Bihar। नित्यानंद हीरानंद वात्स्यायन : समर्पित साहित्यकार एवं चिकित्सक, अज्ञेय के अनुज


खगड़िया जिलान्तर्गत नयागांव निवासी डा. नित्यानंद हीरानंद वात्स्यायन (पंजाबी डाक्टर) का जन्म 3 जनवरी, 1910 ई. को लाहौर के विश्वमथ रोड स्थित पैतृक निवास में हुआ था। इनके पिता पंडित हीरानंद शास्त्री देश के प्रसिद्ध पुरातत्त्ववेत्ता थे। इनके भाई राष्ट्रकवि सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ हिंदी साहित्य के इतिहास में युग प्रवर्तक के रूप में विख्यात हैं। दिवंगत नित्यानंद जी राष्ट्रप्रेम के लिए आजीवन समर्पित रहे। आप भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के एक सच्चे सेनानी थे‌।

नित्यानंद जी एक साहित्यकार और स्वतंत्रता संग्राम के एक नायक भी रहे थे। इन्होंने दर्जनों उपन्यास और नाटक भी लिखे थे। साहित्यिक सेवाओं और स्वतंत्रता आंदोलन में अहम भूमिका निभाने के लिए इन्हें सन 2002 में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. के. आर. नारायण द्वारा चरखा, चादर और प्रशस्ति पत्र से सम्मानित किया गया था। नित्यानंद जी पर पिता के जीवन का संस्कार बचपन से ही रहा था। छात्र जीवन से ही अपने अध्ययनशील स्वभाव एवं वाणी से जनप्रिय बने हुए थे।

इन्होंने माध्यमिक शिक्षा लाहौर से और स्नातक की शिक्षा गुरुदासपुर पंजाब से प्राप्त कर कोलकाता मेडिकल कॉलेज में नामांकन कराए। मेडिकल की पढ़ाई के बाद इन्होंने हिंदी, उर्दू , अंग्रेजी, संस्कृत, बंगला, कन्नड और उड़ीया भाषा का ज्ञान प्राप्त किए।

भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में भूमिका :- नित्यानंद जी सन 1932 में अपने क्रांतिकारी साथियों खुशीराम मेहता, शम्भूनाथ आजाद, प्रेम प्रकाश, राम हजारी सिंह, हीरालाल कपूर एवं इंदर सिंह मुनि के साथ सिल्क व्यापारियों के रूप में बम बनाने का प्रयत्न करने लगे। धनाभाव के कारण आंदोलनकारी दोस्तों के साथ बैंक लूटने का निश्चय किए। 26 अप्रैल, 1933 को मद्रास के एक बैंक में रुपये लूट लिए थे। इसके बाद ईरोड रेलवे स्टेशन पर इनका मुकाबला अंग्रेजों से हुआ। इनके साथी बच्चाराम और हाजरा सिंह भागने में सफल रहे। नित्यानंद जी और खुशी राम मेहता पैसों के साथ पकड़े गए।

फलस्वरूप इन्हें 14 वर्षों की सजा सुनाई गई।इन्होंने अपना बहुमूल्य 14 वर्ष बेलारी सेंट्रल जेल मद्रास में बिताए थे। जेल में रहकर कई पत्र पत्रिकाओं में जिंदा भूत के नाम से लिखते थे। इस बीच इन्हें तीन बार कालापानी की सजा हुई। कालापानी सजा में अंग्रेजों द्वारा अमानवीय अत्याचार किया जाता था। आप हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी के सदस्य भी रह चुके थे। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान नमक सत्याग्रह, सविनय अवज्ञा आंदोलन, काकोरी कांड सहित अनेक सत्याग्रह में इनकी अहम भूमिका रही थी।

जेल से निकलने के बाद सन 1946 ई. में खगड़िया जिलें के परबत्ता प्रखंड अन्तर्गत नयागांव आकर बस गए। यहाँ चिकित्सा सेवा एवं साहित्य साधना से जुड़े रहे। 26 फरवरी, 2004 को 94 वर्ष की आयु में इनका निधन हो गया था ।

प्रख्यात चिकित्सक नित्यानंद क्षेत्र में “पंजाबी डाक्टर” के नाम से मशहूर थे। आप अपने नाम और कौशल की अच्छाइयों के लिए जाने जाते थे। चिकित्सक के रूप में इन्होंने इलाके के लोगों का आजीवन सेवा किया। उस वक्त इनसे इलाज कराने दूर-दराज के मरीज आते थे और स्वस्थ होकर घर लौटते थे। प्रख्यात चिकित्सक नित्यानंद जी मरीजों की सेवा करना ही फर्ज और धर्म मानते थे। अपने घर पर ही निःशुल्क मरीजों को देखते थे। मरीजों को इन पर अटूट विश्वास रहता था।आज इनके मार्ग पर चलते हुए इनके पुत्र चिकित्सक श्री विजेंद्र वात्स्यायन जी मरीजों की सेवा कर रहे हैं। क्षेत्र में आप कुशल चिकित्सक के रूप में जाने जाते हैं।देश सेवा की भावना अभी भी इनके परिवार में बरकरार है। वर्ष 2018 में डा विजेन्द्र वात्स्यायन के पुत्र प्रतीक कुमार वात्स्यायन ने भारतीय थल सेना में लेफ्टिनेंट पद पर चयनित हो कर परिवार और खगड़िया जिला का नाम रौशन किया। माता-पिता पुत्र प्रतीक के कंधों पर सेना का तमगा लगा के गौरवान्वित हुए ।

-मारूति नंदन मिश्र
नयागांव, परबत्ता, खगड़िया, बिहार