National Education-System राष्ट्रीय शिक्षा व्यवस्था/ ललित कुमार

राष्ट्रीय शिक्षा व्यवस्था
ललित कुमार
Lएम. ए. (द्वितीय वर्ष),
डिपार्टमेंट ऑफ आर्कियोलॉजी पटना यूनिवर्सिटी
8002039635, [email protected]
मानव इतिहास के आदिकाल से शिक्षा का विविध भांति विकास एवं प्रसार होता रहा है। प्रत्येक देश अपनी सामाजिक-सांस्कृतिक अस्मिता को अभिव्यक्ति देने और पनपाने के लिए और साथ ही समय की चुनौतियों का सामना करने के लिए अपनी विशिष्ट शिक्षा प्रणाली विकसित करता है, लेकिन देश के इतिहास में कभी-कभी ऐसा समय आता है, जब मुद्दतों से चले आ रहे उस सिलसिले को एक नई दिशा देने की नितान्त जरूरत हो जाती है। आज वही समय है।
हमारा देश आर्थिक और तकनीकी लिहाज से उस मुकाम, पर पहुंच गया है जहाँ से हम अब तक के संचित साधनों का इस्तेमाल करते हुए समाज के हर वर्ण को पफायदा पहुंचाने का प्रबल प्रयास करें। शिक्षा उस लक्ष्य तक पहुंचने का प्रमुख साधनहै। इसी उद्देश्य को ध्यान में रखकर भारत सरकार ने जनवरी, 1985 में यह घोषणा की थी कि एक नई शिक्षा नीति निर्मित की जायेगी। शिक्षा की मौजूदा हालत का जायजा लिया गया और एक देशव्यापी बहस इस विषय पर हुई। कई स्रोतों से सुझाव व विचार प्राप्त हुए, जिन पर कापफी मनन-चिंतन हुआ।

राष्ट्रीय शिक्षा व्यवस्था
जिन सिद्धांतों पर राष्ट्रीय शिक्षा व्यवस्था की परिकल्पना की गई है वे हमारे संविधान में ही निहित हैं।राष्ट्रीय शिक्षा व्यवस्था का मूल मंत्र यह है कि एक निश्चित स्तर तक हर शिक्षार्थी को बिना किसी जात-पात, धर्म स्थान या लिंग भेद के, लगभगएक जैसी अच्छी शिक्षा उपलब्ध हो। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिये सरकार उपुयक्त रूप से वित्तपोषित कार्यक्रमों की शुरूआत करेगी। 1968 की नीति में अनुशंसित सामान्य स्कूल प्रणाली को क्रियान्वित करने की शिक्षा में प्रभावी कदम उठाये जाएंगे।राष्ट्रीय शिक्षा व्यवस्था के अंतर्गत यह जरूरी है कि सारे देश में एक ही प्रकार की शैक्षिक संरचना हो। 10+2+3 के ढांचे को पूरे देश में स्वीकार कर लिया गया है। इस ढांचे के पहले दस वर्षों के संबंध में यह प्रयत्न किया गया जाएगा कि उसका विभाजन इस प्रकार हो : प्रारंभिक शिक्षा में 5 वर्ष का प्राथमिक स्तर और 3 वर्ष का उच्च प्राथमिक स्तर, तथा उसके बाद 2 वर्ष का हाई स्कूल।
राष्ट्रीय शिक्षा व्यवस्था पूरे देश के लिये एक राष्ट्रीय शिक्षाक्रम के ढांचे पर आधारित होगी जिसमें एक ‘‘सामान्य केन्द्रिक’’ ;कॉमन कोरद्ध होगा और अन्य हिस्सों की बाबत लचीलापन रहेगा, जिन्हें स्थानीय पर्यावरण तथा परिवेश के अनुसार ढाला जा सकेगा। ‘‘सामान्य केन्द्रिक’’ में भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का इतिहास, संवैधानिक जिम्मेदारियों तथा राष्ट्रीय अस्मिता से संबंधित अनिवार्य तत्त्व शामिल होंगे। ये मुद्दे किसी एक विषय काहिस्सा