BNMU। पोषण, पर्यावरण एवं पंचायत/ प्रोफेसर नरेश कुमार

पोषण, पर्यावरण एवं पंचायत

हमारे चारो ओर के सभी आवरण जिससे हम घिरे हुए है, पर्यावरण कहलाता है. पर्यावरण हम सभी का घर है यहाँ सभी सजीव एवं निर्जीव पदार्थों एक साथ रहते है. यह सभी एक दुसरे को स्वच्छ रखने में, तंदुरुस्त रहने में, वृद्धि करने में मदद करता है. एक दुसरे को फलने एवं फूलने में मदद करता है एक दुसरे का पोषक होता है. पर्यावरण में मनुष्य अपने पोषण के लिए भोजन और आहार लेता है और इसी के माध्यम से प्रोटीन, कार्बोहायड्रेट, विटामिन, वसा एवं खनिज लवण ग्रहण करते है. यह शरीर के सेल में वृद्धि, उर्जा का श्रोत और शरीर को स्वस्थ रखता है इसी प्रक्रिया को पोषण कहते है यही कार्य वनस्पति में, पेड़ पोधे में भी होता है.

    सबसे महत्वपूर्ण तथ्य है की शरीर पोषक तत्व को कितना ग्रहण करता है यह भी महत्वपूर्ण है कोई दुबला पतला आदमी चार अंडा खा ले तो उसका शरीर सभी अंडे का प्रोटीन ग्रहण नहीं करता है और उसका अधिकांश भाग मलमूत्र के द्वारा बेकार और बाहर हो जाता है. इसी प्रकार पेड़ पौधे में पोषण के लिए यूरिया खाद डाला जाता है वहां भी अधिकांश भाग बेकार हो जाता है इसके लिए पोषण विज्ञानं का जानना जरुरी है, ये सभी पोषक तत्व पर्यावरण से प्राप्त होता है और इसी लिए पर्यावरण को स्वास्थ्य एवं समृद्ध होना आवश्यक है जो हमारे शरीर में पोषक तत्व को देकर हमें स्वस्थ और समृद्ध रख सकें.  

कार्बोहायड्रेट, प्रोटीन जो उर्जा का स्रोत है जो मांस पेशियों के विकास में सहायक है.

विटामिन : रोग प्रतिरोधक क्षमता आँख की रोशनी, त्वचा, हड्डी, नाख़ून के स्वास्थ्य के लिए जिम्मेदार है.

खनिज लवन : हड्डी, रक्त मज्जा, बी. पी. के नियंत्रण के लिए जिम्मेदार है. 

Fats : यह भी शरीर के लिए आवश्यक है. 

यह सभी पोषक तत्व हमारे प्रकृति में उपलब्ध है कुछ प्रोटीन हमारा शरीर भी synthesis करता है तो कुछ essential विटामिन बाहर प्रकृति से लेना पड़ता है. अर्थात जिस प्रकार स्वस्थ विचार के लिए स्वस्थ शरीर आवश्यक है और स्वस्थ शरीर के लिए पोषक तत्व आवश्यक है उसी प्रकार स्वस्थ स्वस्थ शरीर के लिए स्वस्थ पर्यावरण आवश्यक है और स्वस्थ पर्यावरण बनाने के लिए स्वस्थ और समृद्ध पंचायत व्यवस्था आवश्यक है 

सजीव अपना विशेष महत्व बनाकर रखता है. पेड़ पौधे और जानवर एक दुसरे का पूरक होता है. पेड़ पौधे के बिना हमें oxygen नहीं मिल पता है तो मनुष्य और जानवर कैसे जिन्दा रह सकता है? इसी प्रकार हम मनुष्य और जानवर carbon डाइऑक्साइड सांस के रूप में नहीं छोड़े तो पेड़ पौधे भी जिन्दा नहीं रह सकता है. यह oxygen हमारे पोषक तत्व आहार को पचाता है, उर्जा देता है. cell के वृद्धि का कारण होता है और हमारा तन, मन स्वस्थ रहता है 

