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BNMU *विश्वविद्यालय दर्शनशास्त्र विभाग के प्रभारी विभागाध्यक्ष बने डॉ. सुधांशु शेखर*

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*विश्वविद्यालय दर्शनशास्त्र विभाग के प्रभारी विभागाध्यक्ष बने डॉ. सुधांशु शेखर*

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स्नातकोत्तर दर्शनशास्त्र विभाग, ठाकुर प्रसाद महाविद्यालय, मधेपुरा के स्नातकोत्तर दर्शनशास्त्र विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. सुधांशु शेखर को विश्वविद्यालय दर्शनशास्त्र विभाग का प्रभारी विभागाध्यक्ष नियुक्त किया गया है। इस बावत कुलपति प्रो. विमलेन्दु शेखर झा के आदेशानुसार कुलसचिव प्रो. मिहिर कुमार ठाकुर ने अधिसूचना जारी कर दी है।

 

*जून 2017 से हैं असिस्टेंट प्रोफेसर*

मालूम हो कि डॉ.सुधांशु शेखर का बिहार लोक सेवा आयोग (बीपीएससी), पटना के माध्यम से भूपेंद्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में चयनित हुए हैं और यहाँ इन्होंने सर्वप्रथम 3 जून 2017 को ठाकुर प्रसाद महाविद्यालय, मधेपुरा में योगदान दिया था। इसके कुछ ही दिनों बाद तत्कालीन कुलपति प्रो. अवध किशोर राय ने उन्हें 13 अगस्त, 2017 को जनसंपर्क पदाधिकारी की जिम्मेदारी दी। इस भूमिका में इन्होंने अपनी एक अलग पहचान बनाई। खासकर विश्वविद्यालय की सकारात्मक छवि बनाने और विद्यार्थियों तक ससमय सूचनाएं पहुंचाने में इनका योगदान अविस्मरणीय है।

 

*उपकुलसचिव (अकादमिक) रह चुके हैं*

आगे जुलाई 2020 में तत्कालीन प्रभारी कुलपति प्रो. ज्ञानंजय द्विवेदी ने डॉ. शेखर को जनसंपर्क पदाधिकारी के अतिरिक्त उपकुलसचिव (अकादमिक) की भी जिम्मेदारी दी। इन्होंने इस भूमिका को भी बखूबी निभाया और तत्कालीन निदेशक (अकादमिक) प्रो. एम. आई. रहमान के साथ मिलकर विश्वविद्यालय के समग्र शैक्षणिक उन्नयन के लिए कई उल्लेखनीय कार्य किए।

 

*उपकुलसचिव (स्थापना) के रूप में बनाई नई पहचान*

सितंबर 2021 में तत्कालीन कुलपति प्रो. आर. के. पी. रमण ने कतिपय कारणों से डॉ. शेखर को जनसंपर्क पदाधिकारी एवं उपकुलसचिव (अकादमिक) के दायित्वों से मुक्त कर उपकुलसचिव (स्थापना) का नया दायित्व प्रदान किया। यह कार्य इनके लिए बिल्कुल नया और चुनौतीपूर्ण था। लेकिन यहाँ भी इन्होंने अपनी सूझबूझ एवं मेहनत के बल पर अपना एक विशिष्ट स्थान बना लिया है।

*शैक्षणिक गतिविधियों को आगे बढ़ाने में है महती भूमिका*

 

