ICPR स्टडी सर्किल का उद्घाटन। सांस्कृतिक स्वराज पर हुई चर्चा। सांस्कृतिक स्वराज अभी बाकि है : रमेशचन्द्र सिन्हा

*स्टडी सर्किल का उद्घाटन*

*सांस्कृतिक स्वराज पर हुई चर्चा*

*सांस्कृतिक स्वराज अभी बाकि है : रमेशचन्द्र सिन्हा*

पंद्रह अगस्त 1947 को हमारा देश अंग्रेजों की राजनीतिक गुलामी से मुक्त हुआ। हम एक स्वतंत्र राष्ट्र बने और हमने राजनीतिक स्वराज प्राप्त कर लिया। आज हम अपनी उस राजनीतिक आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं। लेकिन आज भी हम सांस्कृतिक रूप से स्वतंत्र नहीं हुए हैं। हमारा सांस्कृतिक स्वराज अभी भी हमसे कोसों दूर है।

यह बात सुप्रसिद्ध दार्शनिक एवं पटना विश्वविद्यालय, पटना में दर्शनशास्त्र विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रोफेसर डॉ. रमेशचंद्र सिन्हा ने कही।

वे शनिवार को भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय के अंतर्गत संचालित भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली की स्टडी सर्कल (अध्ययन मंडल) योजना के तहत ‘सांस्कृतिक स्वराज’ विषयक चर्चा में मुख्य वक्ता के रूप में बोल रहे थे। यह कार्यक्रम विश्वविद्यालय दर्शनशास्त्र विभाग, भूपेंद्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय, मधेपुरा की ओर से ठाकुर प्रसाद महाविद्यालय, मधेपुरा में आयोजित किया गया।

उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी और हमारे अन्य स्वतंत्रता सेनानियों ने स्वराज को समग्रता में देखा और इसके सभी आयामों को महत्वपूर्ण माना है। इनमें राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक आयाम मुख्य हैं। इन चारों आयामों को मिलाकर स्वराज की अवधारणा पूर्ण होती है।

उन्होंने कहा कि राष्ट्रवाद को हम अमूर्तता के बीच नहीं जी सकते।
आर्थिक दृष्टि या अन्य से राष्ट्रवाद से कठिनाई हो सकती है लेकिन राष्ट्रीयता में कोई कठिनाई नहीं हो सकती।
यह संकीर्ण राजनीतिक राष्ट्रवाद संकुचित राष्ट्रवाद से जिसकी समीक्षा आपने हमेशा की है। उससे ऊपर हो।
जो भी आपकी कल्पना है, उसको ध्यान में रखकर।
सांस्कृतिक राष्ट्रवाद एक उदात्त राष्ट्रवाद।

राजनीतिक राष्ट्रवाद निश्चित ही संघर्षों का कारण बनता है। लेकिन सांस्कृतिक राष्ट्रवाद राजनीति राष्ट्रवाद से भिन्न है। सांस्कृतिक राष्ट्रवाद उदात्त एवं व्यापक है। इस उदात्त राष्ट्रवाद को अपनाकर ही हम वसुधैव कुटुंबकम् एवं मानवतावाद की ओर आगे बढ़ सकते हैं। उदात्त राष्ट्रवाद हमारी आत्मा है। इसके बगैर मनुष्य का जीवन निर्थक है।

 

*भारतीय संस्कृति का आदर्श है वसुधैव कुटुंबकम् : डाॅ. रामजी सिंह*
कार्यक्रम का उद्घाटन करते हुए सुप्रसिद्ध गांधीवादी विचारक, पूर्व सांसद एवं पूर्व कुलपति प्रोफेसर डॉ. रामजी सिंह ने कहा कि संकीर्ण राष्ट्रवाद के कारण दुनिया में कई युद्ध हुए हैं और आज भी हो रहे हैं। ऐसे संकीर्ण राष्ट्रवाद से मानव का कल्याण नहीं हो सकता। इसलिए मनुष्य को राष्ट्रीयता की संकीर्ण सीमाओं में नहीं बंधना चाहिए। मनुष्य को वैश्विक आदान-प्रदान करना चाहिए।

