Bihar बिहार किधर जा रहा है ? इसे जाना किधर है ?

बिहार किधर जा रहा है, इसे जाना किधर है, इसे किधर जाना चाहिए,यह एक ऐसा प्रश्न है जो हर आदमी के मन में है, हर जगह लोग पूछ रहे हैं, कौन है जो इसका सही उत्तर दे सकता है , क्या इसका उत्तर बिहार के मुख्यमंत्री के पास है? क्या मंत्रिमंडल के पास है? क्या ब्यूरोक्रेसी इसका उत्तर दे सकेगी ?पंचायत के पास अपनी कोई योजना है, वह अपने लिए अपना कोई उत्तर बना सकता है? सवाल तो सबके पास है, उत्तर देने के लिए कोई तैयार नहीं है.यह स्थिति क्यों बनी है ,बिहार के बदहाली पर रोना सब रोते हैं कुछ तो राजनीतिक है लेकिन ऐसा भी नहीं है कि सब कुछ ठीक है लेकिन ऐसा भी नहीं है की हिंदुस्तान की सारी गड़बड़ियां बिहार में ही है क्या ऐसे प्रश्न हमें चिंतित नहीं करती अगर चिंतित करती है तो यह चिंता क्यों पैदा हुई क्या हम नहीं जानते कि हम किधर जा रहे हैं कहां जा रहे हैं चलते चलते हम एक ऐसे अंधेरी गली में पहुंच गए हैं जिसका अंत नहीं दिखता उससे निकलने का रास्ता नहीं मिलता क्या हमारे अंदर छटपटाहट है हमारा बिहार भारत से अलग नहीं है इस अंधी दौड़ में भारत भी फसा है बिहार को उबरे कैसे यह वही बिहार है जो आज आंखों पर पट्टी बांधकर बेतहाशा भागता चला जा रहा है यह वही है जो 75 वर्ष पूर्व स्वतंत्रता संग्राम का अग्रणी था 45 वर्ष हुए हैं जब लोकतंत्र की हुंकार से दिल्ली का सिंहासन पलट गया था राजनीतिक दृष्टि से सजग बिहार आज की स्थिति क्या है गांव में खेती के सिवा दूसरा धंधा नहीं रह गया है खेती भी क्या है सिर्फ पेट भरने जीने जी लाने का बहाना मात्र है हरियाणा पंजाब और दिल्ली हमें रोजगार के लिए जाना पड़ता है घर गांव में काम नहीं है हजारों बच्चे आज भी जिन्हें स्कूलों में होना चाहिए कोलकाता और दिल्ली की सड़कों पर कुत्तों की जिंदगी जी रहे हैं जंगल और नदियां ठेकेदारों की लालच और गरीब की बेबसी के कारण साफ होते जा रहे हैं क्या लेकर हम अपनी समस्याओं का हल ढूंढें आचार्य राममूर्ति को यह प्रश्न सलता रहा इसके उत्तर खोजने के लिए उन्होंने युवकों से चर्चा की उन्हें एक प्रकाश की किरण दिखाई पड़ा
अंधेरे में प्रकाश की संभावना क्या बची है समस्याएं गहरी हैं और उसके समाधान के लिए जो कुछ चाहिए सब बिहार में मौजूद है यहां अच्छी से अच्छी भूमि है लाखों एकड़ जंगल है पानी से भरा गंगा कोसी गंडक जैसी नदियां हैं पशुधन है कुशाल कृषक दस्तकार और पशुपालक हैं इससे अधिक हमें कुछ नहीं चाहिए हमारे पास एक लंबी ऐतिहासिक परंपरा है जो हमें अक्षय जीवन शक्ति देती ढाई हजार वर्ष पूर्व बिहार की धरती पर भगवान बुद्ध और महावीर में अपने उपदेशों से निरूपा धिक मानव को प्रतिष्ठित किया जीवन और समाज को नया मूल्य दिया चंद्रगुप्त मौर्य ने भारतीय इतिहास में जिस कीर्तिमान की स्थापना की उससे भारत में राजनीतिक एकता की नींव पड़ी सम्राट अशोक ने शांतिपूर्ण सह अस्तित्व की नीति प्रस्तुत की विभिन्न धर्मों में सार वृद्धि का पहला उदाहरण प्रस्तुत किया शेरशाह सूरी ने राज्य के लोक कल्याणकारी स्वरूप को व्यापक बनाया वीर कुमर सिंह के वीरता की कहानियां जन जन तक प्रचलित है और बीसवीं शताब्दी का बिहार गांधी जीवन दृष्टि का बिहार विनोबा के भूदान और जेपी के लोकतंत्र के संघर्ष को देखा है सृजन और विद्रोह की लंबी परंपरा से बिहार को जीवन शक्ति मिलती है उस जीवन शक्ति को पुनर्जीवित करने की जरूरत है