न होकर लगभग सभी विषयों में पिरोये जाएंगे। इनके द्वारा राष्ट्रीय मूल्यों को हर इंसान की सोच और जिंदगी का हिस्सा बनाने की कोशिश की जायेगी। इन राष्ट्रीय मूल्यों में ये बातें शामिल हैं : हमारी समान सांस्कृतिक धरोहर, लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता, स्त्री-पुरूषों के बीच समानता, पर्यावरणका संरक्षण, सामाजिक समता, सीमित परिवार का महत्त्व और वैज्ञानिक तरीके के अमल की जरूरत। यह सुनिश्चितकिया जायेगा कि सभी शैक्षिक कार्यक्रम धर्मनिरपेक्षता के मूल्यों के अनुरूप ही आयोजित हों।
वर्ष 1976 का संविधान संशोधन जिसके द्वारा शिक्षा को समवर्ती सूची में शामिल किया गया, एक दूरगामी कदम था। उसमें यह निहित है कि शैक्षिक, वित्तीय तथा प्रशासनिक दृष्टि से राष्ट्रीय जीवन से जुड़े हुए इस महत्त्वपूर्ण मामले में केन्द्र औरराज्यों के बीच दायित्व की नई सहभागिता स्थापित हो। शिक्षा के क्षेत्र में राज्यों की भूमिकाऔर उनके दायित्व में मूलतः कोई परिवर्तन नहीं होगा, लेकिन केन्द्रीय सरकार निम्नलिखित विषयों में अब तक से अधिक जिम्मेदारी स्वीकार करेगीः- शिक्षा के राष्ट्रीय तथा समाकलनात्मक ;इंटेग्रेटिवद्ध रूप को बल देना, गुणवत्ता एवं स्तर बनाए रखना ;जिसमें सभी स्तरों पर शिक्षकों के शिक्षण-प्रशिक्षण की गुणवत्ता एवं स्तर शामिल हैद्ध, विकास के निमित्त जनशक्ति की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए शैक्षिक व्यवस्थाओं का अध्ययन और देखरेख, शोध एवं उच्च अध्ययन की जरूरतों को पूरा करना, शिक्षा, संस्कृति तथा मानव संसाधन विकास के अंतर्राष्ट्रीय पहलुओं पर ध्यान देना और सामान्य तौर पर शिक्षा में प्रत्येक स्तर पर उत्कृष्टता लाने का निरन्तर प्रयास। समवर्तिता एक ऐसी भागीदारी है जो स्वयं में सार्थक व चुनौतीपूर्ण है, और राष्ट्रीय शिक्षा नीति इसे हर मायने में पूरा करने की ओर उन्मुख रहेगी।
शैक्षिक नीतियों एवं कार्यक्रमों को बनाने और उनके क्रियान्वयन में केंद्र सरकार की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है। इनमें सन् 1986 की राष्ट्रीय शिक्षा-नीति (एनपीई) तथा वह कार्रवाई (पीओए) शामिल है, जिसे सन् 1992 में अद्यतन किया गया। संशोधित नीति में एक ऐसी राष्ट्रीय शिक्षा प्रणाली तैयार करने का प्रावधान है जिसके अंतर्गत शिक्षा में एकरूपता लाने, प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रम को जनांदोलन बनाने, सभी को शिक्षा सुलभ कराने, बुनियादी प्राथमिकता शिक्षा की गुणवत्ता बनाए रखने, बालिका शिक्षा पर विशेष जोर देने, देश के प्रत्येक जिले में नवोदय विद्यालय जैसे आधुनिक विद्यालयों की स्थापना करने, माध्यमिक शिक्षा को व्यवसाय परक बनाने,उच्च शिक्षा के क्षेत्र में विविध प्रकार की जानकारी देने और अंतर अनुशासनिक अनुसंधान करने, राज्यों में नए मुक्त विश्वविद्यालयों की स्थापना