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ICPR स्टडी सर्किल योजनान्तर्गत गीता-दर्शन पर संवाद आयोजित* *गीता में है जीवन जीने की कला : माधव*

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*स्टडी सर्किल योजनान्तर्गत गीता-दर्शन पर संवाद आयोजित*

*गीता में है जीवन जीने की कला : माधव*

*समन्वय का ग्रंथ है गीता : प्रो. जटाशंकर*

जीवन-ग्रंथ है गीता : डॉ. जटाशंकर
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श्रीमद्भगवद्गीता एक जीवन-ग्रंथ है। इसमें जीवन जीने की कला बताई गई है। इससे हम तनाव-प्रबंधन, समय-प्रबंधन, जीवन-प्रबंधन आदि की सीख ले सकते हैं। दुनिया के सभी युवा इस ग्रंथ से प्रेरणा ले सकते हैं।

यह बात राजबोध फाउंडेशन
लंदन (इंग्लैंड) के निदेशक माधव तुरुमेला ने कही।

वे रविवार को दर्शनशास्त्र विभाग, भूपेन्द्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय, मधेपुरा (बिहार) के तत्वावधान में आयोजित युवाओं के लिए श्रीमद्भगवद्गीता का संदेश विषयक संवाद में मुख्य वक्ता के रूप में बोल रहे थे। यह कार्यक्रम शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार के अंतर्गत संचालित भारतीय दार्शिनिक अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली द्वारा प्रायोजित स्टडी सर्किल योजना के तहत आयोजित किया गया।

कर्म का संदेश है गीता

उन्होंने बताया कि अर्जुन को युद्ध में अवसाद हुआ।‌ उन्होंने अपने सामने अपने संबंधियों को देखा और सोचा कि इन लोग को मारकर मुझे क्या मिलेगा? गुरु, भाई और सगे-संबंधियों की हत्या करके राज्य प्राप्त करने से क्या होगा ? ऐसी स्थिति में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया और उनके संशय को दूर कर उन्हें कर्म में प्रवृत्त कराया।

उन्होंने कहा कि श्रीकृष्ण ने अर्जुन को संदेश दिया कि हमारा अधिकार कर्म करने में ही है, उसके फलों में नहीं है। हम न तो कर्म में अशक्त हों और न ही अकर्मण्य बनें। हम निष्कामभाव से कर्म करें। गीता में अर्जुन को दिया गया यह संदेश संपूर्ण मानवता के लिए उपयोगी है। यदि हम इस संदेश को अपनाएंगे, तो हमारे जीवन की अधिकांश समस्याओं का समाधान हो जाएगा।

*संपूर्ण मानवता के लिए उपहार है गीता*
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए आइसीपीआर, नई दिल्ली के पूर्व अध्यक्ष प्रो. (डॉ.) रमेशचन्द्र सिन्हा ने कहा कि भगवद्गीता एक संपूर्ण एवं सार्वभौमिक ग्रंथ है। इसमें संपूर्ण मानव जाति के ज्ञान-विज्ञान का सार निहित है। हम इसका जितना ही अधिक अध्ययन एवं मनन करते हैं, हमें इसका उतना अधिक लाभ प्राप्त होता है।

उन्होंने कहा कि गीता संपूर्ण मानवता के लिए एक उपहार है। यह मात्र दार्शनिकों या धार्मिकों का ग्रंथ नहीं है, बल्कि यह सर्वसाधारण का ग्रंथ है। इसका संदेश सभी मनुष्यों के लिए है। इसे सभी जाति, धर्म एवं देश के लोगों के द्वारा पढ़ी जानी चाहिए।

*जीवन-ग्रंथ है गीता*
मुख्य अतिथि दर्शनशास्त्र विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, प्रयागराज (उत्तरप्रदेश) के पूर्व अध्यक्ष सह अखिल भारतीय दर्शन परिषद् के अध्यक्ष प्रो. (डॉ.) जटाशंकर ने कहा कि गीता मात्र एक धर्म-ग्रंथ नहीं, बल्कि एक जीवन-ग्रंथ भी है। इसका प्रत्येक श्लोक (मंत्र) जीवन में उतारने लायक है। इसके बताए मार्ग पर चलकर ही हम दुनिया को बचा सकते हैं।

