BNMU। शिक्षा के बदलते परिदृश्य एवं चुनौतियां विषयक राष्ट्रीय सेमिनार

BNMU। शिक्षा के बदलते परिदृश्य एवं चुनौतियां विषयक राष्ट्रीय सेमिनार

कक्षा एवं किताब के बगैर ज्ञान की गंगा सुखी रहेगी। ऑनलाइन शिक्षा फेस-टू-फेस टीचिंग का विकल्प नहीं है। एक भी बच्चा आए, तो भी कक्षा का संचालन करें। यह बात कुलपति प्रोफेसर डॉ. राम किशोर प्रसाद रमण ने कही।

वे मधेपुरा काॅलेज, मधेपुरा में शिक्षा के बदलते परिदृश्य एवं चुनौतियां विषयक दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार का उद्घाटन कर रहे थे।

उन्होंने कहा कि गाँधी की सभी बातें आज भी प्रासंगिक है। आज समाज एवं राष्ट्र में जितनी भी समस्याएँ हैं, सबों का समाधान गाँधी-दर्शन में है। गाँधी-दर्शन ही शिक्षा की सभी चुनौतियों का भी उत्तर है। हमें गाँधी की बातों को अपने जीवन में उतारने की जरूरत है।

उन्होंने कहा कि नई शिक्षा नीति समाज की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर बनाया गया है। इसमें विद्यार्थियों को मनोनुकूल विषय चुनने का विकल्प दिया गया है।

उन्होंने कहा कि सर्वश्रेष्ठ एवं सर्वगुण संपन्न युवाओं को तैयार करें। साथ ही हमें कमजोर बच्चों पर विशेष ध्यान देना होगा। हम हुनर विकसित करें। हम जाॅब सिकर नहीं, बल्कि जाॅब मेकर बनें।

उन्होंने कहा कि जो भी दायित्व मिले उसे पूरी इमानदारी के साथ करें। इससे हमारा जीवन सफल होगा।

प्रति कुलपति प्रोफेसर डॉ. आभा सिंह ने कहा कि हमारी ज्ञान परंपरा का विश्व में विशिष्ट स्थान है। हमारे वेद, उपनिषद् आदि साहित्य की बराबरी करने वाला संसार में कोई नहीं है। ज्ञान परंपरा के कारण ही भारतीय संस्कृति आज तक कायम रही, गतिशील रही।

उन्होंने कहा कि शिक्षा कर्म-ज्ञान समुच्चय है। कर्म मोरल एक्शन है और ज्ञान एक्वायर नाॅलेज है। हम दोनों में समन्वय करते हैं। शिक्षा वही है, जिसमें शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक सभी का समन्वय हो।

उन्होंने कहा कि नई शिक्षा नीति में मातृभाषा पर जोर दिया गया है। बच्चा मातृभाषा में सोचते हैं। हमें अपनी मातृभाषा को बचाने की जरूरत है। भाषा संस्कृति का आधार है।

उन्होंने कहा कि मैकाले की शिक्षा ने भारतीय ज्ञान परंपरा को आघात पहुँचाया। इसने ज्ञान एवं कर्म के बीच विभेद पैदा किया। इसके कारण
बेरोजगारों की फौज खड़ी हो गई है।

उन्होंने कहा कि नई शिक्षा नीति में भारत को मैकाले की शिक्षा प्रणाली से मुक्त करने का संकल्प है। यह विद्यार्थियों में सोचने की क्षमता का विकास करने पर बल देती है। इसके माध्यम से हम भारत को पुनः विश्वगुरू बना सकेंगे।

कुलसचिव डाॅ. कपिलदेव प्रसाद ने कहा कि हम सभी को शिक्षा में परिवर्तन की जिम्मेदारी लेनी होगी। हमें अपनी कमी को दूर करना होगा और कर्तव्यबोध के साथ काम करना होगा। विद्यार्थियों को ही वर्ग में उपस्थित बनानी होगी।

मुख्य वक्ता आर्यभट्ट ज्ञान विश्वविद्यालय, पटना में शिक्षा संकाय के अध्यक्ष प्रोफेसर डॉ. ज्ञानदेव मणि त्रिपाठी ने कहा कि मैकाले ने तो इमानदारी से भारत को गुलाम बनाने की शिक्षा दी। लेकिन इमानदारी के साथ मैकाले की छाया से मुक्ति का प्रयास नहीं कर रहे हैं।

उन्होंने कहा कि भारत में सवाल पूछने की एक समृद्ध परंपरा रही है। हमारे देश में नचीकेता जैसा पात्र हुआ है, जिसने अपने पिता और मृत्यु के देवता से भी सवाल पूछा था।

