Philosophy डाॅ. रमेशचंद्र सिन्हा : प्रायोजक, संपादक, अभिभावक और …

गुरूवर बहुत-बहुत बधाई एवं शुभकामनाएँ।
सादर चरण स्पर्श।
——————————–
कुछ दिनों पूर्व मैंने डाॅ. रमेशचन्द्र सिन्हा सर के सम्मान में प्रकाशित होने जा रहे एक ग्रंथ में यह संस्मरण लिखा है….

*डाॅ. सिन्हा : प्रायोजक, संपादक, अभिभावक और …*
—————————————-

*पहली मुलाकात*

मैंने 2007 में अखिल भारतीय दर्शन परिषद् की आजीवन सदस्यता ग्रहण की थी और पहली बार नवंबर 2008 में गुरूकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय, हरिद्वार में आयोजित वार्षिक अधिवेशन में शामिल हुआ था। वहाँ मैंने डाॅ. सरोज कुमार वर्मा (मुजफ्फरपुर) की अध्यक्षता में धर्म-दर्शन विभाग में अपना शोध-पत्र ‘नव बौद्ध धर्म : न पलायन, न प्रतिक्रिया, वरन् परिवर्तन की प्रक्रिया’ प्रस्तुत किया था। मेरे इस शोध-पत्र पर मुझे ‘डाॅ. विजयश्री स्मृति युवा पुरस्कार’ प्राप्त हुआ था। वहीं मैं पहली बार ‘परिषद्’ के तत्कालीन अध्यक्ष डाॅ. श्रीप्रकाश दुबे एवं तत्कालीन महामंत्री डॉ. अम्बिकादत्त शर्मा से भी मिला था। साथ ही मेरा प्रोफेसर रमेशचंद्र सिन्हा से भी परिचय हुआ, जो तब मेरे लिए एक पुरस्कार के प्रायोजक मात्र थे।

*खास बात…*
मुझे मालूम हुआ कि डाॅ. सिन्हा ने प्रतिष्ठत बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी (उत्तर प्रदेश) से पढ़ाई-लिखाई की है और पटना विश्वविद्यालय, पटना के विश्वविद्यालय दर्शनशास्त्र विभाग के अध्यक्ष रहे हैं। इनकी धर्मपत्नी डाॅ. विजयश्री (1949-2004) बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी में इनकी सहपाठी थीं। वहीं दोनों के बीच अंतरंगता बढ़ी और दोनों ने अंतरजातीय विवाह किया। दोनों पटना विश्वविद्यालय, पटना में सहकर्मी थे और अखिल भारतीय दर्शन परिषद् में भी साथ-साथ सक्रिय थे।

डाॅ. सिन्हा अखिल भारतीय दर्शन परिषद् में कई दायित्वों का सफलतापूर्वक निर्वहन कर चुके हैं और संप्रति परिषद् की शोध-पत्रिका ‘दार्शनिक त्रैमासिक’ के संपादक हैं। डाॅ. विजयश्री ‘परिषद्’ की संयुक्त मंत्री थीं। वर्ष 2004 में उनके आकस्मिक निधन के बाद इनकी स्मृति में ही डाॅ. विजयश्री स्मृति युवा पुरस्कार की शुरुआत की गई।

*संपादक*
यहाँ यह विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि मेरे और डाॅ. सिन्हा के बीच के संबंधों की एक प्रमुख कड़ी ‘दार्शनिक त्रैमासिक’ भी है। इसमें मेरे कई आलेख प्रकाशित हुए हैं और मेरी लिखी कुछ पुस्तक समीक्षाओं को भी उदारतापूर्वक स्थान मिला है। इसमें मेरी दोनों पुस्तकों की समीक्षाएं भी प्रकाशित हो चुकी हैं। ‘सामाजिक न्याय : अंबेडकर विचार और आधुनिक संदर्भ’ की समीक्षा तो इन्होंने खुद डाॅ. सिन्हा ने अपनी कलम से लिखी थी। यह उनका मेरे प्रति अतिरिक्त स्नेह का ही परिणाम है कि उन्होंने इसके लिए समय निकाला।

डाॅ. सिन्हा के संपादन में प्रकाशित पुस्तक ‘दर्शन के आयाम’ (श्रीप्रकाश दुबे अभिनंदन ग्रंथ) में मेरा आलेख ‘हिंद स्वराज में राष्ट्र’ प्रकाशित हुआ था, जिसे बाद में मैंने संशोधित कर अपनी पुस्तक ‘गाँधी-विमर्श’ का पहला अध्याय बनाया।

फिर बाद में डाॅ. सिन्हा के सम्मान में प्रकाशित ग्रंथ ‘अनुप्रयुक्त दर्शन एवं नीतिशास्त्र के आयाम’ में भी मेरा आलेख ‘शिक्षा और सामाजिक न्याय : संदर्भ डॉ. अंबेडकर’ प्रकाशित हुआ था। मेरे पी-एच. डी. शोध निदेशक गुरूवर डाॅ. प्रभु नारायण मंडल ने ‘त्रैमासिक’ में इस पुस्तक की एक बेहतरीन समीक्षा लिखी थी।