उन्होंने कहा कि भारतीय राष्ट्रवाद संकीर्ण नहीं, बल्कि व्यापक है। इसकी कोई भौगोलिक सीमा नहीं है, बल्कि यह वसुधैव कुटुंबकम् के आदर्श पर आधारित है। इसी वैश्विक दृष्टि से भारत का कल्याण होगा और विश्व मानवता बचेगी।

उन्होंने कहा कि भारत ने
सांस्कृतिक स्वराज के विराट स्वरूप को दुनिया के सामने रखा है। हमारे देश में ऐसी राष्ट्रीयता की कल्पना की जो वैश्विकता पर आधारित है‌। हमारा स्वराज्य वह है, जिसमें कोई सीमा नहीं है।

उन्होंने कहा कि भारत ने हमेशा दुनिया को अहिंसा एवं प्रेम से जीता है। हमने कभी भी किसी दूसरे राष्ट्र को विजय करने का नहीं सोचा। हम मानते हैं कि पृथ्वी हमारी माँ है और हम सब उसकी संतान हैं। राष्ट्र को हम माँ मानते हैं और जैसे हमारे लिए हमारी माँ पूज्य है, वैसे ही अन्य लोगों की माँ भी सम्माननीय है।

मुख्य अतिथि पूर्व कुलपति प्रो. (डॉ.) ज्ञानंजय द्विवेदी ने कहा कि भारत अपनी सभ्यता-संस्कृति के कारण ही विश्वगुरु रहा है। हमें अपनी संस्कृति पहचान को‌ कभी भी नहीं छोड़ना चाहिए।

डॉ. आलोक टंडन (उत्तर प्रदेश) ने कहा कि संस्कृति एक ऐतिहासिक निर्मिति है। यह समय एवं परिस्थितियों के साथ आंतरिक एवं बाह्य प्रभावों से बराबर निर्मित एवं परिवर्तित होती रहती है। यह एक नदी समान है, जिसमें बराबर आकर धाराएँ मिलती, निकलती हैं। इस दृष्टि से भारतीय संस्कृति का रूप कई परतों से बना दिखेगा। भारतीय संस्कृति को किसी एक पुस्तक, एक काल, एक दर्शन या किसी एक व्यक्ति में समाहित नहीं किया जा सकता।

विशिष्ट अतिथि ठाकुर प्रसाद महाविद्यालय में हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. वीणा कुमारी ने कहा कि स्वराज्य की अवधारणा अत्यंत व्यापक है। यह स्वराज हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है।

सम्मानित अतिथि के. पी. कालेज, मुरलीगंज के प्रधानाचार्य डॉ. जवाहर पासवान ने कहा कि किसी भी देश को तभी स्वतंत्र माना जा सकता है, जब उस देश के सभी नागरिकों को स्वतंत्रता का एहसास हो।

कार्यक्रम की अध्यक्षता विश्वविद्यालय दर्शनशास्त्र विभागाध्यक्ष शोभाकांत कुमार और अतिथियों का स्वागत दर्शन परिषद्, बिहार की अध्यक्षा डॉ. पूनम सिंह ने की। संचालन आयोजन सचिव सह उप कुलसचिव अकादमिक डॉ. सुधांशु शेखर ने किया। धन्यवाद ज्ञापन महाविद्यालय के प्रधानाचार्य डॉ. के. पी. यादव ने की।

इसके पूर्व अतिथियों ने दीप प्रज्ज्वलित कर कार्यक्रम की शुरुआत की। अतिथियों का पुष्पगुच्छ से स्वागत किया गया। कार्यक्रम के दौरान शिक्षिका शशिप्रभा जसवाल ने देशभक्ति गीत उठो हिन्द के वीर सपूतों माँ ने तुझे पुकारा / कश्मीर क्यों माँग रहे हो हिन्दूस्तान तुम्हारा है /
आवाज़ दो हम एक हैं प्रस्तुत किया। राष्ट्रगान जन-गण-मन के सामूहिक गायन के साथ कार्यक्रम संपन्न हुआ।

कार्यक्रम के आयोजन में मनोविज्ञान विभागाध्यक्ष डॉ. शंकर कुमार मिश्र, एनसीसी पदाधिकारी ले. गुड्डू कुमार, सीएम साइंस कॉलेज के डॉ. संजय कुमार परमार, बायोटेक्नोलॉजी के लव कुमार प्रियदर्शी, शोधार्थी सारंग तनय, गौरव कुमार सिंह, सौरभ कुमार चौहान, नयन रंजन आदि ने सहयोग किया।

