Anant Babu # शिक्षा के प्रति आजीवन समर्पित रहे थे नयागांव (खगड़िया) निवासी शिक्षाविद ब्रह्मलीन अनंत बाबू/ मारूति नंदन मिश्र

शिक्षा के प्रति आजीवन समर्पित रहे थे नयागांव (खगड़िया) निवासी शिक्षाविद ब्रह्मलीन अनंत बाबू

बिहार राज्यान्तर्गत खगड़िया जिले के परबत्ता प्रखंड अंर्तगत नयागांव के महान शिक्षाविद, गणित, भूगोल व संस्कृत के विद्वान शिक्षक कई उच्च विद्यालयों के प्रधानाध्यापक पंडित अनंत मिश्र जी का जन्म 9 नवंबर, 1916 ई. (गुरुवार, कार्तिक पूर्णिमा) को हुआ था। इनके पिताजी पंडित नंदकिशोर मिश्र पुजारी और किसान थे । इनकी माता इन्हें तीन साल की उम्र में छोड़कर दुनिया से चली गई थी, इस कारण इन्हें बचपन में कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।


आप 7वीं तक की पढ़ाई मध्य विद्यालय नयागांव से करने के बाद उच्च शिक्षा के लिये 12 वर्ष की आयु में गांव छोड़कर भागलपुर चले गये। टीएनबी कॉलेजिएट स्कूल, भागलपुर से वर्ष 1934 में मैट्रिक परीक्षा में टॉपर रहे और छात्रवृति भी प्राप्त किये थे। गणित और भूगोल विषयों में 100 में से 100 अंक हासिल किये थे । आगे इन्होंने बर्ष 1938 में टी. एन. बी. कॉलेज , भागलपुर से स्नातक डिग्री (गणित) की पढ़ाई पूरी की । पढ़ाई के साथ साथ छात्रों को पढ़ाते भी थे। 1939 ईस्वी में पटना हाई कोर्ट में ‘कानून गो’ के पद पर नियुक्त किये। इस विभाग में इनको मन नहीं लगा। इसलिए वर्ष 1943 में बी एड की पढ़ाई पटना विश्वविद्यालय से पूरा किये। इनकी धर्मपत्नी संजनी देवी एक धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थी।

बर्ष 1940 में श्रीकृष्ण उच्च विद्यालय, नयागांव (खगड़िया) की स्थापना हुई। इसमें इनकी अहम भूमिका रही। स्थापना के बाद इस विद्यालय में शिक्षक के पद पर नियुक्त किये।
बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री डॉ. श्रीकृष्ण सिंह जी से इनका गहरा संबंध रहा था ।

इसके बाद सन 1951 में मारवाड़ी पाठशाला, भागलपुर में गणित के शिक्षक और 1952 में जेएनकेटी हाई स्कूल, खगड़िया में शिक्षक रहे । वर्ष 1953 में इनका तबादला सार्वजनिक रमावती उच्च विद्यालय तेमथा , परबत्ता (खगड़िया) में हो गया । इस विद्यालय में प्रत्येक वर्ष तुलसीदास जी की जयंती समारोह मानते थे।इस विद्यालय में अपना बहुमूल्य समय 25 वर्ष दिये और 31 दिसंबर 1978 को सेवानिवृत्त हुये।

सेवानिवृत्ति के बाद अपने घर पर क्षेत्र के छात्र छात्राओं को पढ़ाते थे । इनके कई शिष्य देश के उच्च पदों पर अधिकारी बने। इनके परिवार के सदस्य भी इंजीनियर, डॉक्टर , प्रोफेसर, शिक्षक, उच्च अधिकारी और मिडिया जैसे प्रतिष्ठित क्षेत्रों में देश-विदेश में सेवा दे रहे हैं । आपके पाँच पुत्र और दो पुत्री है । जिसमें एक बड़े पुत्र शैलजानन्द मिश्र जी ( पूर्व महाप्रबंधक, भारत कोकिंग कोल लिमिटेड) का निधन 2005 में हो गया था।
असीम प्रतिभा के धनी अनंत बाबू 7 अक्टूबर सन 1995 को 79 वर्ष की उम्र में इहलोक छोड़ कर परलोक सिधार गये । मृत्यु के समय इनके मुख से “हे राम” निकला था।

