Periyar। पेरियार की 141वीं जयंती/प्रो. (डॉ.) विलक्षण रविदास

आधुनिक भारत में मूलनिवासी बहुजनों के महानायक, द्रविड़ चेतना के प्रवर्तक , महान बुद्धिवादी ,श्रमण संस्कृति के महान प्रवक्ता ई. वी. रामास्वामी नायकर पेरियार की 141वीं जयंती के शुभ अवसर पर देशभर के नागरिकों एवं विशेषकर मूलनिवासी-बहुजन समाज के लोगों की ओर से उनके प्रति हार्दिक श्रद्धांजलि और शत शत नमन।
जन्म तमिलनाडु के इरोड नामक कस्बे में 17 सितम्बर, 1879 ई में हुआ था। उनके पिता मान्यवर वेंकटप्पा नायकर एवं माता माननीया चिन्ना बाई थयम्मल थे। उनके बड़े भाई का नाम कृष्ण सामी था।1898 ई में रामासामी नायकर का विवाह तेरह वर्षीया माननीया नागम्मल से हुआ था। उनकी शिक्षा मात्र तीसरी कक्षा तक हो सकी, क्योंकि स्कूल़ों की शिक्षा जाति भेद -भाव और बच्चों को मारपीट एवं डांट- डपट पर आधारित देखकर उन्हें पसंद नहीं आईं।
1904 ई में वे घर छोड़कर निकले और काशी चले गए। वहां उनको धर्मशालाओं में भोजन नहीं मिल सका और उन्हें पता चला कि यह सुविधा केवल ब्राह्मणों के लिए है,शेष हिन्दू जातियों के लिए नहीं है। द्रविड़ व्यापारी द्वारा बनाए गए धर्मशाला में भी केवल ब्राह्मणों को ही भोजन एवं ठहरने की व्यवस्था थी। जातिवाद और ऊंच-नीच के कारण उन्हें अनेक दिनों तक भूखे रहना पड़ा, धर्मशालाओं के बाहर जूठन खाना पड़ा और कुत्ते के साथ सोना पड़ा। यों तो बचपन में भी वे अपने घर पर ऊंच-नीच और छुआछूत नहीं मानते थे और अछूत बच्चों के साथ खेलते थे जिसके कारण उनके पिता उन्हें मारपीट किया करते थे, परन्तु काशी में हुए अपने साथ ऊंच-नीच और छुआछूत के व्यवहार से उनके ह्रृदय पर भीषण आघात पहुंचा। वे पुनः अपने घर लौट आए और अपने पिता जी एवं बड़े भाई के साथ मिलकर व्यवसाय करने लगे। बहुत जल्द ही उन्होंने अपने मिलनसार स्वभाव एवं व्यवहार के कारण व्यापार में अपना प्रभाव स्थापित कर लिया। उस प्रभाव और सामाजिक -सांस्कृतिक कार्यों में सक्रियता के कारण 1918 ई में वे इरोड नगरपालिका के चैयरमेन बनाए गए। फिर1919 ई में वे राजगोपालाचारी के प्रभाव में आकर कांग्रेस में शामिल हो गए।
इसी वर्ष से उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन सफ़र की शुरुआत कट्टर गांधीवादी के रूप में की ।वे गांधी की नीतियों जैसे शराब विरोधी, खादी वस्त्रों का प्रयोग करने और छुआछूत मिटाने की ओर आकर्षित हुए। उन्होंने अपनी पत्नी नागम्मल और बहन बालाम्बल को भी राजनीति से जुड़ने के लिए प्रोत्साहित किया। ये दो महिलाएं ताड़ी के दुकानों के विरोध में सबसे आगे थीं। ताड़ी विरोध आंदोलन के साथ एकजुटता में उन्होंने स्वेच्छा से अपने हजारों रुपए की आमदनी वाले खिजूरों एवं ताड़ के बागों को नष्ट करवा दी। उन्होंने सक्रिय रूप से असहयोग आंदोलन में भाग लिया और गिरफ़्तार किए गए. उसके बाद वे कांग्रेस के मद्रास प्रेसिडेंसी यूनिट के अध्यक्ष बनाए गए।
1924 ई में उन्होंने वायकोम छुआछूत मिटाओ सत्याग्रह में भाग लिया। केरल में त्रावणकोर के राजा के मंदिर की ओर जाने वाले रास्ते पर दलितों के प्रवेश करने पर प्रतिबंधित लगा हुआ था। उसके विरोध में आन्दोलन शुरू किया गया। आन्दोलन करने वाले नेताओं को राजा के आदेश से गिरफ़्तार कर लिया गया और इस लड़ाई को आगे बढ़ाने के लिए कोई नेतृत्व नहीं था।तब आंदोलन के नेताओं ने इस विरोध का नेतृत्व करने के लिए पेरियार साहब को आमंत्रित किया। इस विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व करने के लिए पेरियार साहब ने मद्रास राज्य काँग्रेस अध्यक्ष के पद से इस्तीफ़ा दे दिया। किन्तु गांधी जी ने उन्हें ऐसा करने से मना कर दिया तो वे गांधी के आदेश का उल्लंघन करते हुए केरल चले गए।त्रावणकोर पहुंचने पर उनका राजकीय स्वागत हुआ क्योंकि वे राजा के दोस्त थे। लेकिन उन्होंने इस स्वागत को स्वीकार करने से मना कर दिया ,क्योंकि वे वहां राजा का विरोध करने पहुंचे थे। उन्होंने राजा की इच्छा के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन में भाग लिया। अंततः वे गिरफ़्तार किए गए और महीनों के लिए जेल में बंद कर दिए गए। उसके बाद उनकी पत्नी और बहन ने महिलाओं का मोर्चा बना कर विरोध प्रदर्शन का आयोजन किया और सत्याग्रह का नेतृत्व किया।बाद में मंदिर का वह रास्ता शूद्रों औरअछूतों के लिए विवश होकर खोला गया और आन्दोलन की जीत हुई।
