NEP। राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 : संक्षिप्त विवेचन

राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 : संक्षिप्त विवेचन                                                                                        डाॅ. अरूण कुमार खाँ                    विश्वविद्यालय प्राचार्य एवं अध्यक्ष, भौतिकी विभाग, आर. एम. काॅलेज, सहरसा, बिहार

भारत में समय समय पर शिक्षा नीति को ब दला जाता रहा है. भारत में सबसे पहली शिक्षा नीति पूर्व प्रधानमन्त्री इंदिरा गाँधी ने 1968 में शुरू की थी. इसके बाद अगली नीति राजीव गाँधी की सरकार ने 1986 में दूसरी शिक्षा नीति बनायीं जिसमें नरसिम्हा राव सरकार ने 1992 में कुछ बदलाव किये थे.
इस प्रकार वर्तमान में भारत में 34 साल पुरानी शिक्षा नीति चल रही थी जो कि बदलते परिद्रश्य के साथ प्रभावहीन हो रही थी. यही कारण है कि बदलते वक्त की जरूरतों को पूरा करने के लिए, शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए, इनोवेशन और रिसर्च को बढ़ावा देने और देश को ज्ञान का सुपर पावर बनाने के लिए नई शिक्षा नीति की जरूरत है.
नई शिक्षा नीति तैयार करने के लिए 31 अक्‍टूबर, 2015 को सरकार ने पूर्व कैबिनेट सचिव टी.एस.आर. सुब्रह्मण्यन की अध्यक्षता में पांच सदस्यों की कमिटी बनाई. कमिटी ने अपनी रिपोर्ट दी 27 मई, 2016 को. इसके बाद 24 जून, 2017 को ISRO के प्रमुख रहे वैज्ञानिक के कस्तूरीगन की अध्यक्षता में नौ सदस्यों की कमेटी को नई शिक्षा नीति का ड्राफ्ट तैयार करने की जिम्मेदारी दी गई थी. 31 मई, 2019 को ये ड्राफ्ट एचआरडी मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक को सौंपा गया. ड्राफ्ट पर एचआरडी मंत्रालय ने लोगों के सुझाव मांगे थे. इस पर दो लाख से ज्यादा सुझाव आए. और इसके बाद 29 जुलाई को केद्रीय कैबिनेट ने नई शिक्षा नीति के ड्राफ्ट को मंजूरी दे दी.
आईये इस नयी शिक्षा नीति के बारे जानते हैं। चूंकि इस नयी नीति में कई विशेषताएं हैं, कई बदलाव हैं, कई नई संकल्पनाएं हैं, तो हम एक एक कर इन सारी बातों पर परिचर्चा करेंगे।
मानव संसाधन विकास मंत्रालय अब शिक्षा मंत्रालय
मानव संसाधन मंत्रालय का नाम बदलकर शिक्षा मंत्रालय कर दिया है. अब एचआरडी मंत्री को शिक्षा मंत्री कहा जाएगा. जब देश आजाद हुआ, तब से लेकर 1985 तक शिक्षा मंत्री और शिक्षा मंत्रालय ही हुआ करता था, लेकिन फिर राजीव गांधी सरकार ने इसका नाम बदलकर मानव संसाधन मंत्रालय कर दिया था. इस नाम को लेकर आरएसएस से जुड़े संगठन भारतीय शिक्षण मंडल ने आपत्ति जताई थी और साल 2018 के अधिवेशन में इस नाम बदलने की मांग उठाई थी. दलील ये थी कि मानव को संसाधन नहीं मान सकते, ये भारतीय मूल्यों के खिलाफ है.
क्या-क्या बदलेगा?
नई शिक्षा नीति 2020 लागू होने के बाद क्या बदलाव आएगा, इसकी मोटी-मोटी बातें आपको बिंदुवार बताते हैं. पहले बात करते हैं उच्च शिक्षा में बदलावों की. उच्च शिक्षा मतलब 12वीं के बाद की कॉलेज- यूनिवर्सिटी की पढ़ाई.

