Bihar बिहार के नवनिर्माण का सवाल/-प्रो. मनोज कुमार

बिहार दिवस पर,संपूर्ण बिहार में तरह-तरह के कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे, ढोल नगाड़े बजेंगे, सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित होगा,गोष्ठियां होंगी। सोचता हूं क्या यह सरकारी कार्यक्रम मात्र है, बिहार को बिहार वासियों की नजर से, बिहार की नजर से, बिहार के परिस्थिति की नजर से, हम कैसे देखें?कई सवाल हमारे सामने हैं, जहां एक ओर हमारा गौरवशाली अतीत है,गौरवशाली इतिहास है, वहीं बदहाल होता बिहार है, चुनौतियों से जूझता बिहार भी है।इतिहास हमें अपनी गलतियों से सीखने का मौका देता है”।बिहार की विरासत नवनिर्माण की चुनौती” पुस्तक के संपादकीय मे शिवदयाल लिखते हैं ‘ बिहार पर विमर्श वास्तव में वैश्विक विमर्श का ही एक हिस्सा बन जाता है’।हर प्रश्न, प्रति प्रश्न खड़ा करता है,जवाब सूझता नहीं, सवाल पर सवाल खड़े हो जाते हैं।संपादकीय में उन्होंने लिखा है कि अपने गौरवशाली अतीत के मलबे के ढेर पर बैठे बिहार के बारे में बात सवालों के साथ शुरू करनी होगी। तमाम तरह के दूरगामी उद्देश्यों वाले, परिवर्तनकारी आंदोलनों की अगुवाई करने वाला बिहार स्वयं अपने लिए जड़ और कहीं प्रतिगामी भूमिका का निर्वाह करता चला आया है। क्या हमारा समाज सामाजिक,आर्थिक विकास की चुनौतियों को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है? क्या हमने भ्रष्टाचार और अव्यवस्था को अपनी संस्कृति में समायोजित कर लिया है ?क्या उपहास हमारी नियति बन गई है? क्या हमारे पास देश और दुनिया को देने के लिए कुछ भी नहीं है? सच तो यह है कि बिहार बदल रहा है, देखना यह है कि इसकी दिशा क्या है,यह आगे ले जाने वाला है या हम पीछे धकेले जा रहे हैं, क्या संभावनाएं बिहार में बची हैं? लगभग विकास का हर आंकड़ा बिहार के खिलाफ है,.उद्योग ,व्यापार, कृषि ,शिक्षा, रोजगार, कानून व्यवस्था ,दुरावस्था हम पर लाद दी गई हैl तमाम प्रतिकूलता को अनुकूलता में बदलने की कोशिश बिहार की सबसे बड़ी मजबूती है । प्रगतिशील आंदोलनों की हमारे पास मजबूत परंपरा रही है,राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सवालों पर बिहार बोलता है, चुप नहीं रहता। बिहार में कमियां हैं लेकिन कभी-कभी ऐसा लगता है कि हमें चुप कराने के लिए,हमें नीचा दिखाने की कोशिश की जाती है ( सदियों से इस क्षेत्र में मूल्य का निर्माण हुआ है ‘सब लोग ‘के फरवरी 2021 के अंक में गजेंद्र पाठक का एक विशेष लेख प्रकाशित हुआ है जो बिहार की बुद्धिजीबिता,6 बेरोजगारी और लालू प्रसाद शीर्षक से प्रकाशित है, मे वे बिहार के गौरवशाली इतिहास की चर्चा करते हैं। वे हिंदी के पहले कवि सरहपा को याद करते हैं, रेनू की चर्चा करते हैं,बिहार के लोकतंत्र का यूनानी लोकतंत्र से तुलना करते हैं।5 बिहार का इतिहास बाहरी यात्रियों के दस्तावेजों में देखा जा सकता है, मेगास्थनीज चंद्रगुप्त मौर्य के समय राजदूत बनकर आए ,वे ईसा पूर्व 302 से 288 तक पाटलिपुत्र में रहे। “इंडिका” जिसका परिचय आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुवाद से मिलता है जो मगध साम्राज्य के प्राचीन वैभव की याद दिलाता है। 