उन्होंने कहा कि आज अच्छा विश्वविद्यालय उसे माना जाता है, जिसमें खामोशी हो। यह औपनिवेशिक संस्कृति की देन है। हमें औपनिवेशिक शिक्षा के क्षारण को छोड़ना होगा। हमें यह समझना होगा कि शिक्षा का अर्थ चुप्पी नहीं है।

उन्होंने कहा कि शिक्षक को असफलों के लिए चिंता करनी है और असफलों की जिम्मेदारी लेनी है। शिक्षक को निष्पक्षता से ऊपर उठना होगा। पक्षधर होना होगा। कमजोर का पक्ष लेना होगा।

उन्होंने कहा कि यह दुख की बात है कि हमारे देश के लोगों को आज बड़े-बड़े उद्योगपतियों का नाम पता है। लेकिन देश के बुद्धिजीवियों एवं शिक्षकों का नाम पता नहीं है।

उन्होंने कहा कि आजजरूरत इस बात की है कि हम अपने युग की चुनौतियों को समझें। हमें काम और ज्ञान को बांटकर देखना बंद करना होगा।

उन्होंने कहा कि ऑनलाइन सिर्फ सिलेबस पूरा करने का माध्यम बन गया। यह ऑफलाइन शिक्षा का विकल्प नहीं बन सकता है। आज हमें बच्चों एवं युवाओं के लिए शैक्षणिक व्यूह की रचना करनी है।युवाओं को दिशा देने की जरूरत है।हमें बाद की पीढ़ी पर भरोसा करना होगा।

उन्होंने कहा कि हमें अपने लिए वैसी शिक्षा पद्धति तलाशनी है, जिसकी ओर गाँधी ने इशारा किया है। गाँधी चरखा एवं तकली के सहारे भारत की एकाग्रता को वापस ला रहे थे। हमें गाँधी को वापस लाना है।

तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय, भागलपुर में गाँधी विचार विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर डॉ. विजय कुमार ने कहा कि शिक्षक का काम ज्ञान देना नहीं है। ज्ञान के लिए जिज्ञासा पैदा करना है।

उन्होंने कहा कि शिक्षा शरीर, मन एवं आत्मा तीनों का विकास करना है। शिक्षा को उत्पादक शारीरिक श्रम से जोड़ना है।

उन्होंने कहा कि गाँधी अंग्रेज से अधिक अंग्रेज़ियत के विरोधी थे। गोरे अंग्रेज चले गए काले अंग्रेज बैठे हैं।

उन्होंने कहा कि आज हम शिक्षा के कारखाने चला रहे हैं। उन कारखाने से बेरोजगार की फोज निकल रही है। इसे रोकने के लिए हमें सरकार, समाज, शिक्षक एवं अभिभावक सभी की जिम्मेदारी है।

तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय, भागलपुर में शिक्षा संकाय के अध्यक्ष प्रोफेसर डॉ. राकेश कुमार ने कहा कि शिक्षा के चार स्तंभ जानना के लिए , करने के लिए, खुद को पहचान सकें और एक साथ रह सकें।

उन्होंने कहा कि शिक्षक बदलाव के संवाहक बनें। समाज में परिवर्तन लाएँ। परिवर्तन की शुरूआत खुद से करें। हम जो बदलाव लाना चाहते हैं, वह अपेक्षित परिवर्तन खुद अपने अंदर लाएं।

कार्यक्रम की अध्यक्षता मधेपुरा काॅलेज, मधेपुरा के प्रधानाचार्य डाॅ. अशोक कुमार ने की। संचालन अकादमिक निदेशक प्रोफेसर डॉ. एम. आई. रहमान ने किया।

इस अवसर पर डाॅ. रामनरेश सिंह, डाॅ. के. एस. ओझा, डाॅ. अमोल राय, डाॅ. विनय कुमार चौधरी, डाॅ. सिद्धेश्वर काश्यप, डाॅ. आलोक कुमार, डाॅ. पूनम यादव, जनसंपर्क पदाधिकारी डाॅ. सुधांशु शेखर, डाॅ. भगवान कुमार मिश्र, डाॅ. के. बी. एन. सिंह, मनोज भटनागर, ओमप्रकाश, मनोज कुमार झा, मणिभूषण वर्मा, रत्नाकर भारती, डाॅ. आभाष कुमार झा, डाॅ. विनय कुमार विश्वकर्मा, आरजेएम काॅलेज, सहरसा के डाॅ. अभय कुमार, एमएलटी काॅलेज, सहरसा के डाॅ. संजीव कुमार झा, पार्वती विज्ञान महाविद्यालय, मधेपुरा के सुमेध आनंद आदि उपस्थित थे।