 

आज भी शिक्षाविद के रूप में आप अमर है। शिक्षित समाज के निर्माण में इनका बहुमूल्य योगदान रहा है ।
7 अक्टूबर को इनकी पुण्यतिथि मनाई जाती हैं, जिसमें खगड़िया जिले के कई शिक्षाविद , पत्रकार और विद्वान लोग उपस्थित होकर उनके शिक्षा के क्षेत्र में योगदान के बारे में चर्चा करते है।

इंदिरानंद मिश्र (पूर्व सिविल इंजीनियर , एफसीआई, सिंदरी , झारखंड) : मेरे पिताजी अनंत बाबू एक विद्वान शिक्षक थे । इनका जीवन संघर्ष से भरा हुआ बिता । बचपन से ही पढ़ाई में इनकी रुचि रही थी। अर्थाभाव के कारण घर में जले दीपक की कालिख को कलम की स्याही के रूप में इस्तेमाल करते थे । इस तरह पढ़ाई करते हुए लगातार सफलता प्राप्त किये । आप नौकरी के बाद भी साधारण जीवन बस एक जोड़ी धोती और एक जोड़ी कुर्ते में बिताये थे ।

इनके शिष्य इनका सम्मान करते थे । एक बार सेवानिवृति के बाद पिताजी पेंशन के कार्य से पेंशन कार्यालय, पटना गये थे । वहाँ के बड़ा बाबू कार्य के लिये इनसे रिश्वत मांगने लगे । पिताजी भ्रष्टाचार के सख्त खिलाफ थे। इन्होंने रिश्वत नहीं देने का निर्णय किये। कुछ देर बाद एक सज्जन इनके पैर छूकर प्रणाम किये और बोले आपके दर्शन करके मैं धन्य हो गया। ये सज्जन कोई और नहीं बल्कि इनके शिष्य और पेंशन विभाग के अधिकारी थे । ऐसे गुरु शिष्य की प्रेम और आदर की भावना से आज के छात्रों को शिक्षा लेनी चाहिए । पिताजी को नमन मिहिर मिश्र (आयुक्त, भारत सरकार) :
दादाजी दिवंगत अनंत मिश्र जी एक विद्वान शिक्षक, नेक दिल इंसान, मार्गदर्शक, मृदुभाषी एवं एक कुशल अभिभावक रहे थे। हमलोगों के लिए दादाजी आज भी प्रेरणास्रोत है। दादाजी सभी छात्रों को अपने स्वयं के बच्चों की तरह बड़ी गंभीरता से पढ़ाते थे। उनको सादर नमन।

अखिलानंद मिश्र (पूर्व महाप्रबंधक , कोल इंडिया लिमिटेड, राँची, झारखंड) : मेरे पिताजी अनंत बाबू का सादा जीवन उच्च विचार था। वे कांग्रेस के विचार धारा को मानते थे। गांधी जी के विचारधारा से प्रभावित थे। जब गोगरी (खगड़िया) कांग्रेस आश्रम गाँधी जी आते थे।पिताजी मिलने वहाँ जाते थे। गांधी जी के कुटीर उद्योग एवं आत्मनिर्भर भारत में विश्वास करते थे। वे अपने जीवनकाल में इसका पालन किये। अपनी बाल विधवा बहन को घर ले आए और उसे आत्म निर्भर बनाने के लिए चरखा चलाना सीखाये। उसी सूत से बना खादी वस्त्र पहनने लगे। गांधी टोपी भी पहनते थे। रविवार को घर का कार्य करते हुए हमें पथ प्रदर्शन करते थे। पढाई संबंधित कार्य देते फिर अगली सप्ताह उसका मूल्यांकन करते थे। गलती हो जाने पर भी कभी डांटते या मारते नहीं थे। सभी तरह की ज्ञानवर्धक व धार्मिक पुस्तकें खरीद कर अलमारी में रखते थे। वे कहते थे कि पढाई का मन न हो तो कल्याण, रामायण, महाभारत आदि पढें। इंजीनियरिंग कॉलेज पटना में मेरा दाखिला हुआ था। उसी बैच में श्री नितीश कुमार जी (वर्तमान मुख्य मंत्री, बिहार ) का दखिला हुआ था। पिताजी ने कहा कि मेकेनिकल इंजीनियरिंग सदाबहार शाखा होता है , इसमें पढ़ाई करो । फिर मेरा नामांकन बीआईटी कॉलेज, सिंदरी में मेकेनिकल इंजीनियरिंग में करवाये ।
वे कहते थे कि जिस घर में प्रेममय वातावरण रहता है वह घर स्वर्ग के समान होता है। ऐसे परिवार में भगवान निवास करते हैं ।
उनका एक दोहा मुझे याद है-
“हरि व्यापक सवँत्र समाना।
प्रेम ते परगट होहि मैं जाना
अग जगमय सव रहित विरागी।
प्रेम ते पभु प्रगट जिमी आगी।”
मेरा शत-शत नमन पिता एवं परम आदरणीय महान् शिक्षक को।

