NMM इतिहास को जानने के लिए लिपि का ज्ञान आवश्यक। भाषा का अस्तित्व बचाने के लिए लिपि का संरक्षण जरूरी

इतिहास को जानने के लिए लिपि का ज्ञान आवश्यक

*भाषा का अस्तित्व बचाने के लिए लिपि का संरक्षण जरूरी*

लिपि या ‘स्क्रिप्ट’ का शाब्दिक अर्थ लिखित या चित्रित करना है। ध्वनियों को लिखने के लिए जिन चिह्नों का प्रयोग किया जाता है, वही लिपि कहलाती है। यह ऐसे प्रतीक चिह्नों का संयोजन है, जिनके द्वारा श्रव्य भाषा को दृष्टिगोचर बनाया जाता है।

यह बात विशेषज्ञ वक्ता हर्ष रंजन कुमार (पटना) ने कही।वे शनिवार को ‘पांडुलिपि विज्ञान एवं लिपि विज्ञान’ पर आयोजित तीस दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला के चौथे दिन अपना व्याख्यान दे रहे थे। यह कार्यशाला राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र, संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार, नई दिल्ली के सौजन्य से केन्द्रीय पुस्तकालय, बीएनएमयू, मधेपुरा में आयोजित हो रही है।

उन्होंने बताया कि मुंह से बोले गए शब्द या हाव-भावों से व्यक्त किए गए विचार चिरस्थाई नहीं रहते। सुनी या कही हुई बात केवल उसी समय और उसी स्थान पर उपयोगी होती है। किंतु लिपिबद्ध कथन या विचार समय एवं स्थान की सीमाओं को लांघ सकते हैं। अतः बोली एवं सुनी गई भाषा को स्थाई रूप देने के लिए उसे लिपिबद्ध करना आवश्यक है।

उन्होंने बताया कि लिखित अभिलेखों के आधार पर हम प्राचीन इतिहास एवं सभ्यता- संस्कृति की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। हम अपने प्राचीन इतिहास और सभ्यता-संस्कृति के बारे में उतना ही जानते हैं, जितना लिखित रूप में उपलब्ध है। इस तरह लिपियों का संरक्षण सभ्यताओं के संरक्षण के लिए भी आवश्यक है।

उन्होंने बताया कि दुनिया में भाषा के वैविध्य के साथ उसकी लिपी की भी विविधता रही है। भाषा के भाव को भी सुरक्षित रखने और उसके अस्तित्व को बचाने के लिए लिपि का संरक्षण जरूरी है।

कुलसचिव डॉ. मिहिर कुमार ठाकुर ने सभी प्रतिभागियों से अपील की कि वे नियमित रूप से सभी कक्षाओं में भाग लें और विशेषज्ञों के अनुभव का लाभ उठाएं।

इस अवसर पर कुलसचिव डॉ. मिहिर कुमार ठाकुर एवं विकास पदाधिकारी डॉ. ललन प्रसाद अद्री ने अतिथि को अंगवस्त्रम् एवं पुष्पगुच्छ भेंट कर सम्मानित किया।

इस अवसर पर केंद्रीय पुस्तकालय के प्रोफेसर इंचार्ज डॉ. अशोक कुमार, उप कुलसचिव अकादमिक डॉ. सुधांशु शेखर, पृथ्वीराज यदुवंशी, सिड्डु कुमार, डॉ. राजीव रंजन, बालकृष्ण कुमार सिंह, रुचि कुमारी, स्नेहा कुमारी,
मधु कुमारी, लूसी कुमारी, ब्यूटी कुमारी, त्रिलोकनाथ झा, सौरभ कुमार चौहान, अमोल यादव, कपिलदेव यादव, शंकर कुमार सिंह, अरविंद विश्वास, रश्मि कुमारी, अंजली कुमारी आदि उपस्थित थे।

*होंगे कुल एक सौ बीस व्याख्यान*
आयोजन सचिव डॉ. सुधांशु शेखर ने बताया कि कार्यशाला में नई दिल्ली, इलाहाबाद, वाराणसी, पटना, दरभंगा, भागलपुर, मोतिहारी, मधेपुरा आदि से आए विषय विशेषज्ञों के व्याख्यान होंगे। इसके अलावा प्रतिभागियों को कुछ ऐतिहासिक एवं धार्मिक स्थलों का भ्रमण भी कराया जाएगा।