BNMU : भाषा, साहित्य एवं संस्कृति विषयक राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन

समाज की संरचना में आर्थिक संरचना का बहुत महत्व है। अर्थ मानव जीवन का एक अनिवार्य अंग है। मानव जीवन में रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा एवं रोजगार की आवश्यकता होती है। लेकिन मानव मात्र शारीरिक सुखों से ही संतुष्ट होकर नहीं रह सकता है। यह बात भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली के अध्यक्ष प्रोफेसर डाॅ. रमेशचन्द्र सिन्हा ने कही।वे सोमवार को ठाकुर प्रसाद महाविद्यालय, मधेपुरा में दर्शन परिषद्, बिहार द्वारा प्रायोजित एक दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार का उद्घाटन कर रहे थे। इसका विषय भाषा, साहित्य एवं संस्कृति था।

उन्होंने कहा कि समाज मात्र अर्थ तक सीमित नहीं है और मनुष्य का जीवन भी मात्र अर्थ तक सीमित नहीं है। मानव जीवन में आर्थिक के अलावा अन्य पक्षों का भी महत्व है। विशेष रूप से शैक्षणिक, नैतिक, सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक पक्ष भी काफी महत्वपूर्ण है।

उन्होंने कहा कि भाषा, साहित्य एवं संस्कृति मनुष्य एवं समाज के लिए बहुत ही आवश्यक है। भाषा मनुष्य के भूत, वर्तमान और भविष्य तीनों को एक सूत्र में बांधती है। साहित्य समाज के दर्पण का काम करता है।संस्कृति संस्कारों का पुंज है और मनुष्य का सामाजिक जीवन संस्कारों के साथ ही जुड़ा है।

इस अवसर पर मुख्य अतिथि अखिल भारतीय दर्शन परिषद के अध्यक्ष डॉ. जटाशंकर ने कहा कि साहित्य का संबंध तो कहीं ना कहीं सभी से है। सार्थक का मतलब हुआ वह शब्द, जिसका कोई अर्थ निकल रहा हो।

उन्होंने कहा कि हम उन्होंने कहा कि हम युग की मांग के अनुसार साहित्य की रचना करते हैं। युग की मांग के अनुसार उसके स्वरूप में परिवर्तन होता है। युग की मांग के अनुरूप ही सृजन होता है, और बहुत सा ऐसा हिस्सा है साहित्य का जो उस युग के समाप्त होते ही फिर विसर्जित हो जाता है। लेकिन जो साहित्य सर्वकल्याण के आदर्श के लिए प्रयत्नशील हो, वह अच्छा साहित्य कहा जाएगा।

आयोजन के मुख्य संरक्षक दर्शन परिषद्, बिहार के अध्यक्ष प्रोफेसर डाॅ. बी. एन. ओझा ने कहा कि भाषा, साहित्य और संस्कृति समाज का दर्पण है। वास्तव में भाषा एक संस्कृति है, उसके भीतर भावनाएं, विचार और सदियों की जीवन पद्धति समाहित होती है। मातृभाषा ही परंपरा और संस्कृतियों से जोड़े रखने की एकमात्र कड़ी है।मातृभाषा में ही संस्कार और संस्कृतियाँ छिपी रही है। मातृभाषा किसी भी व्यक्ति, समाज, संस्कृति, साहित्य और राष्ट्र की पहचान होती है।

उन्होंने कहा कि आज हम अपनी संस्कृति को भूल रहे हैं। पहले घर के बाहर स्वास्तिक बनाते थे और सुस्वागतम् लिखा होता था और अब कुत्तों से सावधान। स्वास्तिक से सर्वाधिक सकारात्मकता और साकारात्मक ऊर्जा निकलती है और यह विश्व की समस्त धार्मिक या अन्य आकृतियों के मुकाबले अनेक सर्वाधिक ऊर्जा देने वाली है।

उन्होंने कहा कि संप्रेषण की भाषा मातृभाषा होना चाहिए, जिस भाषा में व्यक्ति सोचता है, चिंतन मनन करता है। एक भाषा के नष्ट होने का अर्थ संस्कृति, विचारों और जीवन पद्धति का मर जाना होता है। हिंदी और भारतीय भाषाएं जैसे- देवनागरी ऐसी भाषा है जिसके पढ़ने से जीभ के सभी स्नायूओं का उपयोग होता है। जब हम देवनागरी भाषा का उपयोग करते हैं, तब रक्त संचार बढ़ता है, मस्तिष्क शांत, बेहतर क्रियाशीलता, रोग रोधक शक्ति का विकास होता है।मुख्य वक्ता दर्शनशास्त्र विभाग, हेमवति नंदन बहुगुणा केंद्रीय विश्वविद्यालय, श्रीनगर-गढ़वाल की अध्यक्ष प्रोफेसर डाॅ. इन्दु पाण्डेय खण्डूड़ी ने कहा कि समाज मे भाषा भावों की अभिव्यक्ति के साथ ही मानव की संवेदनाओं, इच्छाओं आकांक्षाओं और मूल्यों को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक हस्तांतरित करने का सशक्त माध्यम है। सटीक भाषा मे मानवीय मूल्य संस्कृति संपृक्त साहित्य ही उत्तम साहित्य होता है। साहित्य इस ज्ञान की समृद्धि की मानवीय मूल्यों से संपृक्त लिपि में दर्ज जिंदा दस्तावेज है। https://youtu.be/McW3fidE_wE उन्होंने कहा कि हर रचना साहित्य नहीं होती है। साहित्य में प्रकृति या मूल कारण या स्वभाव का निश्चित उद्देश्य के साथ विवरण, विकारों को परिष्कृत करने की सकारात्मक दृष्टि और संस्कृति के मनुष्यता के महत्त्वपूर्ण तत्त्व को उद्घाटित करने का निहितार्थ होना आवश्यक है। मूल रूप से तो साहित्य लोकोन्मुखी होता है, उन्नति और परिष्करण हेतु संस्कृति उन्मुखी होता है।