#मल्टीपल एंट्री एंड एक्जिट होगा- इसका मतलब ये है कि मान लीजिए किसी ने बीटेक में एडमिशन लिया और दो सेमेस्टर बाद मन उचट गया कुछ और पढ़ने का. तो उसका साल खराब नहीं होगा. एक साथ के आधार पर सर्टिफिकेट मिलेगा और दो साल पढ़ने पर डिप्लोमा मिलेगा, कोर्स पूरा करने पर डिग्री मिलेगी. इस तरह की व्यवस्था होगी. और कहीं और भी एडमिशन लेने के लिए ये रिकॉर्ड कंसीडर किया जाएगा. इसे सरकार की पॉलिसी में क्रेडिट ट्रांसपर कहा गया है. आपका कोर्स पूरा नहीं किया लेकिन जितना किया उसका क्रेडिट आपको मिल जाएगा.

#ग्रेजुएशन
अभी बीए, बीएससी जैसे ग्रेजुएशन कोर्स तीन साल के होते हैं. अब नई वाली पॉलिसी में तो तरह के विकल्प होंगे. जो नौकरी के लिहाज से पढ़ रहे हैं, उनके लिए 3 साल का ग्रेजुएशन. और जो रिसर्च में जाना चाहते हैं, उनके लिए 4 साल का ग्रेजुएशन, फिर एक साल पोस्ट ग्रेजुएशन और 4 साल का पीएचडी. एमफिल की जरूरत भी नहीं रहेगी. एम फिल का कोर्स भी खत्म कर दिया गया है.

#मल्टी डिसिप्लिनरी एजुकेशन होगी
यानी कि कोई स्ट्रीम नहीं होगी. कोई भी मनचाहे सब्जेक्ट चुन सकता है. यानी अगर कोई फिजिक्स में ग्रेजुएशन कर रहा है और उसकी म्यूजिक में रुचि है, तो म्यूजिक भी साथ में पढ़ सकता है. आर्ट्स और साइंस वाला मामला अलग अलग नहीं रखा जाएगा. हालांकि इसमें मेजर और माइनर सब्जेक्ट की व्यवस्था होगी.
# कॉलेजों को ग्रेडेड ऑटोनॉमी होगी. अभी एक यूनिवर्सिटी से एफिलिएटेड कई कॉलेज होते हैं, जिनकी परीक्षाएं यूनिवर्सिटी कराती हैं. अब कॉलेज को भी स्वायत्ता दी जा सकेगी.
# उच्च शिक्षा के लिए सिंगल रेग्युलेटर बनाया जाएगा. जैसे अभी यूजीसी, एआईसीटीई जैसी कई संस्थाएं हायर एजुकेशन के लिए हैं. अब सबको मिलाकर एक ही रेग्युलेटर बना दिया जाएगा. मेडिकल और लॉ की पढ़ाई के अलावा सभी प्रकार की उच्च शिक्षा के लिए एक सिंगल रेग्युलेटर बॉडी भारतीय उच्च शिक्षा आयोग (HECI) का गठन किया जाएगा.
# नई शिक्षा नीति का लक्ष्य व्यवसायिक शिक्षा सहित उच्चतर शिक्षा में GER (सकल नामांकन अनुपात) को 26.3 प्रतिशत (2018) से बढ़ाकर 2035 तक 50 प्रतिशत करना है. जीईआर हायर एजुकेशन में नामांकन मापने का एक माध्यम है. हायर एजुकेशनल इंस्टीट्यूट्स में 3.5 करोड़ नई सीटें जोड़ी जाएंगी.

