BNMU। आलेख/कोरोना का अर्थव्यवस्था एवं पर्यावरण पर प्रभाव/अमरेश कुमार अमर

कोरोना का अर्थव्यवस्था एवं पर्यावरण पर प्रभाव
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कोविड 19 इस महामारी का प्रभाव किसी विशेष क्षेत्र में नहीं बल्कि इसका संपूर्ण क्षेत्र पर प्रभाव पड़ा है। आर्थिक, सामाजिक, शैक्षणिक, राजनीतिक, धार्मिक समस्त व्यवस्थाएं कोरोना महामारी के घातक प्रभाव से अस्त-व्यस्त हो गई हैं।
वास्तव में विकास की ओर भागमभाग अंधदौड़ एवं घुड़दौड़ में मनुष्य ने अपने सुख सुविधा के विस्तार अधिकाधिक संतुष्टि के लिए समग्र आर्थिक व्यवस्था पूरे पर्यावरण सभी प्राकृतिक संपदा एवं मानवीय संपदा का भरपूर अंधाधुंध कटाई इत्यादि विदोहन कर इसका शोषण किया जा रहा है।सिर्फ वो सिर्फ अपनी संतुष्टिपरक सुख सुविधा शहरों की चमचमाती सड़कों बिजली से जगमगाती गलियारें सड़कों पर दौड़ती गाड़ियां यह समाज विकास के पर्याय बन गए है जो आत्मघाती से कम नहीं है।
मानव प्रकृति तथा पर्यावरण को नजरअंदाज कर अर्थव्यवस्था की समृद्धि के लिए विज्ञान के बल पर आकाश में उड़ान भरने जैसे बात कर रहे हैं परंतु आज एक अदृश्य शक्ति जो मानव के सर्वशक्तिमान को चुनौती और इसे काबू करने में अपने आप को असहाय और असहज हताश निराश नजर आ रहे हैं,चाहे आज अमीर देश हो या गरीब देश इस संकट के आगे घुटने टेक नतमस्तक हो गए है।इन असहाय,असहज और विषमता का दोषी भी खुद मानव समुदाय है जो एक दूसरे से आगे शक्तिशाली साबित करने अपनी स्वार्थ भरी नीति कूटनीति में स्वयं विनाश का गड्ढा खोदकर खुद को धकेल रही है जिसका खामियाजा संपूर्ण दुनिया की अर्थव्यवस्था और पर्यावरण भुगत रहा आज मानव इस दो राहें पर एक तरफ स्वास्थ्य तो दूसरी तरफ अर्थव्यवस्था आखिर जाएँ तो जाएं किधर।
हालात ऐसे हैं कि देशों को देशों से,राज्यों को राज्यों से,जिला में जिलों से,अनुमंडल में अनुमंडल से,प्रखंड को प्रखंड से, पंचायत को पंचायत से,गांव को गांव से,समाज को समाज से व्यक्ति एक दूसरे से अलग कर दिया है।जिससे हमारी पूरी की पूरी अर्थव्यवस्था प्रभावित हुई है। कोविड-19 अर्थव्यवस्था को बद्द से बदतर जो महंगी व्यवस्था में तब्दील कर दिया है वर्तमान महंगाई दर आसमान छू रही है। आज तक के इतिहास में अगर तेल की बात करें तो पेट्रोल डीजल से महंगी यह पहली बार ऐसा हुआ है।मांग व आपूर्ति पूरी तरह और असंतुलन हो गई। कोविड-19 भारतीय अर्थव्यवस्था की मानवीय पूंजी को कम कर युवाओं में मानसिक विकृति उत्पन्न कर दिया है जिससे अपराधिक प्रवृत्ति होने की संभावना है।भारतीय शिक्षा व्यवस्था और चौपट हो गई वर्तमान सरकार ने ऑनलाइन शिक्षा की व्यवस्था की है।एन एस एस ओ के अनुसार भारत में आज की आज भी 23.8 प्रतिशत परिवार के पास इंटरनेट सुविधा है जो हमारी शिक्षा व्यवस्था में छात्रों की आंतरिक शिक्षा मजबूत नहीं हो पाएगी यह मात्र एक विकल्प के रूप में साबित जो सकारात्मक की अपेक्षा नकारात्मक अधिक प्रभावी होगी।कोविड-19 कृषि के साथ-साथ उद्योग व्यापार वाणिज्य सेवा क्षेत्र सभी प्रभावित हुई है।
