कविता/मुझे मौन बहने दो/ डॉ. दीपा

मुझे मौन बहने दो,
चुपचाप अवाक रहने दो,
करने दो मंथन जीवन का,
विचारों की धार में बहने दो

खुद से ही सब कुछ कहने दो,
कुछ आत्मचिंतन आज करने दो,
कुछ गूथियां सुलझाने दो,
और मुझे मौन बहने दो,

जीवन की फटी चादर को,
मुझे आज सिमने दो,
उसमें नित् नया रंग-रूप आज मुझे भरने दो।
एक नए गीत का आज सृजन करने दो ,
उसमें सुर, लय और ताल सहित नई उमंग भरने दो,
मुझे मौन बहने दो,

कल-कल करते झरने की तरह,
मुझे आज बहने दो,
मुझे मौन रहने दो,

निःशब्द व्यथा, अनकही वो बातें,
खुद से आज करने दो,
मुझे मौन रहने दो,

मेरे मन की सुंदर बगियाँ में,
आज फूल खिलने दो,
मुझे मौन रहने दो…।
मुझे मौन रहने दो

डॉ. दीपा
हिंदी विभाग
श्री अरबिंद महाविद्यालय,
दिल्ली विश्वविद्यालय।