Faimily। माय, मम्मी और मेरी राजनीति

माय, मम्मी और मेरी राजनीति
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मैं किसी राजनीतिक पार्टी का सदस्य नहीं हूँ, लेकिन मेरी राजनीति में गहरी रूचि है। साथ ही मेरे अंदर कहीं न कहीं एक खोखला अहंकार भी है कि मैं बखूबी ‘राजनीति’ कर सकता हूँ। इसी भाव के साथ मैं माय (नानी) और मम्मी के बीच अपनी राजनीतिक प्रतिभा आजमाने लगा।
मैंने बारी-बारी से माय एवं मम्मी, दोनों से कहा कि “मैं दोनों में से एक से ही बात करूँगा।” मेरे इस प्रस्ताव को सुनते ही दोनों ने खारिज कर दिया। लेकिन मैं अडिग हो गया और दोनों को अपने प्रस्ताव पर मंतव्य देने के लिए बाध्य कर दिया। … नानी ने कहा, ” जन्म देने वाली माँ का पहला अधिकार है। मम्मी से ही बात करो। मेरी बेटी की खुशी में ही मेरी खुशी है।” मम्मी ने कहा, ” नानी ने ही तुमको पाला-पोषा है। नानी से ही बात करो। मैं नानी से ही तुम्हारे बारे में पता कर लूँगी।” इस तरह दोनों के उत्तर से मेरी राजनीतिक चाल फेल हो गयी।
लेकिन मैंने हार नहीं मानी। आखिर में मैंने दोनों के ऊपर अपना ‘ब्रह्मास्त्र’ चलाया। दोनों के बीच चुगली की। दोनों को दोनों के उत्तर के बारे में उल्टी बात बताई। नानी को कहा कि मम्मी तुमसे बात करने से मना करती है और मम्मी को कहा कि ‘नानी कहती है कि मम्मी से बात मत करो।’ लेकिन दोनों ने मानने से इनकार कर दिया। इस तरह मेरी दाल नहीं गली। अपनी राजनीतिक रोटी सेंकने का मेरा प्रयास जारी है! मैं प्रार्थना करता हूँ कि मैं जीवन भर असफल रहूँ!!
नोट : जीवन माँ की देन है। इसके हर एक क्षण पर उसका एकाधिकार एवं सर्वाधिकार है। इसलिए हर दिन मा का है। रातें भी उसी की हैं। सुबह, शाम, दोपहर सब उसी का है। हम उसके हैं- वो हमारी है । “माँ तुझे सलाम!”
-सुधांशु शेखर
14 मई, 2017 (फेसबुक पोस्ट)