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NMM यदि सर्वे हो, तो एक करोड़ तक पहुंच सकती है नागरी लिपि में पांडुलिपियों की संख्या : डॉ. उत्तम सिंह

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*नागरी लिपि मेंसं युक्ताक्षरों का काफी महत्व : डॉ. उत्तम सिंह*

*यदि सर्वे हो, तो एक करोड़ तक पहुंच सकती है नागरी लिपि में पांडुलिपियों की संख्या : डॉ. उत्तम सिंह*

नागरी लिपि का विकास भी अन्य लिपियों की ही तरह ब्राह्मी लिपि से हुआ है। इस लिपि में संयुक्ताक्षरों का काफी महत्व है, जो शारदा लिपि का की तरह ऊपर से नीचे की ओर लिखे जाते थे।

यह बात केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, अगरतला परिसर, अगरतला (त्रिपुरा) में असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. उत्तम सिंह ने कही। वे बुधवार को तीस दिवसीय उच्चस्तरीय राष्ट्रीय कार्यशाला में व्याख्यान दे रहे थे। संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार के अंतर्गत संचालित इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र की राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन योजना के तहत यह कार्यशाला केंद्रीय पुस्तकालय, भूपेंद्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय, मधेपुरा में आयोजित हो रही है।


उन्होंने बताया कि प्राचीन काल में सीमित लेखन सामग्री एवं सीमित संशाधनों के कारण नागरी लिपि में संयुक्ताक्षरों का अधिक प्रयोग किया जाता था। इससे कम जगह पर और कम समय में अधिकाधिक पाठ लिखे जा सकते थे।

*नागरी लिपि में लगभग पचास लाख से अधिक पांडुलिपियां*
उन्होंने बताया कि अब यक प्राप्त जानकारी के अनुसार नागरी लिपि में लगभग पचास लाख से अधिक पांडुलिपियां हैं। यदि व्यवस्थित ढंग से सर्वे हो, तो पांडुलिपियों की संख्या एक करोड़ तक पहुंच सकती है। अतः पांडुलिपियों की खोज के लिए बड़े पैमाने पर व्यवस्थित ढंग से सर्वे एवं शोध की जरूरत है।

*पांडुलिपियों के प्रकाशन से सामने आएंगे नए तथ्य*

उन्होंने बताया कि नागरी लिपि की अधिकांश पांडुलिपियां आज भी अप्रकाशित हैं। भविष्य में इन ग्रंथों के प्रकाशित होने से नए तथ्य सामने आएंगे। इससे हमारे समाज एवं राष्ट्र और संपूर्ण मानवता को नई दिशा मिल सकेगी।

*पांडुलिपियों में हैं ऐतिहासिक तथ्य*
उन्होंने बताया कि नागरी लिपि में निबद्ध पांडुलिपियों की पुष्पिकाओं में ऐतिहासिक तथ्य प्राप्त होते हैं। इनके आधार पर तत्कालीन परिस्थितियों की जानकारी प्राप्त होती है। इसमें आयुर्वेद के भी कई महत्वपूर्ण ग्रन्थ विद्यमान हैं।

*नागरी में लिखने का हो रहा है अभ्यास*
आयोजन सचिव डॉ. सुधांशु शेखर ने बताया कि इस कार्यशाला में नागरी में लिखने का अभ्यास भी कराया जा रहा है। साथ ही नाड़ी परीक्षा, औषध रोग निदान एवं बोपदेव कृत शत श्लोकी जैसे महत्वपूर्ण ग्रंथों की पांडुलिपियों का अध्ययन एवं संपादन कार्य किया जा रहा है।

