BNMU। मीडिया रिपोर्ट। राष्ट्र-निर्माण में युवाओं की भूमिका विषयक परिचर्चा का आयोजन

राष्ट्र-निर्माण में युवाओं की भूमिका विषयक परिचर्चा का आयोजन

राष्ट्र मात्र एक भौगोलिक इकाई नहीं है, बल्कि यह एक भावनात्मक एवं आत्मिक संरचना है। इसके निर्माण में युवाओं की अदम्य शक्ति का सदुपयोग करना हम सबों की जिम्मेदारी है।

यह बात अखिल भारतीय दर्शन परिषद् के अध्यक्ष प्रोफेसर डॉ. जटाशंकर ने कही। वे गुरूवार को मानसिक स्वास्थ्य एवं युवा वर्ग विषयक ऑनलाइन परिचर्चा में उद्घाटन वक्तव्य दे रहे थे। यह परिचर्चा ठाकुर प्रसाद महाविद्यालय, मधेपुरा की राष्ट्रीय सेवा योजना इकाई-i के तत्वावधान में आयोजित सात दिवसीय विशेष शिविर के सातवें दिन आयोजित की गई।

उन्होंने कहा कि राष्ट्र के प्रति बौद्धिक के साथ-साथ भावनात्मक लगाव होना चाहिए। यदि किसी राष्ट्र के सभी नागरिकों का राष्ट्र के प्रति भावनात्मक लगाव नहीं हो, तो वह सही मायने में राष्ट्र नहीं कहला सकता है। राष्ट्र के प्रति हमारा सर्वोच्च प्रेम आत्म- बलिदान के रूप में अभिव्यक्त होता है।

उन्होंने कहा कि भारत में विभिन्न भाषाओं, धर्मों एवं सम्प्रदायों के लोग रहते हैं। हमारे बीच कई प्रकार की विभिन्नताएँ हैं। इसके बावजूद भारत एक राष्ट्र है। क्योंकि हम सभी भारतवासियों का भारत-राष्ट्र से असीम लगाव है।

उन्होंने कहा कि राष्ट्र-निर्माण के लिए हमें राष्ट्रा के आर्थिक एवं सामरिक विकास के साथ-साथ इसका साहित्यिक, सांस्कृतिक, नैतिक और आध्यात्मिक उन्नयन करना भी आवश्यक है। यदि हम ऐसा कर सकेंगे, तो सही मायने में समृद्धि, सर्वोत्तम एवं संबुद्ध भारत का निर्माण होगा। इसमें युवाओं की महती भूमिका है। हमें युवाओं को इस ओर प्रेरित करने की जरूरत है।इसके पूर्व कार्यक्रम के उद्घाटनकर्ता भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली के अध्यक्ष प्रो. (डाॅ.) रमेशचन्द्र सिन्हा ने कहा कि व्यक्तियों के सम्मिलित रूप से ही समाज बनाता है। कोई भी राष्ट्र व्यक्तियों का पूंज है। व्यक्तियों का सम्मिलित रूप उस राष्ट्र के लिए आवश्यक है।

उन्होंने कहा कि राष्ट्र कोई भौतिक या भौगोलिक इकाई मात्र नहीं है। राष्ट्र एक सांस्कृतिक एवं मूल्यात्मक इकाई है।

उन्होंने कहा कि सांस्कृतिक मूल्यों के कारण ही विभिन्न देश की भिन्न-भिन्न राष्ट्रीयता है। किसी भी राष्ट्र का एक चरित्र होता है और उस चरित्र को उसके मूल्यों के द्वारा ही हम जानते हैं। भारतवर्ष में अध्यात्मिकता पर अधिक बल है और पश्चिम में भौतिकता पर अधिक बल है।

उन्होंने कहा कि युवा वर्ग मूल्यों का संवाहक है। युवा ही किसी भी राष्ट्र का मेरुदंड ही होता है। राष्ट्र के निर्माण की महती जिम्मेदारी युवाओं के कंधों पर ही है।

मुख्य अतिथि दर्शन परिषद्, बिहार के महामंत्री डॉ. श्यामल किशोर ने कहा भारत युवाओं का देश है। हमारी बहुसंख्यक आबादी युवा है। राष्ट्र की प्रगति में युवाओं की महती भूमिका होती है।

उन्होंने कहा कि एक राष्ट्र की प्रगति के लिए शिक्षा, रोजगार एवं सशक्तिकरण आवश्यक है।

विशिष्ट अतिथि कोलकाता की डाॅ. गीता दुबे ने कहा कि राष्ट्रप्रेम का अर्थ राष्ट्र के सभी लोगों से प्रेम करना है। राष्ट्र को उन्नति के पथ पर ले जाने में युवाओं की महती भूमिका है।