399 ईस्वी से 412 ईसवी के बीच फाह्यान अपने 9 साथियों के साथ पैदल भारत आए ,बौद्ध साहित्य की इन्हें तलाश थी। सातवीं शताब्दी में हर्ष के समय ह्वेनसांग बिहार आए। नालंदा हमारी गौरव साली इतिहास की एक मिसाल प्रस्तुत करता है। आठवीं शताब्दी में शंकराचार्य बिहार आए, मंडन मिश्र से उनके शास्त्रार्थ की चर्चा हम सुनते आए हैं ,इसी लेख में अरविंद नारायण दास की पुस्तक ‘The Republic of Bihar’की चर्चा लेखक करते हैं। राजनीति का एक युग बीत चुका है, राजनीति के पहिए को बिहार ने उल्टा घुमा दिया है। बिहार ने हीं राजनीति के पहिए को सही दिशा में चलने के लिए बाध्य कर दिया है।अब दिल्ली के टेलीफोन पर बिहार का मुख्यमंत्री नहीं बदलता, यही नहीं अब दिल्ली की कुर्सी पटना से तय होने लगी थी। लेखक लिखते हैं कि बिहार ने मंडल राजनीति से देशभर में पिछड़ा राजनीति के जरिए नेतृत्व परिवर्तन की ऐतिहासिक जमीन तैयार की। किशन पटनायक ने अपने एक लेख में लिखा है कि विरासत एक प्रकार की स्मृति है और सकारात्मक नहीं होती ।अगर सकारात्मक विरासत है तो नकारात्मक विरासत भी होनी ही चाहिए, विरासत सिर्फ प्रेरणादायक नहीं होनी चाहिए,3 नकारात्मक विरासत से चेतावनी भी मिलनी चाहिए। अगर हम अपने इतिहास को संवेदनशील होकर देखें तो दोनों तरह की संवेदनशील विरासत दिखाई पड़ेगी। वे आगे लिखते हैं कि बिहार के लोग अपनी विरासत से उत्साहित होकर अगर अपना क्षेत्रीय इतिहास ठीक ढंग से याद करना शुरू करें और विरासत की पूजा आरती करके नहीं उसकी आलोचनात्मक समीक्षा करके एक आत्म चेतना पैदा करें तो बिहार जो इस वक्त भारत के पतन का सबसे बदनाम केंद्र स्थल बना दिया गया है, वह भारत के नव निर्माण का प्रधान केंद्र हो सकता है उनका मानना है कि बिहार की प्रतिभा, निर्माण में प्रकट नहीं होती है, लेकिन बिहारी जनता का विशेष गुण है विद्रोह को विस्तार देना, इसे हम बुद्ध और महावीर के समय से देख सकते हैं ।बिहार एक अच्छी प्रचार भूमि है,औसत बिहारी के व्यक्तित्व में ऐसी एक संवेदनशीलता विद्रोह के प्रति है जिसमें जल्द आग लगाई जा सकती है। गांधी और जेपी को आधार भूमि यहीं मिली । विद्रोह के किस पहलू और किस तत्व की तरफ बिहारी मन उद्वेलित होता है इसे समझना पड़ेगा।समाजवादी लेखक सच्चिदानंद सिन्हा को बिहार के विपन्नता का जड़ पूंजीवाद में दिखता है, दूसरी ओर कृषि के आधुनिकीकरण, हरित क्रांति में ईश्वरी प्रसाद लिखते हैं कि बिहार को बाजार खोजने की जरूरत नहीं है,हमें बाहरी व्यापार पर आश्रित होकर विकास का रास्ता ढूंढना आवश्यक नहीं है । अनेकों प्रकार के कृषि आधारित रोजगार की संभावनाएं यहां मौजूद है, बिहार को केंद्र सरकार का पिछलग्गू नहीं होना चाहिए,ना हीं हमे किसी बाहरी मॉडल की आवश्यकता है। बिहार को आंतरिक उपनिवेश नहीं बनने देना चाहिए, बिहार के विकास का अग्रदूत राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय कंपनियां नहीं होंगी , किसान और कामगार अग्रदूत बनेंगे। बिहार के वैकल्पिक विकास की पहली शर्त स्थानीयता है जो स्वावलंबन पर जोर देता है ।अरविंद मोहन को पलायन की कसक है, उसका भी उत्तर हमें स्थानीयता में ही खोजनी पड़ेगी ।
