डॉ. गौतम कुमार : छोटे कद का बड़ा आदमी

डॉ. गौतम कुमार
पिता -श्री रामनरेश सिंह
ग्राम पोस्ट -विक्रमपुर
थाना -चेरिया बरियारपुर
जिला -बेगूसराय ,बिहार


जन्मतिथि -5 फ़रवरी
1983
कद -42 इंच
शिक्षा – मैट्रिक -1998 प्रथम श्रेणी
इंटर – 2000 प्रथम श्रेणी
बी ए – 2004 प्रथम श्रेणी
बी एड – 2007
एम एड -2008
एम ए – संस्कृत
एम ए -हिंदी
नेट -शिक्षाशास्त्र ,( j r f )
पीएचडी -शिक्षा शास्त्र विषय में
वर्तमान में D B K N कॉलेज नरहन ,समस्तिपुर में पदस्थापित सहायक प्राध्यापक के पद पर (l n m u, दरभंगा, बिहार)।

जीवन के प्रारंभिक क्षणों में जब पुत्र रूप में उत्पन्न हुआ तो अनेक संभावनाओं और जिज्ञासाओं की दृष्टि से देखा गया,9वें माह में ही कि चलना और बोलना आ गया। परंतु कुदरत की मर्जी कुछ और थी जन्म के तीसरे वर्ष में पोलियो लगी और शरीर बिल्कुल विराम अवस्था को प्राप्त हो गया। हाथ पैर सभी अस्थूल हो गए, शारीरिक वृद्धि अवरुद्ध हो गया , चिड़िया जैसी चाहचहाहाट बंद हो गई, और फिर तात्कालिक समस्याओं से ग्रसित इस शरीर का उपचार प्रारंभ हुआ।


उपचार के क्रम में 15 दिनों बाद पता चला कि बालक पोलियो ग्रस्त है । और तत्पश्चात मैं अपने ननिहाल पबय लखीसराय से बेगूसराय वापस लाया गया। जहां तत्कालीन चिकित्सक चाइल्ड स्पेशलिस्ट राजा राजेश्वर से दिखलाया गया, उन्होंने उपचार के क्रम में बिजली का सेक भी लगाए और फिर इस तरीके से जीवन के एक उस कठिन बीमारी के दौर से गुजरना प्रारंभ हुआ ।

उपचार के दौरान कई प्रकार की यातनाएं झेलनी पड़ी. झाड़ फूंक भी शुरू हुआ नया नगर जो समस्तीपुर जिला का एक गांव है वहां झाड़-फूंक भी कराया गया। तीसरे से पांचवें वर्ष की अवस्था तक बिल्कुल स्थूल अर्थात लोथा बना रहा।

5 वर्ष की अवस्था में पहली बार पुनः खड़ा हुआ और लड़खड़ाते पाव पर ही सही डगमगाते कमर उस पर चलना शुरू कर दिया ।और जीवन की शुरुआत हुई प्रारंभिक शिक्षा में घर पर बाबा ही पढ़ाते थे दादा जी के पावन सानिध्य में घर पर लिखने का मौका मिला।

प्राथमिक शिक्षक तक उनका आशीर्वाद बना रहा। मध्य विद्यालय तक गांव के ही सरकारी स्कूल में पढ़ा जहाँ बड़ी बहन साथ मे जाती और झोला- बस्ता ले जाती।प्रारंभिक विद्यालय अवस्था में संभावना हीन और उद्देश्य हीन बना रहा। सामान्य शिक्षा और किसी तरह जीवन यापन कर लेने भर की बातें ही समझ में आती रही। यात्री मन प्रतियोगिता में भाग लिया करता था जिसमें प्रतिस्पर्धी बातें समझ में आती थी। और कुछ गुजर कर गुजरने की तमन्ना मन में आती रहें। जीवन में कुछ संभावनाएं समझ में आई बचपन में कुछ कुछ छोटी-मोटी गीत गाया करता था, लोग सुनते थे और पुरस्कृत करते थे। मुझे याद है कि उसी जमाने में सर्वप्रथम का थाना अध्यक्ष चेरिया बरियारपुर ने मुझे पुरस्कृत किया था और तब से मुझे गाने बोलने की प्रेरणा मिली। आठवीं कक्षा उत्तीर्ण होने के पश्चात मेरा नामांकन गांव के लालजी सिंह संस्कृत उच्च विद्यालय में हुआ क्योंकि मेरे गांव में मान्यता प्राप्त हाई स्कूल नहीं था। और गांव से बाहर मैं जाने में असमर्थ था इस वजह से गांव के संस्कृत विद्यालय में शिक्षा पाई ।आठवीं कक्षा में ही चेरिया बरियारपुर में आयोजित प्रखंड स्तरीय प्रतियोगिता में पहली बार भाषण देने में सर्व प्रथम श्रेणी आया और वहां से जिला के लिए भेज दिया गया ,जहां भाषण करने में जिले में प्रथम स्थान पाया । भाषण प्रतियोगिता में तत्कालीन डी ई ओ ,डी ए सी और शिक्षक नेताओं ने ढेर सारा पुरस्कार दिया और काफी उत्साहित और प्रोत्साहित किया। जिससे जीवन में कुछ करने की प्रेरणा मिली और वहां से प्रमंडल स्तर के लिए भाषण के लिए चयनित हो गया।