कक्षा एवं किताब के बगैर ज्ञान की गंगा सुखी रहेगी। ऑनलाइन शिक्षा फेस-टू-फेस टीचिंग का विकल्प नहीं है। एक भी बच्चा आए, तो भी कक्षा का संचालन करें। यह बात कुलपति प्रोफेसर डॉ. राम किशोर प्रसाद रमण ने कही।

वे मधेपुरा काॅलेज, मधेपुरा में शिक्षा के बदलते परिदृश्य एवं चुनौतियां विषयक दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार का उद्घाटन कर रहे थे।

उन्होंने कहा कि गाँधी की सभी बातें आज भी प्रासंगिक है। आज समाज एवं राष्ट्र में जितनी भी समस्याएँ हैं, सबों का समाधान गाँधी-दर्शन में है। गाँधी-दर्शन ही शिक्षा की सभी चुनौतियों का भी उत्तर है। हमें गाँधी की बातों को अपने जीवन में उतारने की जरूरत है।

उन्होंने कहा कि नई शिक्षा नीति समाज की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर बनाया गया है। इसमें विद्यार्थियों को मनोनुकूल विषय चुनने का विकल्प दिया गया है।

उन्होंने कहा कि सर्वश्रेष्ठ एवं सर्वगुण संपन्न युवाओं को तैयार करें। साथ ही हमें कमजोर बच्चों पर विशेष ध्यान देना होगा। हम हुनर विकसित करें। हम जाॅब सिकर नहीं, बल्कि जाॅब मेकर बनें।

उन्होंने कहा कि जो भी दायित्व मिले उसे पूरी इमानदारी के साथ करें। इससे हमारा जीवन सफल होगा।

प्रति कुलपति प्रोफेसर डॉ. आभा सिंह ने कहा कि हमारी ज्ञान परंपरा का विश्व में विशिष्ट स्थान है। हमारे वेद, उपनिषद् आदि साहित्य की बराबरी करने वाला संसार में कोई नहीं है। ज्ञान परंपरा के कारण ही भारतीय संस्कृति आज तक कायम रही, गतिशील रही।

उन्होंने कहा कि शिक्षा कर्म-ज्ञान समुच्चय है। कर्म मोरल एक्शन है और ज्ञान एक्वायर नाॅलेज है। हम दोनों में समन्वय करते हैं। शिक्षा वही है जिसमें शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक सभी का समन्वय हो।

उन्होंने कहा कि नई शिक्षा नीति में मातृभाषा पर जोर दिया गया है। बच्चा मातृभाषा में सोचते हैं। हमें अपनी मातृभाषा को बचाने की जरूरत है। भाषा संस्कृति का आधार है।

उन्होंने कहा कि मैकाले की शिक्षा ने भारतीय ज्ञान परंपरा को आघात पहुँचाया। इसने ज्ञान एवं कर्म के बीच विभेद पैदा किया। इसके कारण
बेरोजगारों की फौज खड़ी हो गई है।

उन्होंने कहा कि नई शिक्षा नीति में भारत को मैकाले की शिक्षा प्रणाली से मुक्त करने का संकल्प है। यह विद्यार्थियों में सोचने की क्षमता का विकास करने पर बल देती है। इसके माध्यम से हम भारत को पुनः विश्वगुरू बना सकेंगे।

कुलसचिव डाॅ. कपिलदेव प्रसाद ने कहा कि हम सभी को शिक्षा में परिवर्तन की जिम्मेदारी लेनी होगी। हमें अपनी कमी को दूर करना होगा और कर्तव्यबोध के साथ काम करना होगा। विद्यार्थियों को ही वर्ग में उपस्थित बनानी होगी।

मुख्य वक्ता आर्यभट्ट ज्ञान विश्वविद्यालय, पटना में शिक्षा संकाय के अध्यक्ष प्रोफेसर डॉ. ज्ञानदेव मणि त्रिपाठी ने कहा कि मैकाले ने तो इमानदारी से भारत को गुलाम बनाने की शिक्षा दी। लेकिन इमानदारी के साथ मैकाले की छाया से मुक्ति का प्रयास नहीं कर रहे हैं।

उन्होंने कहा कि भारत में सवाल पूछने की एक समृद्ध परंपरा रही है। हमारे देश में नचीकेता जैसा पात्र हुआ है, जिसने अपने पिता और मृत्यु के देवता से भी सवाल पूछा था।