# देशभर की हर यूनिवर्सिटी के लिए शिक्षा के मानक एक समान होंगे. यानी सेंट्रल यूनिवर्सिटी हो या स्टेट यूनिवर्सिटी हो या डीम्ड यूनिवर्सिटी. सबका स्टैंडर्ड एक जैसा होगा. ऐसा नहीं होगा कि बिहार के किसी यूनिवर्सिटी में अलग तरह की पढ़ाई हो रही है और डीयू के कॉलेज में कुछ अलग पढ़ाया जा रहा है. और कोई प्राइवेट कॉलेज भी कितनी अधिकतम फीस ले सकता है, इसके लिए फी कैप तय होगी.
# रिसर्च प्रोजेक्ट्स की फंडिंग के लिए अमेरिका की तर्ज पर नेशनल रिसर्च फाउंडेशन बनाया जाएगा, जो साइंस के अलावा आर्ट्स के विषयों में भी रिसर्च प्रोजेक्ट्स को फंड करेगा.
# आईआईटी, आईआईएम के समकक्ष बहुविषयक शिक्षा एवं अनुसंधान विश्वविद्यालय (एमईआरयू) स्थापित किए जाएंगे.
# शिक्षा में टेक्नोलॉजी के सही इस्तेमाल, शैक्षिक योजना, प्रशासन और प्रबंधन को कारगर बनाने तथा वंचित समूहों तक शिक्षा को पहुंचाने के लिए एक स्वायत्त निकाय राष्ट्रीय शैक्षिक प्रौद्योगिकी मंच (NETF) बनाया जाएगा.
# विश्व की टॉप यूनिवर्सिटीज को देश में अपने कैम्पस खोलने की अनुमति दी जाएगी.
स्कूलों में क्या बदलेगा?
ये तो हुई उच्च शिक्षा की बात. अब बात करते हैं स्कूली शिक्षा में बदलावों की बात. यानी नर्सरी से लेकर 12वीं तक.
#अभी हमारा स्कूली सिस्टम 10+2 है. यानी 10वीं तक सारे सब्जेक्ट और 11वीं में स्ट्रीम तय करनी होती है. नए सिस्टम को 5+3+3+4 बताया गया है. इसमें स्कूल के आखिर चार साल यानी 9वीं से लेकर 12वीं तक एकसमान माना गया है, जिसमें सब्जेक्ट गहराई में पढ़ाए जाएंगे, लेकिन स्ट्रीम चुनने की जरूरत नहीं होगी मल्टी स्ट्रीम पढ़ाई होगी. फिजिक्स वाला चाहे तो हिस्ट्री भी पढ़ पाएगा. या कोई एक्ट्रा करिक्यूलम एक्टिविटी, जैसे म्यूजिक या कोई गेम है, तो उसे भी एक सब्जेक्ट की तरह ही शामिल कर लिया जाएगा. ऐसी रुचि वाले विषयों को एक्स्ट्रा नहीं माना जाएगा.
# सभी बच्चे 3, 5 और 8 की स्कूली परीक्षा देंगे. ग्रेड 10 और 12 के लिए बोर्ड परीक्षा जारी रखी जाएंगी, लेकिन इन्हें नया स्वरूप दिया जाएगा. एक नया राष्ट्रीय आकलन केंद्र ‘परख’ स्थापित किया जाएगा.

# 3 से 6 साल के बच्चों को अलग पाठ्यक्रम तय होगा, जिसमें उन्हें खेल के तरीखों से सिखाया जाएगा. इसके लिए टीचर्स की भी अलग ट्रेनिंग होगी.
# कक्षा एक से तीन तक के बच्चों को यानी 6 से 9 साल के बच्चों को लिखना पढ़ना आ जाए, इस पर खास ज़ोर दिया जाएगा. इसके लिए नेशनल मिशन शुरू किया जाएगा.
# कक्षा 6 से ही बच्चों को वोकेशनल कोर्स पढ़ाए जाएंगे, यानी जिसमें बच्चे कोई स्किल सीख पाए. बाकायदा बच्चों की इंटर्नशिप भी होगी, जिसमें वो किसी कारपेंटर के यहां हो सकती है या लॉन्ड्री की हो सकती है. इसके अलावा छठी क्लास से ही बच्चों की प्रोजेक्ट बेस्ड लर्निंग होगी. कोडिंग सिखाई जाएगी.
# स्कूलों के सिलेबस में बदलाव किया जाएगा. नए सिरे से पाठ्यक्रम तैयार किए जाएंगे और वो पूरे देश में एक जैसे होंगे. जोर इस पर दिया जाएगा कि कम से कम पांचवीं क्लास तक बच्चों को उनकी मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा में पढ़ाया जा सके. किसी भी विद्यार्थी पर कोई भी भाषा नहीं थोपी जाएगी. भारतीय पारंपरिक भाषाएं और साहित्य भी विकल्प के रूप में उपलब्ध होंगे. स्कूल में आने की उम्र से पहले भी बच्चों को क्या सिखाया जाए, ये भी पैरेंट्स को बताया जाएगा.

