BNMU : सेमिनार/वेबिनार- भारतीय शिक्षा-व्यवस्था : कल, आज और कल/ कार्यक्रम विवरण एवं फीडबैक लिंक

राष्ट्र मात्र भौगोलिक इकाई नहीं है। राष्ट्र एक जीवंत सांस्कृतिक इकाई है। राष्ट्र की जड़ें सभ्यता- संस्कृति एवं परंपरा में होती हैं। अतीत की धरातल पर ही राष्ट्र के वर्तमान एवं भविष्य का निर्माण होता है।

यह बात भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद् के अध्यक्ष प्रोफेसर डॉ. रमेश चंद सिन्हा ने कही।

वे दर्शन परिषद्, बिहार‌ एवं ठाकुर प्रसाद महाविद्यालय, मधेपुरा के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित राष्ट्रीय सेमिनार/वेबिनार का उद्घाटन कर रहे थे। कार्यक्रम का आयोजन सोमवार को भारतीय शिक्षा-व्यवस्था : कल, आज और कल विषय पर किया गया था।

उन्होंने कहा कि राष्ट्र अपनी इतिहास एवं परंपराओं से मूल्यों को ग्रहण करता है। मूल्य एकाएका सृजित नहीं होते हैं। मूल्य परंपराओं की श्रृंखला होते हैं। शिक्षा के जरिए राष्ट्र में मूल्यों का संरक्षण एवं संवर्धन होता है। कोई भी राष्ट्र बिना मूल्य के नहीं जी सकता है। भारतीय मूल्य अपने आप में विलक्षण मूल्य हैं। हम भौतिकवादी मूल्यों को प्रश्रय नहीं देते हैं।

उन्होंने कहा कि मनुष्य मात्र सामाजिक या बौद्धिक प्राणी नहीं है‌ और न ही मात्र भौतिक एवं मनोवैज्ञानिक प्राणी है। मनुष्य एक आध्यात्मिक प्राणी है।

इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए अखिल भारतीय दर्शन परिषद् के अध्यक्ष प्रोफेसर डॉ. जटाशंकर ने कहा कि सच्ची शिक्षा वही है, जो हमें एक अच्छा मनुष्य बना सके। हमें अच्छा जीवन जीने के योग्य बना सके।

उन्होंने कहा कि उपनिषद् काल में यह माना जाता था कि विद्या हमें इस लोक में उपलब्धियां दिलाती है और मोक्ष की ओर भी ले जाती है। लेकिन आज दुर्भाग्य की बात है कि विद्या नौकरी के लिए हो गई। पहले विद्या का लक्ष्य मुक्ति था, लेकिन अब विद्या का लक्ष्य नियुक्ति हो गया है। नई शिक्षा नीति मुक्ति एवं नियुक्ति इन दोनों के बीच समन्वय करने का प्रयास है।

सिंहानिया विश्वविद्यालय, राजस्थान के पूर्व कुलपति सोहन राज तातेड़ ने कहा कि शिक्षा हमारे लिए प्राण वायु के समान है। हमारे समाज से शिक्षा को निकाल दिया जाए, तो समाज लुटेरा हो जाएगा। आज विज्ञान इतना तरक्की कर रहा है, इसमें शिक्षा का अहम योगदान है।

दर्शन परिषद्, बिहार के पूर्व अध्यक्ष डॉ. प्रभु नारायण मंडल ने कहा कि शिक्षा सामाजिक बदलाव की एक अनिवार्य शर्त है। गरीबों की समस्या सिर्फ रोटी कपड़ा मकान नहीं है, बल्कि उसके अंदर अभी भी शिक्षा की कमी है। उनके घरों में शिक्षा की लौ जगानी होगी। उसके जीवन में सुधार लाने के लिए शिक्षा को बढ़ावा देना होगा। समाज के दबे-कुचले समुदाय को रोटी से अधिक ज्ञान की जरूरत है।

दर्शन परिषद्, बिहार के अध्यक्ष प्रोफेसर डॉ. बी. एन. ओझा ने कहा कि वैदिक समय की शिक्षा सबसे उच्चतम शिक्षा थी। लेकिन ओपनिवेशिक काल में मैकाले की शिक्षा के कारण देश अंधकार में चला गया।

