Angika। भगवान प्रलय को नमन

सादर नमन

भगवान प्रलय (15.08.1942-02.05.202)

जन्मस्थान- बल्थी महेशपुर, कटिहार, बिहार
पिता- स्व. गोनर चौधरी
माता- स्व. जिलेबा दाय
शिक्षा- दसवीं पास
उपाधि- कवि रत्न, लोक भूषण, अंग प्रसून, अंग श्री
अंग भागीरथ, अजः रत्न, अंग पतंग,
गीत कुल गौरव, गीतकार कुल शिरोमणि


सम्प्रति- स्वतंत्र लेखन, नाट्य निर्देशन
साहित्य विधा- गीत, कविता, नाटक,उपन्यास
प्रकाशित पुस्तक- 1. गीत मेरे मीत (अंगिका गीत संग्रह)
अप्रकाशित पुस्तक- 1- कुमारी कौशिका (नाटक)
2. महुआ घटबारिन (नाटक)
3. महुआ घटबारिन (उपन्यास)
4. महुआ घटबारिन
(अंगिका लोक गाथा संग्रह)
5. अंगिका गीत संग्रह
सम्पादन- सम्पादक मण्डल , अंगिकांचल पत्रिका
संस्थागत दायित्व-1-कार्यकारी अध्यक्ष,
अखिल भारतीय अंगिका विकास समिति
2. सदस्य, सलाहकार समिति, सृजन समय,
बहुद्देश्यीय सामाजिक संस्था, वर्धा, महाराष्ट्र


पता- बल्थी महेशपुर, कुर्सेला,
वाया-ऐ जी बाज़ार, कटिहार

 

========= प्रतिनिधि कविता के बोल ========
1)
कंगना रसें रसें झुनुर झुनुर बोलै
दुनियां जैसें चलै तैसें डोलै

जहिया निदरदी पर पाप डिरियैलै
कंगना के झुनकी सें ताप छिरियैलै
झांसी में तेगा बजाय महारानी
हरदम बेधरमी केॅ तौलै
कंगना रसें रसें झुनुर झुनुर बोलै . . . . . .

खनकै छै कंगना हीरामन के गाव में
अँचरा मलीन भेलै महुआ के छांव में
महुआ घटवारिन के लोग गीत गाय छै
जट्टा जटनियाँ केॅ बिछुआ लगाय छै
हँसुला पिन्है हँसुला खोलै
कंगना रसें रसें झुनुर झुनुर बोलै . . . . . .

विरहा में कजरी में ई खनखनाय छै
रसिया के पगड़ी में कखनू बन्हाय छै
कखनू झमाझम बाजै पनघट पर
मटखा पर मटका नाय डोलै
कंगना रसें रसें झुनुर झुनुर बोलै . . . . . .

कंगना पिन्ही ममताँ दुनियाँ चलाय छै
तैय्यो कुलछनी अभागिन कहाय छै
रीत के बनैलकोॅ छै दक दक-समाज में
हाँसै कानै, नाँचै, डोलै
कंगना रसें रसें झुनुर झुनुर बोलै . . . . . .

कंगना में गंगा के पानी बहै छै
लपका-पुरनका कहानी कहै छै
खाड़ी रहै छै हिमालय रं हिम बनी
जुग-जुग सें डगमग नाय डोलै
कंगना रसें रसें झुनुर झुनुर बोलै . . . . . .


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2)
सावन बरसै तेॅ हमरे करम जरी जाय
मोॅन ऐहने कहै कि ऊ घोॅर घूरी जाय

ऐलै सावन तेॅ हमरोॅ धरम टगै छै
दर-दर चुवै छै छप्पर शरम लागै छै
दोनों आँख हमरोॅ डब-डब लोरोॅ से भरी जाय
सावन बरसै तेॅ हमरे करम जरी जाय . . . .

पानी ओसर्हौ पर ऐंगना में झोॅर परै छै
लागै दुखोॅ सें सौंसे सरंग गरै छै
मेघ गरजै छै करिया तेॅ कोय डरी जाय
सावन बरसै तेॅ हमरे करम जरी जाय . . . .

अबकी ऐतै तेॅ मनोॅ के बात कहवै
करोॅ खेथै में काम साथे साथ रहवै
सूनोॅ घरोॅ में डोॅर लागै आंग थरथराय
सावन बरसै तेॅ हमरे करम जरी जाय . . . .

सॉझ परथै चिरैय्यो तॅ घोर आवै छै
आपनोॅ खोता में कनियो टा सुख पावै छै
ऐन्होॅ कागतोॅ केॅ पैसा चूल्ही में जरी जाय
सावन बरसै तेॅ हमरे करम जरी जाय . . . .