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Media। सोशल मीडिया और वर्तमान संदर्भ

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मनुष्य अपनी बात कहने को तड़पता है। हमारे अंदर अपनी भावनाओं को दूसरों तक पहुँचाने की एक प्यास है। हमारी यह प्यास आदिम प्यास है। इसी प्यास को तृप्त करने के लिए हमेशा अलग-अलग माध्यमों का प्रयोग होता रहा है।

कर्मचारी राज्य बीमा आयोग, इंदौर (मध्य प्रदेश) में सहायक निदेशक (राजभाषा) राकेश शर्मा ने कही। वे बीएनएमयू संवाद व्याख्यानमाला में सोशल मीडिया और वर्तमान संदर्भ विषय पर व्याख्यान दे रहे थे।

उन्होंने कहा कि हर युग में एक आदमी दूसरे से जुड़ने और उस तक अपनी बात पहुंचाने का प्रयास करता रहा है। हमेशा से मनुष्य की यह चाहत रही है कि उनकी जो कल्पना है, वह समाज तक पहुँचे। इसी क्रम में मीडिया का भी विकास हुआ। इस तरह मीडिया का विकास सभ्यता के विकास से जुड़ा हुआ है।

उन्होंने कहा कि मनुष्य जब वनों में रहता था, तब भी उसने अपनी बात को दूसरों तक पहुँचाने का प्रयास किया। पहले पत्थर पर चित्र बनाकर भावनाओं का प्रेषण किया जाता है। कालिदास ने मेघ को मीडिया बनाया। किसी ने वायु को माध्यम बनाया, तो किसी न कबूतरों को माध्यम बनाया। राम के समय में हनुमान संदेशवाहक बनकर सीता के पास गए। महाभारत काल में हरकारे आए।

उन्होंने बताया कि लेखक पाठक को अपने जैसा बनाने का प्रयास करता है। जैसे पुष्प दूसरों तक अपनी सुगंध पहुंचाता है, वैसे ही प्रज्ञावान आपने विचार पहुंचाते हैं। राम, कृष्ण, महावीर, बुद्ध आदि ने यही कियाह

उन्होंने कहा कि संप्रेषण की सबसे ज्यादा जरूरत प्रेमियों को होती है। प्रेम कल था, आज है और आगे भी रहेगा। प्रेम मर गया, तो मनुष्य का अस्तित्व खत्म हो जाएगा। टेलीफोन का आविष्कार भी मारकोनी ने अपनी प्रेमिका से बात करने के लिए किया। पत्र लिखने की पीड़ा भी गजब है। कागज पर लिखे मनोभावों से हम अतीत के मनुष्यों को जानने का प्रयास करते हैं।

उन्होंने कहा कि भारतीय परंपरा में संगीत की प्रस्तुति करने वाले को समाजी कहते हैं। अलग-अलग बाध्य यंत्र एक-दूसरे को पूरित करते हैं। सभी एक दूसरे से जुड़कर अर्थवान होते हैं। इस संसार में हमारी अकेली उपस्थित का कोई मायने नहीं है। हम भी समाज में अन्य लोगों से जुड़कर अपनी अर्थवत्ता सिद्ध करते हैं। इसमें मीडिया हमारी मददगार होती हैं।

उन्होंने कहा हमें मीडिया में अपने विचारों को संप्रेषित करते हुए काफी सतर्क रहने की जरूरत है। हमें भाषा का अच्छा ज्ञान होना चाहिए। हमें शब्दों का सही सही प्रयोग होना चाहिए। हमें लिखने की हड़बड़ी नहीं करनी चाहिए। वही लिखना चाहिए, जिससे समाज एवं राष्ट्र का व्यापक हित हो।

उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया हमारे युग का नया शब्द है। कोरोना काल में सोशल मीडिया का उपयोग और भी बढ़ गया। आज शहरों से ज्यादा ग्रामीण क्षेत्रों में सोशल मीडिया का उपयोग होता है। जिनके हाथों में खुड़पी एवं कुदाल है, उनके भी जेब में मोबाइल है।

उन्होंने कहा कि तकनीक के प्रभाव से हमारी जीवन की कई चीजें बदली हैं। लेकिन हमें तकनीकी का सकारात्मकता उपयोग करना चाहिए। सोशल मीडिया का उपयोग भी समाज के हित में हो।

उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया माध्यम ठीक है, लेकिन इसका उपयोग एवं प्रयोग गलत हो रहा है। इसमें काफी असंगति पैदा हो गई हैं। इसके कारण लोग समाज से कट रहे हैं और मानसिक अवसाद से ग्रसित हो रहे रहे हैं। सोशल मीडिया पर बात करते हुए और खेल खेलते हुए कई बच्चों ने आत्महत्या भी कर ली है।

उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया ने हमारे सोचने-समझने की क्षमता को कम कर दिया है। हमारी याददाश्त कमजोर हो गई है।

उन्होंने कहा कि हमें यह समझना होगा कि सूचना और ज्ञान में अंतर है। सूचना जरूरी है, लेकिन सूचना ज्ञान का स्थान नहीं ले सकती है।

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