    पर्यावरण पृथ्वी पर जीवन के पोषण के लिए एक प्राकृतिक सौगात है. वह हर चीज जो हम अपने जीवन जीने के लिए इस्तेमाल करते है वो पर्यावरण से प्राप्त होता है जैसे हवा, पानी, सूर्य की किरणें, भूमि, पौधे, जानवर, जंगल एवं अन्य प्राकृतिक चीजे एक धरोहर के रूप में है. इसे अक्षुण रखना ही हमलोगों के लिए पुनीत कर्तव्य होना चाहिए जिसके बल पर हम स्वस्थ और समृद्ध रह सकते है. हमलोगों को गाँधी जी के पंचायती राज व्यवस्था जिसमे सत्ता को हमरे घर तक भेजा गया है उसे मजबूत और जवाबदेह बनाने की आवश्यकता है जो पर्यावरण को समृद्ध कर सभी जीव जंतु के पोषण की व्यवस्था अनुशासित होकर कर सके और इस तीनो पोषण, पर्यावरण और पंचायत को एक दुसरे से जोड़कर बेहतर व्यवस्था देकर एक समृद्ध समाज और पर्यावरण का निर्माण कर सकें.

हमारा पर्यावरण पृथ्वी पर स्वस्थ जीवन का अस्तित्व बनाये रखने में एक बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। हालांकि, आधुनिक युग में हमारा पर्यावरण मानव निर्मित तकनीकी उन्नति के कारण दिन ब दिन बद्तर होती जा रही है। इस प्रकार, पर्यावरण प्रदूषण सबसे बड़ी समस्या बन गयी है यह हमारे पोषण तत्व को स्वाद रहित और अपर्याप्त कर रहा है जिसका हम सभी आज सामना कर रहे हैं।

जो मनुष्य और पर्यावरण दोनों के लिए खतरा उत्पन्न कर दिया है प्रदूषण हमारे जीवन के विभिन्न पहलुओं जैसे की सामाजिक, शारीरिक, आर्थिक, भावनात्मक और बौद्धिक को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर रहा है। पर्यावरण का दूषितकरण कई रोगों को लाता है जिससे इंसान पूरी जिंदगी पीड़ित हो सकता है। यह किसी समुदाय या शहर की समस्या नहीं है, बल्कि ये पुरे दुनिया की समस्या है जो की किसी एक के प्रयास से खत्म नहीं हो सकता। अगर इसका ठीक से निवारण नहीं हुआ तो ये एक दिन जीवन का अस्तित्व खत्म कर सकता है। हर आम नागरिक को सरकार द्वारा शुरू की गयी पर्यावरण सुरक्षा कार्यक्रम में भाग लेना चाहिए।

हमें हमारे पर्यावरण को स्वस्थ्य और प्रदुषण से दूर रखने के लिए अपने स्वार्थ और गलतियों को सुधारना होगा। यह विश्वास करना मुश्किल है, लेकिन सच है की हर किसी द्वारा केवल एक छोटे से सकारात्मक आंदोलनों की वजह से बिगड़ते पर्यावरण में बड़ा बदलाव लाया जा सकता है। वायु और जल प्रदूषण विभिन्न बीमारियों और विकारों द्वारा हमारे स्वास्थ्य को खतरे में डाल रहे हैं। आज कल हम किसी भी चीज को सेहतमंद नहीं कह सकते क्योकि जो हम खाते है वो पहले से ही कृत्रिम उर्वरकों के दुष्प्रभाव से प्रभावित हो चूका है और हमारे शरीर को रोगों से लड़ने की छमता को कमजोर कर दिया है| यही कारण है कि हम में से कोई भी स्वस्थ और खुश रहने के बावजूद कभी भी रोगग्रस्त हो सकता है।

