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BNMU। भूपेंद्र नारायण मंडल : संक्षिप्त परिचय

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सुप्रसिद्ध समाजवादी नेता भूपेंद्र नारायण मंडल का जन्म रानीपट्टी, मधेपुरा (बिहार) के जमींदार परिवार में  एक फरवरी, 1904 को हुआ था।

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आपके पिता का नाम जयनारायण मंडल और माता का नाम दानावती देवी था। आपकी पत्नी का नाम राधा देवी था, जो अरबना, बरहारा कोठी, जिला-पूर्णिया की निवासी थीं। आपका विवाह 1926 में हुआ था।

आपकी प्रारंभिक शिक्षा मधेपुरा में हुई। महात्मा गाँधी के आह्वान पर आपने 1921 ई. में  विद्यालय बहिष्कार आंदोलन का नेतृत्व किया। इस कारण आपको उच्च विद्यालय, मधेपुरा से निष्कासित कर दिया गया।

आगे आपने भागलपुर के टी. एन. जे. काॅलेज, संप्रति टी. एन. बी. काॅलेज, भागलपुर से इंटरमीडिएट (अर्टस) एवं स्नातक (अर्टस) की परीक्षा उत्तीर्ण की। आपने पटना विश्वविद्यालय से विधि स्नातक की डिग्री ली।

तदुपरांत1930 ई. से आप एक अधिवक्ता के रूप में सामाजिक एवं राजनीतिक कार्यों में बढ़चढ़ कर सक्रिय हुए। आप 1930 में त्रिवेणी संघ आंदोलन से भी संबद्ध रहे।

आपने 1940 में मधेपुरा के छात्रों द्वारा चलाए गए छुआछूत मिटाओ आंदोलन में भी सक्रिय भूमिका निभाई।

सन् 1941 में अंग्रेज सरकार के तत्कालीन एस. डी. ओ. राजेश्वरी प्रसाद सिंह के साथ आपकी तीखी झड़प हुई। आपने 13 अगस्त, 1942 को मधेपुरा स्थित ट्रेजरी बिल्डिंग को सील करके और फिर उस पर तिरंगा फहराकर विशाल जनसमुदाय का नेतृत्व प्रदान किया। आप 1947-1948 तक अखिल भारतीय कांग्रेस कमिटी के सदस्य रहे।

15 अगस्त, 1947 में भारत को स्वाधीनता मिली और इसके कुछ ही दिनों बाद जनवरी 1948 में महात्मा गाँधी की शहादत हुई।

1949 ई. में सोशलिस्ट पार्टी का गठन हुआ। इस दल की विचारधारा भूपेंद्र बाबू की मानसिकता के अनुकूल थी। आपने इस दल के  पल्लवन-पुष्पन में काफी परिश्रम किया। आप 1952 में मधेपुरा विधानसभा से इस दल के उम्मीदवार बनाए गए। लेकिन पार्टी संगठन के अभाव में आप विजयश्री से वंचित हो गए। आप 1954-1955 तक प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के राज्य सचिव रहे।

आपने 1953 में महामना कीर्ति नारायण मंडल के साथ मिलकर  टी. पी . कॉलेज, मधेपुरा की स्थापना में महती भूमिका निभाई। आप 1953-62 तक इस महाविद्यालय के सचिव और 1962-1971 तक अध्यक्ष रहे।

आगे 1957 का चुनाव आ गया, मधेपुरा के  आम-आवाम ने इन्हें सिर आंखों पर उठा लिया। आप 1957-62 तक बिहार विधान सभा के सदस्य रहे।  संपूर्ण सूबे बिहार में यह एकमात्र सोशलिस्ट पार्टी के विधायक थे।

आप 1959-1972 तक अखिल भारतीय सोशलिस्ट पार्टी के अध्यक्ष रहे।

आप 1962-1964 तक मधेपुरा लोकसभा के सदस्य रहे। 1962 के लोकसभा चुनाव में उन्हें भारी बहुमत से सफलता मिली थी। लेकिन न्यायालय में तथ्यों को गलत ढंग से रखकर चुनाव को अवैध ठहरा दिया गया। परिणामत: 1964 में उपचुनाव हुआ। इस उप चुनाव में उनको पराजय का सामना करना पड़ा।

आप अप्रैल 1966 में राज्यसभा के सदस्य निर्वाचित हुए और पुनः 1972 में बड़े ही ससम्मान के साथ इन्हें राज्यसभा के लिए चयनित किया गया। आपको परतंत्र भारत में दो बार और स्वतंत्र भारत में चार बार जेल – यात्रा करनी पड़ी। आपने बर्लिन, वियाना, लंदन, पेरिस,  फ्रैंकफर्ट, म्युनिख एवं रोम की विदेश यात्रा की।

सांसद रहते आपका 29 मई, 1975 को मधेपुरा जिलान्तर्गत टेंगराहा में महा-परिनिर्वाण हुआ। आपके नाम पर 10 जनवरी, 1992 ई. को तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री लालू प्रसाद यादव ने मधेपुरा में एक विश्वविद्यालय की स्थापना कर अविस्मरणीय काम किया। मधेपुरा की धरती के ही लाल सुप्रसिद्ध विद्वान प्रोफेसर डाॅ. रमेन्द्र कुमार यादव ‘रवि’ को विश्वविद्यालय का संस्थापक कुलपति होने का गौरब प्राप्त हुआ।