इस अवसर पर केंद्रीय पुस्तकालय के प्रोफेसर इंचार्ज डॉ. अशोक कुमार, सीएम साइंस कालेज, मधेपुरा में असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. संजय कुमार परमार, सिड्डु कुमार, शोधार्थी सारंग तनय, राधेश्याम सिंह, डॉ. राजीव रंजन, नीरज कुमार सिंह, जयप्रकाश भारती, त्रिलोकनाथ झा, ईश्वरचंद सागर, रवींद्र कुमार, बालकृष्ण कुमार सिंह, सौरभ कुमार चौहान, कपिलदेव यादव, अरविंद विश्वास, अमोल यादव,‌ रश्मि कुमारी, ब्यूटी कुमारी, मधु कुमारी, श्वेता कुमारी, इशानी, प्रियंका, निधि, खुशबू, डेजी, लूसी कुमारी, रुचि कुमारी, स्नेहा कुमारी आदि उपस्थित थे।

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बिहार के लाल कमलेश कमल आईटीबीपी में पदोन्नत, हिंदी के क्षेत्र में भी राष्ट्रीय पहचान अर्धसैनिक बल भारत -तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) में कार्यरत बिहार के कमलेश कमल को सेकंड-इन-कमांड पद पर पदोन्नति मिली है। अभी वे आईटीबीपी के राष्ट्रीय जनसंपर्क अधिकारी हैं। साथ ही ITBP प्रकाशन विभाग की भी जिम्मेदारी है। पूर्णिया के सरसी गांव निवासी कमलेश कमल हिंदी भाषा-विज्ञान और व्याकरण के प्रतिष्ठित विद्वान हैं। उनके पिता श्री लंबोदर झा, राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित शिक्षक हैं और उनकी धर्मपत्नी दीप्ति झा केंद्रीय विद्यालय में हिंदी की शिक्षिका हैं। कमलेश कमल को मुख्यतः हिंदी भाषा -विज्ञान, व्याकरण और साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिए देश भर में जाना जाता है। वे भारतीय शिक्षा बोर्ड के भी भाषा सलाहकार हैं। हिंदी के विभिन्न शब्दकोशों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके हैं। उनकी पुस्तकों ‘भाषा संशय-शोधन’, ‘शब्द-संधान’ और ‘ऑपरेशन बस्तर: प्रेम और जंग’ ने राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति अर्जित की है। गृह मंत्रालय ने ‘भाषा संशय-शोधन’ को अपने अधीनस्थ कार्यालयों में उपयोग के लिए अनुशंसित किया है। उनकी अद्यतन कृति शब्द-संधान को भी देशभर के हिंदी प्रेमियों का भरपूर प्यार मिल रहा है। यूपीएससी 2007 बैच के अधिकारी कमलेश कमल की साहित्यिक एवं भाषाई विशेषज्ञता को देखते हुए टायकून इंटरनेशनल ने उन्हें देश के 25 चर्चित ब्यूरोक्रेट्स में शामिल किया था। वे दैनिक जागरण में ‘भाषा की पाठशाला’ लोकप्रिय स्तंभ लिखते हैं। बीते 15 वर्षों से शब्दों की व्युत्पत्ति एवं शुद्ध-प्रयोग पर शोधपूर्ण लेखन कर रहे हैं। सम्मान एवं योगदान : गोस्वामी तुलसीदास सम्मान (2023) विष्णु प्रभाकर राष्ट्रीय साहित्य सम्मान (2023) 2000 से अधिक आलेख, कविताएँ, कहानियाँ, संपादकीय, समीक्षाएँ प्रकाशित देशभर के विश्वविद्यालयों में ‘भाषा संवाद: कमलेश कमल के साथ’ कार्यक्रम का संचालन यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए हिंदी एवं निबंध की निःशुल्क कक्षाओं का संचालन उनका फेसबुक पेज ‘कमल की कलम’ हर महीने 6-7 लाख पाठकों द्वारा पढ़ा जाता है, जिससे वे भाषा और साहित्य के प्रति जागरूकता बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं। बिहार के लिए गर्व का विषय : आईटीबीपी में उनकी इस उपलब्धि और हिंदी के प्रति उनके योगदान पर पूर्णिया सहित बिहारवासियों में हर्ष का माहौल है। उनकी इस सफलता ने यह साबित कर दिया है कि बिहार की प्रतिभाएँ राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी छाप छोड़ रही हैं। वरिष्ठ पत्रकार स्वयं प्रकाश के फेसबुक वॉल से साभार।

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