*अनछुए हैं इतिहास के कई पन्ने : डॉ. रेणु सिंह*
पांडुलिपियों में हमारी सभ्यता -संस्कृति, साहित्य, दर्शन एवं इतिहास की बातें भरी पड़ी हैं। लेकिन हम अभी तक उसका सम्यक् अध्ययन एवं विश्लेषण नहीं कर सके हैं। यही कारण है कि हमारे इतिहास के कई पन्ने आज अनछुए हैं। उन अनछुए पन्नों को पढ़ने-समझने की जरूरत है।
यह बात रमेश झा महिला महाविद्यालय, सहरसा की पूर्व प्रधानाचार्या डॉ. रेणु सिंह ने कही। वे गुरुवार को तीस दिवसीय उच्चस्तरीय राष्ट्रीय कार्यशाला में व्याख्यान दे रहे थे। संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार के अंतर्गत संचालित इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र की राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन योजना के तहत यह कार्यशाला केंद्रीय पुस्तकालय, भूपेंद्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय, मधेपुरा में आयोजित हो रही है।
*हम अभी की तथ्यों से अनभिज्ञ हैं*
उन्होंने बताया कि हमारी कई प्राचीन पांडुलिपियों का अभी तक आधुनिक भाषाओं में लेखन एवं संपादन नहीं हो सका है। ऐसे में हम अभी की तथ्यों से अनभिज्ञ हैं। अतः प्राचीन पांडुलिपियों एवं शिलालेखों को केंद्र में रखकर अध्ययन एवं शोध को बढ़ावा देने की जरूरत है।
*लिपियों का ज्ञान होना जरूरी*
उन्होंने बताया कि प्राचीन पांडुलिपियों के आध्ययन के लिए हमें तत्कालीन लिपियों का ज्ञान होना जरूरी है। हमारी ज्ञात लिपियों में ब्राह्मी लिपि सबसे प्राचीन है। इस लिपि में तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व के मौर्य साम्राज्य से संबंधित शिलालेख मिले हैं। लेकिन इस लिपि का काल इससे भी पहले माना गया है।
*प्राचीन लिपियों के माध्यम से हम अपनी सभ्यता-संस्कृति को जान सकते हैं*
इस अवसर पर सीसीडीसी डॉ. इम्तियाज अंजुम ने कहा कि प्राचीन लिपियों के माध्यम से हम अपनी सभ्यता-संस्कृति एवं इतिहास को जान सकते हैं। लिपियों की जानकारी नहीं होने के कारण हम अपनी समृद्ध विरासत से भी अनभिज्ञ रहते हैं। हम अपनी सिंधु घाटी सभ्यता की लिपियों को आज तक नहीं पढ़ पाए हैं।
उन्होंने कहा कि भारत में लिपियों के ज्ञान के प्रति जागरूकता का अभाव है। यही कारण है कि हमारी कई लिपियों को हमने नहीं, बल्कि यूरोपीय लोगों ने पढ़ा।
*भाषाओं एवं लिपियों को बचाने के लिए आगे आएं युवा*
क्रीड़ा एवं सांस्कृतिक परिषद् के सचिव डॉ. मो. अबुल फजल ने कहा कि भाषाएं संवाद का माध्यम हैं और मानव सभ्यता-संस्कृति के विकास में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका रही हैं। लेकिन दुख की बात है कि आज दुनिया की की भाषाएं मृतप्राय हो रही हैं। अतः युवाओं को भाषाओं एवं लिपियों को बचाने के लिए आगे आने की जरूरत है।
उन्होंने प्रतिभागियों से अपील की कि वे कोई-न-कोई एक नई लिपि सीखें और प्राचीन पांडुलिपियों का अध्ययन कर समाज एवं राष्ट्र को कुछ नया ज्ञान देने की कोशिश करें।
कार्यक्रम के अंत में विशेषज्ञ वक्ता डॉ. रेणु सिंह का आयोजन समिति की ओर से अंगवस्त्रम्, पुष्पगुच्छ एवं स्मृतिचिह्न देकर सम्मान किया गया।
इस अवसर पर केंद्रीय पुस्तकालय के प्रोफेसर इंचार्ज डॉ. अशोक कुमार, उप कुलसचिव (अकादमिक) डॉ. सुधांशु शेखर, पृथ्वीराज यदुवंशी, सिड्डु कुमार, राधेश्याम सिंह, डॉ. राजीव रंजन, नीरज कुमार सिंह, त्रिलोकनाथ झा, ईश्वरचंद सागर, बालकृष्ण कुमार सिंह, सौरभ कुमार चौहान, श्वेता कुमारी, इशानी, प्रियंका, निधि, कपिलदेव यादव, अरविंद विश्वास, अमोल यादव, रश्मि कुमारी, ब्यूटी कुमारी, मधु कुमारी, खुशबू, डेजी, लूसी कुमारी, रुचि कुमारी, स्नेहा कुमारी आदि उपस्थित थे।