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भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद् के लिए ऐतिहासिक दिन

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कल का दिन भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद् के लिए एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण दिन रहा। भारत सरकार के शिक्षा मंत्री माननीय धर्मेन्द्र प्रधान जी ने हमारे अनुरोध को स्वीकार कर अपने व्यस्ततम समय में से समय निकाला और परिषद् के नवीन प्रतीक चिह्न (Logo) के विमोचन, संस्कृत तथा हिन्दी भाषा में द्विभाषीय शोध पत्रिका #दर्शनम् के प्रवेशांक के विमोचन, सात पुस्तकों के विमोचन तथा अखिल भारतीय स्तर पर आयोजित प्रतियोगिताओं के विजेताओं के पुरस्कार वितरण कार्यक्रम में सक्रिय उपस्थिति से परिषद् को गौरवान्वित किया।

परिषद् अपनी स्वर्ण जयंती की ओर बढ़ रही है। परिषद् का एक प्रतीक चिह्न तो था परन्तु कोई ध्येय वाक्य नहीं था जो परिषद् के उद्देश्यों को रेखांकित कर सके। इसलिए यह आवश्यकता महसूस हुई कि परिषद् के प्रतीक चिह्न को ध्येय वाक्य के साथ जोड़कर पुनः परिभाषित किया जाए। इसके लिए ईशोपनिषद् के पंद्रहवें मंत्र के अंश #सत्यधर्माय_दृष्टये से बेहतर कोई दूसरा ध्येय वाक्य नहीं हो सकता था। क्योंकि दर्शन का कार्य वस्तुतः सत्य और धर्म का अन्वेषण करना ही है। किसी पश्चिमी दार्शनिक ने भी कहा है कि Philosophy is the study of man and morals. इसलिए मेरे मन में यह विचार आया कि क्यों न इसको ही ध्येय वाक्य के रूप में स्वीकार कर भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद् का नया प्रतीक चिह्न बनाया जाए। इसको परिषद् के सदस्यों के द्वारा स्वीकृति प्राप्त थी और परिषद् के नए लोगों का निर्माण किया गया।

परिषद् द्वारा जीआईसीपीआर के रूप में बांग्ला भाषा के माध्यम से एक शोध पत्रिका का प्रकाशन एक लंबे समय से किया जा रहा है परंतु हिंदी भाषा और अन्य किसी भारतीय भाषा में परिषद के द्वारा किसी शोध पत्रिका का प्रकाशन नहीं किया जा रहा था। पिछले कुछ सालों में ऐसा महसूस किया गया कि भारत में दार्शनिक चिंतन को बढ़ावा देने के लिए यह आवश्यक होगा कि हमारी देश की भाषाओं में दार्शनिक चिंतन को दार्शनिक शोध को बढ़ावा दिया जाए इसलिए हिंदी भाषा में एक मौलिक गुणवत्तापूर्ण शोध पत्रिका का प्रकाशन करने का निर्णय लिया गया। यह सर्वे विधि है कि भारतीय दार्शनिक चिंतन मुख्यतः संस्कृत भाषा के माध्यम से हुआ है इसलिए संस्कृत और हिंदी इन दोनों भाषाओं को स्वीकार करते हुए एक द्विभाषीय पत्रिका का प्रकाशन करने का निर्णय लिया गया। यह कार्य लंबे समय से लंबित था परंतु प्रथम अंक का प्रकाशन व्यवस्थित तरीके से किया गया इसमें 11 उत्कृष्ट शोध लेख प्रकाशित किए गए हैं।

2023 में भारत के अमृत कल के अवसर पर भारतीय स्वतंत्रता के 75 वर्षों को मनाते हुए एक संगोष्ठी आयोजित की गई थी जिसका शीर्षक था स्वतंत्रता के 75 वर्ष राष्ट्र एवं राष्ट्रवाद। उक्त संगोष्ठी में विद्वानों के द्वारा पढ़े गए पुस्तकों आलेखों को संकलित कर संपादित कर मेरे तथा प्रोफेसर बिंदु पुरी के द्वारा #Indian_Nationalism:#A_Reader नाम से पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया गया जिसका विमोचन माननीय शिक्षा मंत्री जी के कार्यक्रमों द्वारा संपादित किया गया।