उन्होंने कहा कि शिक्षा के चार स्तंभ- शिक्षक, विद्यार्थी, पाठ्यक्रम एवं ढांचागत व्यवस्था। इन चारों को दुरुस्त करने की जरूरत है। आज कॉलेजों की कमी है। वैश्विक स्तर पर हमारे विश्वविद्यालय प्रतिस्पर्धा नहीं कर पा रहे हैं।

उन्होंने कहा कि नियोजित शिक्षकों के अंदर हीनभावना का विकास हो रहा है। हमें ऐसी शिक्षा व्यवस्था करनी होगी, जिससे किसी को अपमानित नहीं होना पड़े।

उन्होंने कहा कि नई शिक्षा नीति एक आशा की किरण है। यदि इसका ठीक ढंग से क्रियान्वयन किया गया, तो हमारे व्यक्तित्व का भी विकास होगा और राष्ट्र का नवनिर्माण भी होगा। शिक्षा, संस्कार एवं सदाचरण से देश को बुलंदियों पर पहुंचा जा सकता है।प्रत्येक व्यक्ति देश की उन्नति के लिए जिम्मेवार है।

दर्शन परिषद्, बिहार के महामंत्री डॉ. श्यामल किशोर ने कहा कि शिक्षा के बगैर मनुष्य पशु के समान होता है। शिक्षा ही मनुष्य को पशु से अलग करती है। शिक्षा ही सामाजिक परिवर्तन की कुंजी भी है। सच्ची शिक्षा वही है, जो मानव जीवन को बेहतर बनाए।

उन्होंने कहा कि आज साधन की पवित्रता नहीं है। आज का नारा है कि जो कराए कमाई, हो उसी की पढ़ाई। अत: एन केन प्रकारेण सफल होना या नौकरी पाना ही जीवन का लक्ष्य हो गया है।

कार्यक्रम के मुख्य वक्ता हेमवती नंदन बहुगुणा केंद्रीय विश्वविद्यालय, गढ़वाल में फैकल्टी डेवलपमेंट सेंटर की निदेशक डॉ. इंदु पांडे खंडूरी ने कहा कि कल से आज तक का शिक्षा का सफर गुरुकुल शिक्षा पद्धति से गूगल प्रसारित ज्ञान की यात्रा है। आज से कल की शिक्षा गूगल से मुडल और मूक की ओर जाती हुई सी प्रतीत हो रही है। उन्होंने वैदिककालीन गुरुकुल शिक्षा पद्धति की खूबियों और चुनौतियों पर प्रकाश डाला। मैकाले की ब्रिटिश शिक्षा पद्धति के निहितार्थों को स्पष्ट किया और स्वामी विवेकानंद, टैगोर, जे. कृष्णमूर्ति और डॉ. राधाकृष्णन् के आध्यात्मिक दृष्टि से ओतप्रोत शिक्षा के द्वारा सामाजिक व्यक्तित्त्व विकास हेतु शिक्षा की चर्चा की।

उन्होंने कहा कि वर्तमान शिक्षा व्यवस्था 21 वीं सदी की नॉलेज कमीशन के प्रावधानों के शिक्षा नीति 2009 के मूल बिंदुओं की चर्चा की। उन्होंने कहा कि 2020 की शिक्षा नीति के बीज 2009 की नीति में बहुविषयक प्रस्ताव और लर्निंग आउटकम के विचारों में देखा जा सकता है। उन्होंने कहा कि 2020 की नीति में मूल्यों की शिक्षा का मार्ग स्पष्ट रूप से रेखांकित किये जाने की आवश्यकता है। वर्तमान शिक्षा नीति में अर्थ, उद्योग और तकनीकि की ओर अधिक जोर दिया जा रहा है, इसमें छात्रों को अर्थाजन के यंत्र में परिवर्तित होने की संभावनाएं दीख रही है, जिसके अपने खतरे होंगे। भविष्य में शिक्षा संतुलित विकास, संमाज कल्याण और आध्यात्मिक उन्नति के लिए हो, इसके दर्शन, साहित्य और संस्कृति को विज्ञान के समानांतर सुदृढ़ करना होगा।