# प्री-स्कूल से माध्यमिक स्तर तक सबके लिए एकसमान पहुंच सुनिश्चित करने पर जोर दिया जाएगा. स्कूल छोड़ चुके बच्चों को फिर से मुख्य धारा में शामिल करने के लिए स्कूल के इन्फ्रॉस्ट्रक्चर का विकास किया जाएगा. साथ ही नए शिक्षा केंद्रों की स्थापना की जाएगी. नई शिक्षा नीति 2020 के तहत स्कूल से दूर रह रहे लगभग 2 करोड़ बच्चों को मुख्य धारा में वापस लाने का लक्ष्य है.
# बोर्ड की परीक्षाओं का अहमियत घटाने की बात है. साल में दो बार बोर्ड की परीक्षाएं कराई जा सकती हैं. बोर्ड की परीक्षाओं में ऑब्जेक्टिव टाइप क्वेशन पेपर भी हो सकते हैं.
# बच्चों के रिपोर्ट कार्ड में मूल्यांकन सिर्फ टीचर ही नहीं लिख पाएंगे. एक कॉलम में बच्चा खुद मूल्यांकन करेगा और एक में उसके सहपाठी मूल्यांकन करेंगे.
# स्कूल के बाद कॉलेज में दाखिले के लिए एक कॉमन इंट्रेस एक्जाम हो, इसके लिए नेशनल एसेसमेंट सेंटर बनाए जाने की भी बात है.
# स्कूल से बच्चा निकलेगा, तो हर बच्चे के पास एक वोकेशनल स्किल होगा.
# एनसीईआरटी की सलाह से, एनसीटीई टीचर्स ट्रेनिंग के लिए एक नया सिलेबस NCFTE 2021 तैयार करेगा. 2030 तक, शिक्षण कार्य करने के लिए कम से कम योग्यता 4 वर्षीय इंटीग्रेटेड बीएड डिग्री हो जाएगी.

# शिक्षकों को प्रभावी और पारदर्शी प्रक्रिया के जरिए भर्ती किया जाएगा. प्रमोशन योग्यता आधारित होगी. राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद द्वारा शिक्षकों के लिए राष्ट्रीय प्रोफेशनल मानक (एनपीएसटी) 2022 तक विकसित किया जाएगा.
# इस नीति के जरिए 2030 तक 100% युवा और प्रौढ़ साक्षरता के लक्ष्य को प्राप्त करना है.

स्कूली शिक्षा में एक और अहम बदलाव के रूप में ‘मातृभाषा’ को शामिल किया गया है, जिस पर खासा विवाद हो रहा है। नई शिक्षा नीति के अनुसार अब बच्चे पहली से पांचवी तक की कक्षा या संभवतः आठवीं तक की कक्षा अपनी मातृभाषा के माध्यम में ही ग्रहण करेंगे। इसके अलावा यह भी कहा गया है कि अगर आगे की कक्षाओं में भी इसे जारी रखा जाता है तो यह और बेहतर होगा। शिक्षा मंत्रालय का कहना है कि बच्चा अपनी भाषा में चीज़ों को बेहतर ढंग से समझता है, इसलिए शुरूआती शिक्षा मातृभाषा माध्यम में ही होना चाहिए।
लगभग हर शिक्षा नीति में प्राथमिक शिक्षा के लिए मातृभाषा के माध्यम की बात को कहा गया है कि लेकिन कभी इसे पूर्ण रूप से लागू नहीं किया गया। यह एक शोधपरक सत्य है कि बच्चा अपनी भाषा में ही सबसे अधिक सीख-समझ सकता है और ऐसा होना भी चाहिए। मातृभाषा के संबंध में कई लोग सवाल उठा रहे हैं कि क्या जब बच्चा प्राथमिक कक्षाओं को पास कर आगे बढ़ेगा और उन्हें आगे की कक्षाओं में हिंदी या अंग्रेजी माध्यम में विषयों को पढ़ाया जाने लगेगा, तब वे उसे सही ढंग से समझ पाएंगे या उच्च कक्षाओं में वे अंग्रेजी माध्यम के छात्रों से प्रतियोगिता कर पाएंगे? इसके अलावा एक सवाल यह भी उठता है कि क्या स्थानीय या मातृभाषा माध्यम में पर्याप्त और गुणवत्तापूर्ण शिक्षण सामग्री उपलब्ध होंगे।

जो छात्र ग्रेजुएशन के बाद नौकरी करना चाहता है, वह सिर्फ तीन साल की डिग्री ले सकता है। वहीं उच्च शिक्षा और शोध की इच्छा रखने वाले छात्र चौथे साल का कोर्स करेंगे। इसके साथ ही अब तक तीन साल का होने वाला ग्रेजुएशन अब चार साल का हो जाएगा। वहीं एमए अब सिर्फ एक साल का होगा, जबकि रिसर्च करने वाले दो साल की एम.फिल. का कोर्स ना कर सीधे पीएचडी कर सकेंगे।