क्या बिहार गांधी को भूल चुका है? जे.पी. उसके स्मृति से गायब हो चुके हैं? अपने मृत्यु से सिर्फ दो दिन पूर्व गांधी जी ने सर सुल्तान अहमद से कहा कि “तुम हमारे प्रदेश बिहार जा रहे हो, हमारे लोगों की सेवा करते रहना, वहां के लोगों से कहना ‘वह मेरा प्रदेश है’मैं उन्हें भूला नहीं हूं, वह भी मुझे नहीं भूले, मैं आऊंगा लेकिन मैं कब आऊंगा नहीं कह सकता।5 मार्च 1947 को पटना की प्रार्थना सभा में कहाकि बिहार से मुझे सारे हिंदुस्तान में जाना गया, इससे पहले मुझे कोई जानता भी ना था, 20 साल अफ्रीका में रहने के कारण मैं हप्सी सा बन गया था,इसके बाद चंपारण आया और सारा हिंदुस्तान जाग उठा। जब मैं चंपारण आया तो मुझे मालूम हुआ कि जैसे बिहार के लोगों को मैं सदियों से जानता था और वे भी मुझे पहचानते थे”।गांधी नोआखाली से बिहार आए थे गांव-गांव घूम रहे थे, यह पूछे जाने पर कि वे कब तक बिहार में रहेंगे, उन्होंने कहा कि” तेरह सौ बरसों बाद भी इस्लाम ‘करवला’ को नहीं भूल पाया है, तो मैं इस ‘करवला’ को अर्थात बिहार को कैसे भूल सकता हूं। 9 मार्च 1947 को बिहार प्रांतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्यों से पटना में उन्होंने कहा कि’अगर मैं बिहार में सफल हो गया तो भारत बच जाएगा,पंजाब की स्थिति नियंत्रण में आ जाएगी और सीमा प्रांत में भी सब कुछ ठीक हो जाएगा। 12 मार्च 1947 को पटना के प्रार्थना सभा में उन्होंने कहा कि ‘मैं आप लोगों को यह दिखाना चाहता हूं कि आपका बिहार भगवान बुद्ध और राजा जनक की भूमि है,आप बिहार की पुरानी ज्ञान और गौरव को वापस ला सकते हैं।चंपारण के लोगों ने इसकी मिसाल कायम की है अहिंसा की एक मिसाल रखी है। गांव की सफाई का सवाल पुनर्वास का सवाल उनके सामने था, उन्होंने कहा कि ‘ पहले मैं जिस रूप में बिहार आया हूं आज उस में मजबूती आई है’ बिहार में अहिंसा का ऐसा नमूना होना चाहिए कि दूसरे पर असर हो सके। 1917 में इन्होंने चंपारण के बरहरवा लखन सेन, मधुबन और भितिहरवा में 3 विद्यालय स्थापित किए। बाद में बुनियादी विद्यालय का यह सघन क्षेत्र हो गया। 12 दिसंबर 1920 को गांधी भागलपुर पहुंचे थे। यहां उन्होंने अन्य बातों के अलावा शराब पीने की बुराइयां बताई और कहा कि ब्रिटिश शासन में मदरसों की संख्या घट गई और शराब की दुकानें बढ़ गई। शराबी स्वराज्य नहीं पा सकते और ना गुलाम लोगों के बच्चे अपने मालिक के स्कूलों में स्वतंत्रता की सीख पा सकते हैं ।अक्टूबर 1925 को मारवाड़ी अग्रवाल सभा को भी इन्होंने संबोधित किया, जिसमें संप्रदायिक सद्भाव पर लंबे व्याख्यान दिए,।
दरअसल गांधी को बिहार से बड़ी आशा थी, बिहार के इतिहास से बहुत कुछ उन्होंने सीखा था।
