India। सांस्कृतिक विकासवाद की जरूरत : डॉ. रामनरेश सिंह

भारतीय सभ्यता-संस्कृति में सर्व खलु इदं ब्रह्म, ईशावास्यमिदं सर्वं, और सियाराम मय सब जग जानी कल्पना की गई है। हम यह मानते हैं कि संपूर्ण चराचर जगत में एक ही ईश्वरीय चेतना का वास है। जन, जानवर, जंगल, जल, जमीन सभी में चेतना का वास है। यह आदर्श अब वैज्ञानिक दृष्टि से भी सिद्ध हो गया है। यह बात राष्ट्रवादी विचारक सह बीएनएमयू, मधेपुरा के सिंडिकेट सदस्य डॉ. रामनरेश सिंह ने कही। वे बी. एन. मंडल विश्वविद्यालय, मधेपुरा के फेसबुक पेज पर सांस्कृतिक विकासवाद विषय पर व्याख्यान दे रहे थे।

उन्होंने कहा कि वैदिकक दर्शन, वैदिक शास्त्र एवं वैदिक विज्ञान सबसे प्राचीनतम है। भारत की सांस्कृतिक विरासत विश्व के वैज्ञानिक एवं भौतिकवाद से कहीं अधिक विकसित है। भारतीय ऋषि मुनि लंबे समय से कहते आ रहे थे कि सभी चराचर जगत में ब्रह्म का वास है। कुछ वर्ष पूर्व गॉड पार्टिकल के खोजकर्ता वैज्ञानिक ने यह बताया है कि संपूर्ण सृष्टि में एक ही तत्व है। हमारे भारतीय वैज्ञानिक जगदीश चंद्र बसु ने कहा था कि पेड़-पौधों में भी जीवन होता है।

उन्होंने कहा कि भारतीय ऋषि-मुनियों ने बताया है कि क्षिति (मिट्टी), जल (पानी), पावक (आग), गगन (आकाश) एवं समीरा (वायु) इन पांच तत्व पांच तत्वों से बना है। हमारी सभ्यता-संस्कृति यह मानती है कि पूरी प्रकृति और इसके सभी जीव एक- दूसरे से जुड़े हुए हैं। यह सबों के विकास एवं कल्याण का आदर्श प्रस्तुत करता है। भारतीय सभ्यता-संस्कृति में सभी मनुष्यों, पशु-पक्षियों एवं संपूर्ण चराचर जगत में एकत्व की कामना की गई है। इसमें सर्वोदय अर्थात् सबों के उदय और अंत्योदय अर्थात अंतिम जीव के उदय की कामना की गई है। हम जल, जंगल, जमीन और जानवर से प्यार करते हैं। हमारी संस्कृति में इंसानों में भी देवताओं का वास माना गया है।

उन्होंने कहा कि भौतिकवादी विकास यह मानता है कि मनुष्य प्रकृति का मालिक है। यह प्रकृति का शोषण एवं दोहन करता है। यह मानता है कि प्रकृति हमारे उपभोग के लिए है। यह दृष्टि विनाशकारी है।

उन्होंने कहा कि भोगवादी विकासवाद के कारण आज लगातार विश्व में जंगल काटे जा रहा हैं, पहाड़ काटे जा रहे हैं। हम प्रकृति-पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहे हैं। इसके कारण दुनिया भर में जलवायु परिवर्तन हो रहा है। ओजोन परत का क्षरण हो रहा है। ग्लोबल वार्मिंग का खतरा बढ़ा है। मनुष्य की आयु घटती जा रही है और बीमारियां बढ़ती जा रही हैं।

उन्होंने कहा कि भौतिकवादी विकास दृष्टि के कारण ही आज दुनिया को कोरोनावायरस का सामना करना पड़ रहा है। चीनी लोगों ने जीवों के साथ क्रूरता का व्यवहार किया, इसके उसके कारण ही कोरोनावायरस ने जन्म लिया।

उन्होंने कहा कि लॉकडाउन के कारण पेड़-पौधे, जीव-जंतु, पशु-पक्षी, नदी-नाले, तालाब आदि में बदलाव देखे जा सकते हैं। कुछ दिनों पहले तक जो जीव दिखाई नहीं पड़ते थे, वे भी आज सड़कों पर दिखाई पड़ रहे हैं।

उन्होंने बताया कि भारत सरकार एवं बिहार सरकार द्वारा सांस्कृतिक विकासवाद की ओर ध्यान दिया जा रहा है। इसके अंतर्गत पारंपरिक खेती और जल जीवन हरियाली योजना चलाई जा रही है। वर्मी कंपोस्ट खाद को बढ़ावा दिया जा रहा है। लेकिन हमें सबसे पहले गांव और खेती किसानी एवं पशुपालन को बचाना होगा। यदि पशु नहीं रहेंगे, तो हम बढ़नी खाद कैसे कैसे बनाएंगे। हमें ट्रैक्टर से निकलने वाले प्रदूषण को रोकने के लिए हाल से होने वाली खेती को बढ़ावा देना पड़ेगा।

उन्होंने कहा कि भारतीय दर्शन में प्रकृति-पर्यावरण और संपूर्ण चराचर जगत के साथ सहयोग एवं सहकार का आदर्श प्रस्तुत किया गया है। हम दोहन एवं शोषण में विश्वास नहीं करते हैं। हमने जो रास्ता दिखाया है, वही रास्ता सबसे उपयोगी एवं सबसे श्रेयस्कर है। इसी पर चलकर दुनिया को विनाश से बचाया जा सकता है।

उन्होंने कहा कि हम भारतीय सभ्यता-संस्कृति के समावेशी विकास मॉडल को अपनाएं। हम भारतीय सांस्कृतिक विकासवाद को अपनाएं। जो राष्ट्र अपने अतीत को भूल जाता है, उसकी स्थिति उस व्यक्ति से भी बदतर है, जिसकी स्मृति चली गई हो‌‌। यदि हम बच्चों को प्राथमिक स्तर से ही देश की सभ्यता- संस्कृति की शिक्षा नहीं देंगे, तो हम मानसिक रूप से दिवालिया पीढ़ी तैयार करेंगे।