अतः यह दुनिया भर के लिए गंभीर मुद्दा है जो हर किसी के निरंतर प्रयासों से हल होना चाहिए। 

 

पौष्टिक भोजन स्वास्थ्य की एक महत्त्वपूर्ण आधारशिला है। इसलिए शरीर की जरूरतों को पूरा करने के लिए भोजन में उचित मात्रा में आवश्यक पोषक तत्वों की पूर्ति होनी चाहिए। पोषक तत्वों की अधिकता और कमी-दोनों समान रूप से हानिकारक हैं और व्यक्तिगत, पारिवारिक और सामुदायिक स्वास्थ्य पर लम्बे समय तक चलने वाले प्रतिकूल प्रभाव हैं। इस प्रकार, इस मुद्दे को प्रभावी ढंग से सम्बन्धित करना और समुदाय को अच्छे स्वास्थ्य और इष्टतम पोषण के महत्व के बारे में जागरूक करना अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। अच्छा पोषण, नियमित शारीरिक गतिविधि और पर्याप्त नींद स्वस्थ जीवन के आवश्यक नियम हैं। सम्पूर्ण राष्ट्र में इष्टतम पोषण की अवधारणा को बढ़ावा देने के लिए एक समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता है।

संविधान के अनुच्छेद 47 के अनुसार पोषण-स्तर, रहन-सहन और सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार लाना राज्य का कर्तव्य है-

ईट राइट इंडिया के तहत पंचायत को यह अधिकार दिए जाने पर स्कूल, कॉलेज, रसोईघर, सामुदायिक उद्यान व्यक्तियों और उनके परिवारों की पोषण स्थिति को बेहतर बनाने में मदद कर सकते हैं। जनता को अपने स्थानीय वातावरण में पौष्टिक मौसमी उत्पाद उगाने, फसल लगाने और तैयार करने के लिए शिक्षित करने की आवश्यकता है। यह एक तरीके से सामुदायिक पर्यावरण, समाज और भौतिक रूप से समुदाय को बेहतर बनाएगा, जिससे लोगों में प्रकृति की स्थिरता की गहरी समझ को बढ़ावा मिलेगा। इसके अलावा, होम गार्डन को जोड़कर हम इस अवधारणा को और भी सुदृढ़ कर सकते हैं, स्कूलों/कॉलेजों और समुदाय के बीच ज्ञान और अनुभव के आदान-प्रदान का मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं; और स्वस्थ भोजन और जीवनशैली सम्बन्धी आदतों के बारे में सीख सकते हैं। कई देशों द्वारा सकारात्मक कदम उठाए जा रहे हैं और भारत में भी इसे लागू करने की योजना है ताकि स्वस्थ भोजन/पेयजल को बढ़ावा दिया जा सके और स्कूल/कॉलेज के कैफेटेरिया, दुकानों में और आस-पास स्कूल परिसर में जंक फूड/चीनी-मीठे पेय पदार्थों की बिक्री या सेवा पर प्रतिबंध लगाया जा सके। 

