Gandhi। गांधीजी ने विदेशी सत्ता का प्रतिरोध रचनात्मक कार्यों से किया। प्रो. रत्नेश्वर मिश्र, वरिष्ठ इतिहासकार

पटना, 02 अक्टूबर 2020

रीजनल आउटरीच ब्यूरो एवं पत्र सूचना कार्यालय, पटना, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा “ बापू- स्वदेशी , स्वराज और सत्याग्रह ” विषय पर आज एक वेब-गोष्ठी का आयोजन किया गया। इस गोष्ठी को वरिष्ठ एवं जाने-माने इतिहासकारों ने संबोधित किया ।

गोष्ठी में मुख्य अतिथि वक्ता के रूप में बोलते हुए वरिष्ठ इतिहासकार प्रोफ़ेसर रत्नेश्वर मिश्र ने कहा कि गांधी जहां एक और उपनिवेशवाद को चुनौती दे रहे थे, वही वह दूसरी ओर अपने लोगों को समझने की कोशिश भी कर रहे थे। गांधीजी ने देखा कि लोगों की इच्छा और उनके कार्य के बीच एक गहरी खाई है। स्वदेशी स्वराज और सत्याग्रह उनके तीन आंदोलन माने जा सकते हैं। उन्होंने कहा कि स्वदेशी का मतलब गांधीजी के अनुसार यह था कि अपने आवश्यक और जरूरी वस्तुओं एवं सेवाओं के लिए हम पहले अपने आसपास में देखें। साथ ही अपनी जरूरतों को यथासंभव कम रखें ताकि बाहरी आपूर्ति पर निर्भर न होना पड़े। उनका यह मानना था कि चाहे कोई संपन्न हो या विपन्न, उसे अपने भोजन प्राप्त करने के लिए स्वयं बराबर श्रम करना चाहिए। पंचायती व्यवस्था भी उनकी प्राथमिकता थी ,जिसे वह सामयिक तरीके से पुनर्जीवित करना चाहते थे। गांधीजी के स्वराज को परिभाषित करते हुए रत्नेश्वर जी ने बताया कि अपने अंदर झांकने, तटस्थ मूल्यांकन करने और उस आधार पर अपने आप को परिष्कृत कर मुक्ति का मार्ग प्राप्त करना ही गांधी जी का स्वराज था। गांधी जी ने सत्ता के प्रतिरोध के लिए रचनात्मक कार्यों का प्रयोग किया। उन्होंने बताया कि गांधीजी ने 18 प्रकार के रचनात्मक कार्यों को अपनाया। उनका मानना था कि आजादी के बाद कांग्रेस को राजनीति नहीं बल्कि रचनात्मक कार्यों के लिए उन्मुख हो जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि गांधीजी के सत्याग्रह में सत्य का आग्रह तो है लेकिन रूढ़ता न नहीं। वह अहिंसक प्रतिरोध, उपवास,धरना असहयोग, अवज्ञा जैसे उपकरणों को सत्याग्रह में शामिल करते थे।
इससे पूर्व गोष्ठी को संबोधित करते हुए दिल्ली विश्वविद्यालय की मनोवैज्ञानिक डॉक्टर रितु शर्मा ने गांधीजी व सामाजिक मनोविज्ञान के संबंधों का विश्लेषण किया। डॉ रितु ने कहा कि गांधीजी की पहचान सत्य की खोज से जुड़ी है। आज हम अपनी खामियों पर काम नहीं करते हैं लेकिन गांधीजी शुरू से ही अपने व्यक्तित्व व स्वभाव पर काम किया करते थे। उन्होंने कहा कि गांधीजी से लोग इसलिए जुड़ जाते थे क्योंकि वे जानते थे कि यह आदमी अंदर और बाहर से एक है। गांधीजी के व्यक्तित्व में जो एकरूपता थी, उसमें कहीं भी दिखावा नहीं था। वे तार्किक व प्रयोगधर्मी थे। गांधीजी का सच सिर्फ झूठ नहीं बोलना हीं नहीं था, बल्कि वे सत्य को जीवन व ईश्वर मानते थे। उनका मानना था कि सत्य की ताकत असीमित है।
दिल्ली विश्वविद्यालय के इतिहासकार डॉ भुवन झा ने सत्याग्रह व सर्वोदय में गांधीजी और विनोवा भावे की भूमिका पर चर्चा की। उन्होंने कहा कि गांधी को सिर्फ प्रतीक के रूप में देखा जाए, इस बात से विनोबाजी सहमत नहीं थे। डॉ भुवन ने कहा कि गांधीजी के सत्याग्रह ने आजादी के संघर्ष को एक नया आयाम दिया। गांधीजी वाम और दक्षिण पंथ के बीच का रास्ता बताते हैं। गांधीजी सिर्फ आजादी ही नहीं बल्कि आजादी के अर्थ को भी समझते थे और लोगों को समझाने की कोशिश