BNMU। पूर्ण मानव हैं श्रीकृष्ण और जीवनशास्त्र है गीता : डाॅ. रवि

पूर्ण मानव हैं श्रीकृष्ण : डाॅ. रवि
कर्मयोग का ग्रंथ है गीता : डाॅ. रवि
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गीता मात्र एक धर्मशास्त्र नहीं है। यह संपूर्ण जीवन का शास्त्र है। इसमें जीवन जीने की कला बताई गई है। इसमें इच्छा, क्रिया एवं ज्ञान के बीच समन्वय की सीख दी गई है। इन तीनों का सही संयोजन एवं सही संतुलन ही हमें विजयश्री दिलाती है।

यह बात पूर्व सांसद (लोकसभा एवं राज्यसभा) और बीएनएमयू, मधेपुरा के प्रथम कुलपति प्रोफेसर
डॉ. रमेन्द्र कुमार यादव ‘रवि’ ने कही।

वे यू-ट्यूब चैनल बीएनएमयू संवाद पर शिक्षक शिक्षार्थी एवं साहित्य’ विषयक व्याख्यान दे रहे थे। इस व्याख्यान का आयोजन डॉ. रवि की पाठशाला तथा प्रथम साक्षी से संवाद शृंखला के अंतर्गत किया गया।

उन्होंने कहा कि श्रीकृष्ण पूर्ण मानव हैं। सभी आठ सिद्धियाँ एवं सभी नौ निधियाँ उनको हस्तगत हैं। वे कर्मयोगी एवं ध्यानयोगी हैं। उनके जीवन में इच्छा, क्रिया एवं ज्ञान का सही सामंजस्य है।

उन्होंने कहा कि गीता कर्मयोग की शिक्षा देती है। भगवान श्रीकृष्ण गीता में कहते हैं कि कर्म करो, फल की चिंता मत करो। निष्काम कर्म करो। कर्म के साथ फल जुड़ा होता है। जैसा कर्म होगा, वैसा ही फल होगा।

उन्होंने बताया कि श्रीकृष्ण ने अर्जुन को स्वधर्म का पालन करने की सलाह दी है। अर्जुन योद्धा है, युद्ध करना उसका स्वधर्म है। उसे युद्ध करना है। हार-जीत की चिंता नहीं करनी है। जीत उसकी वीरता के लिए वरदान होगा।

उन्होंने कर्मयोग को एक उदाहरण देकर समझाया। उन्होंने बताया कि हमारा काम है घी को गर्म करना। पिघलाना हमारा काम नहीं है। हम घी को आग के संपर्क में ला सकते हैं। आग का गुण है, घी को पिघलाना। आग के संपर्क में आने से घी स्वयं पिगलेगा।

उन्होंने कहा कि
लोग पहले ही फल की चिंता करने लगते हैं। साथ ही लोग यह भी सोचते हैं कि वे कर्ता हैं।
यह लोगों की अज्ञानता है। हम इस अज्ञानता को छोड़ देंगे, तो निर्भार एवं नि:शंक हो जाओगे।

उन्होंने कहा कि गीता की शिक्षा है कि हमें सुख-दुख, जीत-हार सभी स्थितियों में समत्व का भाव रखना चाहिए।हमें तटस्थभाव से स्थितप्रज्ञ होकर काम करना चाहिए।

उन्होंने कहा कि श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है कि की वे धर्म की स्थापना और अधर्म के विनाश के लिए अवतरित होते हैं। सभी मनुष्य एक पवित्र वातावरण में एक स्वस्थ एवं प्रसन्न जीवन का आनंद ले सकें, यही गीता का उपदेश है।

उन्होंने कहा कि महाभारत की लड़ाई अधिकार के लिए होती है। सत्य एवं न्याय के लिए है। श्रीकृष्ण ने युद्ध को रोकने की पूरी कोशिश की। लेकिन दुर्योधन नहीं माना। फिर महाभारत का युद्ध होता है। सच की जीत होती है और पांडवों को उनका अधिकार वापस मिलता है।

उन्होंने कहा कि श्रीकृष्ण ने गीता के रूप में देश-दुनिया को एक थाथी दी है। इसकी प्रासंगिकता सभी कालों में है।