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Poem। कविता/ भारतमाता। रूखसाना आजमी

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जंजीरों में लिपटी यह किसकी तस्वीर है, कौन इतना बेबस और मजबूर है! मैं जंजीर में लिपटी भारत की मां हूं
भारत मां हूं! जिसे उसी के संतानों ने जंजीरों में जकड़ा है! जिसे उसी के अपनों ने अपने हक से बांधा है! बेटा हिंदू कहता है मां तू मेरी है, बेटा मुस्लिम कहता है मां तू मेरी है!
इस मेरा-मेरी में जिसे दर्द होता है वह जंजीर में लिपटी भारत माता है भारत माता है!
आज नौबत है यह आया, मुझ पर मेरे बेटे ने एहसान जताया! हिंदू बेटा कहता है मां मैंने तुझे आजाद कराया!मुस्लिम बेटा कहता है मैंने तेरे लिए खून बहाया!
हैरान हूं दो सगे भाइयों को लड़ता देख। अपनी ही परवरिश के सवालों में उलझी हूं! मैं भारत माता इस जंजीर में सिमटी हूं, जंजीर में सिमटी हूं!
कहते हैं दोनों ने मिलकर खोली थी अपनी ही मां की जंजीरे! दोनों ने बहाया था अपना-अपना खून दुश्मन की सीना चीरे! दोनों ने ही कुर्बान किया था अपना जिगर, पर आज नजारा और है वह पल जाने है किधर, वह पल जाने किधर!
बार बार टूटता जाए मैं वह अरमा हूं। जंजीर में लिपटी मैं भारत मां हूं। मैं भारत मां हूं! जिस तरह आज विवादों में है यह समां!
कहीं छूट न जाए अपने बच्चों से उसकी मां! क्या कोई आंदोलन इन्हें उत्सुक करेगा या फिर भाई-भाई से लड़ेगा!
ऐसा है तो ईश्वर तू कोई कयामत ला दे! मुझे अपने साथ तो कहीं बहा दें! खत्म कर किस्सा दर्द और तकलीफ का रो-रो कर तुझसे यह लाचार कहती है, जंजीर में लिपटी भारत माता कहती है !
हे ईश्वर! मेरे बच्चों को सद्बुद्धि दे! एकता की मिसाल बने ऐसी शक्ति दे! फिर यह मेरी जंजीरे खोले और मैं आजाद बनूँ, अपनी संतानों के बीच एक जीत और जी लूं एक जीत और जी लूं!
खोल मेरी जंजीरे को मेरे बच्चे हर्षोल्लास हो! बड़ी किस्मत वाली बनूं जब मेरे दोनों बच्चे मेरे पास हो! मत पाल आपसी मतभेद तू! चुन अपनी राह खुशियों परेख तू!
अपनाकर भाईचारा तब तरक्की की मिशाल बनती है! आजाद भारत माता अब खुश रहती है-अब खुश रहती है !
जय हिंद!

-रूखसाना आजमी,

गृह विज्ञान विभाग, बी. एन. मंडल विश्वविद्यालय, मधेपुरा

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