कुल मिलाकर अगर कहें तो अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों प्राथमिक क्षेत्र,द्वितीय क्षेत्र अथवा तृतीय क्षेत्र को सभी पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा फिर भी मनुष्य को घबराने और निराश होने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि ऐसे कई महामारी पहले भी आई थी और आज भी कुछ दिनों संकट दे जाती है लेकिन जाती तो है पर एक नए अवसर भी छोड़ ताकि मनुष्य प्राणी होने के नाते ऐसे अवसर को गवाएं बिना टूटी इमारत को फिर से नए सिरे से निर्माण तथा अर्थव्यवस्था को प्रगति प्रदान कर सके।
जहां तक पर्यावरण की बात है तो इस पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा है। इसलिए कि कोविड-19 के कारण इतने लंबे समय तक लॉकडाउन जिससे आवाजाही बंद पड़े रहने से शहर में धुआं मुक्त हो गया है प्रदूषण का स्तर काफी कम हुई है।नदियां गंगा यमुना इत्यादि पवित्र पानी साफ स्वच्छ हो गया है वन जीवन को नया जीवन तथा वन्य पशु को आजादी मिली पशु तस्करी में भी कमी हुई, हवा की गुणवत्ता में सुधार हुई है संपूर्ण जीव जंतु वनस्पति पर इसका सकारात्मक प्रभाव पड़ा है और कुछ पर्यावरण के लिए नकारात्मक प्रभाव भी परे हैं तो वर्तमान परिदृश्य में इसके सकारात्मक प्रभाव के तले छिप जाते हैं। एक बात जेहन में बार-बार आता है पर्यावरण इसे पहली बार साल 1974 में यह दिवस मनाया गया था इसके बाद हर साल 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता और इसके प्रति जागरूक करना होता है यह गजब का संयोग जो कि यह महामारी कोविड-19 इस बार 5 जून 2020 पर्यावरण दिवस भी इससे अछूते नहीं रहे ऐसे कई उदाहरण इस संकट से रूबरू कराया अगर सकारात्मक की बात करें तो सोशल मीडिया पर कुछ अनोखे दृश्य देखें जो कि उत्तरी राज्य में कई मिलो दूर से ही हिमालय दिखाई देता है। पर्यावरण इतनी परिवर्तन हुई इसलिए कि देश में अधिक समय तक समस्त कार्य प्रणाली पर पाबंदी रही सभी आवाजाही बंद रहने से ध्वनि प्रदूषण में भी कमी हुई केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड अध्ययन के अनुसार 5 से 10 डेसिबल की कमी हुई है। मुंबई में इसकी वजह से रोज का औसत पीएम 2.5 प्रतिशत स्तर तथा जनता कर्फ्यू के दिन 22 मार्च को 61 प्रतिशत कम रहा इसी तरह इस दिन दिल्ली में भी कम रहा सब दिन दिल्ली में यह 26 प्रतिशत, कोलकाता में 60 प्रतिशत,और बेंगलुरु में 12 प्रतिशत कम रहा। अगर नाइट्रोजन ऑक्साइड के स्तर को देखें तो यह दिल्ली में 42 प्रतिशत, मुंबई में 68 प्रतिशत, कोलकाता में 49 प्रतिशत,और बेंगलुरु में से 30 प्रतिशत तक रहा। वास्तव में यह बदलाव गाड़ियों के सड़कों पर ना होने फैक्ट्रियों में बंदी रहने और निर्माण कार्यों कार्यों के रुकने की वजह से हुआ है इस तरह वायरस के फैलाव रोकने के साथ-साथ प्रदूषण