करने,अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिष द्को सुदृढ़ करने तया खेलकूद, शारीरिक शिक्षा, योग को बढ़ावा देने एवं एक सक्षम मूल्यांकन प्रक्रिया अपनाने के प्रयास शामिल हैं। इसके अलावा शिक्षा में अधिकाधिक लोगों की भागीदारी सुनिश्चित करने हेतु एकविकेंद्रीकृत प्रबंधन दांचे का भी सुझाव दिया गया है। इन कार्यक्रमों के कार्यान्वयन में लगी एजेंसियों के लिए विभिन्न नीतिगत मानकों को तैयार करने हेतु एक विस्तृत रणनीति का भी पीओए में प्रावधान किया गया है। एनपीई द्वारा निर्धारित राष्ट्रीय शिक्षा प्रणाली एक ऐसे राष्ट्रीय पाठ्यक्रम ढांचे पर आधारित है जिसमें अन्य लचीले एवं क्षेत्र विशेष के लिए तैयार घटकों के साथ ही एक समान पाठ्यक्रम रखने का प्रावधान है। जहां एक ओर शिक्षा नीति लोगों के लिए अधिक अवसर उपलब्ध कराए जाने पर जोर देती है,वहीं वह उच्च एवं तकनीकी शिक्षा की वर्तमान प्रणाली को  मजबूत बनाने का आह्वान भी करती है। यह नीति शिक्षा के क्षेत्र में कुल राष्ट्रीय आय का कम से कम 6 प्रतिशत निवेश करने पर भी जोर देती है।
New National Education Policy 2020 सरकार के शिक्षा संबंधी निर्णयों और प्रयासों के लिए नई रूपरेखा तैयार करने वाली राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 चर्चा में है। भारतीय शिक्षा प्रणाली में आने वाले इस बड़े परिवर्तन से आशाओं, सपनों और आकांक्षाओं की भी लहर उठी है। वर्ष 1986 की पिछली नीति (जिसे 1992 में संशोधित किया गया था) के 34 वर्षो के अंतराल के बाद प्रभावी रूप से जारी भारत की इस तीसरी शैक्षिक नीति का उद्देश्य भारतीय शिक्षा की संरचना को और अधिक गतिशील, लचीला और प्रासंगिक बनाना है।
अगर ये बदलाव सफलतापूर्वक लागू किए जाते हैं, तो भारत में शिक्षा के भविष्य के लिए मजबूत नींव साबित हो सकते हैं। वर्ष 2019 के एनईपी मसौदे से संकलित और विभिन्न हितधारकों व शिक्षा विशेषज्ञों के सुझावों से बनी यह नीति अपने आप में अलग है। यह नीति शिक्षा एक मजबूत और प्रासंगिक प्रणाली के विकास के लिए भी उम्मीद लेकर आई है। यह केवल तभी संभव हो सकेगा जब सरकार इस नीति में लिखी सभी योजनाओं को लागू कर पाए। इस नीति को लेकर आज अनेक तरह की बातें हो रही हैं। कई कारणों से यह विषय चर्चा में है। ऐसे में इस नीति का विश्लेषण करने की जरूरत है, ताकि इसे लागू करने में सामने आने वाली चुनौतियों के साथ-साथ अवसरों का भी पता लगाया जा सके और यह समझा जाए कि कैसे यह भारतीय शिक्षा प्रणाली के भविष्य को बना या बिगाड़ सकती है।

समानता के लिए शिक्षा[