विश्वविद्यालय द्वारा आपके जीवन-दर्शन के प्रचार-प्रसार हेतु आपकी जन्मदिवस एवं महापरिनिर्वाण दिवस पर विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता रहा है। साथ ही कई स्मारिकाएँ भी प्रकाशित की गई हैं।

भूपेन्द्र नारायण जन्म शताब्दी आयोजन समिति ने भूपेन्द्र नारायण मंडल स्मृति ग्रंथ का प्रकाशन किया है।

साथ ही भूपेन्द्र नारायण मंडल विचार मंच, मधेपुरा द्वारा सदन में भूपेन्द्र नारायण मंडल पुस्तक का प्रकाशन किया गया है।

आगे आपके विचारों एवं कार्यों के प्रचार-प्रसार हेतु विश्वविद्यालय में भूपेन्द्र नारायण मंडल शोध-पीठ स्थापित करने की जरूरत है।

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बिहार के लाल कमलेश कमल आईटीबीपी में पदोन्नत, हिंदी के क्षेत्र में भी राष्ट्रीय पहचान अर्धसैनिक बल भारत -तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) में कार्यरत बिहार के कमलेश कमल को सेकंड-इन-कमांड पद पर पदोन्नति मिली है। अभी वे आईटीबीपी के राष्ट्रीय जनसंपर्क अधिकारी हैं। साथ ही ITBP प्रकाशन विभाग की भी जिम्मेदारी है। पूर्णिया के सरसी गांव निवासी कमलेश कमल हिंदी भाषा-विज्ञान और व्याकरण के प्रतिष्ठित विद्वान हैं। उनके पिता श्री लंबोदर झा, राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित शिक्षक हैं और उनकी धर्मपत्नी दीप्ति झा केंद्रीय विद्यालय में हिंदी की शिक्षिका हैं। कमलेश कमल को मुख्यतः हिंदी भाषा -विज्ञान, व्याकरण और साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिए देश भर में जाना जाता है। वे भारतीय शिक्षा बोर्ड के भी भाषा सलाहकार हैं। हिंदी के विभिन्न शब्दकोशों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके हैं। उनकी पुस्तकों ‘भाषा संशय-शोधन’, ‘शब्द-संधान’ और ‘ऑपरेशन बस्तर: प्रेम और जंग’ ने राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति अर्जित की है। गृह मंत्रालय ने ‘भाषा संशय-शोधन’ को अपने अधीनस्थ कार्यालयों में उपयोग के लिए अनुशंसित किया है। उनकी अद्यतन कृति शब्द-संधान को भी देशभर के हिंदी प्रेमियों का भरपूर प्यार मिल रहा है। यूपीएससी 2007 बैच के अधिकारी कमलेश कमल की साहित्यिक एवं भाषाई विशेषज्ञता को देखते हुए टायकून इंटरनेशनल ने उन्हें देश के 25 चर्चित ब्यूरोक्रेट्स में शामिल किया था। वे दैनिक जागरण में ‘भाषा की पाठशाला’ लोकप्रिय स्तंभ लिखते हैं। बीते 15 वर्षों से शब्दों की व्युत्पत्ति एवं शुद्ध-प्रयोग पर शोधपूर्ण लेखन कर रहे हैं। सम्मान एवं योगदान : गोस्वामी तुलसीदास सम्मान (2023) विष्णु प्रभाकर राष्ट्रीय साहित्य सम्मान (2023) 2000 से अधिक आलेख, कविताएँ, कहानियाँ, संपादकीय, समीक्षाएँ प्रकाशित देशभर के विश्वविद्यालयों में ‘भाषा संवाद: कमलेश कमल के साथ’ कार्यक्रम का संचालन यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए हिंदी एवं निबंध की निःशुल्क कक्षाओं का संचालन उनका फेसबुक पेज ‘कमल की कलम’ हर महीने 6-7 लाख पाठकों द्वारा पढ़ा जाता है, जिससे वे भाषा और साहित्य के प्रति जागरूकता बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं। बिहार के लिए गर्व का विषय : आईटीबीपी में उनकी इस उपलब्धि और हिंदी के प्रति उनके योगदान पर पूर्णिया सहित बिहारवासियों में हर्ष का माहौल है। उनकी इस सफलता ने यह साबित कर दिया है कि बिहार की प्रतिभाएँ राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी छाप छोड़ रही हैं। वरिष्ठ पत्रकार स्वयं प्रकाश के फेसबुक वॉल से साभार।

भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली द्वारा प्रायोजित दिनाँक 2 से 12 फरवरी, 2025 तक भोगीलाल लहेरचंद इंस्टीट्यूट ऑफ इंडोलॉजी, दिल्ली में “जैन परम्परा में सर्वमान्य ग्रन्थ-तत्त्वार्थसूत्र” विषयक दस दिवसीय कार्यशाला का सुभारम्भ।

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