डॉ कामख्या चरण मिश्र (प्राध्यापक, साहित्यकार, बांका) : मेरे चाचाजी अनंत बाबू छात्र जीवन से ही अपने चचेरे बड़े भाई (मेरे पिताजी) पंडित जनार्दन मिश्र ‘पंकज’ (भूतपूर्व प्राचार्य, विश्वभारती, विश्वविद्यालय शांतिनिकेतन) से मित्र रूप में रहे थे। भागलपुर में आप दोनों एक ही कमरे में रहकर पढ़ाई करते थे। एक बार 1930 में मेरे पिताजी अस्वस्थ हो गये, उस वक्त गंगा में भीषण बाढ़ आयी थी। भाई के मना करने के बावजूद अनंत बाबू गाँव जाकर बाढ़ के पानी में घर पहुँचकर परिवार के सदस्यों को सूचना दिये और घर से पैसा राशन लेकर वापस लौटे थे। (मालूम हो कि उस वक्त आवागमन का साधन नहीं था) एक बार एक अप्रैल (मूर्ख दिवस) को एक मित्र मेरे पिताजी को बोले कि आपका भाई बूढ़ानाथ मंदिर, भागलपुर के सीढ़ी से गिर कर घायल हो गया है। मेरे पिताजी दौड़कर वहाँ पहुंचे, तब उनको पता चला कि मुझे अप्रैल फूल बनाया गया है। मेरे पिताजी के साथ अनंत बाबू शांति निकेतन, बंगाल में मशहूर फिल्म अभिनेता बलराज साहनी, प्रसिद्ध उपन्यासकार डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी जी से मिले थे। मित्र के लिये ऐसा प्रेम आज के समय के लिए एक उदाहरण है।

