BNMU व्याख्यान —– *मानव जीवन की समस्याओं के समाधान में दर्शन की है महती उपयोगिता : प्रो. तिवारी* — *दर्शन के बगैर अधूरा है जीवन : प्रो. तिवारी*

व्याख्यान
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*मानव जीवन की समस्याओं के समाधान में दर्शन की है महती उपयोगिता : प्रो. तिवारी*

*दर्शन के बगैर अधूरा है जीवन : प्रो. तिवारी*

दर्शनशास्त्र सभी विषयों की जननी है। यह हमें सत्य एवं असत्य के बीच भेद करने की दृष्टि देता है और यह दृष्टि कमोवेश सभी व्यक्तियों में पाया जाता है। अतः सभी सिर्फ दर्शन पढ़ाने वाले दार्शनिक नहीं हैं, बल्कि सभी मनुष्य दार्शनिक हैं।

यह बात पटना विश्वविद्यालय, पटना में दर्शनशास्त्र विभाग के सेवानिवृत्त प्रोफेसर डॉ. नरेश प्रसाद तिवारी ने कही। वे मंगलवार को मानव जीवन में दर्शन की उपयोगिता विषयक व्याख्यान में मुख्य वक्ता के रूप में बोल रहे थे। कार्यक्रम का आयोजन स्नातकोत्तर दर्शनशास्त्र विभाग, ठाकुर प्रसाद महाविद्यालय एवं विश्वविद्यालय दर्शनशास्त्र विभाग के संयुक्त तत्वावधान में किया गया।

उन्होंने कहा कि दर्शन जीवन एवं जगत के सभी आयामों से जुड़ा है। इसमें सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, सांस्कृतिक आदि सभी आयाम शामिल हैं। दर्शन के बगैर मानव जीवन अधूरा है।

उन्होंने कहा कि भारतीय दर्शन में मानव जीवन के चार पुरुषार्थ धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष माने गए हैं।‌ इस पुरूषार्थ चतुष्ट्य में जीवन एवं जगत के सभी पक्षों का समावेश है।

उन्होंने कहा कि मानव जीवन की समस्याओं के समाधान में दर्शन की महती उपयोगिता है। दर्शन के माध्यम से हम समस्याओं के मूल कारण को ढूंढते हैं और कारण के पता चलते ही हमें उसका सहज समाधान प्राप्त हो जाता है।

मुख्य अतिथि पूर्व कुलपति प्रो. ज्ञानंजय द्विवेदी ने कहा कि भारतीय दर्शन विश्वबंधुत्व एवं वसुधैव कुटुंबकम् के आदर्शों पर आधारित है। इसमें संपूर्ण चराचर जगत
के कल्याण का भाव निहित है। इसमें यह माना गया है कि सभी मनुष्य एवं मनुष्येतर प्राणि एक हैं और किसी का किसी से कोई
विरोध नहीं है। सबों का कल्याण ही मानव जीवन का लक्ष्य है।

उन्होंने कहा कि भारतीय दर्शन ही भारतीय सभ्यता-संस्कृति का प्राण है। भारतीय दर्शन की दुनिया में एक अलग पहचान है। यह जिसमें विश्व की सभी समस्याओं का समाधान निहित है।

हिंदी विभाग, पीजी सेंटर, सहरसा में एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. सिद्धेश्वर काश्यप ने कहा कि दर्शन एवं साहित्य दोनों सत्यानुभूति एवं विचार- अभिव्यक्ति का माध्यम है। इस तरह दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं और दोनों का मानव जीवन में काफी महत्व है।

उन्होंने कहा कि दर्शन साहित्य के माध्यम से मनुष्य को स्वार्थ से मुक्त कर परमार्थी बनाता है और विश्वबंधुत्व का संदेश देता है।
दर्शन जीवन-जगत, प्रकृति एवं परम सत्ता की अनुभूति का माध्यम है, जिसकी अभिव्यक्ति साहित्य में होती है। जीवन में समरसता इच्छा, ज्ञान और कर्म के समन्वय से आती है और इससे प्राणि को आनंद की प्राप्ति होती है।

कार्यक्रम की अध्यक्षता विभागाध्यक्ष डॉ. शंभू प्रसाद सिंह, संचालन उपकुलसचिव (स्थापना) डॉ. सुधांशु शेखर एवं धन्यवाद ज्ञापन असिस्टेंट प्रोफेसर विनय कुमार ने किया।

इस अवसर पर मानविकी संकायाध्यक्ष प्रो. विनय कुमार चौधरी, हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. उषा सिन्हा, आईक्यूएसी निदेशक डॉ. नरेश कुमार, इतिहास विभागाध्यक्ष प्रो. सी. पी. सिंह, समाजशास्त्र विभागाध्यक्ष डॉ. राणा सुनील कुमार सिंह, असिस्टेंट प्रोफेसर ले. गुड्डू कुमार, डॉ डॉ. अजय कुमार, डॉ. अनील कुमार, डॉ. सुभाशीष दास, दीपक कुमार राणा, डॉ. विद्या सागर, शोधार्थी सौरभ कुमार चौहान, दिनेश कुमार यादव, राजीव कुमार, शक्ति सागर, अमरेश झा आदि उपस्थित थे।