उन्होंनेकहा कि साहित्य अतीतकालीन संस्कृति के उत्तम पक्षों को सम्मिलित करते हुए समकालीन अपेक्षित मूल्यों को समाहित करते हुए मानव कल्याण का मार्ग प्रस्तुत करता है। इसलिए साहित्यकार की दृष्टि गहन, सूक्ष्म और दूरदर्शी होती है। समर्थ साहित्यकार में सकारात्मक निहितार्थो को समझने, प्रस्तुत करने और सांस्कृतिक मूल्यों के माध्यम से समाज को सही दिशा देने की सामर्थ्य होती है। इस प्रकार सटीक भाषा में सांस्कृतिक मूल्यों से संपृक्त साहित्य ही उन्नत साहित्य माना जा सकता है। इस प्रकार भाषा, साहित्य एवं संस्कृति तीनो में एक सशक्त अंतर्सम्बन्ध की पुष्टि भी होती है। साहित्य सौंदर्य बोध, स्वतंत्रता बोध, सकारात्मक चिंतन से युक्त, आनददायक, कल्याणकारी और प्रेरणादायक होना चाहिए। ऐसा साहित्य सांस्कृतिक मूल्यों की सटीक अभिव्यक्ति से समाज को सकारात्मक दिशा दे पाएगा।

बीएनएमयू के मानविकी संकाय अध्यक्ष डॉ. उषा सिन्हा ने कहा कि भारतीय संस्कृति हमारे मन बुद्धि और स्मृति को नियंत्रित करने वाली आत्मा से संबंधित है। इसमें साहित्य संगीत नृत्य आदि विधाओं का प्रतिरूप परिलक्षित होता है। संस्कृति हमारे चिंतन- मनन, अध्ययन एवं उत्कृष्ट संस्कारों का विराट स्वरूप है।

उन्होंने कहा कि आज देश-दुनिया का परिदृश्य बदल गया है। विज्ञान का विध्वंसात्मक रूप हमारे सामने खड़ा है। चारों और आतंकवाद, भ्रष्टाचार, गरीबी, शोषण निरक्षरता, जातिवाद, संप्रदायिकता, ईर्ष्या-द्वेष व्याप्त है। मानवतावाद कराह रही है।

उन्होंने कहा कि आज पूरा विश्व भूमंडलीकरण संस्कृति की चपेट में है। आज ऐसे साहित्य की आवश्यकता है, जिससे मानव समाज आनंदित हो तथा सांस्कृतिक एकता कायम हो।

दर्शनशास्त्र विभाग, पंजाब विश्वविद्यालय चंडीगढ़ की प्रोफेसर डॉ. आशा मुद्गल
ने कहा कि आशा मुद्गल मैडम भाषा संवाद का माध्यम है। इसके माध्यम से हम ज्ञान एवं शक्ति प्राप्त करते हैं।

स्कॉटिश चर्च महाविद्यालय, कोलकाता में हिंदी विभाग की अध्यक्ष डॉ. गीता दुबे ने कहा कि सामाजिक नैतिकता समय के साथ बदलती रहती है। अतीत में जीना, अतीत के स्वर्णिम इतिहास को याद करना अच्छी बात है। लेकिन जब तक हम आगे नहीं देखेंगे, तब तक हम बहुत विकास नहीं कर पाएंगे।कार्यक्रम में रांची विश्वविद्यालय, रांची के डॉ. जंग बहादुर पांडेय, एलएनएमयू दरभंगा के डॉ. प्रेम मोहन मिश्र एवं डॉ. रामचंद्र सिंह, बीएनएमयू के डॉ. सिद्धेश्वर कश्यप ने भी अपने विचार व्यक्त किया।

प्रधानाचार्य डाॅ. के. पी. यादव ने अतिथियों का स्वागत किया। संचालन जनसंपर्क पदाधिकारी डाॅ. सुधांशु शेखर और एमएलटी काॅलेज, सहरसा के डाॅ. आनंद मोहन झा ने किया।कार्यक्रम की शुरुआत महाविद्यालय के संस्थापक कीर्ति नारायण मंडल और हाल ही में दिवंगत हुए सुप्रसिद्ध कलाविद् कपिला वात्स्यायन के चित्र पर पुष्पांजलि के साथ हुई। असिस्टेंट प्रोफेसर खुशबू शुक्ला ने वंदना प्रस्तुत किया।इस अवसर पर डाॅ. रोहिणी, सीनेटर रंजन कुमार, डाॅ. बुद्धप्रिय, विवेकानंद, मणीष कुमार, सौरभ कुमार चौहान, बिमल कुमार आदि उपस्थित थे।

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