हालांकि अभी भी एम.फिल. का कोर्स केंद्रीय विश्वविद्यालयों में है, जबकि अधिकतर राज्य विश्वविद्यालयों में छात्र एम.ए. के बाद प्रतियोगी परीक्षा देकर सीधे पीएचडी में प्रवेश करते हैं। वहीं कई केंद्रीय विश्वविद्यालयों में भी छात्र नेट निकालने के बाद संबंधित योग्यता होने पर सीधे पीएचडी में प्रवेश कर जाते हैं।
एम.फिल. और पीएच़डी का कोर्स वर्क लगभग एक समान है, तो फिर दो साल एमफिल के लिए अतिरिक्त क्यों खर्च करना। एम.फिल. की डिग्री की अलग से कोई मान्यता भी नहीं रहती जब तक छात्र पीएच़डी नहीं कर लें। इसलिए यह सरकार का बेहतर कदम है, इससे समय, संसाधन और पैसे तीनों की बचत होगी।
एम.फिल. कोर्स की अपनी उपयोगिता है और इसे नकारा नहीं जा सकता। सरकार इसे खत्म कर अमेरिकी शिक्षा पद्धति की तरफ बढ़ रही है, जहां पर शिक्षा एक कमोडिटी और व्यवसाय है| अमेरिकी सिस्टम में पीएचडी कम से कम 7 साल का होता है क्योंकि वहां 4 साल के ग्रेजुएशन के बाद सीधे पीएचडी में प्रवेश ले सकते हैं। भारत भी उसी तरफ बढ़ रहा है, ग्रेजुएशन चार साल का कर दिया जा रहा है, वहीं एमए को एक साल का कर उसे वैकल्पिक बना दिया जा रहा है। जबकि एमफिल को एकदम खत्म कर सीधे पीएचडी की बात की जा रही है। इससे शोध की गुणवत्ता पर असर पड़ेगा क्योंकि पहले मास्टर्स और फिर एमफिल से लोग शोध के लिए अपने आप को पूरी तरह से तैयार करते हैं।” “एक तरफ जहां ग्रेजुएशन में सरकार मल्टी एंट्री-एग्जिट की बात कर रही, वहीं पीएचडी के लिए लंबा प्रोसेस बनाने जा रही है। भारतीय परिस्थितियों में किसी भी छात्र के लिए सात साल का पीएचडी करना संभव नहीं होगा। यह असल रूप में समय और संसाधन की बर्बादी होगी।” यही वजह है कि यूरोप के विश्वविद्यालयों ने भी अमेरिकी पद्धति को नहीं अपनाया है।
नई शिक्षा नीति मे मल्टीपल डिस्प्लिनरी एजुकेशन की बात कही गई है। इसका मतलब यह है कि कोई भी छात्र विज्ञान के साथ-साथ कला और सामाजिक विज्ञान के विषयों को भी दसवीं-बारहवीं बोर्ड और ग्रेजुएशन में चुन सकता है। इसमें कोई एक स्ट्रीम मेजर और दूसरा माइनर होगा। कई छात्र ऐसे होते हैं जो विज्ञान के विषयों में रूचि के साथ-साथ संगीत या कला भी पढ़ना चाहते हैं। उनके लिए यह काफी फायदेमंद होगा। इसके अलावा विभिन्न शिक्षण संस्थान भी मल्टी डिस्पिलनरी होंगे इसका अर्थ यह है कि आईआईटी और आईआईएम में इंजीनियरिंग और मैनेजमेंट के अलावा अन्य विषयों को भी पढ़ाया जा सकेगा। हालांकि इसकी शुरूआत पहले से ही हो चुकी है। क्या जिन स्कूलों या कॉलेजों में पर्याप्त संसाधन एवं शिक्षक भी नहीं हैं, वहां अब म्यूजिक के टीचर और वोकेशनल कोर्स और ऐसी बाकी बातें लागू हो पाएंगी?

