सारा कर्ज चुका देंगे

सारा कर्ज चुका देंगे

आये हैं साहब चल उनको अपना दर्द दिखा देंगे।
बोलेंगे कुछ मुहलत दे दें सारा कर्ज चुका देंगे।

कर्ज लिया है हमने सच है झूठ नहीं हम बोलेंगे
लेकिन हालत ठीक नहीं है हम अपना मुँह खोलेंगे
पिछली बार सुखाड़ सताया अबकी बारिश ले डूबी
दर्द फकत मिल जाता है यह अपनी किस्मत की खूबी
हम इतनी मिहनत करतें है आगे बढ़ जाएं जल्दी
लेकिन महँगाई पहले ही बढ़ जाती जल्दी जल्दी
साहब से मिलने में इतनी छायी है खामोशी क्यों
दोष नहीं है अपना तो फिर खुद को मानें दोषी क्यों
कायर सा छुपने से खुदको कैसे मुँह दिखलाएँगे
पूछेंगे जो भी साहब हम सच सच बात बता देंगे
बोलेंगे कुछ मोहलत दे दें सारा कर्ज चुका देंगै

आओ बेचन हम तेरी भी बात कहेंगे साहब से
सुख दुख अपनी हर सच्ची जज्बात कहेंगे साहब से
डूब गई थी फसल तुम्हारी जान रहा है कौन नहीं
मत घबड़ाओ, कुछ तो बोलो ऐसे बैठो मौन नहीं
दर्द हमारा क्या है सोचो साहब कैसे जानेंगे
बाहर के हैं, बिन जाने हमको ही दोषी मानेंगे
उम्मीदों के आगे ही यह पूरी दुनिया कायम है
लाखों गम है इस दुनिया में अपना गम बिल्कुल कम है
ज्यादा से ज्यादा क्या साहब डाँटेंगे फटकारेंगे
नत मस्तक साहब के आगे अपना शीश झुका देंगे
बोलेंगे कुछ मोहलत दे दें सारा कर्ज चुका देंगे

हाशिम काका आप इधर क्यों मुरझााए से बैठे हैं
ऐसा कौन गुनाह किया जो घबराए से बैठे हैं
कर्जे के पैसे से काका आप किए हैं ऐश नहीं
बीमारी से बचना पहले काका सोचे आप सही
जान बची है तब तो कोई कर्जा वाला बाँकी है
बीमारी से निकल गए हो रहमत आज खुदा की है
आज नहीं तो कल काका हम अपना कर्ज उतारेंगे
श्रम साधक हैं आप भला क्या ऐसे हिम्मत हारेंगे
साहब भी मानव ही हैं ना सब मिलकर समझाएँगे
आप रहे बीमार बहुत साहब को सत्य बता देंगे
बोलेंगे कुछ मोहलत दे दें, सारा कर्ज चुका देंगे

सब से कहता हूँ भाई सब घबड़ाओ तुम मत ऐसे
डरने से क्या होगा बोलो क्यों करते जैसे तैसे
छोड़ो सबके बदले हम ही बात करेंगे साहब से
दुख में हम हैं अपनी बातें साफ कहेंगे साहब से
झूठ नहीं कहते हैं साहब मिहनत पूरकस करते हैं
बाधा-विपदा कैसी भी हो हम हिम्मत से लड़ते हैं।
उपजा ज्यादा हो जाए तो मोल नहीं कुछ मिलता है
कीमत लागत से भी नीचे जाकर सब तय करता है
आखिर कुछ भी हो यह तय है मिहनतकश खुशहाल नहीं
खुश होकर त्योहार मनाएँ ऐसा अपना हाल नहीं
हम भी कपड़ा दिलवा पाएँ हर बच्चों को होली में
इतने पैसे भी कब होते हमलोगों को झोली में
लेकिन बस उम्मीद लिए यह काम नहीं हैं छोड़ रहे
बस इस बार बकस दो साहब हाथ तुम्हारे जोड़ रहे

इतने पर भी लगता है तो सुनिए साहब कहता हूँ
कर्जा है हम पर यह सच स्वीकार अभीतक करता हूँ
लेकिन उन पैसों का क्या जो नीरव मोदी ले भागा
सब के सब सोये खूब रहे चैकीदार नहीं जागा
और विजय माल्या ने इतना लूटा मौज किया कैसे
जबकि गरीबों की खातिर तो पास नहीं होते पैसे
ध्यान नहीं क्यों उन लोगों पर रहता है साहब कहिए
हम तो जी हाजिर है हरपल जब कहिए जैसे कहिए
भाग विदेशों में जा बैठूँ मन में यह अवसाद नहीं
अपने होकर हम अपनों को कर सकते बरबाद नहीं
हम बेघर है दोष हमारा इसमें कोई एक नहीं
सर्वविदित है अपनी सरकारों की मंशा नेक नहीं
शब्द नहीं अब शेष महाशय, और नहीं कह पाऐंगे
हमको है स्वीकार बता दें जो भी आप सजा देेंगे
या फिर थोड़ी मुहलत दे दें सारा कर्ज चुका देंगे

मनजीत सिंह किनवार

गजल

अपनी ग़ज़ल

 

हमें हाथी बताता है हमें मजबूत कहता है,
मगर उसकी अदा ऐसी कि वह कोई महावत हो।

नहीं ज्यादा हमें कुछ चाहिए सरकार से भाई,
मगर उतनी मिले हमको यहां जितनी लियाकत हो।

अगर ‘मनजीत’ का कहना सही से मान लोगे तुम,
नहीं मुमकिन यहाँ घर में कभी कोई बगावत हो।

# मनजीत

परिचय
कवि नाम : डाॅ. मनजीत सिंह ‘किनवार’
वास्तविक नाम : डाॅ. मनजीत कुमार सिंह
जन्मर : 21 नवम्बर 1988
पिता : श्री शंभू भूषण सिंह
माता : श्रीमती माला सिंह
शिक्षा : एम.ए. (हिन्दी), पी-एच.डी.। स्नातक (संगीत)।
सम्प्रति : अतिथि व्याख्याता, हिन्दी विभाग, मारवाड़ी महाविद्यालय, भागलपुर।
साहित्य विधा : गद्य एवं पद्य दोनों में
पुस्तक : ‘शब्दों के साये में’ (काव्य-संग्रह)
छुटकारा (नाटिका, इसपर अंगिका लघुफिल्म बनी है)
‘अर्थ विज्ञान की दृष्टि से हिन्दी और अंगिका शब्दों का तुलनात्मक अध्ययन’ (शोधग्रंथ)
संस्थागत दायित्व : अंगिका फिल्म्स के बैनर तले निर्देशक, ‘बालमन’ पत्रिका का संपादन, रंगग्राम जनसांस्कृतिक मंच,भागलपुर में सदस्य, राष्ट्रीय कवि संगम, भागलपुर के सचिव,तुलसी साहित्य अकादमी, भोपाल मध्यप्रदेश, भागलपुर शाखा के सदस्य
सम्मान- ‘दोहाश्री’ (साहित्य साधना मंच, खटीमा, उत्तराखंड)
पता-
स्थायी : ग्राम – महिमाचक
पोस्ट – गंगटामोड़
थाना – हवेली खड़गपुर
जिला – मुंगेर
राज्य – बिहार
पिन – 811213
वर्तमान पता – मैथ्समेनिया क्लासेस, काशी मिस्त्री लेन, छोटी खंजरपुर, भागलपुर – 812001
दूरभाष – 8210784563

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