स्वास्थ्य-उन्मुख भोजन और पोषण-आधारित शैक्षिक हस्तक्षेपों में लोगों के सकारात्मक व्यवहार को सीधे तौर पर सुधारने की क्षमता है। हस्तक्षेप राष्ट्रीय खाद्य-आधारित आहार सम्बन्धी दिशा-निर्देशों पर आधारित होना चाहिए, जिसमें पारम्परिक, उपेक्षित और अल्प-भोजन पदार्थों के उपयोग सहित आहार विविधता को बढ़ावा देना, फोर्टिफाइड खाद्य पदार्थों/पोषक तत्वों की खुराक को शामिल करना (अगर पोषक तत्वों की कमी को पूरा नहीं किया जा सकता है), जैव विविधता संरक्षण और पर्यावरणीय स्थिरता को बढ़ावा देना शामिल है। सभी स्वास्थ्य और पोषण हस्तक्षेपों को दीर्घकालिक स्थिरता के लिए बनाया जाना चाहिए। लोगों के स्वास्थ्य/पोषक की स्थिति में एक प्रगतिशील सुधार लाने के लिए यह आवश्यक है कि लोगों को स्वस्थ जीवनशैली अपनाने और अभ्यास करने के लिए शिक्षित किया जाए। जागरूकता की कमी और खराब स्वास्थ्य व्यवहार को की गैर-संचारित बीमारियों का प्रमुख अंतनिर्हित कारण पाया गया है- जिन्हें शीघ्र निदान द्वारा, स्वास्थ्य शिक्षा प्रदान करके, समय पर रेफरल और प्रबंधन प्रदान करके रोका जा सकता है। विभिन्न अध्ययनों में स्पष्ट रूप से सुझाव दिया गया है कि प्रारम्भिक निदान और रोकथाम-रुग्णता को कम करने और मृत्यु दर को रोकने पर महत्त्वपूर्ण रूप से सकारात्मक प्रभाव डाल सकते हैं।

शिक्षाविदों को चाहिए कि वह इष्टतम आहार प्रथाओं और लागत प्रभावी नीतियों पर शैक्षिक हस्तक्षेप को प्राथमिकता दें, सकारात्मक स्वास्थ्य संकेतों और नीति परिणामों की निगरानी और मूल्यांकन, समुदायों, मीडिया, नीति निर्माताओं के साथ संलग्न, और नियमित रूप से चल रहे हस्तक्षेप का मूल्यांकन अति आवश्यक है। स्वास्थ्य प्रणाली, खाद्य पदार्थों की आदतों में तीव्र बदलाव व शारीरिक गतिविधि में कमी दुनिया भर में बढ़ती जा रही है। लोग ऊर्जा, संतृप्त वसा, ट्रांस वसा, शर्करा, अधिक नमक/सोडियम युक्त खाद्य पदार्थों का अत्यधिक सेवन कर रहे हैं; और इसके विपरीत डायट्री-फाइबरयुक्त खाद्य पदार्थ जैसे फल, सब्जियां, साबुन अनाज/दालों का सेवन कम हो गया है। पौष्टिक भोजन स्वास्थ्य की एक महत्त्वपूर्ण आधारशिला है। इसलिए, शरीर की जरूरतों को पूरा करने के लिए भोजन में उचित मात्रा में आवश्यक पोषक तत्वों की पूर्ति होनी चाहिए। पोषक तत्वों की अधिकता और कमी-दोनों समान रूप से हानिकारक हैं और व्यक्तिगत, पारिवारिक और सामुदायिक स्वास्थ्य पर लम्बे समय तक चलने वाले प्रतिकूल प्रभाव है।

सम्पूर्ण राष्ट्र में इष्टतम पोषण की अवधारणा को बढ़ावा देने के लिए एक समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता है। बहु-क्षेत्रीय नवीन दृष्टिकोणों की आवश्यकता है जो समाज के सभी वर्गों को, सभी आयु समूहों को शामिल करके लोगों की खाद्य आदतों/प्रथाओं, क्रयशक्ति समानता व सांस्कृतिक विविधता को ध्यान में रखते हुए स्वस्थ पोषण के प्रति जागरूक बनाएं। स्कूलों, बाल-देखभाल केन्द्रों और परिवारों में बचपन से ही उचित ज्ञान देने की आवश्यकता है, ताकि स्वस्थ भोजन की आदतों और अच्छे स्वास्थ्य की नींव सही उम्र में रखी जाए और भविष्य की पीढ़ियों में भी इसे अच्छी तरह से प्रसारित किया जा सके।

प्रोफेसर नरेश कुमार, प्रोफेसर इंचार्ज, शिक्षाशास्त्र विभाग, बीएनएमयू, मधेपुरा # महासचिव, बीएनमुस्टा, मधेपुरा