Hindi। गीत। दिन दहाड़े अबला लुटती शहर गाँव चौराहों पर। अश्विनी प्रजावंशी

दिन दहाड़े अबला लुटती शहर गाँव चौराहों पर    किसकी कैसे बात करूं मैं सभी खड़े दोराहों पर।      भाई भाई जानी दुश्मन

वही खून के प्यासे है
लूट झूठ में लगे सभी हैं
अटकी सबकी सांसें है
घर घर में बैठा है रावण
राम यहाँ निस्तेज हुआ
भक्त जटायु भाग खड़ा है
अब तो वह अबशेष हुआ
घर घर सीता लुटती देखो हर मौके त्योहारों पर।
सत्ता की मत बात करो भी
गिरेबान में खुद झाँको
तुम कैसे खूँखार जीव हो
पहले तो खुद को आँको
क्षुद्र लालची पापी लोभी
तुम सपूत कैसे सच्चे
मात पिता को दिया निकाला
तुम बेटे सबसे अच्छे।
अपनों का जो खून है पीता लड़ता है बंटवारों पर।
जो ज्ञानी जितना है देखो
वह फिसलन से भरा हुआ
साफ सफाई हवा हवाई
वह नाले में पड़ा हुआ
क़ातिल सबके साथ खड़ा है
लेकिन उसकी ख़ता नहीं
तुम तो हो अनजाने शातिर
खुद क़ातिल पर पता नहीं।
आँखे बंद पर चादरपोशी देखो हर मकबारों पर।
खुद की बेटी बहना देखो
इज्जत घर की तेरी है
दूसरों की बेटी बहना पर
गिद्ध नजर क्यों तेरी है
न्याय की कुर्सी पर बैठा जो
वही यहाँ पे ईश्वर है
निर्दोषों को दंड यहाँ पर
क़ातिल मस्त क़लन्दर है।
भरी सभा में खड़ी द्रौपदी नाव पड़ी मजधारों पर।