वर्ष 1998 मध्यमा परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण करने के बाद 10 किलोमीटर दूर अनुमंडल मंझौल स्थित रामचरित्र सिंह महाविद्यालय में इंटर में नामांकन हेतु गया जहां पहली बार महाविद्यालय देखा और प्राचार्य डॉ रामेश्वर प्रसाद के प्रोत्साहन भरी आत्मीय व्यवहार ने मुझे शिक्षा के लिए अपनी ओर खींचा उन्होंने मुझे सिर्फ एक रुपए में नामांकन किया और मुझे पढ़ने में आर्थिक समस्या से निजात दिलाने के लिए हर संभव प्रयत्न किया। 2000 ई0 में 66 प्रतिशत अंकों के साथ प्रथम श्रेणी उत्तीर्ण हुआ। वहीं तत्कालीन बलिया के सांसद श्री रामजीवन सिंह का सानिध्य प्राप्त होने से उच्च स्तरीय समझ विकसित हुई और स्वयम का आत्म बल विकसित हुआ।वहीं बिहार विधानपरिषद के सादगी और साधुता भरे व्यक्तित्व श्री बासुदेव सिंह के व्यक्तित्व का भी असर पड़ा।

वर्ष 2001 से 2003 सत्र में स्नातक का विद्यार्थी रहा जहां जीवन में अनेक परिवर्तन आए और इतिहास ऑनर्स में नामांकन हुआ संस्कृत और हिंदी सहायक विषयों में मेरा था। वही कक्षा में एक प्रोफेसर रामनारायण झा प्रोफेसर की नौकरी की श्रेष्ठता कक्षा में बताए थे।तभी मन मे प्रोफेसर बनने की ललक पैदा हुई। कॉलेज जाने में बस की यात्रा में भीड़ भरी बस जहां बस की पहली सीढ़ी पर मेरे शरीर ऊपरी हिस्सा भी नहीं पहुंच पाता ,लोग गोद मे उठा कर चढ़ाते थे।अधिकांस दिन ड्राइबर अपने बगल में खड़ा कर लेता। कभी कभी बस में बीच मे पर जाने के कारण दिखता नहीं था और भीड़ में स्वास लेना भी कठिन होता था। इस तरह शैक्षिक संघर्ष किया।परन्तु इलाके के सामान्य जनमानस निःस्वार्थ सहयोग किया।

वर्ष 2003 में तत्कालीन सांसद श्री राम जीवन बाबू के साथ दिल्ली की यात्रा की जहां नौकरी की तलाश में मंत्रियों के दरवाजा दरवाजा खटखटाया अनेक जगह पर इतनी किया इसी क्रम में वह मुझे संसदीय कार्यवाही देखने का पास बना दिया।

