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BNMU। डॉ. जवाहर पासवान : जीवन-संघर्ष और सामाजिक सरोकार

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बीएनएमयू संवाद यू-ट्यूब चैनल पर  व्याख्यान आयोजन
बी. एन. मंडल विश्वविद्यालय, मधेपुरा पर लगातार व्याख्यानों का आयोजन किया जा रहा है। इसी कड़ी में गुरूवार को पूर्वाह्न 11.00 बजे से यू-ट्यूब डाॅट काॅम/ बीएनएमयू संवाद यू-ट्यूब चैनल पर एक लाइव व्याख्यान का आयोजन किया गया। इसका विषय है- ‘जीवन-संघर्ष और सामाजिक सरोकार (भागीपुर से बीएनएमयू तक की यात्रा)’।

 

लाइव व्याख्यान के
वक्ता थे- डाॅ. जवाहर पासवान, जो टी. पी. कॉलेज, मधेपुरा में राजनीति विज्ञान के विभागाध्यक्ष सह बीएनएमयू, मधेपुरा के  सीनेट एवं सिंडिकेट के सदस्य हैं।
डाॅ. जवाहर ने बताया कि उनका जन्म उनके गांव आदर्श ग्राम भागीपुर, भागीपुर, आलमनगर, जिला मधेपुरा (बिहार ) में हुआ। वहीं से मध्य विधालय की शिक्षा प्राप्त करते हुए  नन्दकिशोर माधवानन्द उच्च विद्यालय,  आलमनगर से मैट्रिक की परीक्षा पास की। तब तक इन्होंने  महाविद्यालय को दूर से  ही देखा था, कभी भी कैम्पस में जाने का मोका नहीं मिला था।  इनके पिता छोटे किसान थे। हमेशा  कहा करते थे जब तुम मेट्रिक प्रथम श्रेणी से पास करेगा, तब तुमको फूल पेंट सर्ट देंगे और टी. एन. बी. काॅलेज, भागलपुर में पढ़ाएँगे। वे दिन-रात कड़ी मिहनत की और मैट्रिक प्रथम श्रेणी पास करने में सफल हो गये। इनके गाँव में पासवान समाज में पहले न तो कोई प्रथम श्रेणी से पास किए थे और न ही कोई कालेज में भागलपुर में पढ़े थे । खैर इन्हें पेंट सर्ट तो रिजल्ट के दिन ही मिल गया, जो मेरे जीवन काल का पेंट सर्ट था। लेकिन जब भागलपुर जाने की बातें होने लगीं, तब इनकी माता जी ने मना कर दिया। माँ बोली कि तुम्हे भागलपुर पढ़ने नहीं जानें दूँगी, क्योंकि तीन नदियों नाँव से पार करना परता है और गंगा भी जहाज से पार होना पड़ता है। तब इनकी माँ बोली तुम मधेपुरा में पढ़ो। फिर दूसरे ही दिन टी. पी. काॅलेज, मधेपुरा में इनका नामांकन हुआ। आगे ये यहाँ असिस्टेंट प्रोफेसर बने और विश्वविद्यालय के सीनेट एवं सिंडिकेट के सदस्य भी बने। आगे का इस यात्रा का विवरण शुक्रवार को ग्यारह बजे से बताया जाएगा।

 

जनसंपर्क पदाधिकारी डाॅ. सुधांशु शेखर ने बताया कि इस व्याख्यान का दूसरा भाग शुक्रवार को ग्यारह बजे से सुनिश्चित है। उन्होंने सभी शिक्षकों, शोधार्थियों, विद्यार्थियों एवं अभिभावकों से  अनुरोध किया है कि वे बीएनएमयू संवाद यू-ट्यूब चैनल पर पूर्वाह्न 11.00 बजे हमसे जुड़े और यह लाइव व्याख्यान सुनकर लाभ उठाएँ। यदि आपने यह चैनल सब्सक्राइब नहीं किया है, तो अविलंब सब्सक्राइब करने का कष्ट करें।

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बिहार के लाल कमलेश कमल आईटीबीपी में पदोन्नत, हिंदी के क्षेत्र में भी राष्ट्रीय पहचान अर्धसैनिक बल भारत -तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) में कार्यरत बिहार के कमलेश कमल को सेकंड-इन-कमांड पद पर पदोन्नति मिली है। अभी वे आईटीबीपी के राष्ट्रीय जनसंपर्क अधिकारी हैं। साथ ही ITBP प्रकाशन विभाग की भी जिम्मेदारी है। पूर्णिया के सरसी गांव निवासी कमलेश कमल हिंदी भाषा-विज्ञान और व्याकरण के प्रतिष्ठित विद्वान हैं। उनके पिता श्री लंबोदर झा, राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित शिक्षक हैं और उनकी धर्मपत्नी दीप्ति झा केंद्रीय विद्यालय में हिंदी की शिक्षिका हैं। कमलेश कमल को मुख्यतः हिंदी भाषा -विज्ञान, व्याकरण और साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिए देश भर में जाना जाता है। वे भारतीय शिक्षा बोर्ड के भी भाषा सलाहकार हैं। हिंदी के विभिन्न शब्दकोशों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके हैं। उनकी पुस्तकों ‘भाषा संशय-शोधन’, ‘शब्द-संधान’ और ‘ऑपरेशन बस्तर: प्रेम और जंग’ ने राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति अर्जित की है। गृह मंत्रालय ने ‘भाषा संशय-शोधन’ को अपने अधीनस्थ कार्यालयों में उपयोग के लिए अनुशंसित किया है। उनकी अद्यतन कृति शब्द-संधान को भी देशभर के हिंदी प्रेमियों का भरपूर प्यार मिल रहा है। यूपीएससी 2007 बैच के अधिकारी कमलेश कमल की साहित्यिक एवं भाषाई विशेषज्ञता को देखते हुए टायकून इंटरनेशनल ने उन्हें देश के 25 चर्चित ब्यूरोक्रेट्स में शामिल किया था। वे दैनिक जागरण में ‘भाषा की पाठशाला’ लोकप्रिय स्तंभ लिखते हैं। बीते 15 वर्षों से शब्दों की व्युत्पत्ति एवं शुद्ध-प्रयोग पर शोधपूर्ण लेखन कर रहे हैं। सम्मान एवं योगदान : गोस्वामी तुलसीदास सम्मान (2023) विष्णु प्रभाकर राष्ट्रीय साहित्य सम्मान (2023) 2000 से अधिक आलेख, कविताएँ, कहानियाँ, संपादकीय, समीक्षाएँ प्रकाशित देशभर के विश्वविद्यालयों में ‘भाषा संवाद: कमलेश कमल के साथ’ कार्यक्रम का संचालन यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए हिंदी एवं निबंध की निःशुल्क कक्षाओं का संचालन उनका फेसबुक पेज ‘कमल की कलम’ हर महीने 6-7 लाख पाठकों द्वारा पढ़ा जाता है, जिससे वे भाषा और साहित्य के प्रति जागरूकता बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं। बिहार के लिए गर्व का विषय : आईटीबीपी में उनकी इस उपलब्धि और हिंदी के प्रति उनके योगदान पर पूर्णिया सहित बिहारवासियों में हर्ष का माहौल है। उनकी इस सफलता ने यह साबित कर दिया है कि बिहार की प्रतिभाएँ राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी छाप छोड़ रही हैं। वरिष्ठ पत्रकार स्वयं प्रकाश के फेसबुक वॉल से साभार।