जेपी ने हमें सिखाया है कि सच कहना अगर बगावत है तो समझो हम भी बागी हैं गांधी ने हमें सिखाया है की बगावत के साथ यानी सत्याग्रह के साथ रचना के पहल किए जाने चाहिए जेपी ने संघर्ष के चार आयाम बताए थे जेपी संघर्ष की आरोहण की प्रक्रिया के रूप में कल्पना करते हैं सतत पुरुषार्थ उसका आधार है इसमें कंप्लीट अनिवार्य नहीं है बल्कि कनफ्लिक्ट्स को शांतिपूर्ण उपायों से दूर करने के सब प्रयासों के विफल हो जाने के बाद ही टक्कर को स्थान दिया गया है
जनजीवन के बुनियादी मुद्दों पर आम सहमति कैसे हो प्रबल लोकमत किस तरह बनए लोकमत लोकतंत्र का हथियार है एक सशक्त हथियार है इस हथियार को मजबूत करने की जरूरत है राष्ट्र की एकता जन-जन की आवश्यकता की पूर्ति तथा नागरिक और उसके अधिकारों की रक्षा जन संघर्ष के तीन प्रमुख लक्ष्य माने गए हैं इस पर लोकमत प्रकट होना चाहिए प्रशासन में विकेंद्रीकरण और आर्थिक विकास के लिए एग्रोइंडस्ट्रियल इकोनॉमी को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए हमारा लक्ष्य हो कि हर परिवार के पास खती पशुपालन उद्योग यानी जीविका का कोई न कोई स्थाई साधन अवश्य होना चाहिए बिहार राज्य पुनर्रचना संगोष्ठी जो 21 और 22 दिसंबर 2005 को पटना में संपन्न हुई थी मैं पुनर्निर्माण के स्वरूप कार्यक्रम और नीति बनाई गई उस संगोष्ठी में बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री जो आज भी मुख्यमंत्री हैं भी उपस्थित हुए थे संगोष्ठी सर्वोदय संपूर्ण क्रांति के विचारों के आधार पर लोक शक्ति द्वारा बिहार राज्य की पुनर्रचना विषय पर आयोजित थी संगोष्ठी मे यह बात उभर कर आई कि राज्य की जनता अनेकों प्रकार के अपराध भ्रष्टाचार कुशासन गरीबी बेकारी अस्वस्थता आदि समस्याओं से त्रस्त है लेकिन यही समस्या परिवर्तन पुनर्रचना एवं प्रगति की आकांक्षाओं को शक्तिशाली बनाती है और नवरचना के लिए हमे प्रेरित करती है संपूर्ण क्रांति के आधार पर आर्थिक पुनर्रचना का प्रश्न स्वतंत्रता प्राप्ति के समय से ही अनुत्तरित रहे पश्चिमी औद्योगिक अर्थव्यवस्था विकसित करने की कोशिश की जाती रही है लेकिन बिहार कृषि पर आधारित है अगर कृषि गत औद्योगिक उत्पादों एवं उससे संबंधित युवाओं को कृषि की आय के साथ जोड़ दिया जाए तो राज्य के आय का बड़ा हिस्सा हमें कृषि से आता दिखेगा अब तक हमने विकास का अपना कोई मॉडल विकसित नहीं किया है जो हमारे पारंपरिक स्वाभाविक मॉडल उसे बराबर तोड़ने की कोशिश की जाती रही है पारिवारिक अर्थव्यवस्था को बिहार में बचाना होगा गांधी ने स्वाब लंबन एवं आत्मनिर्भरता का मॉडल दिया था जिसे विनोबा लोकनायक और राम मनोहर लोहिया ऐसे नेताओं ने समृद्ध किया है वही मॉडल इस राज्य के लिए उपयोगी है और जो हमारी पुरानी व्यवस्था है उस पर लोकतंत्र समानता और सहयोग के आधार पर गांधी का वह मॉडल स्थापित किया जा सकता है