डॉ. सूर्य प्रकाश झा (शिशु रोग विशेषज्ञ,सहरसा) : दिवंगत अनंत मिश्र जी,  मेरे नाना जी थे। मैं उनके शिष्यों में दूसरी पीढ़ी का था, मेरे स्वर्गीय चाचाजी प्रसिद्ध चिकित्सक डॉक्टर रघुनाथ झा जी उन्हीं के शिष्य थे। पढाई के लिए मैंने उन्हें कभी डाँटते नहीं देखा। मुझे अब खुद आश्चर्य होता है, कि बिना एक भी कङा शब्द कहे, किस तरह हम सबको पढाई के लिए प्रेरित करते रहे । उनके पास रहकर ,अगर पढने का मन न हो,तो आप अखबार पढ सकते हैं, दिनमान पढ सकते हैं, कल्याण पढ सकते हैं , या एक से एक धार्मिक किताबें थी, पर आप बिना पढ़े नहीं रह सकते, ये माहौल था उनके पास। पकड़ उनकी ,भूगोल, संस्कृत, गणित, अंग्रेजी पर एक समान थी। संस्कृत या अंग्रेजी में कहाँ से शब्द की उत्पत्ति हुई और किस तरह से शब्द में बदलाव हुआ वो सारा बतलाते थे, हमलोगों को उस समय उतनी बातें समझ नहीं आतीं थी। कभी कभी आध्यात्म की बातें करते थे, कितने दिन में शरीर से आत्मा गोलोक पहुँचती है किस किस लोक से गुजरती है। मैं दसवीं में था, मुझे बिल्कुल समझ नहीं आता, नाना जी क्या बोल रहे हैं ।
जब आप भूगोल पढाते थे , तो क्लास में बिना देखे पीछे लटक रहे नक़्शे पर विश्व के किसी देश पर छड़ी रख देते थे। एक बार मेरे एमडी में एडमीशन के बारे में पांडिचेरी के बारे में बात हो रही थी। वो शायद कभी वहां नहीं गये थे,पर सारी जानकारी, उसका इतिहास, वहां की महत्वपूर्ण चीजें, सब बता दिये। आप भारत के किसी भी जगह का नाम लीजिये, वहां की भाषा, संस्कृति, मिट्टी, खेती, त्यौहार इस तरह बताते थे, लगता था वहां का चप्पा चप्पा घूम चुके हो।
घमंड तो नाममात्र नहीं, चाहे चपरासी हो या शिक्षक, विद्यार्थी हो ,या अभिभावक ।
मैंने इतना सरल इंसान अपनी ज़िन्दगी में फिर नहीं देखा, ये मैं इसलिए नहीं कह रहा कि वे मेरे नाना थे। वाकई वो महान शिक्षक, महान इंसान थे।
मैट्रिक की परीक्षा थी , एक दिन मैं परीक्षा केन्द्र से निकलकर सीधे एक दोस्त के डेरे पर चला गया, वहां बातचीत करते देर हो गयी। कल फिर परीक्षा थी , और नौ बजे रात में लौटा था। अब मैं सोचता हूँ, कि मेरी इस धृष्टता की क्या सजा मिलती, अगर नानाजी के जगह कोई और होता। नानाजी सिर्फ पूछे कहाँ गए थे ?
मेरा कोटि कोटि नमन, मेरे नाना और मेरे परमादरणीय शिक्षक को।

विद्यानंद मिश्र (पूर्व प्रधानाध्यापक , मध्य विद्यालय नयागांव, खगड़िया) : बहुमुखी प्रतिभा के धनी पिताजी स्व. अनंत बाबू मेरे आदर्श रहे हैं। मुझे पिताजी से अच्छे विचार और बेहतर करने की प्रेरणा मिली। मुझे शिक्षा के क्षेत्र में कार्य करने के लिए प्रेरित किये, और मुझे इस क्षेत्र में कार्य करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। पिताजी आज भी खगड़िया जिले में शिक्षा के क्षेत्र में जाने जाते हैं ।आप हम सभी के लिए आदर्श रहे हैं। उनके दिए गए संस्कार और अच्छे विचार आज भी हमारे लिए उपयोगी और प्रेरक हैं। शिक्षा में उनके योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता है । कोटि कोटि नमन।

डॉ. शारदानंद मिश्र (गणित विभागाध्यक्ष, एम. एस.कॉलेज, भागलपुर) : पिताजी  अनंत बाबू शिक्षा को मानव व समाज का आधार मानते थे । हाई स्कूल की पढ़ाई के लिए इनको गांव छोड़कर भागलपुर जाना पड़ा था, दिन का खाना मंदिर से मिल जाता था और रात का चेचेरे भाई के साथ मिलकर बनाते थे। पिताजी दाल बनाने का कार्य अपने हिस्से लिये थे । उस समय उनके पास घड़ी नहीं था। वो दाल चूल्हे पर चढ़ाकर संस्कृत के धातु रूप, शब्द रूप और गणित के कुछ सवाल हल करके दाल उतार देते। दाल पक जाता था ।
अनंत बाबू सरल, सादगी, उच्च विचारों से ओतप्रोत वाले श्रेष्ठ व्यक्ति थे । आप राह चलते छात्रों से भी पढ़ाई पर चर्चा करते थे । किसी भी कठिन सवालों का हल क्षण भर में करते थे । महापुरुष पिताजी को नमन।