उनके द्वारा कांग्रेस सम्मेलन में जातीय आरक्षण के प्रस्ताव को पास करने केे लगातार प्रयास किए गए, किन्तु असफल सिद्ध हुए। इस बीच एक रिपोर्ट सामने आई कि चेरनमादेवी शहर में काँग्रेस पार्टी के अनुदान से चलाए जा रहे सुब्रह्मण्यम अय्यर के स्कूल में ब्राह्मण और गैर-ब्राह्मण छात्रों के साथ खाना परोसते समय अलग व्यवहार किया जाता है। पेरियार ने ब्राह्मण अय्यरों से सभी छात्रों के साथ एक समान व्यवहार करने का आग्रह किए, लेकिन न तो वे अय्यरों को इसके लिए राजी कर सके और न ही काँग्रेस के अनुदान को रोक पाने में कामयाब हुए,इसलिए उन्होंने काँग्रेस छोड़ने का फैसला किया।
उसके बाद उन्होंने कांग्रेस छोड़ दीं और आत्म-सम्मान आंदोलन शुरू किया।उनका लक्ष्य गैर-ब्राह्मण अर्थात द्रविडों एवं अछूत जातियों में आत्म-सम्मान पैदा करना था। उसके बाद वे 1916 में शुरू हुए एक गैर-ब्राह्मण संगठन दक्षिण भारतीय लिबरल फेडरेशन अर्थात जस्टिस पार्टी के अध्यक्ष बनाए गए।
1944 ई में उन्होंने अपने आत्म-सम्मान आंदोलन और जस्टिस पार्टी को मिला कर द्रविड़ कज़गम का गठन किया और मान्यवर अन्नादुरई को उसका नेता बनाया।उन्होंने सोवियत रूस का दौरा किया ,जहां वो कम्युनिस्ट आदर्शों से प्रभावित हुए और कम्युनिस्ट पार्टी के घोषणापत्र का पहला तमिल अनुवाद प्रकाशित किया।
महिलाओं की स्वतंत्रता के महान पक्षधर थे। उनके विचार इतने प्रखर हैं कि उन्हें आज के मानदंडों में भी महान क्रांतिकारी माना जाएगा। उन्होंने बाल विवाह के उन्मूलन, विधवा महिलाओं की दोबारा शादी के अधिकार, पार्टनर चुनने या छोड़ने, शादी में निहित पवित्रता की जगह पार्टनरशिप के रूप में लेने, इत्यादि के लिए अभियान चलाया था। उन्होंने महिलाओं से केवल बच्चा पैदा करने के लिए शादी करने की जगह महिलाओं को पुरुषों के समान शिक्षा ग्रहण करने पर जोर दिया।
उन्होंने अपने अनुयायियों के द्वारा वैवाहिक अनुष्ठानों को चुनौती दी और शादी के निशान के रूप में थली (मंगलसूत्र) पहनने का विरोध करवाया। उनके आन्दोलन के प्रभाव के कारण ही महिलाओं ने एक महिला सम्मेलन आयोजित कर उन्हें पेरियार अर्थात राष्ट्रपिता या महापुरुष की उपाधि दी ।
उन्होंने कहा था कि समाज में निहित अंधविश्वास और भेदभाव की जड़ें वैदिक ब्राह्मणवादी हिंदू धर्म में हैं। यह समाज को जाति के आधार पर विभिन्न वर्गों में बांटता है और उसमें ब्राह्मणों का स्थान सबसे ऊपर है। इसीलिए उन्होंने वैदिक धर्म के आदेश और ब्राह्मण वर्चस्व को तोड़ने का संकल्प लिया।एक कट्टर नास्तिक के रूप में उन्होंने भगवान के अस्तित्व की धारणा के विरोध में प्रचार प्रसार चलाए।उन्होंने दक्षिण भारत राज्यों की एक अलग द्रविड़नाडू (द्रविड़ देश) की मांग की थी।लेकिन दक्षिण के अन्य राज्य उनके विचारों से सहमत नहीं हुए।
वे दलित -वंचित वर्गों के आरक्षण के अगुवा थे और 1937 में उन्होंने तमिल भाषी लोगों पर हिंदी थोपने का विरोध किया था।
उन्होंने गांधी जी से कहा था कि भारत की आजादी से पहले तीन दुश्मनों का खात्मा करना आवश्यक है।ये दुश्मन हैं पहला, कांग्रेस पार्टी- जिस पर ब्राह्मण पदाधिकारियों का कब्जा है,दूसरा है -जाति व्यवस्था और तीसरा है- ब्राह्मणवादी समाज और धर्म।
पेरियार साहब ने घूम -घूमकर कई सभाओं में लोगों को संबोधित किया और अपने अधिकांश भाषणों में वे कहा करते थे कि”कुछ भी सिर्फ़ इसलिए स्वीकार नहीं करो कि मैंने कहा है।इस पर विचार करो और अगर तुम्हें अच्छा लगे, तभी इसे स्वीकार करो, अन्यथा इसे छोड़ दो.”
