BNMU आत्मविकास की अवधारणा : संदर्भ अद्वैत वेदांत विषयक व्याख्यान आयोजित

आत्मविकास की अवधारणा : संदर्भ अद्वैत वेदांत विषयक व्याख्यान आयोजित
मनुष्य को उसके मूल स्वरूप का बोध कराना ही अद्वैत वेदांत का मुख्य उद्देश्य है। हमें    अपने आपको जानने की आवश्यकता है। हम अपने मूल स्वरूप को जानेंगे, तभी हम अपना आत्मविकास कर सकते हैं। यह बात पटना विश्वविद्यालय, पटना (बिहार) के दर्शनशास्त्र विभाग से सेवानिवृत्त प्रोफेसर डाॅ. नरेश प्रसाद तिवारी ने कही। वे सोमवार को बी. एन. मंडल विश्वविद्यालय, मधेपुरा के फेसबुक पेज फेसबुक डाॅट काॅम/ बीएनएमयू संवाद पर व्याख्यान दे रहे थे। इसका विषय था- ‘आत्मविकास की अवधारणा : संदर्भ  अद्वैत वेदांत’।

 

उन्होंने बताया कि  अद्वैत वेदांत संपूर्ण चराचर जगत में चेतना का वास मानता है। चेतना सास्वत होता है। यहाँ ब्रह्म को सच्चिदानंद माना गया है। यही ब्रह्म ही आत्मा है। यही हमारा मूल स्वरूप है।
उन्होंने कहा कि व्यक्ति  का भौतिक एवं आध्यात्मिक दोनों दृष्टि से विकास आवश्यक है।  हमारे शरीर, मन एवं आत्मा तीनों का विकास आवश्यक है।
जनसंपर्क पदाधिकारी डाॅ. सुधांशु शेखर ने प्रोफेसर तिवारी के प्रति आभार व्यक्त किया। उन्होंने बताया कि प्रोफेसर तिवारी भारतीय दर्शन परिषद्, बिहार दर्शन  परिषद् आदि के आजीवन सदस्य हैं।आप दर्शन परिषद्, बिहार के सामान्य अध्यक्ष (2018) रह चुके हैं।
कई राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय जर्नलों में आपके शोध आलेख प्रकाशित हो चुके हैं।  था। आपने 9 पुस्तकों की रचना की है। इनमें ग्रीक एवं मध्ययुगीन दर्शन : एक अवलोकन, भारतीय दर्शन एवं पाश्चात्य दर्शन, भाषा विषलेषण (भारतीय),  गाँधी के छह नैतिक मूल्य, मध्ययुगीन भारतीय दर्शन, चार्वाक का नैतिक दर्शन, भारतीय तर्कशास्त्र प्रमुख हैं। आपकी एक पुस्तक भाषा विषलेषण  (भारतीय) को 2016 में अखिल भारतीय दर्शन परिषद् द्वारा पुरस्कृत किया गया है।

 

प्रोफेसर तिवारी ने पटना विश्वविद्यालय, पटना से स्नातक (1975) एवं स्नातकोत्तर (1977) की डिग्री प्राप्त की और रांची विश्वविद्यालय, राँची से पी-एच. डी. (1982) किया। आपने जनवरी 1979 में मगध विश्वविद्यालय, बोध गया में सहायक प्राध्यापक के रूप में योगदान दिया। मार्च 1979 में आप  पटना विश्वविद्यालय, पटना की सेवा में आए। आप जून 2016 में विश्वविद्यालय दर्शनशास्त्र विभाग, पटना विश्वविद्यालय, पटना से प्रोफेसर के रूप में सेवानिवृत्त हुए। आपके निदेशन में कुल 30 शोधार्थियों ने  पी-एच. डी. की उपाधि प्राप्त की है।
जनसंपर्क पदाधिकारी डाॅ. सुधांशु शेखर ने सभी शिक्षकों, शोधार्थियों, विद्यार्थियों एवं अभिभावकों से  अनुरोध किया है कि वे विश्वविद्यालय के फेसबुक पेज पर पूर्वाह्न 11.30 बजे तक जुड़े और उत्साहवर्धन करें।
उन्होंने बताया कि आगे भी कई व्याख्यान होंगे। विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर डाॅ. ज्ञानंजय द्विवेदी, राजभवन के जनसंपर्क पदाधिकारी डाॅ. सुनील कुमार पाठक सहित कई गणमान्य विद्वानों के व्याख्यान आयोजित किए जाएँगे।