दिल्ली में ही मुझे एक साथ प्रेरणा मिली कि मुझे अपनी शिक्षा को और आगे बढ़ानी चाहिए। और मैं बिहार वापस आ कर कअपनी शिक्षा पूरी की ,स्नातक में प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुआ । स्नातक के अंतिम वर्ष में ही मुझे एक प्रेरणा मिली के राष्ट्रपति डॉ एपीजे अब्दुल कलाम मिथिला विश्वविद्यालय में पधार रहे हैं।मैंने मिलने की कोशिश की परन्तु असफल रहा। मैंने एक मांग पत्र में लिखा कि महामहिम देश के प्रथम नागरिक हैं और मैं विकलांग अंतिम व्यक्ति ।आदि और अंत का मिलन हो जाए यही मेरी जीवन की सर्वोत्तम उपलब्ध होगी। इसलिए मैं वहां से इस पत्र को भेज दिया।मुझे जबाब वापस आया कि बिहार में राष्ट्रपति जी का जब भी कार्यक्रम तय होगा तो आपको मिलवाया जाएगा। 26 मई 2005 को मुझे तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ एपीजे अब्दुल कलाम से स्टेट हैंगर के अतिथि साला ,पटना में मेरी मुलाकात हुई जहां से मेरे जीवन में ढेर सारे परिवर्तन हुए। उन्होंने मुझे 4 मिनट का समय दिया था और 16 मिनट तक मुझसे बातें करते रहे। मेरी प्राकृतिक स्थिति पारिवारिक और आर्थिक स्थिति ,सामाजिक स्थिति और शैक्षिक स्थिति पर गहन चर्चा कि और मुझे आगे बढ़ाने के लिए कई मार्ग सुझाए ।उन्होंने मुझे’ विजन मिशन एन्ड गोल’ निर्धारित करने को कहा । दृष्टिकोण निर्धारित किये बिना कोई आगे नहीं बढ़ सकता। उन्होंने मुझे टीचर ट्रेनिंग करने की सलाह दी ।और जब मैं उनसे मिलने के बाद वापस आया तो उन्हीं के प्रभाव से अनुमंडल कार्यालय में 6000 के महीने पर मेरी नौकरी लग गई ।यहाँ मैं बतौर कंप्यूटर ऑपरेटर के पद पर कार्यरत हुआ और मेरी आर्थिक समस्या का तत्कालीन समाधान हुआ। परन्तु कुछ ही दिनों बाद वह नौकरी समाप्त हो गयी।

कालांतर में राष्ट्रपति जी द्वारा बताए गए मार्ग का अनुसरण करते हुए मैंने प्रशिक्षण लेने का प्रयत्न किया और जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय चित्रकूट उत्तर प्रदेश में B.Ed में मेरा नामांकन हुआ। शिक्षा के दौरान वहां जगतगुरु रामभद्राचार्य जी के सान्निध्य में अपने व्यक्तित्व और शैक्षिक उपलब्धि की उन्नति की । वहां के त्याग और तप क्षेत्र में विद्यमान नानाजी देशमुख के सानिध्य में भी जाकर बैठता था बहुत कुछ सीखता था और इस तरीके से मुझे वहां सीखने समझने के साथ तपस्या का अवसर मिला। यहीं से मैं 08 -09 सत्र में एम एड किया । एम एड में डिस्टिंक्शन मार्क्स लाया तत्पश्चात शिक्षाशास्त्र में ही मैं नेट की परीक्षा दी इलाहाबाद सेंटर में दिया। मैंने नेट की परीक्षा में भी उत्तीर्णता हासिल करते हुए जेआरएफ प्राप्त किया जूनियर रिसर्च फेलोशिप के लिए चयनित हुआ। रहीम कवि का एक दोहा प्रचलित है कि-चित्रकूट में बसी रहे रहिमन अवध नरेश। जहां पर विपदा पड़त है स्वयं यही देश।।

इस तरह कैरियर जनित बड़ी उपलब्धि हासिल हुआ। ततपश्चात बिहार सरकार में नियोजित शिक्षक के पद पर कुछ दिनों तक कार्यरत हुआ। पुनः 2015 में भीमराव अंबेडकर बिहार विश्व विद्यालय मुजफ्फरपुर से पी एच डी पूरी की। मिथिला विश्व विद्यालय की अंगीभूत इकाई दिवान बहादुर कामेश्वर नारायण महाविद्यालय, नरहन समस्तीपुर में शिक्षा शास्त्र विभाग में बतौर सहायक प्राध्यापक कार्यरत ।


इस दौरान लगभग तीन दर्जन विद्यर्थियों को लघुशोध में निर्देशन और एक शोध प्रबंध का निरेदशन कर पूर्ण कराया।

समाज सेवा के क्षेत्रों में रुचि रखते हुए दिव्यांगों की सेवा हेतु सुकृति सेवा सोसाइटी नामक संस्थान की स्थापना की और उस के माध्यम से दिव्यांग जनों को समाज में वृद्ध,विकलांग,और विधवाओं की सेवा करते हैं । वर्तमान में एक कार्यक्रम संचालित है ‘दर्दे दिल की दास्तान'” जहां प्रत्येक रविवार को एक दिव्यांग व्यक्ति से मिलकर उनकी समस्याओं को सुना और उसकी समस्याओं का समाधान करना यह जीवनचर्या है।


मानवता ही मेरा मंदिर मैं हूं उसका एक पुजारी ।
हैं दिव्यांग महेश्वर मेरे ,मैं हूं इसका कृपा भिखारी।।
इस कार्यक्रम से अभी तक हजारों विकलांगों से मिलकर उनकी समस्याओं का समाधान किया। उनके शैक्षिक सामाजिक और आर्थिक स्थितियों में परिवर्तन लाया। रोजगार उन्मुख किया।