Jharkhand। विश्व आदिवासी दिवस/ पूजा शकुंतला शुक्ला

विश्व आदिवासी दिवस

वर्ष 1982 में आदिवासियों के उत्थान हेतु संयुक्त राष्ट्र संघ ने एक बहुत महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए आदिवासी समाज के उत्थान हेतु एक कार्यदल का गठन किया। कार्यदल को गठित करने का मुख्य उद्देश्य था आदिवासी समाज की समस्याओं का समाधान ढूढना और मानवाधिकारों को लागू करते हुए समाज के संरक्षण को सुदृढ़ करना। इन्ही सब विषयो पर चर्चा और विश्लेषण हेतु पहले बैठक 9 अगस्त 1982 को बुलाई गई थी । उस वर्ष से संयुक्त राष्ट्र संघ ने प्रतिवर्ष 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया। वर्ष 1982 से संयुक्त राष्ट्र संघ के सदस्य देश 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस के रूप में मनाते है । आदिवासी यानी आदि काल से धरती पर रहने वाले मनुष्य! जैसे कि हमे ज्ञात है कि आदिकाल में मनुष्य वन में रहा करते थे और जीवनयापन के लिए सम्पूर्णरूप से वन से प्राप्त होने वाले संसाधनों पर निर्भर थे। वन ही उनका घर था और वन में वास करने वाले जीव जंतु उनके वृहद परिवार के सदस्य। कालांतर में जैसे – जैसे सभ्यताओं का विकास होता गया मनुष्य ने ना केवल वनों से दूरी बनाई बल्कि अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए उनकी कटाई भी शुरू की । ऐसे में वनों को और उंसमे वास करने वाले जीव जंतुओं को बचाने की जिम्मेवारी उस वर्ग ने अपने कंधो पर उठाई जिसे हम आदिवासी, आदिम जाति,वनवासी आदि नामों से जानते हैं। भारत का 28 वा राज्य झारखंड जिसका शाब्दिक अर्थ है वन प्रदेश है विश्व भर में रत्नगर्भा भूमि के नाम से प्रसिद्ध इस प्रदेश में एक चीज जो लोगों को प्रायः आकर्षित करती है अपनी ओर वह है यँहा की आदिवासी सभ्यता और संस्कृति। पुरापाषाणकाल से ही झारखंड जनजातियों का प्रदेश रहा है। झारखंड में 32 प्रकार की जनजातीयां पायी जाती हैं। आदिकालीन संस्कृति और सभ्यता को अपनी जीवन का आधार बनाये आज भी ये जनजातियां घोर अभावों में जीवन यापन करते हुए प्रकृति और वनों के संरक्षण में जुटी हुई हैं। इनकी दिनचर्या सूरज की पहली आभा के साथ वनों, पहाड़ों, जीव जंतुओं से आरंभ होती है और शाम ढले इनके साथ ही खत्म हो जाती है। सघन वन के पेड़ पौधों को पूजना, सिंगबोंगा की आराधना, नदियों को पूजना, जीव जंतुओं को आदर देना औए उनकी सुरक्षा करना आज भी उनकी सभ्यता का एक महवपूर्ण अंग है। आधुनिकता समय में हम जब विकास की बात करते है तो विकास के साथ निहित होता है विनाश और वह विनाश होता है प्राकृति को नुकसान पहुचाने के रूप में। आदिवासी समाज आज भी वनों और प्रकृति को बचाने के लिए कार्यरत है क्योंकि उसका अस्तित्व ही वनों से जुड़ा है क्यों उसकी समृद्धि वनों की समृद्धि पर निर्भर करती है ।वर्ष 1982 में आदिवासियों के उत्थान हेतु संयुक्त राष्ट्र संघ ने एक बहुत महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए आदिवासी समाज के उत्थान हेतु एक कार्यदल का गठन किया। कार्यदल को गठित करने का मुख्य उद्देश्य था आदिवासी समाज की समस्याओं का समाधान ढूढना और मानवाधिकारों को लागू करते हुए समाज के संरक्षण को सुदृढ़ करना। इन्ही सब विषयो पर चर्चा और विश्लेषण हेतु पहले बैठक 9 अगस्त 1982 को बुलाई गई थी । उस वर्ष से संयुक्त राष्ट्र संघ ने प्रतिवर्ष 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया। वर्ष 1982 से संयुक्त राष्ट्र संघ के सदस्य देश 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस के रूप में मनाते है । आदिवासी यानी आदि काल से धरती पर रहने वाले मनुष्य! जैसे कि हमे ज्ञात है कि आदिकाल में मनुष्य वन में रहा करते थे और जीवन यापन के लिए सम्पूर्णरूप से वन से प्राप्त होने वाले संसाधनों पर निर्भर थे। वन ही उनका घर था और वन में वास करने वाले जीव जंतु उनके वृहद परिवार के सदस्य। कालांतर में जैसे – जैसे सभ्यताओं का विकास होता गया मनुष्य ने ना केवल वनों से दूरी बनाई बल्कि अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए उनकी कटाई भी शुरू की । ऐसे में वनों को और उंसमे वास करने वाले जीव जंतुओं को बचाने की जिम्मेवारी उस वर्ग ने अपने कंधो पर उठाई जिसे हम आदिवासी, आदिम जाति,वनवासी आदि नामों से जानते हैं। भारत का 28 वा राज्य झारखंड जिसका शाब्दिक अर्थ है वन प्रदेश है विश्व भर में रत्नगर्भा भूमि के नाम से प्रसिद्ध इस प्रदेश में एक चीज जो लोगों को प्रायः आकर्षित करती