1934 के बिहार भूकंप के समय बिहार केंद्रीय राहत समिति की बैठक को उन्होंने संबोधित किया। इस भूकंप में 25000 लोगों की जान गई जो सरकारी आंकड़े में 10000 बताई गई थी। उन्होंने कहा कि हमें बिहार के कष्ट पीड़ित लोगों को उबारने के लिए पूरी शक्ति से प्रयत्न करना चाहिए, भेदभाव खत्म करना चाहिए ।24 जनवरी 1934 को त्रिचनापल्ली की सार्वजनिक सभा में उन्होंने कहा कि आप मुझे अंधविश्वासी कह सकते हैं लेकिन मुझे लगता है कि भगवान ने हमें हमारे पापों का दंड देने के लिए भूकंप भेजा है सीतामढ़ी के कार्यकर्ताओं की सभा में 30 मार्च 1934 को उन्होंने कहा कि यदि आप सेवा करना चाहते हैं तो आपको राजनीति भुला देनी चाहिए, कांग्रेस को भूल जाना चाहिए, झंडा फहराने या नारा लगाने से यश नहीं मिलता, काम से प्रतिष्ठा मिलती है और उसे कायम करने के लिए प्रयत्न करना पड़ता है। पैसा तभी आएगा जब बिहार अपना कर्तव्य चुस्ती से पूरा करेगा, आपसे एक एक पैसा दान में लूंगा, वह इस बात का सूचक होगा कि आपके हृदय से अस्पृश्यता मिट गई है तो मैं मान लूंगा किअस्पृश्यता बिहार से विदा हो रही है। एक अवसर पर उन्होंने कहा आपको आंतरिक शुद्धि के लिए प्रयत्न करना चाहिए।
बिहार ने सद्भावना का वह मंत्र याद रखा है ।यह इस बात का प्रमाण है कि गांधी को हम भूले नहीं है। यही कारण है कि बिहार ने आगे बढ़ कर शराब बंदी लागू किया यह ठीक है की चोरी छिपे शराब मिलती है, इसका अर्थ नहीं है कि यह कानून गलत है। बिहार दिवस पर अपने स्मृतियों को ताजा करते हुए हमें भावी योजना बनाने की दिशा में सोचना चाहिए। बिहार का विकास कैसे होगा, कृषि समुन्नत कैसे होगी, जल प्रबंधन किस प्रकार से किया जाए, ग्रामीण विकास की क्या योजना हो,कृषि आधारित रोजगार को प्रोन्नत कैसे किया जाए, पर्यावरणीय दृष्टि से नदी नालों तालाब और जंगलों की सुरक्षा किस प्रकार सुनिश्चित की जाए, आवागमन, शिक्षा,स्वास्थ आदि अनेक क्षेत्र है जहां हमें काम करने की जरूरत है। विश्वविद्यालय इस दिशा में क्या कर सकता है यह सवाल महत्वपूर्ण है, क्योंकि एक संपूर्ण बौद्धिक वर्ग विकास के जिस परिभाषा को जानता है, वह शहर आधारित है ,उपभोक्तावादी है। शहरी विकास के हम खिलाफ नहीं हैं लेकिन शहर का विकास गांव के शोषण पर करने की अगर हमने कोशिश की तो ना शहर विकसित होगा और ना शहर बल्कि गांव की कंगाली की स्थिति में पहुंच जाएगा। बिहार में पर्यटन की अनेक संभावनाएं मौजूद है यह सिर्फ ऐतिहासिक दार्शनिक क्षेत्र नहीं बल्कि प्रेरणा के केंद्र हैं। इसका समग्र इतिहास लिखा जाना चाहिए, विश्वविद्यालयों को अपने शोध की दिशा बदलनी चाहिए
हम अपने राज्य के लिए अपने लोगों के लिए अपने लिए अपने आने वाली पीढ़ी के लिए कुछ विरासत छोड़ना चाहते हैं। अलग-अलग क्षेत्रीय ,भौगोलिक और सांस्कृतिक विविधताओं के आधार पर विकास की रूपरेखा बनाई जानी चाहिए। इस दिशा में हमने प्रयास शुरू किया है, शिक्षकों,शोधार्थियों ,समाज कर्मियों, बुद्धिजीवियों को एक मंच पर लाने की पहल शुरू हुई है। जो रचनात्मक और सृजनात्मक सोच वाले ऐसे अनुभवी लोग होंगे उनके साथ उस क्षेत्र की विकास का प्रतिमान बनाने कि हम कोशिश करेंगे,फिर हम बिहार दिवस को योजनाओं का दिवस बनाएंगे अपनी प्रतिबद्धताओं का दिवस बनाएंगे नया बिहार बनाने का दिवस बनाएंगे।
-प्रो.(डॉ.)मनोज कुमार
सेवानिवृत्त प्रोफेसर महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय
हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा, महाराष्ट्र
एवं
पूर्व विभागाध्यक्ष स्नातकोत्तर गांधी विचार
विभाग ,तिलका मांझी विश्वविद्यालय भागलपुर।