के मोर्चे पर भी सफलता मिल रही है। जाहिर है कि सड़क पर कम वाहन फैक्ट्रियों का बंद होने और निर्माण कार्यों का रुकना इसके पीछे की वजह है। इसकी वजह से यह सामाजिक स्वास्थ्य के लिए संकट जैसे समय और सभी और अनिश्चिता ने हमें आज वायु प्रदूषण को देखने का एक नया नजरिया दिया है इससे चिंताओं के कई स्वरूप उभरकर हमारे सामने आए हैं और इसने नवीनीकरण और आभासी के आपसी जुड़ाव की क्षमता को समझते हुए कार्य स्थल की परिकल्पना को बदला है।ऐसे हालात में जो लोग अब पैदल साइकिल से आसपास की दूरी तय कर रही है सीमित साधन में अपनी उपयोगिता को संतुष्टि करने में तत्पर है।
लेकिन आने वाले समय में विनिर्माण और ऊर्जा क्षेत्र फिर से अपनी रफ्तार पकड़ लेगा लेकिन वर्तमान त्रासदी से हमें इसकी एक सीमा तय करने में मदद मिलेगी, जहां एक तरफ वो विकास कार्य कर उत्सर्जन को भी नियंत्रण में रख सके।कोविड-19 ने जहां एक और दुनिया भर में कई विकट चुनौतियां पैदा की है वहीं दूसरी और प्राकृतिक सौंदर्य के अद्भुत जीवन नजारे देखने को मिल रहा है इस बात का इतिहास गवाह है कि अतीत में जब इसे इस प्रकार की भयानक बीमारियां आई है तब तब पर्यावरण ने सकारात्मक करवट ली है।यकीनन इस संक्रमण काल में प्रकृति का यह रूप मानवीय जीवन के लिए भले ही राहत खत्म हो जाएगा तो क्या पर्यावरण की यही स्थिति बरकरार रख पाएगी यह बहुत सोचनीय है,हो सकता है अचानक जब अर्थव्यवस्था खुलेंगे तब भाग दौड़ ने सभी देशों के लिए विकास की रफ्तार को तेज करना न केवल आवश्यक होगा बल्कि मजबूरी भी होगा तो ऐसे में प्रकृति को बिना क्षति पहुंचाए सतत विकास की ओर अग्रसर होने की आवश्यकता है समस्या का स्थाई समाधान है।और वर्तमान स्थिति की ओर से खुशी होने की आवश्यकता नहीं बल्कि खुशी इस बात में जब सतत विकास की प्रक्रिया को अपनाने में खुशी मिलेगी जो प्रकृति के अनुरूप हो।
इस प्रकार अगर कुल मिलाकर कहा जाए तो यानी स्पष्ट है कि यह महामारी मनुष्य और प्रकृति के बीच असंतुलन का दुष्परिणाम है।यह चेतावनी मनुष्य को जीवन शैली और विकास प्रक्रिया मानवीय उपयोग तौर-तरीकों को बदलने का अवसर प्रदान करता है यह बात भी सत्य है महामारियों का गहरा प्रभाव पर्यावरण पर पड़ा है,लेकिन इसके बाद मनुष्य आर्थिक प्रक्रिया की रफ्तार को बढ़ावा देने के लिए प्रकृति संसाधन का बड़े पैमाने पर इसका दोहन होने की संभावना है। इसलिए अब मानव को प्रकृति के अनुरूप अपने संसाधनों का प्रयोग कर इसे सतत विकास प्रक्रिया अपनाने की आवश्यकता है। इस प्रकार पर्यावरण भौतिक और जैविक दुनिया के सभी तत्वों साथ ही इन सब में के बीच में संबंधों को दर्शाता है।इसका हमारे जीवन में बहुत महत्व है यह हमारे जीवन का अभिन्न अंग है इस प्रकार स्पष्ट है कि प्रकृति के बिना मानव जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती।
शोधार्थी-अमरेश कुमार अमर, शोधार्थी, अर्थशास्त्र विभाग बी. एन. मंडल विश्वविद्यालय, मधेपुरा, बिहार