है अपनी ओर वह है यँहा की आदिवासी सभ्यता और संस्कृति। पुरापाषाणकाल से ही झारखंड जनजातियों का प्रदेश रहा है। झारखंड में 32 प्रकार की जनजातीयां पायी जाती हैं। आदिकालीन संस्कृति और सभ्यता को अपनी जीवन का आधार बनाये आज भी ये जनजातियां घोर अभावों में जीवन यापन करते हुए प्रकृति और वनों के संरक्षण में जुटी हुई हैं। इनकी दिनचर्या सूरज की पहली आभा के साथ वनों, पहाड़ों, जीव जंतुओं से आरंभ होती है और शाम ढले इनके साथ ही खत्म हो जाती है। सघन वन के पेड़ पौधों को पूजना, सिंगबोंगा की आराधना, नदियों को पूजना, जीव जंतुओं को आदर देना औए उनकी सुरक्षा करना आज भी उनकी सभ्यता का एक महवपूर्ण अंग है। आधुनिकता समय में हम जब विकास की बात करते है तो विकास के साथ निहित होता है विनाश और वह विनाश होता है प्राकृति को नुकसान पहुचाने के रूप में। आदिवासी समाज आज भी वनों और प्रकृति को बचाने के लिए कार्यरत है क्योंकि उसका अस्तित्व ही वनों से जुड़ा है क्यों उसकी समृद्धि वनों की समृद्धि पर निर्भर करती है ।वर्ष 1982 में आदिवासियों के उत्थान हेतु संयुक्त राष्ट्र संघ ने एक बहुत महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए आदिवासी समाज के उत्थान हेतु एक कार्यदल का गठन किया। कार्यदल को गठित करने का मुख्य उद्देश्य था आदिवासी समाज की समस्याओं का समाधान ढूढना और मानवाधिकारों को लागू करते हुए समाज के संरक्षण को सुदृढ़ करना। इन्ही सब विषयो पर चर्चा और विश्लेषण हेतु पहले बैठक 9 अगस्त 1982 को बुलाई गई थी । उस वर्ष से संयुक्त राष्ट्र संघ ने प्रतिवर्ष 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया। वर्ष 1982 से संयुक्त राष्ट्र संघ के सदस्य देश 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस के रूप में मनाते है । आदिवासी यानी आदि काल से धरती पर रहने वाले मनुष्य! जैसे कि हमे ज्ञात है कि आदिकाल में मनुष्य वन में रहा करते थे और जीवन यापन के लिए सम्पूर्णरूप से वन से प्राप्त होने वाले संसाधनों पर निर्भर थे। वन ही उनका घर था और वन में वास करने वाले जीव जंतु उनके वृहद परिवार के सदस्य। कालांतर में जैसे – जैसे सभ्यताओं का विकास होता गया मनुष्य ने ना केवल वनों से दूरी बनाई बल्कि अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए उनकी कटाई भी शुरू की । ऐसे में वनों को और उंसमे वास करने वाले जीव जंतुओं को बचाने की जिम्मेवारी उस वर्ग ने अपने कंधो पर उठाई जिसे हम आदिवासी, आदिम जाति,वनवासी आदि नामों से जानते हैं। भारत का 28 वा राज्य झारखंड जिसका शाब्दिक अर्थ है वन प्रदेश है विश्व भर में रत्नगर्भा भूमि के नाम से प्रसिद्ध इस प्रदेश में एक चीज जो लोगों को प्रायः आकर्षित करती है अपनी ओर वह है यँहा की आदिवासी सभ्यता और संस्कृति। पुरापाषाणकाल से ही झारखंड जनजातियों का प्रदेश रहा है। झारखंड में 32 प्रकार की जनजातीयां पायी जाती हैं। आदिकालीन संस्कृति और सभ्यता को अपनी जीवन का आधार बनाये आज भी ये जनजातियां घोर अभावों में जीवन यापन करते हुए प्रकृति और वनों के संरक्षण में जुटी हुई हैं। इनकी दिनचर्या सूरज की पहली आभा के साथ वनों, पहाड़ों, जीव जंतुओं से आरंभ होती है और शाम ढले इनके साथ ही खत्म हो जाती है। सघन वन के पेड़ पौधों को पूजना, सिंगबोंगा की आराधना, नदियों को पूजना, जीव जंतुओं को आदर देना औए उनकी सुरक्षा करना आज भी उनकी सभ्यता का एक महवपूर्ण अंग है। आधुनिकता समय में हम जब विकास की बात करते है तो विकास के साथ निहित होता है विनाश और वह विनाश होता है प्राकृति को नुकसान पहुचाने के रूप में। आदिवासी समाज आज भी वनों और प्रकृति को बचाने के लिए कार्यरत है क्योंकि उसका अस्तित्व ही वनों से जुड़ा है क्यों उसकी समृद्धि वनों की समृद्धि पर निर्भर करती है ।केंद्र और राज्य सरकार द्वारा समय – समय पर आदिवासी समाज के उत्थान हेतु कार्यक्रम चलाए गए है पर आज भी बहुत कुछ किये जाने की आवश्यकता है । आदिवासी समाज को मुख्यधारा में जोड़ने का कार्य बहुत ही मुश्किल और संवेदनशील कार्य है क्यों कि इस बात पर बहुत ज्यादा ध्यान देने की आवश्यकता है कि हमे उन्हें मुख्यधारा में जोड़ते वक़्त यह ध्यान रखना होगा कि हम उन्हें उनकी जड़ो से दूर ना कर दें। भारत के आदिवासियों के अस्तित्व और महत्व को देखते हुए आवश्यक है कि इनकी परंपराओं और रीति रिवाजों को अक्क्षुण बनाये रखा जाए ताकि जल,जमीन और जंगल का अस्तित्व कायम रह सके क्योंकि आदिवासी समाज ही प्रकृति के पूजक हैं।