उन्होंने कहा कि गीता का संदेश सर्वकालिक एवं सार्वभौम है। इसमें जीवन एवं जगत के सभी आयामों पर प्रकाश डाला गया है। इसका मुख्य संदेश है कि हम परिवार, समाज, राष्ट्र एवं मानवता के कल्याणार्थ कर्म करें।

उन्होंने कहा कि गीता हमें अकर्मण्यता या कर्म- विमुखता का संदेश नहीं देती है। यह हमें काम्य कर्मों को छोड़ने और कर्मफल में आसक्ति को त्यागने का संदेश देती है। यह हमें निष्कामभाव से कर्म करते हुए स्थितप्रज्ञ का जीवन जीने को प्रेरित करती है।

*गीता में है जीवन की सभी समस्याओं का समाधान*
दर्शनशास्त्र विभाग, हेमवती नंदन बहुगुणा केंद्रीय विश्वविद्यालय, श्रीनगर-गढ़वाल की पूर्व अध्यक्ष डॉ. इंदु पांडेय खंडुरी ने कहा कि गीता संपूर्ण विश्व के लिए नीति-निर्देशक है। इसके संदेश केवल युवाओं के लिए ही नहीं, बल्कि सभी लोगों के लिए अनुकरणीय हैं।

उन्होंने बताया कि गांधी ने गीता को अपनी माता कहा है। वे जब भी द्वंद्व में होते थे, तो गीता की शरण में जाते थे। गीता से उन्हें कोई न कोई समाधान मिल जाता था। हम भी गीता में जीवन की सभी समस्याओं का समाधान ढूंढ सकते हैं।

डॉ. अविनाश कुमार श्रीवास्तव (नालंदा) ने कहा कि श्रीकृष्ण ने युवाओं को अतीत के मोह एवं भविष्य की चिंता से मुक्त होकर वर्तमान में कर्म करने का संदेश दिया है।

अतिथियों का स्वागत एवं संचालन दर्शनशास्त्र विभाग, पटना विश्वविद्यालय, पटना की पूर्व अध्यक्षा सह दर्शन परिषद्, बिहार की अध्यक्षा प्रो. (डॉ.) पूनम सिंह ने किया। धन्यवाद ज्ञापन दर्शनशास्त्र विभाग, ठाकुर प्रसाद महाविद्यालय, मधेपुरा में असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. सुधांशु शेखर ने की। प्रश्नोत्तर सत्र में कई लोगों ने प्रश्न भी पुछे। कार्यक्रम के आयोजन में प्रधानाचार्य डॉ. कैलाश प्रसाद यादव, पूर्व डॉ. के. पी. यादव, दर्शनशास्त्र विभागाध्यक्ष शोभा कांत कुमार, डॉ. शंकर कुमार मिश्र, डॉ. राकेश कुमार, गौरव कुमार सिंह, सौरभ कुमार चौहान एवं सारंग तनय आदि ने सहयोग किया।

इस अवसर पर पूर्व कुलपति डॉ. कुसुम कुमारी, डॉ. आभा झा, डॉ. अशोक पाठक, डॉ. पंकज कुमार सिंह, डॉ. सुनील सिंह, डॉ.अनिल तिवारी, डॉ. विनोदानंद ठाकुर, डॉ. विवेक कुमार पाण्डेय, डॉ. श्रवण कुमार झा, डॉ. प्रजापति, डॉ. प्रतिभा सिन्हा, डाॅ. अनिल ठाकुर, ललित कुमार, माधव कुमार, मधु कुमारी, पंकज, प्रणव पाठक, प्रिंस साधना, प्रियंका कुमारी, डॉ. प्रियंका सिंह, मानस कुमार उपाध्याय, डाॅ. देवदास साकेत, राजन कुमार, राजेश कुमार, रामानुज रवि, रेणु कुमारी, नीलकमल, मनोज चौधरी, सुबोध मंडल, विनय तिवारी, विवेक कुमार, निधि कुमारी, मनोज उपाध्याय, वीणापाणी, विद्यानंद यादव, शील कुमार चौरसिया, शिवराज, सनोज चौधरी, रास बिहारी चौधरी, रूबिया अकरम, सर्वजीत पाल, अभय पटेल, चुन्नु साह, आदित्य गौतम, अजीत अमृत, प्रकाश राय, अवधेश कुमार, नरेन्द्र कुमार, रविश कुमार, नंदिता आर्या, गौतम कुमार, गोपाल, गौतम, गौरव कुमार सिंह, सुकांत कुमार, सुशील यादव, हर्ष सागर, श्याम प्रिया, साकेत कुमार, वर्षा किरण आदि उपस्थित थे।