आज भी बिहार मानव श्रम पशु शक्ति एवं प्राकृतिक संसाधनों के योग से उस स्थिति तक पहुंच सकता है विकास की बाधाएं दूर हो सकती है कृषि औद्योगिक अर्थव्यवस्था की रचना की जा सकती है इस प्रक्रिया से भौतिक समृद्धि के साथ-साथ सामाजिक सद्भाव का एक नया इमारत खड़ा कर सकेंगे या भ्रम पैदा किया गया है की कृषि औद्योगिक अर्थव्यवस्था में पूंजी का निर्माण संभव नहीं है जो निराधार है कृषि और उससे संबद्ध जनता के शोषण पर पूंजीवादी व्यवस्था का विकास होता है जल प्रबंधन मुर्गी पालन दुग्ध पालन मछली पालन जड़ी-बूटी उत्पादन ऐसे धंधे हैं जिसमें पूंजी निर्माण की क्षमता है शारीरिक बौद्धिक एवं कार्य दक्षता बढ़ाकर मानव शक्ति का उपयोग हो सकता है प्राकृतिक संसाधनों को जैविक प्रयत्नों के द्वारा अधिकाधिक उत्पादक बनाया जा सकता है कृषि से प्राप्त कच्चे मालों से पक्के उत्पादन में कैसे बदलें ग्राम उद्योग कुटीर उद्योग स्थापित किए जाएं सेवा क्षेत्र का तीव्र गति से विकास हो यही ग्रामीण औद्योगिकरण है ग्रामीण औद्योगीकरण की सोच को लोकनायक ने दिशा दी थी परिवार के आय में इतनी वृद्धि हो कि वह अपने आवश्यक अदाओं की पूर्ति कर सकें भोजन और वस्त्र स्वावलंबन के प्रयोग किए जाने चाहिए खेती रेशम पालन मधुमक्खी पालन जैविक खाद उत्पादन पर ध्यान दिया जाना चाहिए निवास योग्य जमीन सबके पास हो भूमि कोष की स्थापना की जाए भूदान से प्राप्त भूमि की व्यवस्था की जाए वितरित भूमि की अभिलंब व्यवस्था हो भूदान किसानों को कब्जा दिलाया जाए छोटे-छोटे सिंचाई साधनों की व्यवस्था की जाए जंगल एवं पहाड़ की भूमि पर बगीचे लगाए जाएं
.हर परिवार एक आर्थिक इकाई है परिवार को आर्थिक इकाई मानकर वित्तीय व्यवस्था में बैंकों से जोड़ा जाए बाजार की व्यवस्था स्वयं सहायता समूह से जोड़कर की जा सकती है खादी एवं ग्रामोद्योग को पुनर्जीवित किया जाए ताकि अर्ध बेरोजगारी की स्थिति से मुक्ति मिल सके
हाय पंप आग पर नियंत्रण के लिए स्थानीय लोगों के सहयोग से स्थानीय तकनीक के आधार पर योजना बनाई जाए अनाज भंडारण की व्यवस्था की जाए गांव के उत्पादों को उचित मूल्य मिल सके इसकी व्यवस्था भी गांव में करनी होगी बाजार के शोषण से मुक्त करना होगा सूखे से मुक्ति के लिए तालाब बांध और जलाशयों को सुरक्षित करना होगा
बिहार दिवस पर हमें यह सोचने की जरूरत है कि हम इस दिशा में क्या कर सकते हैं हमारे पास मानवीय बौद्धिक और प्राकृतिक क्षमता है उसका समुचित उपयोग किस प्रकार हो यही हमारी सबसे बड़ी समस्या है इस पर बुद्धिजीवियों शिक्षकों समाजिक कर्मियों युवाओं और खासकर बिहार की महिलाओं को सोचना होगा बिहार की महिलाओं ने शराबबंदी का समर्थन करके एक मिसाल दीया है अब विकास का झंडा भी उनके हाथ देने की जरूरत है लोक शक्ति निर्माण कि इनमें अद्भुत क्षमता है इस क्षमता का उपयोग हम किस प्रकार करें विश्वविद्यालयों के शिक्षक शोधार्थी को भी आगे आना होगा या राजनीति का प्रश्न नहीं है या बिहार का प्रश्न है आपका प्रश्न है हमारा प्रश्न है उत्तर भी हमें ही खोजना है उत्तर भी हम सबके पास है जरूरत इस बात की है कि हम संकल्पित हो