उन्होंने समाज में नवजागरण लाने के लिए अनेक पत्र-पत्रिकाओं के प्रकाशन पर जोर दिया। उन्होंने 1928 ई में रिवोल्ट,1933 ई में पुरातकी अर्थात क्रांति,1935 ई में विदुथलयी आदि पत्रिकाओं का संपादन और प्रकाशन किया था।
1946 ई में उन्होंने मदुरै में वैगई नदी के किनारे प्रसिद्ध काली कमीज( Black Shirt) सम्मेलन का आयोजन कर सामाजिक न्याय और सामाजिक क्रांति की शुरुआत की। फिर 1954 ई में उन्होंने इरोड में बौद्ध धर्म सम्मेलन का आयोजन किया।उसी वर्ष वर्मा हुए अन्तर्राष्ट्रीय बौद्ध सम्मेलन में उन्होंने और बाबा साहब डॉ आंबेडकर ने भाग लिया एवं दोनों के बीच में भारत में बौद्ध धर्मान्तरण के लिए काम करने पर विचार विमर्श हुआ।
उन्होंने भारत के गणतंत्र दिवस को 1950 ई में शोक दिवस(Black Day) घोषित करते हुए पोनोमोझीगल नामक स्वर्णिम कहावतें प्रकाशित किया जिसके कारण उन्हें जेल की सजा भुगतनी पड़ी। पूरे दक्षिण भारत में उनके उस विरोध प्रदर्शन और आन्दोलन के प्रभाव के कारण ही नेहरू मंत्रिमंडल ने भारतीय संविधान में पहला संशोधन का प्रस्ताव पारित करवा कर अनुच्छेद १५ में उपखण्ड ४ को जोड़ा और सामाजिक एवं शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए शिक्षा में प्रवेश हेतु विशेष प्रावधान आरक्षण रखा। उनके आन्दोलनों के कारण ही तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक आदि राज्यों में अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति और पिछड़े वर्गों के लिए 69 %आरक्षण लागू हो सका था।
समानता, स्वतंत्रता, भाईचारा,न्याय और आत्मसम्मान की स्थापना के लिए पेरियार रामास्वामी नायकर ने ब्राह्मणवादी देवी -देवताओं के खिलाफ आन्दोलन चलाया । उन्होंने “ए ट्रू रीडिंग टु रामायण”और तमिल भाषा में सच्ची रामायण लिखकर छपवाई और बिना मूल्य लिए वितरण करवाया।1959 ई में उसका अंग्रेजी में अनुवाद प्रकाशित किया गया “रामायण : ए ट्रू रीडींग”। इस पुस्तक का हिंदी अनुवाद सच्ची रामायण शीर्षक से मान्यवर ललई यादव जी के द्वारा 1968 ई में किया गया। 94 वर्ष की आयु में 24 दिसंबर 1993 ई में उनका परिनिर्वाण वेल्लोर स्थित सी एम सी अस्पताल में हुआ। उनके अंतिम दर्शन एवं श्रद्धांजलि देने के लिए लाखों लोगों ने शवयात्रा में भाग लिया था।
पेरियार साहब महान तर्कवादी, समतावादी, आत्म-सम्मान के पुजारी,ब्राह्मणवादी कर्मकांडों के घोर विरोधी, धर्म और भगवान की उपेक्षा करने वाले, जाति व्यवस्था और पितृसत्ता के विध्वंसक एवं मूलनिवासी बहुजन समाज के महानायक के रूप हमारे दिल में बसते हैं। आइए,हम अपने महानायक पेरियार साहब को उनके जन्मदिन के शुभ अवसर पर आज हार्दिक नमन् व श्रद्धांजलि अर्पित करें और उनके सपनों का भारत बनाने के लिए संघर्ष करें और उनकी सांस्कृतिक विरासत को आगे बढ़ाएं।
जय फुले। जय भीम। जय पेरियार
प्रो. (डॉ.) विलक्षण रविदास
अध्यक्ष, अंबेडकर विचार एवं समाज कार्य विभाग, तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय, भागलपुर, बिहार
संरक्षक, बिहार फुले अम्बेडकर युवा मंच
बहुजन स्टूडेंट्स यूनियन, बिहार