BNMU। सुधांशु का सफर (फ्राॅम माधवपुर टू मधेपुरा)

————————-सुधांशु का सफर——————-
——————(फ्राॅम माधवपुर टू मधेपुरा)——————

मेरे अभिन्न मित्र राहुल कुमार, संवाददाता, दैनिक जागरण, बांका ने आज मेरे बारे में लिखकर मुझे झकझोर दिया। ऐसे में मैं अपनी कुछ बातें शेयर करने को मजबूर हो गया हूँ। यह सब मैंने अपने उन छोटे भाईयों एवं बहनों के लिए लिखा है, जो किसी कारणवश ज्यादा अंक नहीं ला पाए हैं। यदि उन्हें थोङी भी प्रेरणा मिले, तो मैं अपने प्रयास को सफल मानूंगा।

————————माधवपुर की मिट्टी——————-

सुधांशु शेखर का जन्म खगड़िया जिला के परबत्ता प्रखंड अंतर्गत अपने ननिहाल माधवपुर गाँव में हुआ। इनके नाना जी राम नारायण सिंह एक स्वतंत्रता सेनानी किसान और नानी सिया देवी एक घरेलू धार्मिक महिला थी। इनका पूरा व्यक्तित्व माधवपुर की मिट्टी से ही बना है।

———————शुरूआती लापरवाही————–
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सुधांशु शेखर की शुरूआती पढाई लिखाई माधवपुर गाँव के दूरन सिंह मध्य विद्यालय, माधवपुर से हुई। यह एक बोरिस पब्लिक स्कूल (बोरी-चट्टी वाला ग्रामीण सरकारी विद्यालय) था। यहाँ इन्होंने सातवीं तक पढ़ाई की। फिर आठवीं से दसवीं तक की पढ़ाई बगल के श्रीकृष्ण उच्च विद्यालय, नयागांव से हुई। वैसे बचपन से ही इनकी गिनती मेधावी छात्र के रूप में होती रही है। लेकिन यह कुछ-कुछ ‘अंधे में काना राजा’ की तरह था। (साथ पढ़ने वाले मित्रों से क्षमाप्रार्थना।)

सुधांशु शेखर की सबसे बङी कमी यह थी कि ये कभी कुछ रटते नहीं थे और कभी परीक्षा को गंभीरता से नहीं लेते। (कृपया, इनकी नकल न करें। आप ज्यादा से ज्यादा चीजों को याद करें और परीक्षा को गंभीरता से लें।) परिणामतः वे मैट्रिक में महज चार अंकों से प्रथम श्रेणी से चुक गये। फिर इनका किसी अच्छे काॅलेज में नामांकन नहीं हो पाया और एक वर्ष बर्बाद हो गया। तदुपरांत इनके पिता श्री लाल बिहारी सिंह ने इनका नामांकन इनकी इच्छा के विपरीत एसएसपीएस काॅलेज, शंभुगंज (बांका) में करा दिया। इससे इनके युवा मन-मस्तिष्क को गहरा आघात लगा। इनकी पढ़ाई कुप्रभावित हुई और परिणाम फिर द्वितीय श्रेणी।

————————-पीङा का दौर——
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फिर दो वर्षों तक ये काफी उधेरबुन में रहे। दो-दो सकेण्ड डीविजन का दंश और घर में कोई भी गाइड करने वाला नहीं, इसकी पीङा। अपने आपसे नजर मिलाना मुश्किल हो गया था। न खाने की फिक्र और न सोने की चिंता।हालात यह था कि दिनभर तास खेलकर समय गुजारते थे और रात-रात भर जगकर दार्शनिक ओशो रजनीश को पढ़ते रहते थे। यहीं से पत्र-पत्रिकाओं में लिखने लगे और अखबारों में लिखने के सुहाने भ्रम में रहकर अपने अंदर की पीड़ा को छुपाने का यत्न करते रहे।

————————-सपनों की उङान——
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इसी बीच प्रोफेसर डॉ. रामाश्रय यादव ने तिलकामान्झी भागलपुर विश्वविद्यालय, भागलपुर के कुलपति का पदभार ग्रहण किया। उन्होंने स्नातक प्रतिष्ठा में नामांकन हेतु काॅमन इंटरेंस टेस्ट आयोजित किया। इसमें डाॅ. शेखर का चयन प्रतिष्ठित टी. एन. बी. काॅलेज, भागलपुर में दर्शनशास्त्र (प्रतिष्ठा) के लिए हो गया। फिर तो डाॅ. शेखर के सपनों को पंख लग गये। यहाँ इन्होंने प्रतिष्ठा में 68 प्रतिशत अंक प्राप्त किया। तदुपरांत स्नातकोत्तर में भी इन्हें 74 प्रतिशत अंक मिले।

आगे इन्होंने रास्ट्रीय पात्रता परीक्षा (नेट) में भी सफलता प्राप्त की। भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद् के जूनियर रिसर्च फेलो के रूप में तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय, भागलपुर से पी-एच. डी. की उपाधि प्राप्त की। फिर यूजीसी, नई दिल्ली के प्रोजेक्ट फेलो रहे। कई किताबों का संपादन एवं लेखन किया।

————————–कहाँ आ गये ?————-
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असिस्टेंट प्रोफेसर की सभी अहर्ताएं पूरी हो गयीं। लेकिन बहाली के लिए विज्ञापन नहीं आ रहा था। किसी अन्य जाॅब में जाने की इच्छा नहीं थी। इंटर के समय से ही शुरू हुई पत्रकारिता एवं लेखन भी अब उबाऊ हो चली थी। लोगों के प्रश्न भी प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से आने लगे थे, “क्या करता है ? कितना पढ़ेगा ? रेलवे-बैंकिंग किसी चीज की नौकरी कर लेता। लेख और किताब लिखने से क्या होने वाला है ?” कभी-कभी इन्हें खुद भी लगता था, “जाने कहाँ आ गये ?” कभी सोचते कि पिता जी ने पर्याप्त ध्यान नहीं दिया। कभी लगता कि खुद कैरियर को ‘सिरियसली’ नहीं लिए। नहीं तो बीपीएससी या एसएससी आदि तो हो ही जाता! क्या जरूरत थी किताबें जमा करने की-लेखन एवं शोध करने की!!