डॉ. शेखर ने बीएनएमयू में शैक्षणिक गतिविधियों को आगे बढ़ाने में महती भूमिका निभाई है। इनके द्वारा विश्वविद्यालय दर्शनशास्त्र विभाग और ठाकुर प्रसाद महाविद्यालय, मधेपुरा में की कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता रहा है। इसमें 5-7 मार्च 2021 में दर्शन परिषद्, बिहार का 42वां राष्ट्रीय अधिवेशन सर्वप्रमुख है, जिसका विषय शिक्षा, समाज एवं संस्कृति था। इसके साथ ही इन्होंने भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद् (आईसीएसएसआर), नई दिल्ली द्वारा प्रायोजित अंतरराष्ट्रीय सेमिनार (सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के आयाम) एवं भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद् (आईसीपीआर), नई दिल्ली द्वारा प्रायोजित राष्ट्रीय सेमिनार (राष्ट्रवाद : कल, आज और कल) का भी सफलतापूर्वक आयोजन किया। इनको कई बड़े-बडे़ विद्वानों को मधेपुरा लाने का भी श्रेय जाता है। इन्होंने कई बड़े-बड़े विद्वानों को मधेपुरा बुलाकर उनका व्याख्यान कराया। इनमें पूर्व सांसद एवं पूर्व कुलपति पद्मश्री प्रो. (डाॅ.) रामजी सिंह, भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली के तत्कालीन अध्यक्ष प्रो.( डाॅ.) रमेशचन्द्र सिन्हा, अखिल भारतीय दर्शन परिषद् के अध्यक्ष प्रो.( डाॅ.) जटाशंकर आदि प्रमुख हैं। इन्होंने कोरोना काल में बीएनएमयू संवाद यू-ट्यूब चैनल एवं फेसबुक के माध्यम से ग्यारह सेमिनारों और दर्जनों व्याख्यानों का आयोजन कराया। इसमें भारत के विभिन्न राज्यों के विद्वानों के अलावा लंदन, दक्षिण अफ्रीका एवं नेपाल के विद्वानों का भी व्याख्यान हुआ।

*भागलपुर से की है पढ़ाई*

 

यहां यह भी उल्लेखनीय है कि डॉ. शेखर का जन्म इनके नानी गांव पड़ोसी जिले खगड़िया में हुआ है।‌ वहीं से इन्होंने मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की। तदपरांत अपने गृह जिला बांका के एसएससपीएस महाविद्यालय, शंभूगंज से इंटरमीडिएट परीक्षा पास की। तदुपरांत इन्होंने प्रतिष्ठित टी. एन. बी. महाविद्यालय, भागलपुर से स्नातक प्रतिष्ठा (दर्शनशास्त्र) और भागलपुर विश्वविद्यालय, भागलपुर से स्नातकोत्तर एवं पीएचडी की उपाधि प्राप्त की है।

*शोध के क्षेत्र में विशिष्ट पहचान*

 

डॉ.सुधांशु ने छात्र-जीवन से ही शोध के क्षेत्र में भी अपनी एक विशिष्ट पहचान बनाई है। इनके पीएचडी टापिक ‘वर्ण-था और सामाजिक न्याय : डॉ. अंबेडकर के विशेष संदर्भ में’ को भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद् (आईसीपीआर), नई दिल्ली से जूनियर रिसर्च फेलशिप मिली थी। इन्होंने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी), नई दिल्ली के प्रोजेक्ट फेलो एवं पोस्ट डॉक्टोरल फेलो के रूप में भी कार्य किया है।

*संपादन एवं लेखन में भी है विशिष्ट पहचान*

डॉ. शेखर ने संपादन एवं लेखन की दुनिया में भी एक विशिष्ट स्थान बनाया है। इनकी अब तक चार स्वतंत्र पुस्तकें प्रकाशित हैं। इनमें सामाजिक न्याय : आंबेडकर विचार और आधुनिक संदर्भ (2014), गांधी विमर्श (2015), भूमंडलीकरण और मानवाधिकार (2017) एवं गांधी-अंबेडकर और मानवाधिकार (2024) हैं। इन्होंने ‘भूमंडलीकरण : नीति और नियति’, ‘लोकतंत्र : नीति और नियति’, ‘भूमंडलीकरण और पर्यावरण’, ‘शिक्षा-दर्शन’, ‘गांधी-चिंतन’ आदि आधे दर्जन पुस्तकों का संपादन भी किया है। इनके दो दर्जन से अधिक शोध-पत्र प्रकाशित हैं तथा एक दर्जन रेडियो वार्ताओं का भी प्रसारण हो चुका हैं। साथ ही वे शोध-पत्रिका ‘दर्शना’ एवं ‘सफाली’ जर्नल ऑफ सोशल रिसर्च का संपादन भी करते रहे हैं। 