*सहयात्री*
डाॅ. सिन्हा दर्शन जगत में काफी सक्रिय हैं और प्रायः सभी कार्यक्रमों में इनकी महती भागीदारी रहती है या यूँ कहें कि इनकी उपस्थित से कार्यक्रम में चार चाँद लगता है। इनका बाह्य सौंदर्य तो अप्रतिम है ही आंतरिक सौंदर्य भी अद्वितीय है। इनके व्यक्तित्व की सहजता एवं कोमलता हमारे ऊपर जादुई असर करती है। इनके विचारों की प्रस्तुति का अंदाज अनूठा है।

एक खास बात यह है कि ये प्रायः सभी सम्मेलनों एवं संगोष्ठियों में लिखित पत्र भी जमा कराते हैं। मैंने भी डाॅ. सिन्हा के साथ कई कार्यक्रमों में भागीदारी की है। इनमें ‘दर्शन परिषद्’ के कई सम्मेलन शामिल है। मैं अखिल भारतीय दर्शन परिषद् के हरिद्वार अधिवेशन को कभी नहीं भूल सकता, जिसकी मैं पूर्व में चर्चा कर चुका हूँ।

इसी तरह ‘दर्शन परिषद्, बिहार’ के एक अधिवेशन में मैंने डाॅ. सिन्हा की उपस्थित में ‘हिंद स्वराज : यशदेव शल्य की दृष्टि में’ आलेख प्रस्तुत किया था, जिसकी डाॅ. सिन्हा ने तारिफ की थी।

*गुरु एवं सहपाठी*
मुझे यह बताते हुए हार्दिक प्रसन्नता हो रही है कि मेरे गुरूवर डाॅ. शंभु प्रसाद सिंह, जिनसे मैंने दर्शनशास्त्र का ककहड़ा सीखा है डॉ. सिन्हा के डायरेक्टर स्टूडेंट रहे हैं, वह भी बी. ए. एवं एम. एम. दोनों कक्षाओं में। इस तरह डाॅ. सिन्हा मेरे दादा गुरु हैं।

मेरा यह परम सौभाग्य है कि मुझे गुरूकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय, हरिद्वार में रिसर्च मेथडलाॅजी इन फिलाॅसफी विषयक एक राष्ट्रीय कार्यशाला में डाॅ. सिन्हा से पढ़ने का सुअवसर प्राप्त हुआ। मुझे उनकी कक्षा की बातें आज भी याद हैं और मैंने आज भी वे नोट्स सुरक्षित रखे हैं।

इसी तरह जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली में आयोजित आईसीपीआर फेलो मीट भी अविस्मरणीय है, यहाँ मैं डाॅ. सिन्हा का ‘सहपाठी’ था। इस कार्यक्रम में मैं जूनियर रिसर्च फेलो के रूप में शामिल हुआ था और डाॅ. सिन्हा सीनियर फेलो के रूप में आए थे। कुछ दिनों बाद एक दूसरे कार्यक्रम में हमारी फिर मुलाकात हुई। वहाँ एक शिक्षक से मेरा परिचय कराते हुए डाॅ. सिन्हा ने कहा, “सुधांशु मेरे क्लास फेलो हैं। हम कुछ दिनों पहले आईसीपीआर फेलो मीट में साथ थे।” यह है डाॅ. सिन्हा का बड़प्पन और दूसरों को सम्मान देने की दरियादिली।

*वो मुलाकातें*
मैं कई बार डाॅ. सिन्हा से उनके पटना स्थित आवास पर मिला हूँ। हर बार ढ़ेर सारे फल एवं मिठाईयाँ खाने को मिलीं और वैचारिक खुराक एवं सुखद स्मृतियाँ भी। एक बार उनके घर उनके भाई साहेब डाॅ. के. सी. सिन्हा (जिनकी किताबें मैंने इंटर में पढ़ी थीं) से मिलकर काफी अच्छा लगा। डाॅ. सिन्हा मेरी उपस्थित में दो बार भागलपुर आए और मुझे इनका सानिध्य मिला। एक बार वे सांगठनिक कामों से आए थे और दूसरी बार एक पी-एच. डी. वाइवा के सिलसिले में। हमारे अनुरोध पर वे एक जनवरी के दिन ही पटना से भागलपुर के लिए चले और रात्रि के लगभग बारह बजे पहुँचे। मैंने उन्हें स्टेशन पर रिसिव किया और एक होटल में ठहराया और फिर खुद अपने कमरे पर चला गया। अगली सुबह जब मैं सर से मिलने पहुँचा, तो वे मेरे लिए भी नास्ता बनबा चुके थे। हमने साथ नास्ता किया। फिर हम साथ में स्नातकोत्तर दर्शनशास्त्र विभाग पहुँचे। वहाँ वाइवा के दौरान उन्होंने कैंडिडेट से काफी अच्छे प्रश्न पुछे और उसे सहजतापूर्वक उत्तर देने में मदद किया। यहाँ भी वे परीक्षक से अधिक अभिभावक की भूमिका में रहे। शाम में सर को ट्रेन पर बैठाने के पूर्व प्रतीक्षालय में उनसे काफी देर तक बातचीत का अवसर मिला। पूरे समय ‘दार्शनिक त्रैमासिक’ पत्रिका एवं ‘दर्शन परिषद्’ हमारी बातचीत के केन्द्र में रहा।