————————मरता क्या नहीं करता—————-
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आखिर इन्होंने सोचा, “बनना तो शिक्षक ही है। काॅलेज में न सही, स्कूल क्या बुरा है।” बस इन्होंने बी. एड. में नामांकन करा लिया। नेट और पी-एच. डी. के बाद बी. एड. करने वाले ये अपने तरह के एकमात्र विद्यार्थी थे। बी. एड. करने के बाद ये कुछ महिनों के लिए एक सरकारी विद्यालय में +2 शिक्षक बने।

————————–थोड़ी खुशी, थोड़ा गम————-
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फिर 2014 में बिहार लोक सेवा आयोग से असिस्टेंट प्रोफेसर की नियुक्ति हेतु विज्ञापन आया, तो ये उसके एक प्रबल दावेदार बनकर उभरे। इन्हें एकेडमिक में 85 में लगभग 75 पाइंट था। लेकिन यहाँ भी एक बार फिर इन्हें गहरा धक्का लगा। साक्षात्कार बोर्ड के चेयरमेन इनकी पी-एच. डी. टाॅपिक (वर्ण-व्यवस्था और सामाजिक न्याय : डाॅ. भीमराव अंबेडकर के विशेष संदर्भ में’) से भङक गये और इन्हें चंद मिनटों में चलता कर दिया। फिर तो जो होना था, वही हुआ। जहाँ इनके सामान्य मित्रों को 15 में 12-14 अंक मिले, वहीं इनको महज 7 अंकों से संतोष करना पङा। फिर भी साक्षात्कार बोर्ड को धन्यवाद, क्योंकि यदि और एक अंक भी कम मिलता, तो चयन मुश्किल था। इस तरह इन्हें वांछित विश्वविद्यालय नहीं मिल पाया। लेकिन ये बी. एन. मंडल विश्वविद्यालय, मधेपुरा के लिए चयनित होने में सफल रहे।

———————निराशा का कोहरा———–
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फिर एक बार इनको निराशा ने घेर लिया। सभी विश्वविद्यालयों में इनके मित्र इनके साथ अपनी ज्वाइनिंग का फोटो शेयर करने लगे, लेकिन बीएनएमयू, मधेपुरा में ज्वाइनिंग प्रक्रिया काफी लचर थी। ये लगातार विश्वविद्यालयका चक्कर लगाते रहे, लेकिन बात नहीं बनी।आखिर में 9 मई 2017 को यहाँ डाक्यूमेंट वेरिफिकेशन हुआ। ये सेंट्रल लाइब्रेरी के बरामदे पर लगी कुर्सी पर बैठकर न्यूज पेपर पढ़ने लगे, तो एक चपरासी ने कुर्सी पर से उठा दिया। खैर डाक्यूमेंट वेरिफिकेशन के बाद आगे की प्रक्रिया बताने वाला कोई नहीं था। इन्होंने अपने अन्य मित्रों के साथ एक पदाधिकारी से बात की, तो उन्होंने कहा, “बीएनएमयू में इतनी जल्दी काम होता है! दो-चार माह बाद ही ज्वाइनिंग होगी, तो क्या बिगङ जाएगा !!”

——————-मधेपुरा की महक————————
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उसी बीच तत्कालीन महामहिम कुलाधिपति रामनाथ कोविंद साहेब ने कृपापूर्वक तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय, भागलपुर के पूर्व प्रति कुलपति प्रोफेसर डॉ. अवध किशोर राय को बी. एन. मंडल विश्वविद्यालय, मधेपुरा के कुलपति की महती जिम्मेदारी दी। डॉ. राय ने 29 मई 2017 को पदभार ग्रहण किया। उन्होंने इनका और इनके अन्य साथियों का दर्द समझा। फिर तो मात्र चार दिन में सारी प्रक्रिया पूरी हो गयी और इन्होंने 3 जून 2017 को टी. पी. काॅलेज, मधेपुरा में असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में योगदान कर लिया। तदुपरांत अगस्त 2017 में बी. एन. मंडल विश्वविद्यालय के जनसंपर्क पदाधिकारी भी बनाए गए। मधेपुरा में इनके कार्यों की महक दूर-दूर तक फैल रही है।

———————————संदेश—————————-
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परीक्षा में प्राप्त अंक के आधार पर अपना मूल्यांकन नहीं करें।आप स्वयं अपना आत्म मूल्यांकन करें। आप दुनिया में अद्वितीय हैं। उसी काम में लगें जो आप अच्छे तरीके से कर सकते हैं। दूसरों से अपनी तुलना नहीं करें और दूसरों की नकल से दूर रहें।

-डाॅ. सुधांशु शेखर
जनसंपर्क पदाधिकारी, बीएनएमयू, मधेपुरा