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Indian culture। जितिया पर्व पर विशेष/ झूठी नानी का सच्चा प्यार

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जितिया पर्व पर विशेष/ झूठी नानी का सच्चा प्यार

मेरी नानी (माय) स्वतंत्रता सेनानी पेंशनधारी सिया देवी, माधवपुर (खगड़िया) एक धार्मिक महिला थीं। वे हिन्दू धर्म के सभी कर्मकांडों का पालन करती थीं, तबियत खराब होने के बावजूद गंगा स्नान करती थीं, शिवालय जाती थीं, साप्ताहिक ‘सत्संग’ में भाग लेती थीं और जीतिया आदि सभी व्रत करती थीं।

नानी की नियमित दिनचर्या एवं ईश्वर के प्रति आस्था के परिणामस्वरूप उनका स्वास्थ्य हमेशा बहुत अच्छा रहा। जीवन के अंतिम वर्षों में उनकी तबीयत थोड़ी खराब रहने लगी थीं, दवाई चल रही थीं। इसी बीच जितिया का व्रत आया। मैंने उनसे आग्रह किया या यूं कहें कि आदेश दिया कि जीतिया व्रत का उपवास मत कीजिए उन्होंने मेरा मन रखने के लिए कह दिया, “ठीक है”। इससे मुझे काफी खुशी हुई।लेकिन दूसरे दिन मुझे मां के द्वारा पता चला कि नानी ने कल सबसे छुपाकर जीतिया किया और उन्होंने दवाई भी नहीं ली। यह जानकर मुझे अपनी ‘झूठी नानी’ के ऊपर बहुत गुस्सा आ गया। मैंने नानी से ‘एक्सपलानेशन’ पूछा। उन्होंने कहा,”तोय खूब हमर तबियत कै देखें। ई तोहार धरम छिकौ। हमरा लेली बाल-बुतरू के जीवन ज्यादा जरूरी छै। बाल-बुतरू लेली हमरा जे करै के चाही, हमें करलिए।” ‘झूठी नानी’ के इतने ईमानदार एवं बेबाक उत्तर ने मेरा मुँह बंद कर दिया।सचमुच भारतीय नारी में विशेष रूप से मौजूद त्याग, तपस्या, प्रेम एवं सेवा की भावना ही भारतीय समाज का मूल आधार है। पुरूष स्त्री की इन कोमल भावनाओं को उसकी कमजोरी न समझें और उसे शुष्क बौद्धिकता एवं कोरी तार्किकता की कसौटी पर तौलें भी नहीं। हमें एक-दूसरे के प्रति सहज स्वीकार का भाव रखना चाहिए- अपने मनोनुकूल बदलने का आग्रह उचित नहीं है। हम सब एक-दूसरे की भावनाओं का ख्याल रखें और परिवार एवं समाज को मजबूती प्रदान करें।

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डॉ. सुधांशु शेखर, जनसंपर्क पदाधिकारी, बीएनएमयू, मधेपुरा, बिहार

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बिहार के लाल कमलेश कमल आईटीबीपी में पदोन्नत, हिंदी के क्षेत्र में भी राष्ट्रीय पहचान अर्धसैनिक बल भारत -तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) में कार्यरत बिहार के कमलेश कमल को सेकंड-इन-कमांड पद पर पदोन्नति मिली है। अभी वे आईटीबीपी के राष्ट्रीय जनसंपर्क अधिकारी हैं। साथ ही ITBP प्रकाशन विभाग की भी जिम्मेदारी है। पूर्णिया के सरसी गांव निवासी कमलेश कमल हिंदी भाषा-विज्ञान और व्याकरण के प्रतिष्ठित विद्वान हैं। उनके पिता श्री लंबोदर झा, राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित शिक्षक हैं और उनकी धर्मपत्नी दीप्ति झा केंद्रीय विद्यालय में हिंदी की शिक्षिका हैं। कमलेश कमल को मुख्यतः हिंदी भाषा -विज्ञान, व्याकरण और साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिए देश भर में जाना जाता है। वे भारतीय शिक्षा बोर्ड के भी भाषा सलाहकार हैं। हिंदी के विभिन्न शब्दकोशों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके हैं। उनकी पुस्तकों ‘भाषा संशय-शोधन’, ‘शब्द-संधान’ और ‘ऑपरेशन बस्तर: प्रेम और जंग’ ने राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति अर्जित की है। गृह मंत्रालय ने ‘भाषा संशय-शोधन’ को अपने अधीनस्थ कार्यालयों में उपयोग के लिए अनुशंसित किया है। उनकी अद्यतन कृति शब्द-संधान को भी देशभर के हिंदी प्रेमियों का भरपूर प्यार मिल रहा है। यूपीएससी 2007 बैच के अधिकारी कमलेश कमल की साहित्यिक एवं भाषाई विशेषज्ञता को देखते हुए टायकून इंटरनेशनल ने उन्हें देश के 25 चर्चित ब्यूरोक्रेट्स में शामिल किया था। वे दैनिक जागरण में ‘भाषा की पाठशाला’ लोकप्रिय स्तंभ लिखते हैं। बीते 15 वर्षों से शब्दों की व्युत्पत्ति एवं शुद्ध-प्रयोग पर शोधपूर्ण लेखन कर रहे हैं। सम्मान एवं योगदान : गोस्वामी तुलसीदास सम्मान (2023) विष्णु प्रभाकर राष्ट्रीय साहित्य सम्मान (2023) 2000 से अधिक आलेख, कविताएँ, कहानियाँ, संपादकीय, समीक्षाएँ प्रकाशित देशभर के विश्वविद्यालयों में ‘भाषा संवाद: कमलेश कमल के साथ’ कार्यक्रम का संचालन यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए हिंदी एवं निबंध की निःशुल्क कक्षाओं का संचालन उनका फेसबुक पेज ‘कमल की कलम’ हर महीने 6-7 लाख पाठकों द्वारा पढ़ा जाता है, जिससे वे भाषा और साहित्य के प्रति जागरूकता बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं। बिहार के लिए गर्व का विषय : आईटीबीपी में उनकी इस उपलब्धि और हिंदी के प्रति उनके योगदान पर पूर्णिया सहित बिहारवासियों में हर्ष का माहौल है। उनकी इस सफलता ने यह साबित कर दिया है कि बिहार की प्रतिभाएँ राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी छाप छोड़ रही हैं। वरिष्ठ पत्रकार स्वयं प्रकाश के फेसबुक वॉल से साभार।

भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली द्वारा प्रायोजित दिनाँक 2 से 12 फरवरी, 2025 तक भोगीलाल लहेरचंद इंस्टीट्यूट ऑफ इंडोलॉजी, दिल्ली में “जैन परम्परा में सर्वमान्य ग्रन्थ-तत्त्वार्थसूत्र” विषयक दस दिवसीय कार्यशाला का सुभारम्भ।

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