उन्होंने कहा कि कुछ लोग यह मानते हैं कि भारतीय अतीत में सबकुछ श्रेष्ठ था। कुछ लोगों का कहना है कि भारतीय इतिहास में सब कुछ निकृष्ट था। हमें इन दोनों अतिवादी विचारों से ऊपर उठने की जरूरत है। हमारी परंपरा में जो कुछ पोषक तत्व है, हम उन्हें आगे बढ़ाएं, लेकिन जो निकृष्ट चीजें हैं, उन्हें हम छोड़ दें।

योग विशेषज्ञ डाॅ. कविता भट्ट शैलपुत्री (उत्तराखंड) ने कहा कि युवा होने का उम्र से नहीं, बल्कि मानसिकता से संबंध है। जो व्यक्ति मानसिक रूप से मजबूत है और जो सकारात्मक सोच के साथ जीवन में निरंतर आगे बढ़ना चाहता है, वही युवा है, भले ही उसकी उम्र कुछ भी क्यों न हो।

सम्मानित अतिथि राँची की सीएस पूजा शुक्ला ने कहा कि युवाओं को अपनी जड़ों से जुड़े रहने की जरूरत है। हम पश्चिमी वस्त्रों एवं अंग्रेजी भाषा का अनुकरण करने मात्र से आधुनिक नहीं बन जाते हैं। हमें अपने विचारों में आधुनिकता लाने की जरूरत है। हमें मानसिक रूप से स्वतंत्र होने और हीनभावना से मुक्त होने की जरूरत है।

उन्होंने कहा कि युवा शारीरिक, मानसिक एवं नैतिक रूप से सबल बनें। वे समाज एवं राष्ट्र के नव निर्माण में अपना योगदान दें। शक्तिहीन लोगों के सशक्तिकरण का प्रयास करें।

अतिथियों का स्वागत प्रधानाचार्य डाॅ. के. पी. यादव ने की। संचालन कार्यक्रम पदाधिकारी डॉ. सुधांशु शेखर एवं शोधार्थी सारंग तनय ने किया। धन्यवाद ज्ञापन एनएसएस समन्वयक डाॅ. अभय कुमार ने किया।

प्रथम सत्र में शोधार्थी बशिष्ट सम्राट ने स्वयंसेवकों को बाल श्रम उन्मूलन के लिए प्रेरित किया और इससे संबंधित गीत भी सुनाया।

इस अवसर पर महाविद्यालय अभिषद् सदस्य डाॅ. जवाहर पासवान, कार्यक्रम पदाधिकारी डाॅ. स्वर्ण मणि, के. पी. काॅलेज, मुरलीगंज के कार्यक्रम पदाधिकारी डाॅ. अमरेन्द्र कुमार, अधिषद् सदस्य रंजन यादव, शोधार्थी सारंग तनय, माधव कुमार,सौरभ कुमार चौहान, डेविड यादव, मणीष कुमार, शांतनु यदुवंशी, बशिष्ट सम्राट, अवधेश कुमार अमन, शिवम कृष्ण, बिमल कुमार, सुनील कुमार, बबलू कुमार, शिवम कृष्णा, अभिषेक कुमार, जयशंकर कुमार, रितिक रोशन, प्रिंस कुमार, राजकुमार राम, राज किशोर कुमार, सुमित कुमार, दीपक कुमार, अमित कुमार, सुमित कुमार, सचिन कुमार, चंद्र किशोर चौपाल, धीरज कुमार, सागर राज, सूरज कुमार, कुमारी शुभम, अभिमन्यु कुमार, नीतीश कुमार, आशीष यादव, रणवीर कुमार, नीतीश कुमार रजक, रूपम कुमारी, स्नेहा, प्रिया ज्योति, कुमारी पुनीता, कुमारी मनीषा, कुमारी सिंपी सिंह, दीपिका आनंद, प्रज्ञा श्री, सुमन कुमार, हिमांशु कुमार, दीपक कुमार, शिव शंकर राम, मिथिलेश कुमार, सरदार सूरज कुमार, सुनील कुमार राम आदि उपस्थित थे।

मालूम हो कि सात दिवसीय विशेष शिविर के दौरान सभी दिन अलग-अलग विषयों पर परिचर्चा का आयोजन किया गया। इसके लिए क्रमशः कोरोना : कारण एवं निवारण, मानव और पर्यावरण, पोषण एवं स्वास्थ्य, आपदा प्रबंधन और सामाजिक दायित्व, भारत की ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक विरासत, मानसिक स्वास्थ्य और युवा वर्ग तथा राष्ट्र-निर्माण में युवाओं की भूमिका विषय निर्धारित किया गया था।