*साक्षात्कार एवं व्याख्यान*
अंत में यह उल्लेखनीय है कि 2015 में बिहार लोक सेवा आयोग, पटना में असिस्टेंट प्रोफेसर (दर्शनशास्त्र) का साक्षात्कार हुआ। साक्षात्कार के एक-दो दिन पूर्व मैं बड़े भाई डाॅ. मुकेश कुमार चौरसिया के साथ डाॅ. सिन्हा से भी मिलने गया। अन्य दिनों की तरह ही उस दिन भी इनसे मुझे काफी प्रोत्साहन एवं आशीर्वाद प्राप्त हुआ। फिर जब साक्षात्कार का परिणाम आया, तो डाॅ. सिन्हा ने खुद फोन करके मुझे बधाई दी और कहा कि बड़े विश्वविद्यालय में हुआ है, या छोटे विश्वविद्यालय में इसकी परवाह किए बगैर अपना काम करते रहना। इससे मुझे काफी तसल्ली मिली।

दरअसल साक्षात्कार के दौरान बोर्ड के चेयरमेन के पूर्वाग्रहों के कारण मुझे साक्षात्कार में काफी कम अंक मिला और मुझे मेरी अंतिम च्वाइस बी. एन. मंडल विश्वविद्यालय, मधेपुरा आना पड़ा। लेकिन यहाँ मैंने डाॅ. सिन्हा के गुरुमंत्र को याद रखा और काम करना शुरू किया। मैंने अपने ठाकुर प्रसाद महाविद्यालय में पूर्व डाॅ. सिन्हा सहित कई गणमान्य लोगों के व्याख्यान कराए। इनमें सांसद एवं पूर्व कुलपति डाॅ. रामजी सिंह, अखिल भारतीय दर्शन परिषद् के अध्यक्ष डाॅ. जटाशंकर, बिहार दर्शन परिषद् के पूर्व अध्यक्ष डाॅ. प्रभु नारायण मंडल एवं आईसीपीआर, नई दिल्ली के सदस्य डाॅ. नरेश कुमार अम्बष्ट के नाम शामिल हैं।

यहाँ यह विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि डाॅ. सिन्हा ने सहर्ष मेरा अनुरोध स्वीकार किया था और वे सड़क मार्ग से काफी कठिनाइयों को झेलते हुए पटना से दरभंगा होते हुए मार्च 2018 में मधेपुरा आए थे। उन्होंने ‘सीमांत नैतिकता और सामाजिक न्याय’ पर एक सारगर्भित व्याख्यान दिया था और हर बार की तरह लिखित आलेख देना भी नहीं भूले थे। यह डाॅ. सिन्हा जैसे गुरूजनों का ही आशीर्वाद है कि 2018 में मुझे दर्शन परिषद्, बिहार के संयुक्त मंत्री सह मीडिया प्रभारी की जिम्मेदारी दी गई है। साथ ही हम वर्ष 2019 में हम दर्शन परिषद्, बिहार का 42 वां वार्षिक अधिवेशन आयोजित करने जा रहे हैं।

*विविध आयाम*
संक्षेप में डाॅ. रमेशचन्द्र सिन्हा के साथ मेरे संबंधों के कई आयाम हैं। इनसे मेरा परिचय एक पुरस्कार के प्रायोजक के रूप में हुआ और एक पत्रिका के संपादक के रूप में ये मेरे करीबी बने और धीरे-धीरे ये मेरे अभिभावक बन गए। लेकिन ये मेरे लिए प्रायोजक, संपादक एवं अभिभावक ही नहीं और भी बहुत कुछ हैं … ये उन चंद लोगों में शामिल हैं, जिनके साथ आप खुलकर बातें कर सकते हैं, पूरे बराबरी के स्तर पर और जिनसे असहमतियों के बावजूद आपको मिलने वाले प्रेम एवं सम्मान पर कोई आँच नहीं आ सकता है। सादर अभिवादन!

अध्यक्ष बनने की शुभकामनाएँ
=======
प्रोफेसर डाॅ. रमेशचन्द्र सिन्हा को आईसीपीआर, नई दिल्ली का अध्यक्ष बनने पर बहुत-बहुत बधाई एवं शुभकामनाएँ। हमें आशा ही नहीं, वरन् पूर्ण विश्वास है कि इनके नेतृत्व में देश-विदेश में दर्शनशास्त्र का विकास होगा।
====