वारा प्रायोजित दिनाँक 2 से 12 फरवरी, 2025 तक भोगीलाल लहेरचंद इंस्टीट्यूट ऑफ इंडोलॉजी, दिल्ली में “जैन परम्परा में सर्वमान्य ग्रन्थ-तत्त्वार्थसूत्र” विषयक दस दिवसीय कार्यशाला का सुभारम्भ।