*विभिन्न संगठनों में सक्रिय*

डॉ. शेखर छात्र जीवन से ही विभिन्न शैक्षणिक संगठनों में सक्रिय रहे हैं। संप्रति ये दर्शन परिषद् , बिहार के प्रदेश संयुक्त सचिव एवं मीडिया प्रभारी हैं और अखिल भारतीय दर्शन परिषद् द्वारा प्रकाशित यूजीसी केयर लिस्टेड शोध-पत्रिका ‘दार्शनिक त्रैमासिक’ के संपादक मंडल के सदस्य भी हैं। इन्हें अखिल भारतीय दर्शन परिषद् द्वारा . विजयश्री स्मृति युवा पुरस्कार एवं श्रीमती कमलादेवी जैन स्मृति सर्वेश्रेष्ठ आलेख पुरस्कार सहित कई पुरस्कार प्राप्त हैं।

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बिहार के लाल कमलेश कमल आईटीबीपी में पदोन्नत, हिंदी के क्षेत्र में भी राष्ट्रीय पहचान अर्धसैनिक बल भारत -तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) में कार्यरत बिहार के कमलेश कमल को सेकंड-इन-कमांड पद पर पदोन्नति मिली है। अभी वे आईटीबीपी के राष्ट्रीय जनसंपर्क अधिकारी हैं। साथ ही ITBP प्रकाशन विभाग की भी जिम्मेदारी है। पूर्णिया के सरसी गांव निवासी कमलेश कमल हिंदी भाषा-विज्ञान और व्याकरण के प्रतिष्ठित विद्वान हैं। उनके पिता श्री लंबोदर झा, राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित शिक्षक हैं और उनकी धर्मपत्नी दीप्ति झा केंद्रीय विद्यालय में हिंदी की शिक्षिका हैं। कमलेश कमल को मुख्यतः हिंदी भाषा -विज्ञान, व्याकरण और साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिए देश भर में जाना जाता है। वे भारतीय शिक्षा बोर्ड के भी भाषा सलाहकार हैं। हिंदी के विभिन्न शब्दकोशों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके हैं। उनकी पुस्तकों ‘भाषा संशय-शोधन’, ‘शब्द-संधान’ और ‘ऑपरेशन बस्तर: प्रेम और जंग’ ने राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति अर्जित की है। गृह मंत्रालय ने ‘भाषा संशय-शोधन’ को अपने अधीनस्थ कार्यालयों में उपयोग के लिए अनुशंसित किया है। उनकी अद्यतन कृति शब्द-संधान को भी देशभर के हिंदी प्रेमियों का भरपूर प्यार मिल रहा है। यूपीएससी 2007 बैच के अधिकारी कमलेश कमल की साहित्यिक एवं भाषाई विशेषज्ञता को देखते हुए टायकून इंटरनेशनल ने उन्हें देश के 25 चर्चित ब्यूरोक्रेट्स में शामिल किया था। वे दैनिक जागरण में ‘भाषा की पाठशाला’ लोकप्रिय स्तंभ लिखते हैं। बीते 15 वर्षों से शब्दों की व्युत्पत्ति एवं शुद्ध-प्रयोग पर शोधपूर्ण लेखन कर रहे हैं। सम्मान एवं योगदान : गोस्वामी तुलसीदास सम्मान (2023) विष्णु प्रभाकर राष्ट्रीय साहित्य सम्मान (2023) 2000 से अधिक आलेख, कविताएँ, कहानियाँ, संपादकीय, समीक्षाएँ प्रकाशित देशभर के विश्वविद्यालयों में ‘भाषा संवाद: कमलेश कमल के साथ’ कार्यक्रम का संचालन यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए हिंदी एवं निबंध की निःशुल्क कक्षाओं का संचालन उनका फेसबुक पेज ‘कमल की कलम’ हर महीने 6-7 लाख पाठकों द्वारा पढ़ा जाता है, जिससे वे भाषा और साहित्य के प्रति जागरूकता बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं। बिहार के लिए गर्व का विषय : आईटीबीपी में उनकी इस उपलब्धि और हिंदी के प्रति उनके योगदान पर पूर्णिया सहित बिहारवासियों में हर्ष का माहौल है। उनकी इस सफलता ने यह साबित कर दिया है कि बिहार की प्रतिभाएँ राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी छाप छोड़ रही हैं। वरिष्ठ पत्रकार स्वयं प्रकाश के फेसबुक वॉल से साभार।

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