इस अवसर पर डॉ. श्याम रंजन सिंह, डॉ. उपेंद्र प्रसाद यादव, अशोक कुमार, रशिम दत्ता, सपना जसवाल, प्रतिभा प्रिया, हिमांशु शेखर, डेविड यादव, सुशील कुमार
रोहिणी झा, शिखर बासिनी
डॉ. नीतू सिंह, डॉ. अजीत कुमार ठाकुर, ए. जाॅन, अजय कुमार, किरण कुमारी, डॉ. बरदराज, राजदीप कुमार, बहादुर कुमार महतो,
डॉ. अमरेन्द्र कुमार, हरि नारायण, डॉ. शंभु पासवान, सर्वजीत पॉल, अभिमन्यु कुमार, आकृति रंजन, निशा कुमारी, पूजा कुमारी, मनीष कुमार, सोनू कुमार, अमन कुमार, रोशन प्रवीण, शिवराज कपूर, नीतू कुमारी, श्रुति सुमन, नेहा परवीन, रुखसाना परवीन, वंदना कुमारी, माधवी राज, शिवांगी, कशिश नाज, वेद प्रकाश कुमार आदि उपस्थित थे।

डॉ. शेखर ने बताया कि स्टडी सर्किल आईसीपीआर की एक अत्यंत ही महत्वपूर्ण योजना है। इसके तहत एक वर्ष तक प्रत्येक माह एक पूर्व निर्धारित विषय पर व्याख्यान और विचार-विमर्श होगा। शनिवार को आईसीपीआर के पूर्व अध्यक्ष डॉ. रमेशचन्द्र सिन्हा के सांस्कृतिक स्वराज विषयक व्याख्यान से इसकी शुरुआत हो रही है।

उन्होंने बताया कि स्टडी सर्किल के अंतर्गत होने वाले अन्य व्याख्यानों के विषय भी निर्धारित कर लिए गए हैं। द्वितीय व्याख्यान वेदांत दर्शन : एक विमर्श (डाॅ. राजकुमारी सिन्हा, रांची) और तृतीय व्याख्यान वेदांती समाजवाद : समसामयिक संदर्भ (डाॅ. जटाशंकर, प्रयागराज) विषय पर निर्धारित है।

डॉ. शेखर ने बताया कि आगे बौद्ध दर्शन की प्रासंगिकता (डॉ. वैद्यनाथ लाभ), वैश्वीकरण की नैतिकता (डॉ. आभा सिंह), नव वेदांत की प्रासंगिकता (स्वामी भवात्मानंद महाराज), समाज-परिवर्तन का दर्शन (डॉ. पूनम सिंह) एवं राष्ट्र-निर्माण में आधुनिक भारतीय चिंतकों का योगदान (डॉ. नरेश कुमार अम्बष्ट) विषय पर चर्चा होगी। इसके अलावा टैगौर का मानववाद (डॉ. सिराजुल इस्लाम),
भारतीय दर्शन में जीवन प्रबंधन (डाॅ. इन्दु पाण्डेय खंडूड़ी), गांधी-दर्शन की प्रासंगिकता (डॉ. विजय कुमार) एवं सर्वोदय-दर्शन की प्रासंगिकता (डॉ. विजय कुमार) विषयक व्याख्यान भी आयोजित किए जाएंगे।

*क्या है स्टडी सर्किल ?*
डॉ. शेखर ने बताया कि स्टडी सर्कल (अध्ययन मंडल) लोगों का एक छोटा समूह होता है, जो नियमित रूप से विभिन्न विषयों पर चर्चा करते हैं। कुछ वर्ष पूर्व आईसीपीआर ने स्टडी सर्किल योजना की शुरुआत की है और देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों में इसे लागू किया गया है। बिहार में सर्वप्रथम पटना विश्वविद्यालय, पटना में स्टडी सर्किल की शुरुआत हुई थी और कुछ दिनों पूर्व भूपेंद्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय, मधेपुरा में भी इसकी स्वीकृति दी गई है।