*याद किए गए डॉ. राजेंद्र प्रसाद*
*सादगी की प्रतिमूर्ति थे देशरत्न : कुलसचिव*
डॉ. राजेन्द्र प्रसाद सेवा एवं सादगी की प्रतिमूर्ति थे। उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम एवं संविधान- निर्माण में महती भूमिका निभाई। उन्हें भारतीय जनमानस ने ‘देशरत्न’ और भारत सरकार ने सर्वश्रेष्ठ नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से नवाजा।
यह बात बीएनएमयू, मधेपुरा के कुलसचिव प्रो. अशोक कुमार ठाकुर ने कही। वे बुधवार को डॉ. राजेन्द्र की वीं जयंती पर आयोजित श्रद्धांजलि सभा की अध्यक्षता कर रहे थे। कार्यक्रम का आयोजन राष्ट्रीय सेवा योजना (एनएसएस) के तत्वावधान में किया गया।

*कानून में डाक्ट्रेट थे राजेन्द्र*
कुलसचिव ने बताया कि डॉ. राजेंद्र प्रसाद का जन्म 3 दिसंबर, 1884 को बिहार के जीरादेई (सिवान) में हुआ था। उनके पिता का नाम महादेव सहाय फारसी एवं संस्कृत भाषाओं के विद्वान और माता कमलेश्वरी धार्मिक महिला थीं। उन्होंने कानून में मास्टर की डिग्री के साथ डाक्ट्रेट की विशिष्टता भी हासिल की।
*कांग्रेस अध्यक्ष भी रहे थे राजेन्द्र*
उन्होंने बताया कि डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने महात्मा गाँधी के नेतृत्व में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की गतिविधियों में सक्रिय भागीदारी निभाई। वे कांग्रेस अध्यक्ष भी रहे और ‘नमक सत्याग्रह’ और ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ के दौरान जेल में भी रहे।
उन्होंने बताया कि डॉ. राजेंद्र प्रसाद 26 जनवरी, 1950 को स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति बने। वे सन् 1957 में दोबारा राष्ट्रपति चुने गए और सन् 1962 तक इस पद पर रहे। फिर उन्होंने राजनीति से संन्यास ले लिया और अपना शेष जीवन सदाकत आश्रम, पटना में बिताया, जहां 28 फरवरी, 1963 को उन्होंने अपनी अंतिम सांस ली।
*भारतीयता के प्रबल हिमायती थे राजेन्द्र*
विषय प्रवेश कराते हुए परिसंपदा पदाधिकारी शंभू नारायण यादव ने बताया कि डॉ. राजेन्द्र प्रसाद भारतीयता के प्रबल हिमायती थे। उनका रहन-सहन, खान-पान एवं भेषभूषा सब कुछ भारतीय था।
उन्होंने बताया कि डॉ. राजेन्द्र प्रसाद संविधान सभा के अध्यक्ष थे। उन्होंने संविधान में भारतीय मूल्यों का समावेश कराने की हरसंभव कोशिश की। वे चाहते थे कि आजादी के बाद भारत का शासन-प्रशासन भारतीय परंपराओं के अनुरूप चले। इस बावत कई अवसरों पर उनका प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के साथ मतभेद भी सामने आया।
*अद्वितीय मेधा के स्वामी थे राजेन्द्र*
कार्यक्रम का संचालन करते हुए कार्यक्रम समन्वयक डॉ. सुधांशु शेखर ने बताया कि डॉ. राजेन्द्र प्रसाद अद्वितीय मेधा के स्वामी थे। इसलिए जन्मदिवस को मेधा दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। उनकी मेधा के संबंध में कई बातें प्रचलित हैं। उनकी एक उत्तर पुस्तिका पर परीक्षक ने टिप्पणी की थी कि परीक्षार्थी परीक्षक से श्रेष्ठ है।

*महापुरुषों से प्रेरणा ग्रहण करें युवा*
धन्यवाद ज्ञापन करते हुए परीक्षा नियंत्रक डॉ. शंकर कुमार मिश्र ने कहा कि युवाओं को अपने महापुरुषों की जीवनियां पढ़नी चाहिए। उन्हें महापुरुषों से प्रेरणा ग्रहण करते हुए समाज एवं राष्ट्र के नवनिर्माण में योगदान देना चाहिए।
इस अवसर पर शोधार्थी सौरभ कुमार चौहान, डॉ. विनोद कुमार यादव, अमित कुमार, विश्वजीत कुमार आदि उपस्थित थे।