प्रोफेसर प्रद्योत कुमार मुखोपाध्याय भारतीय दर्शन तथा पाश्चात्य दर्शन के श्रेष्ठ विद्वानों में गिने जाते हैं दोनों ही दर्शन विधाओं में आपका तलस्पर्शी पांडित्य है आप न केवल भारतीय दर्शन के प्रति श्रद्धावन विद्वान हैं अपितु भारतीय संस्कृति को जीते भी हैं। उदयन वाजपेई का उनके द्वारा लिया गया साक्षात्कार #भारतीयता_की_आत्मगवेषणा:#आधुनिक_भारत_की_निर्मिति_पर_न्याय_शास्त्रीय_दृष्टि शीर्षक से प्रकाशित किया गया।

प्रोफेसर सुजाता मीरी के द्वारा लिखित जनजातीय संस्कृति को रेखांकित करने वाला ग्रंथ #The_Achikgaro_world विमोचित किया गया।

सी एच श्रीनिवासमूर्ति के द्वारा मध्वाचार्य द्वारा प्रति तत्त्ववाद वेदांत संप्रदाय के अनुसार विशेष नामक पदार्थ को केंद्र में रखकर लिखे गए प्रौढ़ ग्रंथ #The_Doctrine_of_Viśeṣa_in_the_Tattvavāda_School_of_Vedānta का विमोचन किया गया। 20वीं शताब्दी के महत्वपूर्ण चिंतकों में एक प्रोफेसर गोविंद चंद्र पांडे द्वारा दिए गए व्याख्यानों का #दर्शनविमर्श नाम से प्रोफेसर अंबिका दत्त शर्मा के द्वारा संपादन किया गया जिसका विमोचन माननीय मंत्री जी के द्वारा संपादित हुआ।

रघुनाथ घोष के द्वारा वरिष्ठ अध्येता के रूप में किए गए कार्य का #On_Denying_Nyāya_Categories: #A_Critique_of_Nāgārjuna शीर्षक से प्रकाशन किया गया जिसका विमोचन भी कल के कार्यक्रम में हुआ।

मंडन मिश्र के द्वारा भ्रम विषयक चिंतन को केन्द्र में रखते हुए विभ्रमविवेक नामक ग्रंथ का प्रणयन किया गया था जिस पर संस्कृत या हिंदी में कोई व्याख्या नहीं थी इसलिए उसे पर संस्कृत व्याख्या लिखने का कार्य आज से लगभग 8 वर्ष पहले मेरे द्वारा प्रारंभ किया गया। यदि इस बीच प्रोफेसर मुरलीधर पांडे के द्वारा इस ग्रंथ की एक संक्षिप्त संस्कृति तथा हिंदी व्याख्या प्रकाशित हुई। मेरे द्वारा #विभ्रमविवेक की #विभ्रमविवेकमण्डनम् नाम से लिखी गई व्याख्या कल माननीय मंत्री जी के द्वारा विमोचित हुई।

फरवरी महीने में भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद के द्वारा #विकसित_भारत_में_दर्शन_की_भूमिका विषय पर अखिल भारतीय स्तर पर प्रतियोगिता का आयोजन किया गया था इसी प्रकार #भारतीय_एकता_में_भारतीय_दर्शन_की_भूमिका विषय को केंद्र में रखकर एक अन्य प्रतियोगिता का आयोजन भी किया गया था। यह दोनों ही प्रतियोगिताएं तीन स्तरों पर आयोजित थीं स्नातक स्नातकोत्तर और शोधार्थियों के लिए। इन प्रतियोगिताओं के विजेताओं को पुरस्कार भी प्रदान किए गए इस अवसर पर उच्च शिक्षा विभाग के सचिव डॉ विनीत जोशी, भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद के अध्यक्ष प्रोफ़ेसर दीपक कुमार श्रीवास्तव उपस्थित रहे। कार्यक्रम में केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर Shrinivasa Varakhedi , आईसीएसएसआर के सदस्य सचिव प्रोफेसर धनंजय सिंह, आईसीएचआरके कार्यकारी सदस्य डॉक्टर ओमजी उपाध्याय, श्री वाल्मीकि संस्कृत विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रोफेसर श्रेयांश द्विवेदी, विभिन्न विश्वविद्यालय के अनेक आचार्य गण शोधार्थी और विद्यार्थी इस कार्यक्रम में उपस्थित रहे। जिन्होंने इस कार्यक्रम को सफल बनाया। परिषद् माननीय मंत्री जी का उच्च शिक्षा सचिव डॉ विनीत जोशी जी का, शिक्षा मंत्रालय के पदाधिकारियों तथा कार्यक्रम में उपस्थित सभी विद्वानों और प्रतिभागियों की आभारी है।

Ministry of Education

University Grants Commission

Central Sanskrit University

 

प्रो. सच्चिदानंद मिश्र जी के फेसबुक वॉल से साभार।

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