BNMU। दर्शन परिषद् के अधिवेशन में शामिल कलाकारों का सम्मान

प्रमाण पत्र वितरण समारोह
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संस्कृति प्रतीकात्मक संप्रेषण है। इसके प्रतीकों में समूह विशेष के कौशल-ज्ञान, उसकी प्रवृत्तियाँ, उसके मूल्य एवं उसकी अभिप्रेरणाएँ शामिल हैं। इन प्रतीकों के अर्थों को सीखा जाता है और समाज में इसकी संस्थाओं द्वारा इनकी निरन्तरता बनाये रखी जाती है। यह बात दर्शनशास्त्र विभाग तिलकामांझी विश्वविद्यालय भागलपुर के पूर्व अध्यक्ष प्रोफेसर डॉ. प्रभु नारायण मण्डल ने कही।

वे दर्शन परिषद् बिहार के तीन दिवसीय अधिवेशन में सांस्कृतिक कार्यक्रम में अपनी शानदार प्रस्तुति से अधिवेशन को यादगार बनाने वाले कलाकारों, नाट्य व संगीत से जुड़े संगठनों के सम्मान में आयोजित समारोह का उद्घाटन कर रहे थे। समारोह विश्वविद्यालय केंद्रीय पुस्तकालय सभागार में आयोजित हुआ। इसमें सभी कलाकारों को अतिथियों द्वारा प्रमाण पत्र देकर सम्मानित किया गया। इस दौरान सभी कलाकारों ने एक स्वर में आयोजन को यादगार बताया और बेहतर व्यवस्था हेतु आयोजन समिति को साधुवाद दिया।

डाॅ. मंडल ने कहा कि संस्कृति वह अवधारणा है जिसमें परिष्कारक और उन्नायक तत्त्व शामिल हैं, जो प्रत्येक समाज के ज्ञात और विचारित उन तत्त्वों का भण्डार है, जो सर्वोत्तम-सर्वश्रेष्ठ हैं। संस्कृति का किसी राष्ट्र या राज्य के साथ एक तीव्र भावनात्मक सम्बन्ध हुआ करता है। यह किसी राष्ट्र की विशेष पहचान होती है।

उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति सामासिक है। जिस तरह भारत की संस्कृति भारत की पहचान है, उसी तरह सामासिकता भारतीय संस्कृति की पहचान है। भारतीय संस्कृति को सामासिक कहने का अर्थ यह है कि इसमें अनेक संस्कृतियाँ धुलमिल कर एकरूप हो गयी है।

उन्होंने कहा कि दर्शन परिषद् के तीन दिवसीय अधिवेशन में दो दिवसीय सांस्कृतिक संध्या बहुत ही शानदार एवं यादगार रहा। उन्होंने बताया कि उन्होंने इतना बेहतर आयोजन बहुत कम जगहों पर देखा है।

गांधी विचार विभाग तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय के अध्यक्ष प्रोफेसर डॉ. विजय कुमार ने कहा कि संस्कृति कार्यक्रम स्वस्थ मनोरंजन के साधन मात्र नहीं हैं। यह अपनी अस्मिता की अभिव्यक्ति भी है। अधिवेशन के दौरान सांस्कृतिक कार्यक्रम में स्थानीय, प्रांतीय व राष्ट्रीय सांस्कृतिक विरासत से रूबरू होने का अवसर मिला। उन्होंने कहा कि यहां के बच्चों ने विपुल प्रतिभा है, जो प्रस्तुति के माध्यम से देखने को मिला। इन प्रतिभाओं को उचित मंच देने की जरूरत है।

अकादमिक निदेशक प्रोफेसर डॉ. एम. आई. रहमान ने कहा कि ऐसे आयोजनों से अपनी संस्कृति से जुड़ने का अवसर प्राप्त होता है। यहां के बच्चों को इसी प्रकार उत्साहित करने की जरूरत है।

सिंडीकेट सदस्य डाॅ. जवाहर पासवान ने कहा कि इस आयोजन से मधेपुरा एवं कोसी की प्रतिष्ठा बढ़ी और इस क्षेत्र के बारे में लोगों की नकारात्मक धारणाएँ बदलीं। उन्होंने कहा कि भविष्य में ऐसे और आयोजनों की जरूरत है।

उप खेल पदाधिकारी डाॅ. शंकर मिश्रा ने कहा कि दर्शन परिषद् के अधिवेशन में सांस्कृतिक कार्यक्रम ने राज्यस्तरीय तरंग प्रतियोगिता की याद ताजा कर दीं।

प्रांगण रंगमंच के सुनीत साना ने कहा कि इस आयोजन में बहुत कुछ सीखने को मिला जो आगे काम आएगा।

नवाचार रंगमंच के अमित अंशु ने इसे यादगार आयोजन बताते हुए इसे भविष्य में भी जारी रखने की जरूरत है।

राष्ट्रीय कला मंच की शिवानी अग्रवाल ने कहा कि इस सांस्कृतिक कार्यक्रम में शामिल होकर बहुत कुछ सीखने व समझने को मिला।

कला मन्दिर के वकील वाका ने कहा कि इस आयोजन में आयोजन समिति और दर्शकों का जो प्यार मिला वो बहुत खास रहा।

हीप हॉप डांस एकेडमी के कार्तिक कुमार ने कहा कि यह आयोजन लंबे समय तक एक सफल आयोजन के रूप में याद किया जाएगा।

शिव राजेश्वरी युवा सृजन क्लब के हर्षवर्द्धन सिंह राठौर ने कहा कि जिले में पहली बार ऐसा आयोजन हुआ। इसमें आलग-अलग सांस्कृतिक संगठनों को एक मंच पर प्रस्तुति देने का सुअवसर प्राप्त हुआ। यह भविष्य के लिए शुभ संकेत है।

सृजन दर्पण के विकास कुमार ने कहा कि सास्कृतिक कार्यक्रम के आयोजन से स्थानीय कलाकारों अपनी प्रतिभाओ के प्रदर्शन का अवसर मिला।

सम्मान समारोह का संचालन करते हुए आयोजन सचिव डाॅ. सुधांशु शेखर ने सभी कलाकारों एवं सांस्कृतिक संगठनों और मधेपुरा के सभी नागरिकों के प्रति आभार व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि सबके सहयोग से ही दर्शन परिषद् के तीन दिवसीय अधिवेशन सफल हुआ और यह न केवल शैक्षणिक दृष्टि से, बल्कि कला- संस्कृति की दृष्टि से भी यादगार रहा। उन्होंने कहा कि वे सांस्कृतिक कार्यक्रम की यादों को सहेजने के लिए शीघ्र ही एक योजना की घोषणा करेंगे।

इस अवसर पर गरिमा उर्विषा, शिवांगी, सुभम, शांतनु यदुवंशी, सारंग तनय, सौरभ कुमार, बिमल कुमार, गौरब कुमार सिंह, डेविड यादव आदि उपस्थित रहे।