-पूजा शकुंतला शुक्ला
कंपनी सचिव
भारतीय कंपनी सचिव संस्थान, रांची, झारखंंड

शिक्षा
– कंपनी सेक्रेट्रीशिप,
-स्नातक – विधि और वाणिज्य, -स्नातकोत्तर-वाणिज्य
-डिप्लोमा इन इंटरनेशनल -बिज़नेस ऑपरेशन्स
-यूजीसी नेट -वाणिज्य

उपलब्धि-
-12 वी  में वाणिज्य संकाय में जिले में पहला स्थान
-कंपनी सचिव फाउंडेशन परीक्षा में राज्य भर में पहला स्थान
-कोलकाता  में आयोजित एस एम टी पी  प्रोग्राम में  फर्स्ट बेस्ट पार्टिसिपेंट .
-भारतीय कंपनी सचिव संस्थान के राँची इकाई की पहली महिला ऑफ़िस बियरर
-भारतीय कंपनी सचिव संस्थान,रांची इकाई की पहली महिला सचिव
-भारतीय कंपनी सचिव संस्थान, रांची इकाई  की पहली महिला कोषाध्यक्ष
-भारतीय कंपनी सचिव संस्थान , रांची इकाई की सबसे कम उम्र की निर्वाचित सदस्या
-देश  के प्रतिष्ठित पत्र व पत्रिकाओं  में आलेख  और कविताएं प्रकाशित
-दूरदर्शन और आकाशवाणी केंद्रों से  कविता पाठ प्रसारित
– प्रथम महिला ऑफिस बियरर सम्मान – नई दिल्ली
-सारस्वत सम्मान – राष्ट्रीय मेधा मंच, नई दिल्ली
-हिंदी साहित्य श्री सम्मान  – अर्णव कलश असोसिएशन
– शान ए ऊर्दू सम्मान – राँची
-झारखंड काव्य गौरव सम्मान – राष्ट्रीय कवि संगम
-स्व. वेद प्रकाश बाजपेयी स्मृति  साहित्य सम्मान 2019 – परिमल प्रवाह ,पलामू