August 9, 2020


Poem। कविता/चाहत/पूजा शकुंतला शुक्ला, कंपनी सचिव, भारतीय कंपनी सचिव संस्थान, रांची, झारखंंड
चाहत —– फूलों को छू कर तितलियों सा होना चाहती हूँ। बहुत देर तक ठहर लिया, अब मैं नदी होना चाहती हूँ। हँसना, खिलखिलाना और


कविता/सांझ/पूजा शकुंतला शुक्ला, कंपनी सचिव, भारतीय कंपनी सचिव संस्थान, रांची, झारखंंड
सांझ ——- ख्वाहिशों की ढ़लान जहाँ जमीं को चूम जिंदगी का बीज बोते हैं तुम मुझ से वहीं मिलना दोनों देर तक बैठेंगे बूढ़े बरगद


Poem। कविता/माँ / पूजा शकुंतला शुक्ला, कंपनी सचिव भारतीय कंपनी सचिव संस्थान, रांची, झारखंंड
माँ —– तुम कहती थीं तुम्हें लता नहीं सुदृढ़ वृक्ष बनना है, जो अपना अस्तित्व खुद गढ़े, आकाशबेल तो आम लड़कियाँ बनती हैं। तुम्हे सख्त


NEP। डॉ. विश्व दीपक त्रिपाठी ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति के विभिन्न आयाम’ विषय पर अपना आमंत्रित व्याख्यान देंगे
दिनांक 03 सितंबर 2020 को ठाकुर प्रसाद महाविद्यालय, मधेपुरा में हो रही वेबीनार सीरीज के अंतर्गत सहायक प्राध्यापक एवं विभागाध्यक्ष रसायनशास्त्र विभाग महारानी कल्याणी महाविद्यालय


Jharkhand। विश्व आदिवासी दिवस/ पूजा शकुंतला शुक्ला
विश्व आदिवासी दिवस वर्ष 1982 में आदिवासियों के उत्थान हेतु संयुक्त राष्ट्र संघ ने एक बहुत महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए आदिवासी समाज के उत्थान हेतु


Hindi। समाज एवं साहित्य में अंतर्संबंध बनाना होगा
साहित्य को समाज सापेक्ष होना जरूरी है। केवल कल्पना की उड़ान वाला साहित्य आनंददायक हो सकता है, लेकिन वह समय का दस्तावेज नहीं बनता है।


कविता/ दूध के गाछ/ प्रो. (डॉ.) प्रेम प्रभाकर, हिंदी विभाग, तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय, भागलपुर (बिहार)
दूध के गाछ अलसुबह कुछ प्रतीक शब्द बन दिल के दरवाजे पर हौले-हौले देने लगे दस्तक मैंने झट-से खोल दिए पल्ले वे दाखिल हुए मेरे


कविता/ गुम गया लोकतंंत्र/ प्रो. (डॉ.) प्रेम प्रभाकर हिंदी विभाग, तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय, भागलपुर (बिहार)
कविता/ गुम गया लोकतंंत्र ———————– मुल्क की सियासत मानो एक गुम रास्ता जिस पर चल रहे सियासतदां आड़े-तीरछे, उड़ते-गोते खाते जैसे वे एक शिकारी हों