अनिल कुमार मिश्र (बिजनेस मैन , कंकड़बाग, पटना) : मेरे दादाजी , मेरे आदर्श स्व● अनंत मिश्र जी एक आदर्श प्रतिष्ठित शिक्षाविद के रूप में जाने जाते हैं । वर्ग में शिक्षक को पढ़ाते समय खुद छात्रों के साथ पीछे बैठ जाते । शिक्षकों से हुई त्रुटियों को अपने डायरी में नोट करते थे और बाद में उनको समझाते थे । इसी वजह से इनके विद्यालय का रिजल्ट प्रत्येक वर्ष बेहतर होता था।
इनके अमूल्य विचार आज भी जीवंत है। दादाजी को सादर नमन

*मारूति नंदन मिश्र ‘चंदन’ (स्वतंत्र पत्रकार, खगड़िया)*
बाबा (स्व अनंत बाबू) से जुड़ी कई अविस्मरणीय यादें है । जब मैं 4 साल का था तो बाबा मुझे गाँव के प्राथमिक विद्यालय में नामांकन के लिये ले जा रहे थे । रास्ते में रुके , उनके मुख से निकला “हे जगबंदन , मारूति नंदन” उन्होंने मुझे बोला कि आज से तुम्हारा नाम “मारूति नंदन” स्कूल में यही नाम लिखा दिये । बाबा रोज मुझे स्कूल छोड़ने जाते , उसके बाद उसी रास्ते में दूधवाले से दूध लेकर घर लौटते थे । घर पर दूर दराज से कई छात्र बाबा से पढ़ने आते थे , सभी के बीच में हमलोगों को भी पढ़ाते थे । प्रत्येक वर्ष दुर्गा पूजा में साथ में बैठाते और दुर्गा पाठ सुनाते, और पढ़ने के लिये सिखाते थे । बचपन से ही दुर्गा पाठ पढ़ने की आदत बाबा सिखाये ।
बाबा अपने साथ पैदल कोसों दूर खेत पर लेकर जाते और वहाँ भी बैठकर कुछ न कुछ शिक्षा देते रहते थे । आम के समय बगीचें में बैठते तो कई छात्र कॉपी लेकर पढ़ने आ जाते थे । बाबा को कांग्रेस कार्यालय , या विद्यालय के सांस्कृतिक कार्यक्रमों में आमंत्रित किया जाता था , आप मुझे भी साथ लेकर जाते ।
एक बार बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री श्री कृष्ण सिंह जी की जयंती समारोह नयागांव विद्यालय में आयोजित किया गया था , बाबा मुझे भी साथ लेकर गये थे । इस समारोह में राज्य के कई दिग्गज नेता , मंत्री , शिक्षक और अधिकारी उपस्थित हुए थे । बाबा ने श्री कृष्ण सिंह जी के जीवन पर प्रभावशाली भाषण दिये थे ।
बाबा धार्मिक पुस्तकें पढ़ने के अलावा रेडियो सुनते थे । रेडियो पर कुछ नई जानकारी सुनकर हमलोगों को बताते थे ।
अंतिम क्षणों में बाबा ने मुझे 20 पैसे का सिक्का आशीर्वाद के रूप में दिये थे, जिसे मैंने संभाल कर रखा । इनके निधन पर खगड़िया जिले के कई मध्य और उच्च विद्यालयों में शोक मनाया गया था ।
मैंने वर्ष 2005 में परबत्ता में बाबा की 10वीं पुण्यतिथि समारोह का आयोजन किया था ।जिसमें खगड़िया जिले के कई विद्वान शिक्षक, साहित्यकार , अधिकारी और पत्रकार उपस्थित होकर इनके जीवन पर प्रकाश डाले थे । इस कार्यक्रम से मुझे बाबा के बारें में और कई जानकारियां मिली।

राष्ट्रपति पुरुस्कार से सम्मानित शिक्षक श्री दुंबहादुर दास जी भी अपने महेशखूंट स्थित विद्यालय में बाबा की पुण्यतिथि मानते थे ।
महापुरुष, मेरे प्रथम शिक्षक दादाजी को कोटि कोटि नमन । आप मेरे दिल में सदैव जीवंत रूप में रहेंगे ।
गोस्वामी तुलसीदास जी की पंक्ति “हरि अनंत हरि कथा अनंता” चरितार्थ है ।

*मारूति नंदन मिश्र*
नयागांव, परबत्ता
जिला- खगड़िया (बिहार)

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