नई शिक्षा नीति विषमताओं को दूर करने पर विशेष बल देगी और अब तक वंचित रहे लोगों की विशेष आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए शिक्षा के समान अवसर मुहैया करेगी। महिलाओं की समानता हेतु शिक्षा 4.2 शिक्षा का उपयोग महिलाओं की स्थिति में बुनियादी परिवर्तन लाने के लिए एक साधन के रूप में किया जायेगा। अतीत से चली आ रही विकृतियोंऔर विषमताओं को खत्म करने के लिए शिक्षा-व्यवस्था का स्पष्ट झुकाव महिलाओं के पक्ष में होगा। राष्ट्रीय शिक्षा-व्यवस्था ऐसे प्रभावी दखल करेगी जिनसे महिलाएं, जो अब तक अबला समझी जाती रही हैं, समर्थ और सशक्त हों। नए मूल्यों की स्थापना के लिए शिक्षण संस्थाओं के सक्रिय सहयोग सेपाठ्यक्रमों तथा पठन-पाठन सामग्री की पुनर्रचना की जायेगी तथा अध्यापकों व प्रशासकों का पुनःप्रशिक्षण किया जायेगा। महिलाओं से संबंधित अध्ययन को विभिन्न पाठ्यचर्याओं के भाग के रूप में प्रोत्साहन दिया जायेगा। इस काम को सामाजिक पुनर्रचना का अभिन्न अंग मानते हुए इसे पूर्णकृत संकल्प होकर किया जायेगा और शिक्षा संस्थाओं को महिला विकास के सक्रिय कार्यक्रम शुरू करने के लिए प्रेरित किया जायेगा।
महिलाओं में साक्षरता प्रसार को तथा उन रुकावटों को दूर करने को जिनके कारण लड़कियां प्रारंभिक शिक्षा से वंचित रह जाती हैं, सर्वोपरि प्राथमिकता दी जायेगी। इस काम के लिए विशेष व्यवस्थाएँ की जायेंगी, समयबद्ध लक्ष्य निर्धारित किए जायेंगे और उनके कार्यान्वयन पर कड़ी निगाह रखी जायेगी। विभिन्न स्तरों पर तकनीकी और व्यावसायिक शिक्षा में महिलाओं की भागीदारी पर खास जोर दिया जायेगा। लड़के और लड़कियों में किसी प्रकार का भेद-भाव न बरतने की नीति पर पूरा जोर देकर अमल किया जायेगा ताकि तकनीकी तथा व्यावसायिक पाठ ्यक्रमों में पारंपरिक रवैयों के कारण चले आ रहे लिंगमूलक विभाजन ;सेक्स स्टीरियोटाइपिंगद्ध को खत्म किया जा सके तथा गैर-परम्परागत आधुनिक काम-धंधों में महिलाओं की हिस्सेदारी बढ़ सके। इसी प्रकार मौजूदा और नई प्रौद्योगिकी में भी महिलाओं की भागीदारी बढ़ाई जायेगी।

विभिन्न स्तरों पर शिक्षा का पुनर्गठन
बच्चों से संबंधित राष्ट्रीय नीति इस बात पर विशेष बल देती है कि बच्चों के विकास पर पर्याप्त विनियोग किया जाये, विशेषकर ऐसे तबकोंपर जिन के बच्चों की पहली पीढ़ी बड़ी संख्या में शिक्षा प्राप्त कर रही है। बच्चों के विकास के विभिन्न पहलुओं को अलग-अलगकरके नहीं देखा जा सकता। पौष्टिक भोजन व स्वास्थ्य को और बच्चों के सामाजिक,मानसिक, शारीरिक नैतिक और भावनात्मक विकास को समेकित रूप में ही देखना होगा। इस दृष्टि से शिशुओं की देखभाल और शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया जाएगा और इसे जहाँ भी संभव हो, समेकितबाल विकास सेवा कार्यक्रम के साथ जोड़ा जाएगा। प्राथमिक शिक्षा के सार्वजनीकरण के संदर्भ मेंशिशुओं की देखभाल के केन्द्र खोले जाएंगे, जिससे अपने छोटे भाई-बहनों की देखभाल करने वालीलड़कियों को स्कूल जाने की सुविधा मिल सके। साथ ही निर्धन तबके की कार्यरत स्त्रियों को भी इन केन्द्रों से मदद मिल सकेगी।