उन्होंने कहा कि हमारे पुराने जमाने में शिक्षा प्राप्त करने की गुरुकुल परंपरा थी। हम विश्व गुरु के रूप में प्रतिष्ठित थे। हमने पूरे विश्व को योग, आयुर्वेद एवं आध्यात्म का ज्ञान दिया।

मुंगेर विश्वविद्यालय, मुंगेर की प्रति कुलपति प्रोफेसर डॉ. कुसुम कुमारी ने कहा कि अनुभवों से सीखा गया ज्ञान ही शिक्षा है। पूर्व की शिक्षा-दीक्षा विदेशी शिक्षा पर आधारित थी। हमारे यहां नालंदा विश्वविद्यालय एवं विक्रमशिला विश्वविद्यालय आदि शिक्षा के केंद्र थे। अगले 10 वर्षों में 50% छात्रों को शिक्षा में लाना है।

उन्होंने कहा कि गांधीजी दूरदृष्टि व्यक्ति थे। गांधी के विचारों को शिक्षा में शामिल करना होगा। आज हमें भविष्य की ओर देखना होगा। मूल्यपरक शिक्षा को बढ़ावा देना होगा। किसी भी देश का विकास से पूर्व वहां के मनुष्य का विकास करना होगा। नई शिक्षा नीति 2020 से हम भारतीयों को बहुत उम्मीदें हैं।

इस अवसर पर महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के पूर्व कुलपति डॉ. मनोज कुमार ने कहा कि रायपुर समाज के निर्माण के लिए अच्छा व्यवस्था का न्याय पूर्ण होना आवश्यक आवश्यक है। इसके लिए जरूरी है कि सबों को एक समान शिक्षा मिले। राष्ट्रपति का बेटा हो या भंगी की संतान सबकी शिक्षा एक समान आदर्श को हकीकत में बदलना पड़ेगा।आर्यभट्ट ज्ञान विश्वविद्यालय, पटना में शिक्षा संकायाध्यक्ष डॉ. ज्ञानदेव मणि त्रिपाठी ने कहा कि ने कहा कि लॉर्ड मैकाले अपनी भाषा से बहुत प्रेम करता था। वह अपने भाषा का प्रचार प्रसार हो या अपनी आंखों के सामने देखना चाहता था। इसलिए उसने अंग्रेजी भाषा को भारतीयों के ऊपर लाद दिया।‌भारत में 3 विश्वविद्यालय का स्थापना अंग्रेजी शासन के दौरान हुआ। इनका संचालन लंदन विश्वविद्यालय से होता था।

तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय, भागलपुर में शिक्षा संकायाध्यक्ष प्रोफेसर डॉ. राकेश कुमार ने कहा कि मीड डे मील स्कीम लागू होने से स्कूलों में बच्चों की संख्या बढ़ी। बच्चे एक साथ खाते हैं, तो उनमें समाजीकरण की भावना जगती है।

कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रधानाचार्य डाॅ. के. पी. यादव ने की। संचालन जनसंपर्क पदाधिकारी डाॅ. सुधांशु शेखर और एमएलटी काॅलेज, सहरसा के डाॅ. आनंद मोहन झा ने किया।

कार्यक्रम की शुरुआत महाविद्यालय के संस्थापक कीर्ति नारायण मंडल के चित्र पर पुष्पांजलि के साथ हुई। श्रद्धांजलि दी गई। खुशबू शुक्ला ने वंदना प्रस्तुत किया।

इस अवसर पर सिंडिकेट सदस्य डाॅ. जवाहर पासवान,  डाॅ. मिथिलेश कुमार अरिमर्दन, डाॅ. प्रकृति, डाॅ. विजया, डाॅ. याशमीन रसीदी, रंजन यादव, सारंग तनय, माधव कुमार, सौरभ कुमार चौहान, गौरब कुमार सिंह, अमरेश कुमार अमर, डेविड यादव, बिमल कुमार आदि उपस्थित थे। निम्न लिंक पर क्लिक कर हमारे पूरे कार्यक्रम को देख सकते हैं-

यूट्यूब पर कार्यक्रम देखने वाले प्रतिभागियों को भी सर्टिफिकेट दिया जाएगा.

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