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सामाजिक विज्ञान अनुसंधान में नैतिकता और नैतिक दुविधाएँ : चुनौतियाँ और समाधान विषय पर संवाद आयोजित।

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सामाजिक विज्ञान अनुसंधान में नैतिकता और नैतिक दुविधाएँ : चुनौतियाँ और समाधान विषय पर संवाद आयोजित 

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मधेपुरा। ठाकुर प्रसाद महाविद्यालय, मधेपुरा के तत्वावधान में बुधवार को एक ऑनलाइन संवाद का आयोजन किया गया। इस संवाद का विषय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान में नैतिकता और नैतिक दुविधाएँ : चुनौतियाँ और समाधान था।इसके मुख्य वक्ता दर्शनशास्त्र विभाग, मुम्बई विश्वविद्यालय, मुम्बई की प्रोफेसर डॉ. नमिता निम्बालकर थीं। उन्होंने अपने वक्तव्य में शोध, क्या है नैतिकता क्या है और हमें शोध नैतिकता के बारे में बात करने की आवश्यकता क्यों है ? इन बातों को विस्तार से बताया। इसके अलावा सामाजिक शोध के संचालन में छह निषिद्ध प्रक्रियाओं यथा- वैज्ञानिक अखंडता, शोध की स्वतंत्रता:, मानवीय गरिमा और गोपनीयता समूहों और संस्थानों का सम्मान आदि की भी चर्चा की गईं।

उन्होंने कहा कि सामाजिक विज्ञान अनुसंधान में नैतिकता एक महत्वपूर्ण विचार है। नैतिकता का पालन करके, शोधकर्ता अपने शोध की विश्वसनीयता और वैधता सुनिश्चित कर सकते हैं, मानव विषयों के अधिकारों की रक्षा कर सकते हैं, समाज के लिए एक सकारात्मक योगदान कर सकते हैं, और शोध की गुणवत्ता में सुधार कर सकते हैं।

उन्होंने बताया कि नैतिक मुद्दों के बारे में अधिकांश चर्चाएँ दो मुख्य श्रेणियों के इर्द-गिर्द घूमती हैं। ये हैं-सूचित सहमति का उपयोग और शोध प्रतिभागियों पर हानिकारक प्रभावों की संभावना।

इस अवसर पर दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय, गोरखपुर के पूर्व प्रतिकुलपति प्रो. सभाजीत मिश्र, दर्शन परिषद्, बिहार की अध्यक्ष प्रो. पूनम सिंह, प्रो. अविनाश कुमार श्रीवास्तव (नालंदा), प्रो. अनिल कुमार तिवारी (सागर), डॉ. आलोक टंडन (हरदोई), डॉ. प्रशांत शुक्ल (लखनऊ) आदि ने भी अपने विचार व्यक्त किए।

कार्यक्रम की अध्यक्षता एवं अतिथियों का स्वागत प्रधानाचार्य प्रो. (डॉ.) कैलाश प्रसाद यादव ने किया। संचालित आयोजन सचिव सह दर्शनशास्त्र विभागाध्यक्ष डॉ. सुधांशु शेखर ने किया। इस अवसर पर कई शिक्षक, शोधार्थी एवं विद्यार्थी उपस्थित थे।

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