शिशुओं की देखभाल और शिक्षा के केन्द्र पूरी तरह बाल-केन्द्रित होंगे। उनकी गतिविधियाँ खेल-कूद और बच्चों के व्यक्तित्व पर आधारित होगी। इस अवस्था में औपचारिक रूप से पढ़ना-लिखना नहीं सिखाया जाएगा। इस कार्यक्रम में स्थानीय समुदाय का पूरा सहयोग लिया जाएगा। शिशुओं की देखभाल और पूर्व प्राथमिक शिक्षा के कार्यक्रमों को पूरी तरह समेकित किया जाएगा ताकि इससे प्राथमिक शिक्षा को बढ़ावा मिले और मानव संसाधन विकास में सामान्य रूप से सहायता मिल सके। इसके साथ ही स्कूल स्वास्थ्य कार्यक्रम को और सुदृढ़ किया जायेगा। प्रारम्भिक शिक्षा की नई दिशा में दो बातों परविशेष बल दिया जाएगाऋ ;कद्ध 14 वर्ष की अवस्था तक के सब बच्चों की विद्यालयों में भर्ती और उनका विद्यालय में टिके रहना, और ;खद्ध शिक्षा की गुणवत्ता में कापफी सुधार।
बच्चों को विद्यालय जाने में सबसे अधिक सहायता तब मिलती है जब वहाँ का वातावरण प्यार, अपनत्व और प्रोत्साहन से भरा हो और विद्यालय के सब लोग बच्चों की आवश्यकताओं पर ध्यान दे रहे हों। प्राथमिक स्तर पर शिक्षा की पद्धति बाल-केन्द्रित और गतिविधि पर आधारित होनी चाहिए। पहली पीढ़ी के सीखने वाले बच्चों को अपनी गति से आगे बढ़ने देना चाहिए और उनके लिए पूरक और उपचारात्मक शिक्षा की भी व्यवस्था होनी चाहिए। ज्यों-ज्यों बच्चे बड़े होंगे उनके सीखने में ज्ञानात्मक तत्त्व बढ़ते जाएंगे और अभ्यासके द्वारा वे कुछ कुशलताएँ भी ग्रहण करते चलेंगे। प्राथमिकता स्तर पर बच्चों को किसी भी कक्षा में पफेल न करने की प्रथा जारी रखी जायेगी। बच्चों का मूल्यांकन वर्ष पर में पफैला दिया जाएगा। शिक्षा की व्यवस्था में से शारीरिक दंड को सर्वथा हटा दिया जाएगा और विद्यालय के समय का और छुट्टियों का निर्णय भी बच्चों की सुविधा को देखते हुये किया जायेगा।
प्राथमिक विद्यालयों में आवश्यक सुविधाओं की व्यवस्था की जाएगी। इनमें किसी भी मौसम में काम देने लायक कम से कम दो बड़े कमरे, आवश्यक खिलौने, ब्लैकबोर्ड, नक्शे, चार्ट और अन्य शिक्षण सामग्री शामिल है। हर स्कूल में कम से कम दो शिक्षक होंगे, जिनमें एक महिला होगी। यथासंभव जल्दी ही प्रत्येक कक्षा के लिए एक-एक शिक्षक की व्यवस्था की जाएगी। पूरे देश में प्राथमिक विद्यालयों की दशा को सुधारने के लिए एक क्रमिक अभियान शुरू किया जाएगा जिसका सांकेतिक नाम ‘‘आपरेशन ब्लैक बोर्ड’’ होगा। इस कार्यमें शासन, स्थानीय निकाय, स्वयं सेवी संस्थाओं और व्यक्तियों की पूरी भागीदारी होगी। राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम और ग्रामीण भूमिहीन रोजगार गारंटी कार्यक्रम की निधियों का पहला उपयोग स्कूल की इमारतों के बनाने में होगा।

ऐसे बच्चे जो बीच में स्कूल छोड़ गए हैं, या जोऐसे स्थानों पर रहते हैं जहाँ स्कूल नहीं है या जो काम में लगे हैं, और वे लड़कियां जो दिनके स्कूल में पूरे समय नहीं जा सकती, इन सबके लिए एक विशाल और व्यवस्थित अनौपचारिक शिक्षा का कार्यक्रम चलाया जाएगा।