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Gandhi। गाँधी-विमर्श क्यों ?

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                         गाँधी-विमर्श क्यों ?

आधुनिक सभ्यता के रथ पर आरूढ़ ‘मानव’ तथाकथित विकास की बुलंदियों पर है। आज आकाश को मुँह चिढ़ाते गगनचुंबी मकान, हवा से तेज दौड़ते वायुयान, धरती की दूरियों को खत्म कर देने वाले संचार सामान आदि उसकी पहचान हैं। उसने महामारियों से लड़ने वाले अचूक टीके बनाए हैं, शल्य-चिकित्सा के अत्याधुनिक उपकरण विकसित कर लिए हैं और बना लिया है, यौन-क्षमता से लेकर बौद्धिकता तक को बढ़ाने वाली दवाइयाँ। उसके पास हैं- कृत्रिम गर्भाधान, परखनली शिशु, अंग- प्रत्यारोपण एवं मानव-क्लोनिंग की तकनीक और झाड़ू लगाने एवं खाना बनाने से लेकर प्रेम एवं सेक्स करने तक में दक्ष मशीनें (रोबोट)। आज वह समुद्र की अतल गहराइयों में खेल रहा है, अंतरिक्ष की सैर कर रहा है, ढूँढ रहा है- चाँद एवं मंगल पर बस्तियाँ बसाने की संभावनाएँ और देख रहा है- अमरता के सपने भी। लेकिन, तस्वीर का दूसरा पहलू बड़ा ही भयानक है। पूरी दुनिया बम एवं बारूद की ढेर पर खड़ी है और रिमोट का एक बटन दबाने मात्रा से पूरी सभ्यता के मिट्टी में मिलने की आशंका पैदा हो गई है। साथ ही बाढ़-सुखाड़, भूकंप, सुनामी, एसीड-रेन, ग्लोबल-वार्मिंग, ग्लोबल-कूलिंग और ओजोन परत के क्षरण का खतरा भी बढ़ता जा रहा है। प्राकृतिक सम्पदाएँ नष्ट हो रही हैं और कोयले एवं पेट्रोलियम के भंडारों के जल्द ही खत्म होने की संभावनाओं के मद्देनजर विकराल ऊर्जा-संकट दरवाजे पर खड़ा है। इतना ही नहीं मिट्टी अपनी उर्वरता खो रही है, शुद्ध पेयजल स्रोत खत्म हो रहे हैं और आने वाले दिनों में साँस लेने के लिए स्वच्छ हवा मिलनी भी मुश्किल होने वाली है। इनसे भी अधिक दुखद यह है कि एक कोराना वायरस ने दुनिया को दहशत में ला खड़ा किया है। आधुनिक सभ्यता विभिन्न अंतर्विरोधों एवं अवरोधों में फँस गई है। इसका तथाकथित विकास-अभियान, वास्तव में मानव एवं मानवता के लिए महाविनाश का आख्यान बनने वाला है। इसके पास बढ़ती बेरोजगारी, गैरबराबरी एवं महामारी को रोकने और आतंकवाद, आणविक हथियार एवं पर्यावरण-असंतुलन से बचने का कोई उपाय नहीं है। ऐसे में, देश-दुनिया में आधुनिक सभ्यता की विकल्प की तलाश हो रही है। इस तलाश का हर रास्ता जहाँ आकर अर्थवान होता है, वह है- ‘गाँधी’। साफ-साफ कहें, तो ‘गाँधी’ में ही आधुनिक सभ्यता के सभी संकटों का सबसे बेहतर एवं कारगर समाधान मौजूद है। अतः, ‘गाँधी’ को जानना, समझना एवं अपनाना आज हमारी मजबूरी हो गई है। जाहिर है कि ‘गाँधी-विमर्श’ की आवश्यकता एवं उपयोगिता स्वयंसिद्ध है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए हम अगले तेरह दिनों में कुल तेरह प्रमुख समकालीन विमर्शों को ‘गाँधी-दृष्टि’ से देखने-समझने की कोशिश करेंगे। हम देखेंगे कि सवाल चाहे धर्म, राजनीति एवं शिक्षा का हो अथवा प्रौद्योगिकी, पर्यावरण एवं विकास का, सभी का जवाब गाँधी-दर्शन में ढूँढा जा सकता है। मुझे आशा है कि आप हमारे इस प्रयास को ‘नोटिस’ करेंगे। ‘संवाद’ एवं ‘प्रतिक्रिया’ की प्रतीक्षा में …।

 

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