उन्होंने कहा कि आज अच्छा विश्वविद्यालय उसे माना जाता है, जिसमें खामोशी हो। यह औपनिवेशिक संस्कृति की देन है। हमें औपनिवेशिक शिक्षा के क्षारण को छोड़ना होगा। हमें यह समझना होगा कि शिक्षा का अर्थ चुप्पी नहीं है।

 

उन्होंने कहा कि शिक्षक को असफलों के लिए चिंता करनी है और असफलों की जिम्मेदारी लेनी है। शिक्षक को निष्पक्षता से ऊपर उठना होगा। पक्षधर होना होगा। कमजोर का पक्ष लेना होगा।

उन्होंने कहा कि यह दुख की बात है कि हमारे देश के लोगों को आज बड़े-बड़े उद्योगपतियों का नाम पता है। लेकिन देश के बुद्धिजीवियों एवं शिक्षकों का नाम पता नहीं है।

उन्होंने कहा कि आजजरूरत इस बात की है कि हम अपने युग की चुनौतियों को समझें। हमें काम और ज्ञान को बांटकर देखना बंद करना होगा।

उन्होंने कहा कि ऑनलाइन सिर्फ सिलेबस पूरा करने का माध्यम बन गया। यह ऑफलाइन शिक्षा का विकल्प नहीं बन सकता है। आज हमें बच्चों एवं युवाओं के लिए शैक्षणिक व्यूह की रचना करनी है।युवाओं को दिशा देने की जरूरत है।हमें बाद की पीढ़ी पर भरोसा करना होगा।

उन्होंने कहा कि हमें अपने लिए वैसी शिक्षा पद्धति तलाशनी है, जिसकी ओर गाँधी ने इशारा किया है। गाँधी चरखा एवं तकली के सहारे भारत की एकाग्रता को वापस ला रहे थे। हमें गाँधी को वापस लाना है।

तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय, भागलपुर में गाँधी विचार विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर डॉ. विजय कुमार ने कहा कि शिक्षक का काम ज्ञान देना नहीं है। ज्ञान के लिए जिज्ञासा पैदा करना है।

उन्होंने कहा कि शिक्षा शरीर, मन एवं आत्मा तीनों का विकास करना है। शिक्षा को उत्पादक शारीरिक श्रम से जोड़ना है।

उन्होंने कहा कि गाँधी अंग्रेज से अधिक अंग्रेज़ियत के विरोधी थे। गोरे अंग्रेज चले गए काले अंग्रेज बैठे हैं।

उन्होंने कहा कि आज हम शिक्षा के कारखाने चला रहे हैं। उन कारखाने से बेरोजगार की फोज निकल रही है। इसे रोकने के लिए हमें सरकार, समाज, शिक्षक एवं अभिभावक सभी की जिम्मेदारी है।

तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय, भागलपुर में शिक्षा संकाय के अध्यक्ष प्रोफेसर डॉ. राकेश कुमार ने कहा कि शिक्षा के चार स्तंभ जानना के लिए , करने के लिए, खुद को पहचान सकें और एक साथ रह सकें।

उन्होंने कहा कि शिक्षक बदलाव के संवाहक बनें। समाज में परिवर्तन लाएँ। परिवर्तन की शुरूआत खुद से करें। हम जो बदलाव लाना चाहते हैं, वह अपेक्षित परिवर्तन खुद अपने अंदर लाएं।

कार्यक्रम की अध्यक्षता मधेपुरा काॅलेज, मधेपुरा के प्रधानाचार्य डाॅ. अशोक कुमार ने की। संचालन अकादमिक निदेशक प्रोफेसर डॉ. एम. आई. रहमान ने किया।

इस अवसर पर डाॅ. रामनरेश सिंह, डाॅ. के. एस. ओझा, डाॅ. अमोल राय, डाॅ. विनय कुमार चौधरी, डाॅ. सिद्धेश्वर काश्यप, डाॅ. आलोक कुमार, डाॅ. पूनम यादव, जनसंपर्क पदाधिकारी डाॅ. सुधांशु शेखर, डाॅ. शंकर कुमार मिश्र, डाॅ. भगवान कुमार मिश्र, डाॅ. के. बी. एन. सिंह, मनोज भटनागर, ओमप्रकाश, मनोज कुमार झा, मणिभूषण वर्मा, रत्नाकर भारती, डाॅ. आभाष कुमार झा, डाॅ. विनय कुमार विश्वकर्मा, आरजेएम काॅलेज, सहरसा के डाॅ. अभय कुमार, एमएलटी काॅलेज, सहरसा के डाॅ. संजीव कुमार झा, पार्वती विज्ञान महाविद्यालय, मधेपुरा के सुमेध आनंद आदि उपस्थित थे।