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BNMU। दुनिया में विश्वगुरु के रूप में प्रतिष्ठित रहा है भारत : कुलपति

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भारत दुनिया में विश्वगुरु के रूप में प्रतिष्ठित रहा है। हमें यह प्रतिष्ठा हमारे देश के महान गुरुओं की बदौलत मिली है। हमारे ऋषि-मुनियों, साधकों-योगियों की हमारे राष्ट्र-निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका है।

यह बात कुलपति डॉ. ज्ञानंजय द्विवेदी ने कही। वह रविवार को आर. एम. कॉलेज, सहरसा द्वारा आयोजित एक दिवसीय ऑनलाइन वेबीनार का उद्घाटन कर रहे थे। वेबीनार का विषय था डेवलपिंग कंसंट्रेशंस अमांग स्टूडेंट्स थ्रू डिफरेंट एक्टिविटीज : रोल ऑफ टीचर ड्यूरिंग कोविड-19।

उन्होंने कहा कि भारत में गुरु-शिष्य परंपरा रही है। हमारे प्राचीन गुरु शिष्यों के सर्वांगीण विकास पर ध्यान देते थे। हमारी मान्यता है कि बिना गुरु के ज्ञान नहीं हो सकता है। साथ ही ज्ञान के लिए निरंतर अभ्यास जरूरी है। इसलिए हमें लॉकडाउन में भी अपना पठन-पाठन जारी रखना चाहिए।

कुलपति ने कहा कि ज्ञान से हमें मुक्ति मिलती है। यह मुक्ति केवल आध्यात्मिक मुक्ति नहीं, बल्कि सामाजिक-आर्थिक समस्याओं से भी मुक्ति है। आज कोरोना वायरस जैसी समस्या हमारे सामने आई है। इस समस्या का समाधान भी ज्ञान से ही होगा।

कुलपति ने कहा कि आज संपूर्ण विश्व कोरोना संक्रमण से त्रस्त है। कोरोना का समाज के सभी क्षेत्रों में दुष्प्रभाव पड़ा है। शिक्षा जगत भी कोरोना के कारण थोड़ा पीछे हो गया है।

उन्होंने कहा कि शिक्षक समाज का शिल्पकार है। हम इस कोरोना वायरस के पीरियड में भी ऑनलाइन के माध्यम से शिक्षा जगत को ऊंचा उठाने में लगे हुए हैं। हम अपने इस कार्य में निरंतर प्रयास करते रहेंगे।

कुलपति ने कहा कि कोरोना वायरस से उत्पन्न समस्याओं का समाधान एवं निदान हमारी परंपरा में है। हमारी संस्कृति में सादगी, संयम एवं सदाचार की शिक्षा दी गई है। हमारा योग और आयुर्वेद हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में सक्षम है। हमारी यह जिम्मेदारी है कि हम अपने पाठ्यक्रम में भारतीय सभ्यता-संस्कृति, दर्शन, योग- आयुर्वेद आदि को शामिल करें, ताकि हमारी भावी पीढ़ी इससे परिचित हो सके। ज्ञान विज्ञान के उच्च शिखर पर रखें ताकि मानव इन दोनों से अच्छे से परिचित हो सकें।

इस अवसर पर डीएसडब्ल्यू डॉ. अशोक कुमार यादव, जनसंपर्क पदाधिकारी डॉ. सुधांशु शेखर, एमएड विभागाध्यक्ष डॉ. बुद्धप्रिय उपस्थित थे।

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बिहार के लाल कमलेश कमल आईटीबीपी में पदोन्नत, हिंदी के क्षेत्र में भी राष्ट्रीय पहचान अर्धसैनिक बल भारत -तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) में कार्यरत बिहार के कमलेश कमल को सेकंड-इन-कमांड पद पर पदोन्नति मिली है। अभी वे आईटीबीपी के राष्ट्रीय जनसंपर्क अधिकारी हैं। साथ ही ITBP प्रकाशन विभाग की भी जिम्मेदारी है। पूर्णिया के सरसी गांव निवासी कमलेश कमल हिंदी भाषा-विज्ञान और व्याकरण के प्रतिष्ठित विद्वान हैं। उनके पिता श्री लंबोदर झा, राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित शिक्षक हैं और उनकी धर्मपत्नी दीप्ति झा केंद्रीय विद्यालय में हिंदी की शिक्षिका हैं। कमलेश कमल को मुख्यतः हिंदी भाषा -विज्ञान, व्याकरण और साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिए देश भर में जाना जाता है। वे भारतीय शिक्षा बोर्ड के भी भाषा सलाहकार हैं। हिंदी के विभिन्न शब्दकोशों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके हैं। उनकी पुस्तकों ‘भाषा संशय-शोधन’, ‘शब्द-संधान’ और ‘ऑपरेशन बस्तर: प्रेम और जंग’ ने राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति अर्जित की है। गृह मंत्रालय ने ‘भाषा संशय-शोधन’ को अपने अधीनस्थ कार्यालयों में उपयोग के लिए अनुशंसित किया है। उनकी अद्यतन कृति शब्द-संधान को भी देशभर के हिंदी प्रेमियों का भरपूर प्यार मिल रहा है। यूपीएससी 2007 बैच के अधिकारी कमलेश कमल की साहित्यिक एवं भाषाई विशेषज्ञता को देखते हुए टायकून इंटरनेशनल ने उन्हें देश के 25 चर्चित ब्यूरोक्रेट्स में शामिल किया था। वे दैनिक जागरण में ‘भाषा की पाठशाला’ लोकप्रिय स्तंभ लिखते हैं। बीते 15 वर्षों से शब्दों की व्युत्पत्ति एवं शुद्ध-प्रयोग पर शोधपूर्ण लेखन कर रहे हैं। सम्मान एवं योगदान : गोस्वामी तुलसीदास सम्मान (2023) विष्णु प्रभाकर राष्ट्रीय साहित्य सम्मान (2023) 2000 से अधिक आलेख, कविताएँ, कहानियाँ, संपादकीय, समीक्षाएँ प्रकाशित देशभर के विश्वविद्यालयों में ‘भाषा संवाद: कमलेश कमल के साथ’ कार्यक्रम का संचालन यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए हिंदी एवं निबंध की निःशुल्क कक्षाओं का संचालन उनका फेसबुक पेज ‘कमल की कलम’ हर महीने 6-7 लाख पाठकों द्वारा पढ़ा जाता है, जिससे वे भाषा और साहित्य के प्रति जागरूकता बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं। बिहार के लिए गर्व का विषय : आईटीबीपी में उनकी इस उपलब्धि और हिंदी के प्रति उनके योगदान पर पूर्णिया सहित बिहारवासियों में हर्ष का माहौल है। उनकी इस सफलता ने यह साबित कर दिया है कि बिहार की प्रतिभाएँ राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी छाप छोड़ रही हैं। वरिष्ठ पत्रकार स्वयं प्रकाश के फेसबुक वॉल से साभार।

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भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली द्वारा प्रायोजित दिनाँक 2 से 12 फरवरी, 2025 तक भोगीलाल लहेरचंद इंस्टीट्यूट ऑफ इंडोलॉजी, दिल्ली में “जैन परम्परा में सर्वमान्य ग्रन्थ-तत्त्वार्थसूत्र” विषयक दस दिवसीय कार्यशाला का सुभारम्भ।