करते थे। गांधीजी के अनुसार सत्याग्रह का रास्ता बहादुरों का रास्ता है, जो स्वराज प्राप्ति की ओर ले जाता है। उन्होंने बताया कि गांधीजी कानून का विरोध तो करते थे, पर कानून बनाने वालों के प्रति उनके मन में विरोध या शत्रुता नहीं थी। डॉ भुवन ने बताया कि जॉन रस्किन के ऑन टू द लास्ट से प्रभावित गांधीजी ने जब श्रम की महत्ता को समझा, तो उन्होंने इसे जीवन में प्रयोग करना जरूरी माना। यही वह पहलू है जिसने गांधी जी के व्यक्तित्व को न सिर्फ वैधानिकता बल्कि लोकप्रियता भी प्रदान की। उन्होंने कहा कि विनोबा भावे भी स्वराज का काम सर्वोदय के अंतर्गत ही मानते थे।विनोबा जी का मानना था कि कुछ लोगों या अधिक लोगों के उदय के लिए नहीं, बल्कि सभी के उदय के लिए काम होना चाहिए। वह शांतिवादी क्रांतिकारिता के पक्षधर थे। विनोबाजी का मानना था कि प्रेम की ताकत अनुरोधी ही नहीं बल्कि प्रतिरोधी भी होना चाहिए। वे प्रांतीयता के बजाय राष्ट्रीयता पर बल देते थे। डॉ भुवन ने बताया कि गांधी और विनोवा इस बात का समर्थन करते थे कि भारत में व्यक्तिवाद नहीं बल्कि विचारों की प्रधानता रही है। उनका मानना था कि प्रजातंत्र के आने से सत्याग्रह की महत्ता समाप्त नहीं हो जाती। गांधीजी के साधन शुद्धि व सुचिता के विचार से वे बहुत प्रभावित थे।
गोष्ठी में अपने विचार व्यक्त करते हुए दिल्ली विश्वविद्यालय की इतिहासकार डॉ नीरजा सिंह ने कहा कि गांधी जैसे युगपुरुष समय और स्थान की परिधि से परे होते हैं। डॉ नीरजा ने आगे कहा कि सत्याग्रह, करुणा, मानवीयता,न्याय व आजादी के ताने बाने से गांधीजी खुद भी जुड़े थे और लोगों को भी जोड़ा करते थे।बारदोली और नमक आंदोलन गांधी जी के सत्याग्रह के सफल प्रयोग हैं। गांधीजी ने साम्राज्यवादी सत्ता के छद्म मूल्य व अन्यायपूर्ण कार्य-व्यवहार को न सिर्फ उजागर किया बल्कि उसका समुचित प्रतिरोध भी किया। उन्होंने बताया कि गांधीजी ने सामाजिक व पर्यावरणीय शोषण को लेकर जन जागरूकता का जो काम किया, उसके कारण आज भी भारतीयों की आत्मा में गांधीजी के मूल्य व सिद्धांत वास करते हैं।
अध्यक्षीय संबोधन करते हुए पीआईबी व आरओबी के अपर महानिदेशक इसके मालवीय ने कहा कि गांधी जी हमारे संपूर्ण भारतीय संस्कृति व परंपरा के प्रतिबिंब है उन्होंने वसुधैव कुटुंबकम और लोगों के हृदय परिवर्तन पर न सिर्फ काम किया बल्कि इसे अपने जीवन में भी उतारा उन्होंने कहा कि गांधी जी बहुत बड़े जन नेता और मनोवैज्ञानिक भी थे उन्होंने आगे कहा कि गांधी जी हमारे जीवन के सभी क्षेत्रों के लिए आज भी प्रासंगिक व सटीक हैं
प्रसिद्ध लोक गायिका नीतू नवगीत ने गोष्ठी की शुरुआत में गाँधीजी के प्रिय भजन रघुपति राघव राजा राम का गायन प्रस्तुत किया। गोष्ठी में महात्मा गाँधी पर लघु फ़िल्म भी दिखाई गई ।
गोष्ठी का संचालन दूरदर्शन समाचार पटना के सहायक निदेशक सलमान हैदर ने किया। अपने विषय प्रवेश संबोधन में श्री हैदर ने कहा कि बापू अपने आप में एक विचारधारा है। उनका स्वदेशी आत्म-स्वावलंबन से आजादी की ओर ले जाता है। उन्होंने कहा कि स्वदेशी स्वराज व सत्याग्रह एक दूसरे के पूरक हैं।

वेब गोष्ठी में आरओबी, पटना के निदेशक विजय कुमार, पीआईबी के निदेशक दिनेश कुमार सहित सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के विभिन्न विभागों के लोग शामिल हुए। धन्यवाद ज्ञापन आरओबी के सहायक निदेशक एन.एन.झा ने किया।
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