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बिहार के लाल कमलेश कमल आईटीबीपी में पदोन्नत, हिंदी के क्षेत्र में भी राष्ट्रीय पहचान अर्धसैनिक बल भारत -तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) में कार्यरत बिहार के कमलेश कमल को सेकंड-इन-कमांड पद पर पदोन्नति मिली है। अभी वे आईटीबीपी के राष्ट्रीय जनसंपर्क अधिकारी हैं। साथ ही ITBP प्रकाशन विभाग की भी जिम्मेदारी है। पूर्णिया के सरसी गांव निवासी कमलेश कमल हिंदी भाषा-विज्ञान और व्याकरण के प्रतिष्ठित विद्वान हैं। उनके पिता श्री लंबोदर झा, राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित शिक्षक हैं और उनकी धर्मपत्नी दीप्ति झा केंद्रीय विद्यालय में हिंदी की शिक्षिका हैं। कमलेश कमल को मुख्यतः हिंदी भाषा -विज्ञान, व्याकरण और साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिए देश भर में जाना जाता है। वे भारतीय शिक्षा बोर्ड के भी भाषा सलाहकार हैं। हिंदी के विभिन्न शब्दकोशों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके हैं। उनकी पुस्तकों ‘भाषा संशय-शोधन’, ‘शब्द-संधान’ और ‘ऑपरेशन बस्तर: प्रेम और जंग’ ने राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति अर्जित की है। गृह मंत्रालय ने ‘भाषा संशय-शोधन’ को अपने अधीनस्थ कार्यालयों में उपयोग के लिए अनुशंसित किया है। उनकी अद्यतन कृति शब्द-संधान को भी देशभर के हिंदी प्रेमियों का भरपूर प्यार मिल रहा है। यूपीएससी 2007 बैच के अधिकारी कमलेश कमल की साहित्यिक एवं भाषाई विशेषज्ञता को देखते हुए टायकून इंटरनेशनल ने उन्हें देश के 25 चर्चित ब्यूरोक्रेट्स में शामिल किया था। वे दैनिक जागरण में ‘भाषा की पाठशाला’ लोकप्रिय स्तंभ लिखते हैं। बीते 15 वर्षों से शब्दों की व्युत्पत्ति एवं शुद्ध-प्रयोग पर शोधपूर्ण लेखन कर रहे हैं। सम्मान एवं योगदान : गोस्वामी तुलसीदास सम्मान (2023) विष्णु प्रभाकर राष्ट्रीय साहित्य सम्मान (2023) 2000 से अधिक आलेख, कविताएँ, कहानियाँ, संपादकीय, समीक्षाएँ प्रकाशित देशभर के विश्वविद्यालयों में ‘भाषा संवाद: कमलेश कमल के साथ’ कार्यक्रम का संचालन यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए हिंदी एवं निबंध की निःशुल्क कक्षाओं का संचालन उनका फेसबुक पेज ‘कमल की कलम’ हर महीने 6-7 लाख पाठकों द्वारा पढ़ा जाता है, जिससे वे भाषा और साहित्य के प्रति जागरूकता बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं। बिहार के लिए गर्व का विषय : आईटीबीपी में उनकी इस उपलब्धि और हिंदी के प्रति उनके योगदान पर पूर्णिया सहित बिहारवासियों में हर्ष का माहौल है। उनकी इस सफलता ने यह साबित कर दिया है कि बिहार की प्रतिभाएँ राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी छाप छोड़ रही हैं। वरिष्ठ पत्रकार स्वयं प्रकाश के फेसबुक वॉल से साभार।

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