नई शिक्षा नीति में उच्च शिक्षा के तहत ग्रेडेड अटॉनोमी की भी बात कही गई है, जिसमें विश्वविद्यालयों के ऊपर से बोझ को कम किया जाएगा और कॉलेज को भी अकादमिक, प्रशासनिक और आर्थिक स्वायत्तता दी जाएगी। हालांकि ग्रेडेड अटॉनोमी का भी कई शिक्षक और अकादमिक जगत के विशेषज्ञ विरोध कर रहे हैं। दरअसल इस ग्रेडेड अटॉनोमी के तहत नई शिक्षा नीति में प्रत्येक उच्च शिक्षण संस्थान में एक प्रशासनिक ईकाई ‘बोर्ड ऑफ गवर्नर’ की बात की गई है, जिसके अन्तर्गत सभी अकादमिक, प्रशासनिक और आर्थिक शक्तियां आएंगी।

दिल्ली विश्वविद्यालय और जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के शिक्षक संघों ने इस बोर्ड ऑफ गवर्नर सिस्टम का विरोध किया है। उनका कहना है कि सरकार स्वायत्तता (अटॉनोमी) के नाम पर बोर्ड ऑफ गवर्नर के द्वारा उच्च शिक्षण संस्थानों पर अपना शिकंजा कसना चाहती है। सुनने में स्वायत्तता शब्द बहुत अच्छा लगता है लेकिन इसके पीछे सरकार की गलत मंशा है, जिसे अभी बहुत कम लोग समझ पा रहे हैं। सरकार बोर्ड ऑफ गवर्नर के जरिये उच्च शिक्षण संस्थानों में फीस के निर्धारण, अध्यापकों की वेतन और नियुक्तियों, पाठ्यक्रमों और अन्य अकादमिक कार्यक्रमों में अपना नियंत्रण चाहती है, जो कि स्वायत्तता के नाम पर छलावा और धोखा है।” हालांकि नई शिक्षा नीति में कहा गया है कि सरकार उच्च शिक्षा पर अधिक से अधिक खर्च करेगी, ताकि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा को बढ़ावा दिया जा सके। इसके लिए सरकार ने जीडीपी का 6 प्रतिशत शिक्षा पर खर्च करने की बात नई शिक्षा नीति में कही है। इसके अलावा फीस का निर्धारण और उस पर कैप (सीमा) लगाने की भी बात एनईपी में है।

नई शिक्षा नीति की मोटी-मोटी बातें ये ही हैं. अब ये तो बहुत आदर्श स्थिति लगती है, लेकिन हमारे सरकारी स्कूलों की हालत तो हम जानते हैं. खुद सरकार के आंकड़े कहते हैं कि लगभग हर प्रदेश में स्कूलों में शिक्षकों की कमी है या फिर कहीं-कहीं तो स्कूल का भवन तक नहीं है. इसमें सुधार के लिए सरकार ने शिक्षा पर खर्च बढ़ाने का भी ऐलान किया है. अब जीडीपी का 6 फीसदी शिक्षा पर खर्च होगा, जो कि अभी 4.3 फीसदी के आसपास है.
अभी सिर्फ नई शिक्षा नीति का ड्राफ्ट को मंजूरी मिली है, अभी लागू होना बाकी है. उसके बाद भी कई इम्तिहानों से गुजरना होता है. मसलन क्या ये नई शिक्षा नीति की बातें शहरों से दूर गांव-देहात के उन बच्चों तक भी पहुंच पाएंगी?

नई शिक्षा नीति में बहुत सारी बातें स्पष्ट नहीं है। बदलावों की लेकर जो घोषणाएं हुई हैं, वो नई नहीं हैं। माध्यमिक शिक्षा में 5+3+3+4 पैटर्न लागू करने की बात कही गई है। यानी माध्यमिक शिक्षा अब 12 साल की बजाए 14 साल की होगी। अब सवाल यह है कि इसका विभाजन कैसे होगा? उसपर कहा जा रहा है कि कुछ कक्षाओं का सिलेबस कम करेंगे। लेकिन, ये सारी बातों तो पहली भी कही जा चुकी हैं। कई शिक्षाविद पहले भी बस्ते का वजन कम करने की घोषणा कर चुके हैं। समस्या सिर्फ कुरिकुलम कम करने या स्कूल की अवधि बढ़ाने तक ही सीमित नहीं है। समस्या है कि जब तक आप स्कूली शिक्षक का तिरस्कार करते हुए कम तनख्वाह देंगे। शिक्षक मित्र बनाकर बेरोजगारी भत्ते के बराबर मानदेय देंगे, तो वो कैसी इतनी मेहनत करेगा, जिससे इन नीतियों को अमली जामा पहनाया जा सके? भाषा को लेकर की गई घोषणाओं में भी अधिकतर बातें अस्पष्ट हैं।